Rajkapoor : Srijan Prakriya
Author:
Jayprakash ChowkseyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
भारतीय आम आदमी का व्यक्तिगत गीत है भारतीय सिनेमा और राजकपूर इसके श्रेष्ठतम गायकों में से एक हैं। आज़ादी के चालीस वर्षों में आम आदमी के दिल पर जो कुछ बीता, वह राजकपूर ने अपने सिनेमा में प्रस्तुत किया। भविष्य में जब इन चालीस वर्षों का इतिहास लिखा जाएगा तब राजकपूर का सिनेमा अपने वक़्त का बड़ा प्रामाणिक दस्तावेज़ होगा और इतिहासकार उसे नकार नहीं पाएगा।</p>
<p>राजकपूर, नेहरू युग के प्रतिनिधि फ़िल्मकार माने जाते हैं, जैसे कि शास्त्री-युग के मनोज कुमार। इन्दिरा गांधी के युग के मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा।</p>
<p>आज़ाद भारत के साथ ही राजकपूर की सृजन-यात्रा भी शुरू होती है। उन्होंने 6 जुलाई, 1947 को ‘आग’ का मुहूर्त किया था और 6 जुलाई, 1948 को ‘आग’ प्रदर्शित हुई थी। भारत की आज़ादी जब उफक पर खड़ी थी और सहर होने को थी, तब राजकपूर ने अपनी पहली फ़िल्म बनाई थी। ‘आग’ आज़ादी की अलसभोर की फ़िल्म थी, जब ग़ुलामी का अँधेरा हटने को था और आज़ादी की पहली किरण आने को थी। ‘आग’ में भारत की व्याकुलता है, जो सदियों की ग़ुलामी तोड़कर अपने सपनों को साकार करना चाहता है। राजकपूर की आख़िर फ़िल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ 15 अगस्त, 1985 को प्रदर्शित हुई। इस फ़िल्म में राजकपूर ने उस कुचक्र को उजागर किया है, जो कहता है कि पैसे से सत्ता मिलती है और सत्ता से पैसा पैदा होता है। इस तरह राजकपूर ने अपनी पहली फ़िल्म ‘आग’ से लेकर अन्तिम फ़िल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ तक भारत के जनमानस के प्रतिनिधि फ़िल्मकार की भूमिका निभाई है।</p>
<p>यह राजकपूर जैसे जागरूक फ़िल्मकार का ही काम था कि सन् 1954 और 56 में उसने भारतीय समाज का पूर्वानुमान लगा लिया था और भ्रष्टाचार के नंगे नाच के लिए लोगों को तैयार कर दिया था। ‘जागते रहो’ के समय उनके साथियों ने इस शुष्क विषय से बचने की सलाह दी थी और स्वयं राजकपूर भी परिणाम के प्रति शंकित थे। परन्तु सिनेमा के इस प्रेमी का दिल उस गम्भीर विषय पर आ गया था। जो लोग राजकपूर को काइयाँ व्यापारी मात्र मानते रहे हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि बिना नायिका और रोमांटिक एंगल की फ़िल्म ‘जागते रहो’ राजकपूर ने क्यों बनाई?</p>
<p>राजकपूर और आम आदमी का रिश्ता सभी परिभाषाओं से परे एक प्रेमकथा है, जिसमें आज़ाद भारत की दास्तान है। राजकपूर की साढ़े अठारह फ़िल्में आम आदमी के नाम लिखे प्रेम-पत्र हैं। सारा जीवन राजकपूर ने प्रेम के ‘ढाई आखर’ को समझने और समझाने की कोशिश की। राजकपूर भारतीय सिनेमा के कबीर हैं।</p>
<p>राजकपूर का पहला प्यार औरत से था या सिनेमा से—यह प्रश्न उतना ही उलझा हुआ है, जितना कि पहले मुर्ग़ी हुई या अंडा।</p>
<p>उनके लिए प्रेम करना कविता लिखने की तरह था। प्रेम, औरत और प्रकृति के प्रति राजकपूर का दृष्टिकोण छायावादी कवियों की तरह था। औरत के जिस्म के रहस्य से ज़्यादा रुचि राजकपूर को उसके मन की थी। वह यह भी जानते थे कि कन्दराओं की तरह गहन औरत के मन की थाह पाना मुश्किल है, परन्तु प्रयत्न परिणाम से ज़्यादा आनन्ददायी था।</p>
