Teri Mehfil Mein Lekin Hum Na Honge
Author:
SANJEEV RANJANPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
ी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे डीपीटी की याद में उनके घनिष्ठ मित्रों की प्रस्तुति है। डीपीटी यानी देवी प्रसाद त्रिपाठी, जेएनयू के प्रसिद्ध छात्र नेता, राजीव गांधी के सलाहकार, शरद पवार की पार्टी के महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता, पूर्व राज्यसभा सांसद, कवि, लेखक और चिंतक, और इन सबसे ऊपर अपूर्व वक्ता व हाज़िरजवाब ज़िन्दादिल इंसान जिनके चाहनेवाले आपको हर जगह मिलेंगे। राजनीति में तो मिलेंगे ही हर पार्टी में, साहित्य में, पत्रकारिता में, रंगकर्मियों के बीच, फ़िल्म जगत में, हर जगह उनकी प्रतिभा के प्रति लोगों में गहरा आदर रहा और लोग उनसे बहुत प्यार से पेश आए।
इस पुस्तक में डीपीटी से सम्बद्ध सभी जिज्ञासाओं का उत्तर है। वह कहाँ पैदा हुए, किस पृष्ठभूमि में उनकी पढ़ाई-लिखाई और परवरिश हुई, वह छात्र-जीवन में कैसे थे, किस तरह वह विलक्षण वक्ता बने और विभिन्न भाषाओं पर चमत्कारी अधिकार प्राप्त किया, इलाहाबाद और जेएनयू में कैसे प्रसिद्ध हुए, राजीव गांधी के क़रीब कैसे आए, क्या परिस्थितियाँ बनीं कि वह शरद पवार से जुड़े, राज्यसभा में उनका कार्यकाल कैसा रहा, और उनकी यारबाशी के सारे क़िस्से जो उन्हें महफ़िलों का जान बनाती थीं। चूँकि लेख सारे घनिष्ठ मित्रों के हैं, इसलिए सारे तथ्य प्रामाणिक और बातें भावभीनी हैं। इस पुस्तक का एक और बड़ा आकर्षण है, उन्नीस पृष्ठों में डीपीटी का लम्बा साक्षात्कार—जिनका डीपीटी से मिलने का संयोग न हुआ, उनकी डीपीटी से मुलाक़ात हो जाएग
ISBN: 9789390971985
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: सुपरिचित आलोचक निर्मला जैन ने दिल्ली : शहर-दर-शहर जैसे सुपठ संस्मरणात्मक कृति से यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि न तो उनका जीवन एकरेखीय है, न उनकी भाषा और रचनात्मकता का मिज़ाज केवल आलोचनात्मक है। ‘ज़माने में हम’ नामक उनकी यह आत्मकथात्मक कृति उन संकेतों को सच साबित करती है। ‘ज़माने में हम’ को निर्मला जी ने आत्मवृत्त कहा है। उन्होंने आठ दशक पीछे छूट गई ज़िन्दगी को पलटकर यों देखा है कि निजी यादें न केवल उनके रचनात्मक जीवन के इतिहास की निर्मिति का तत्त्व बन गई हैं, बल्कि हिन्दी के लोकवृत्त के निर्माण में भी सहायक साबित होनेवाली हैं। हालाँकि यह उनके लिए जोखिम-भरा कार्य ही रहा होगा। क्योंकि उनके जीवन में अनेक रेखाएँ एक-दूसरे के समानान्तर—परस्पर टकराती, एक-दूसरे को काटती, उलझती-सुलझती हुई हैं। उनकी संश्लिष्ट बुनावट को तरतीबवार दर्ज करना निःसन्देह दुरूह रहा होगा। शायद इसीलिए वे अपनी आत्मकथा को ‘आधे-अधूरे सत्य से ज़्यादा कुछ’ होने का दावा नहीं करतीं। उनके मुताबिक यह स्थितियों और घटनाओं के पारावार का उनका अपना पाठ है। वे खुले मन से मानती हैं कि “...जो व्यक्ति उनमें साझीदार रहे हैं, जिन्होंने बराबर से मित्र या शत्रु या तटस्थ भाव से उनमें साझीदारी की है, सत्य का दूसरा सिरा तो उनके हाथ में है।” और यह इस आत्मकथा की बहुत बड़ी विशेषता है कि इसमें लेखिका स्वयं को बिलकुल निष्कवच भाव से प्रस्तुत करती हैं। स्तब्धकारी साफ़गोई से लबरेज़ इस कृति में ऐसी लोकतांत्रिकता इस बात का सुबूत है कि इसमें जीवन-सत्य का उद्घाटन ही मूल उद्देश्य है। दरअसल जीवट और उम्मीद के अन्तर्गुम्फित सत्य से संचालित जीवन की यह अविस्मरणीय कथा जीवन की रणनीति का पाठ भी है। मनुष्य की अपराजेयता में विश्वास जगानेवाली एक प्रेरक कृति है ‘ज़माने में हम’।
Bandhan: The Making Of A Bank
- Author Name:
Tamal Bandyopadhyay
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- Description: This is the story of Bandhan, the only bank that emerged in eastern India after Independence. Founded by the son of a sweet vendor, with a mere Rs 2 lakh, the sum total of his life savings. On 17 June, 2015, Chandra Shekhar Ghosh stepped out of the Reserve Bank of India building in Mumbai with the much-coveted banking licence, beating some of the country’s top corporate houses. This moment compensated for all the frustrations that had come along the way. A year later, Bandhan Bank was launched with 6.7 million small borrowers. So, how did Ghosh build India’s biggest MFI from scratch and then, along with his team, transform it into a universal bank? Bandhan: The Making of a Bank chronicles that journey. This is also Ghosh’s personal story-of a boy growing up in small-town Agartala struggling with poverty, but relentless in his ambition to make it big. He battles competition, hostile moneylenders, a tough economic climate and the perpetual lack of resources. Nobody in India perhaps knows better than him the psyche of a small borrower and the alchemy of doing business with the poor, profitably. This is one of India’s biggest entrepreneurial stories.
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