<p>प्रेम और प्रेम में हँसना-रोना, राजकपूर की प्रथम प्रेरणा थी, तो सृजन-शक्ति का दूसरा स्रोत उनकी अदम्य महत्त्वाकांक्षा थी। ‘आग’ के नायक की तरह राजकपूर जीवन में कुछ असाधारण कर गुज़रना चाहते थे। जलती हुई-सी महत्त्वाकांक्षा उनका ईंधन बनी।</p>
<p>पृथ्वीराज उनकी प्रेरणा के तीसरे स्रोत रहे हैं। उन्हें अपने पिता के प्रति असीम श्रद्धा थी और वे हमेशा ऐसे कार्य करना चाहते थे, जिनसे उनके पिता की गरिमा बढ़े।</p>
<p>ऐसे थे राजकपूर और यह है उनकी प्रामाणिक और सम्पूर्ण जीवनगाथा।
ISBN: 9788126719570
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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एक बच्चा चालीस साल की दूरी से दुनिया को देखता है, उसकी हथेलियों में कसैला पानी-फल है।
एक आक्रान्त, अपने आप में डूबा अकेला बचपन और एक आशंकाओं में घिरा अनिर्णीत भविष्य, एक हताश और गहराता हुआ अन्धकार और एक मुक्ति का विश्वास दिलाता जगमग रौशन क्षितिज, एक भयग्रस्त पलायन और फिर पलटकर एक निर्भय प्रत्याघात।
जीवन के अनगिन धुँधले सूर्यास्तों और फिर उजालों और उम्मीदों से भरे पुनर्जीवन की मिसाल या प्रतिमान बनते उत्कट जीवन-संग्राम की मार्मिक और रोमांचक कथा कहती, चर्चित युवा रचनाकार-लेखक यतीश कुमार की यह आत्मकथा इस नए वर्ष, सन् 2024 में स्वयं उनके लिए अतीत के बीहड़ यथार्थ में दुबारा लौटकर दाख़िल होने का एक नया, चुनौतियों से भरा सृजनात्मक प्रयास है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह साहित्यचिन्तन ही नहीं, मानविकी के समस्त अनुशासनों की मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति अपने बचपन में दुबारा नहीं लौट सकता। इसके लिए किसी न किसी ऐसी युक्ति या डिवाइस के ईज़ाद की ज़रूरत होगी, जो स्मृतियों के धुँधलके में घिरीं तमाम सँकरी-उलझी पगडंडियों में उल्टी दिशा में रेंग सके।
यतीश कुमार ने अपने बचपन और अतीत में जाने के लिए जिस ‘युक्ति’ का आविष्कार किया है, उसे वे ‘अतीत का सैरबीन’ का नाम देते हैं। यह कोई भौतिक गैजेट नहीं है, यह भाषा, शब्द और वाक्यार्थों में अवस्थित एक नितान्त निजी और सृजनात्मक माध्यम है, जिसके सहारे वे देश के सुदूर दक्षिण-पूर्व में अपनी ज़िन्दगी के लिए छटपटाती एक छोटी-सी नदी किऊल के तट पर बसे एक अर्द्ध-ग्रामीण क़स्बे के जीवन के बीस वर्षों (1980-2000) की स्मृतियों का मार्मिक, सम्मोहक, विकट, साहसिक और ईमानदार सार्वजनिक रचनात्मक रोजनामचा दर्ज करते हैं। स्मृतियों के पुनर्लेखन या उत्कीर्णन की यह श्रमसाध्य और कलात्मक कोशिश है।
पूरी उम्मीद है समकालीन रचनात्मक परिदृश्य में ‘बोरसी भर आँच’ अपनी ख़ास जगह बनाएगी।
—उदय प्रकाश
Shri Rambhakt : Shaktipunj Hanuman
- Author Name:
Jairam Mishra
- Rating:
- Book Type:

- Description: ‘मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम’ ने कहा है—लोक पर जब कोई विपत्ति आती है तब वह त्राण पाने के लिए मेरी अभ्यर्थना करता है परन्तु जब मुझ पर कोई संकट आता है तब मैं उसके निवारणार्थ पवनपुत्र का स्मरण करता हूँ। अवतार श्रीराम का यह कथन हनुमानजी के महान व्यक्तित्व का बहुत सुन्दर प्रकाशन कर देता है। श्रीराम का कितना अनुग्रह है उन पर कि वे अपने लौकिक जीवन के संकटमोचन के श्रेय का सौभाग्य सदैव उन्हीं को प्रदान करते हैं और कैसे शक्तिपुंज हैं हनुमान कि जो श्रीराम तक के कष्ट का तत्काल निवारण कर सकते हैं। भगवान श्रीराम के प्रति अपनी अपूर्व, अद्भुत, अप्रतिम, एकान्त भक्ति के कारण अन्य की इसी प्रकार की भक्ति का आलम्बन बन जानेवाला हनुमान जैसा कोई अन्य उदाहरण विश्व में नहीं। यही कारण है कि संस्कृत से लेकर समस्त मध्यकालीन और आधुनिक भारतीय भाषाओं में श्री हनुमान में परम पावन चरित्र का गान किया गया है और उनके मन्दिर भारतवर्ष के प्रत्येक कोने में पाए जाते हैं। इस पुस्तक की रचना में ‘वाल्मीकीय रामायण’, ‘अध्यात्म रामायण’ तथा ‘आनन्द रामायण’ से विशेष सहायता ली गई है। ‘स्कंदपुराण’, ‘पद्मपुराण’ आदि एवं ‘महाभारत’ (वनपर्व) भी रचना में सहायक सिद्ध हुए हैं। गोस्वामी तुलसीदास की कृतियों—‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘गीतावली’, ‘कवितावली’ एवं ‘कम्बन’ रचित ‘कम्ब रामायण’ (तमिल रचना) से भी यत्र-तत्र सहायता ग्रहण की गई है। इनके अतिरिक्त श्री सुदर्शन सिंह ‘चक्र’ रचित ‘आंजनेय' कल्याण पत्रिका के ‘हनुमानांक’ (1975 ई.) तथा डॉ. गोविन्दचन्द्र राय की पुस्तक ‘हनुमान के देवत्व और मूर्ति का विकास’ आदि से भी यथावसर सामग्री प्राप्त की गई है।
Vivekanand
- Author Name:
Romain Rolland
- Book Type:

-
Description:
महान् भारतीय सन्त एवं चिन्तक रामकृष्ण का आध्यात्मिक ज्ञान ग्रहण करके उनके चिन्तन के बीज-कणों को सारे संसार में वितरित करने और अपना कार्य सफलतापूर्वक सम्पादित करनेवाले विवेकानन्द का जीवन निश्चय ही अत्यन्त गौरवपूर्ण एवं प्रेरणादायक है। विवेकानन्द ने अपनी यात्राओं एवं रामकृष्ण मिशन की स्थापना द्वारा पूर्व और पश्चिम के बीच निश्चय ही एक आध्यात्मिक पुल का निर्माण किया है। विश्व-विख्यात फ्रांसीसी उपन्यासकार रोमां रोलां कृत विवेकानन्द की जीवनी का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कराकर साहित्य अकादेमी ने एक बड़े अभाव की पूर्ति की है। विवेकानन्द के जीवन, कार्यों एवं विचारों का सम्यक् परिचय तो इसमें है ही, रामकृष्ण के जीवन एवं सिद्धान्तों को भी संक्षिप्त रूप में दे दिया गया है, जिससे इस कृति की उपयोगिता और भी बढ़ गई है।
दो वर्ष भारत-भर में और अनन्तर तीन वर्ष विश्व-भर में उनका परिभ्रमण उनकी स्वतंत्र स्वाभाविक चेतना और सेवा-भावना का सहज ही यथेष्ट पूरक सिद्ध हुआ। वह घर-समाज के बंधन से मुक्त, स्वच्छंद, ईश्वर के साथ निरंतर अकेले घूमते रहे। उनके जीवन का कोई क्षण ऐसा न था जिसमें उन्होंने ग्राम में, नगर में, धनी के, निर्धन के जीवन-स्पन्दन की वेदना, लालसा, कुत्सा और पीड़ा से साक्षात् न किया हो। वह जन के जीवन से एकाकार हो गए। जीवन के महाग्रन्थ में उन्हें वह मिला जो पुस्तकालय की समस्त पोथियों में नहीं मिला था।
पथचारी शिक्षार्थी के रूप में कैसी अद्वितीय शिक्षा उनको मिली!... अस्तबल में या भिखारी-टोले में सो रहनेवाले जगत्-बन्धु ही नहीं थे, वह समदर्शी थे...आज अछूतों के आश्रय में पड़े तिरस्कृत मँगते हैं तो कल राजकुमारों के मेहमान हैं, प्रधानमन्त्रियों और महाराजाओं से बराबरी पर बात कर रहे हैं, कभी दीनबन्धु रूप में पीड़ितों की पीड़ा को समर्पित हो रहे हैं, तो कभी श्रेष्ठियों के ऐश्वर्य को चुनौती दे रहे हैं और उनके निर्मम मानस में दुखी जन के लिए ममता जगा रहे हैं। पंडितों की विद्या से भी उनका परिचय था और औद्योगिक एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था की उन समस्याओं से भी, जो जनजीवन की नियामक हैं। वह निरन्तर सीख रहे थे, सिखा रहे थे और अपने को धीरे-धीरे भारत की आत्मा, उसकी एकता और उसकी नियति का प्रतीक बनाते जा रहे थे। ये तत्त्व उनमें समाहित थे और सारे संसार ने इनके दर्शन विवेकानन्द में किये।
Zamane Mein Hum
- Author Name:
Nirmala Jain
- Book Type:

- Description: सुपरिचित आलोचक निर्मला जैन ने दिल्ली : शहर-दर-शहर जैसे सुपठ संस्मरणात्मक कृति से यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि न तो उनका जीवन एकरेखीय है, न उनकी भाषा और रचनात्मकता का मिज़ाज केवल आलोचनात्मक है। ‘ज़माने में हम’ नामक उनकी यह आत्मकथात्मक कृति उन संकेतों को सच साबित करती है। ‘ज़माने में हम’ को निर्मला जी ने आत्मवृत्त कहा है। उन्होंने आठ दशक पीछे छूट गई ज़िन्दगी को पलटकर यों देखा है कि निजी यादें न केवल उनके रचनात्मक जीवन के इतिहास की निर्मिति का तत्त्व बन गई हैं, बल्कि हिन्दी के लोकवृत्त के निर्माण में भी सहायक साबित होनेवाली हैं। हालाँकि यह उनके लिए जोखिम-भरा कार्य ही रहा होगा। क्योंकि उनके जीवन में अनेक रेखाएँ एक-दूसरे के समानान्तर—परस्पर टकराती, एक-दूसरे को काटती, उलझती-सुलझती हुई हैं। उनकी संश्लिष्ट बुनावट को तरतीबवार दर्ज करना निःसन्देह दुरूह रहा होगा। शायद इसीलिए वे अपनी आत्मकथा को ‘आधे-अधूरे सत्य से ज़्यादा कुछ’ होने का दावा नहीं करतीं। उनके मुताबिक यह स्थितियों और घटनाओं के पारावार का उनका अपना पाठ है। वे खुले मन से मानती हैं कि “...जो व्यक्ति उनमें साझीदार रहे हैं, जिन्होंने बराबर से मित्र या शत्रु या तटस्थ भाव से उनमें साझीदारी की है, सत्य का दूसरा सिरा तो उनके हाथ में है।” और यह इस आत्मकथा की बहुत बड़ी विशेषता है कि इसमें लेखिका स्वयं को बिलकुल निष्कवच भाव से प्रस्तुत करती हैं। स्तब्धकारी साफ़गोई से लबरेज़ इस कृति में ऐसी लोकतांत्रिकता इस बात का सुबूत है कि इसमें जीवन-सत्य का उद्घाटन ही मूल उद्देश्य है। दरअसल जीवट और उम्मीद के अन्तर्गुम्फित सत्य से संचालित जीवन की यह अविस्मरणीय कथा जीवन की रणनीति का पाठ भी है। मनुष्य की अपराजेयता में विश्वास जगानेवाली एक प्रेरक कृति है ‘ज़माने में हम’।
Ramkrishna Pramhans
- Author Name:
Romain Rolland
- Book Type:

-
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“मुझे एक ऐसे महापुरुष के चरणों में बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है जिसका जीवन उसकी समस्त शिक्षाओं व उपदेशों की अपेक्षाकृत हज़ारों गुणा अधिक उपनिषदों की वाणी की एक उत्कृष्ट जीवित व्याख्या है, जो वास्तव में मानवरूप में उपनिषदों की एक जीवित आत्मा है...जो भारत के विभिन्न विचारों का समन्वय है...।” यह महापुरुष और कोई नहीं, रामकृष्ण परमहंस थे।
स्वामी विवेकानन्द आगे लिखते हैं : “भारत-भूमि हमेशा विचारकों और ऋषियों से समृद्ध रही है। शंकर के पास एक महान मस्तिष्क था और चैतन्य के पास एक विशाल हृदय था और अब वह समय आ गया था जब मस्तिष्क और हृदय—इन दोनों के एक समन्वित मूर्तरूप की आवश्यकता थी—एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जिसके अन्दर एक ही शरीर में शंकर के चमत्कारिक मस्तिष्क और चैतन्य के आश्चर्यजनक रूप से उदार व विशाल हृदय का समावेश हो; जो प्रत्येक सम्प्रदाय में एक ही आत्मा, एक ही परमात्मा को कार्य करते हुए देखता हो; जो प्रत्येक वस्तु के अन्दर भगवान को देखता हो, जिसका हृदय इस संसार में भारतवर्ष व उसके बाहर सब जगह समस्त दीन-दुखियों, दुर्बलों, पददलितों और पीड़ितों के लिए आर्तनाद करता हो और इसके साथ ही जिसकी विशाल तीव्र बुद्धि परस्पर विरोधी विभिन्न सम्प्रदायों के बीच संगति स्थापित करनेवाले उदार विचारों की कल्पना करती हो...और उनमें संगति स्थापित करके मस्तिष्क और हृदय के एक सार्वभौम धर्म को जन्म देनेवाली हो—ऐसे मनुष्य ने जन्म लिया था।...समय उसके अनुकूल था, यह आवश्यक था कि ऐसे मनुष्य का जन्म हो, और वह आया था, और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि उसका कर्मक्षेत्र एक ऐसी नगरी के निकट था, जो पाश्चात्य विचारों से पूर्ण थी, जो पश्चिमी विचारों के पीछे पागल हो उठी थी और जिस नगरी ने भारत के अन्य सब नगरों की अपेक्षा कहीं अधिक आचार-विचारों को अपनाया था। ऐसे स्थान में, बिना किसी किताबी ज्ञान के वह रहता था। इस महान मनीषी को अपना नाम तक भी लिखना न आता था, परन्तु हमारे विश्वविद्यालयों के बड़े-बड़े प्रतिभाशाली स्नातक उसकी बुद्धि की विराट शक्ति को देखकर दंग रह जाते थे...वह अपने समय का महान ऋषि था, जिसकी शिक्षाएँ वर्तमान समय के लिए सबसे अधिक लाभदायक हैं।”
...यदि मैं आपको एक भी सत्य बात कहता हूँ तो वह उसकी और केवल उसकी है और यदि मैंने आपसे कोई भ्रान्तिपूर्ण या ग़लत बातें कही हैं, तो वे सब मेरी अपनी हैं, उनका उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है।’’
“जिस मनुष्य की मूर्ति की मैं यहाँ स्थापना करना चाहता हूँ, वह तीस करोड़ नर-नारियों के दो सहस्र वर्षव्यापी आध्यात्मिक जीवन का परिपूर्ण रूप है। यद्यपि चालीस वर्ष हुए, उसका देहावसान (सन् 1886) हो चुका है, तथापि उसकी आत्मा आधुनिक भारत को प्राणदान कर रही है। वह गांधी के समान कर्मवीर नहीं था, कला या विचार में गेटे व टैगोर के समान प्रतिभाशाली नहीं था। वह बंगाल के एक छोटे से गाँव का रहनेवाला ब्राह्मण था, जिसका बाह्य जीवन संकीर्ण रूढ़ियों की सीमा में आबद्ध था। उसमें उल्लेख योग्य कोई विशेष घटना न थी, और तात्कालिक सामाजिक व राजनीतिक हलचल से वह सर्वथा पृथक् था; परन्तु उसके आन्तरिक जीवन में नाना देवताओं और मानवों का एक विचित्र समावेश था। उसका अभ्यन्तरीय जीवन उस सकल शक्ति की मूलाधार स्वरूपिणी दैवी ‘शक्ति’ का अंशमात्र था, जिस दैवी शक्ति की मिथिला के प्राचीन कवि विद्यापति और बंगाल के कवि रामप्रसाद ने वन्दना की है।
—रोमां रोलां
A Complete Biography Of Nick Vujicic : Become Your Own Miracle!
- Author Name:
Ashwini Bhatnagar
- Book Type:

- Description: Nicholas James Vujicic, famously known as Nick Vujicic, is a real-life ‘miracle man’ who, despite his severe disabilities, achieved impossible levels of success and fame. Australian-American Nick was born with extremely rare autosomal recessive congenital disorder which is characterized by the absence of arms and legs on human body. Nick’s parents were distressed by his condition, but Nick did not seem to mind it too much. He quickly adapted himself to doing things everyone does in daily life, and, as he grew older, charted a clear path for himself as a motivational speaker and Christian evangelist. He soon became an international icon with millions of fans and followers across the globe. Nick’s incredible journey is one of the rarest of rare inspirational life stories in which impossible odds were turned into deeply fulfilling successes. It will move you to strive for the next level of excellence in your own life.
Alaukik Yogini
- Author Name:
Shambhuratna Tripathi
- Book Type:

- Description: विद्रोह, वैराग्य, विद्वत्ता की विलक्षण विभूति योगिनी राधाबाई रूसी योगिनी मदाम एच.पी. ब्लावतस्की रूसी योगिनी राधाबाई (मदाम एच.पी. ब्लावतस्की) विश्व-इतिहास की अप्रतिम महिला हैं। रूस में जन्म लिया, लेकिन भारतीय योग और ब्रह्मविद्या के लिए जीवन अर्पित किया; सामंती परिवार की सदस्य थीं, लेकिन वैराग्यपूर्ण जीवन अपनाया; अल्पशिक्षित थीं, लेकिन पांडित्यपूर्ण ग्रंथ लिखे; महिला थीं, लेकिन तिब्बत में रहकर योग-साधना द्वारा अलौकिक शक्तियों पर अधिकार किया। लगभग एक शताब्दी पूर्व उनके तेज और ओज से संसार का प्रबुद्ध जगत् आंदोलित हो उठा था। महात्मा गांधी, महाकवि डब्ल्यू.वी. यीट्स, वैज्ञानिक डॉ. सी. कार्टर ब्लैक, कांग्रेस के संस्थापक सर ओ.ए. ह्यूम, दार्शनिक लीड बीटर आदि उनसे बहुत प्रभावित हुए थे तथा डॉ. एनी बेसेंट ने उनको अपना गुरु बनाकर अपने को धन्य माना था। उनका संपूर्ण जीवन साहस और संघर्ष, अलौकिकता और विलक्षणताओं, विद्रोह और वैराग्य, तप और त्याग से आपूरित रहा है। भारतीय संस्कृति की इस अनन्य सेविका और संपोषिका के जीवन का प्रत्येक पृष्ठ उपन्यास से अधिक रोचक, कविता से अधिक सम्मोहक तथा नीति-ग्रंथ से अधिक उद्बोधक है। हिंदी के पाठक इस विराट् व्यक्तित्व के महान् जीवन का पहली बार विस्तृत परिचय प्राप्त करेंगे।
Bharat Se Pyar
- Author Name:
R.M. Lala
- Book Type:

-
Description:
जमशेत जी नुसीरवान जी टाटा का जन्म 1889 में हुआ था। उनके जीवनकाल में भारत अंग्रेज़ों के शिकंजे में कसा रहा। फिर भी उनके द्वारा परिकल्पित परियोजनाएँ देश के आज़ाद हो जाने पर उसके विकास का आधार बनीं। अपनी प्रकृति से असाधारण होते हुए भी ये संस्थान अपने-अपने क्षेत्रों में दूसरों के लिए आदर्श बने हुए हैं। उनकी ढेर सारी उपलब्धियों में देश के कुछ बेहतरीन वैज्ञानिकों को तैयार करनेवाला बेंगलूर का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस; जमशेदपुर स्थित टाटा इस्पात संयंत्र, जो कि देश के व्यापार से विनिर्माण में संक्रमण करने का द्योतक है; उनकी पथ-प्रदर्शक पनबिजली परियोजना और दुनिया के लाजवाब होटलों में से एक मुम्बई का ताजमहल होटल शामिल है।
अपने हाथ में लिए अन्य कामों की भाँति जमशेत जी ने इन परियोजनाओं में एक ऐसे व्यक्ति की अमोघ नैसर्गिक वृत्ति को प्रकट किया जिसे पता था कि पराधीन राष्ट्र के गौरव की बहाली कैसे की जाए। उन्होंने देश की आज़ादी के बाद उसे दुनिया के अग्रणी राष्ट्रों में स्थान पाने में मदद की।
ये परियोजनाएँ जिस बड़े पैमाने की थीं, उसके लिए बहुत दम-गुर्दे की आवश्यकता थी। कुछ मामलों में तो बस लगे रहने की ज़िद थी जो कि रंग लाई—जैसे कि इस्पात परियोजना के लिए उपयुक्त जगह की तलाश करने का मामला असीम धैर्य के कारण हल हुआ। दूसरे मामलों में, जैसे—इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस में मान-मनुहार करने का उनका लाजवाब कौशल और धैर्य ही था जिसने आख़िरकार शंकालु वाइसराय लॉर्ड कर्जन से उन्हें मंजूरी दिलवाई।
‘भारत से प्यार’ में आर.एम. लाला ने जमशेत जी और उनके समय के जीवन्त चित्रण के लिए लन्दन की इंडिया ऑफ़िस लाइब्रेरी और दूसरे अभिलेखागारों की नवीन सामग्री के साथ-साथ उनके पत्रों का उपयोग किया। यह एक महत्त्वपूर्ण लेखा-जोखा है जो स्पष्ट कर देता है कि जशमेत जी की उपलब्धि वाक़ई मानीखेज़ थी और उनकी मृत्यु के सौ साल बाद भी ऐसा क्यों जान पड़ता है कि वे अपने समय से बहुत आगे थे।
Arjun Singh : Ek Sahayatri Itihaas ka
- Author Name:
Ramsharan Joshi
- Book Type:

- Description: जीवनी : चुरहट से दिल्ली तक देश के किसी विख्यात व जीवित राजनेता की जीवनी लिखना जोखिम-भरा काम है। जब जीवनी का नायक अर्जुन सिंह जैसा राष्ट्रीय नेता रहे, तब खंडन-मंडन की सम्भावना सतत रहेगी। केन्द्र व मध्य प्रदेश के विभिन्न मंत्री पदों और पंजाब के राज्यपाल पद पर रहनेवाले सिंह नेहरू-इन्दिरा काल के उन चन्द नेताओं में से एक थे जिनकी धर्मनिरपेक्षता, बहुलतावाद और समाजवाद में अभेद्य आस्था थी। वैश्वीकरण व एकलध्रुवीय व्यवस्था के दबावों के बावजूद सिंह ने राष्ट्रीय सम्प्रभुता को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा। उन्होंने अपनी प्रतिबद्धताओं की राजनीतिक क़ीमत भी चुकाई। वे विवादों और उपेक्षाओं के भी शिकार हुए लेकिन अपने संकल्प-पथ से डिगे नहीं। सिंह ने अपनी विफलताओं व उपलब्धियों के साथ अपना जीवन जिया। यह जीवनी चुरहट से दिल्ली तक की यात्रा तय करनेवाले पथिक अर्जुन सिंह के राजनीतिक बसन्त व पतझड़ की यथार्थपरक कहानी है।
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