
Smriti Mein Jeevan
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
144
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
288 mins
Book Description
v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main">स्मृतियाँ शक्ति देती हैं और स्मृतियों के सहारे प्रतिरोध की रचना भी हुई है। आकस्मिक नहीं कि नयी शताब्दी में संस्मरण लेखन में अभूतपूर्व सक्रियता देखी गई है। गद्य की ललित विधाओं में संस्मरण का दुर्निवार आकर्षण पाठकों के साथ लेखकों में भी रहा है। फिर यह गद्य कवि का हो तो इसका आकर्षण और अधिक हो जाता है। विख्यात कवि केदारनाथ सिंह के संस्मरणों की इस कृति की रूपरेखा स्वयं कवि ने तैयार कर दी थी जो अब पाठकों के हाथ में है। यहाँ कवि का अपना जीया-देखा समय-समाज है तो अनेक विभूतियों के अंतरग और हार्दिक चित्र भी। कवि की दृष्टि उन लोगों पर भी गई है जो भले ही बड़े नाम न थे किन्तु कवि के संपर्क में आए और किसी विशिष्ट गुण अथवा गतिविधि ने कवि के मन में स्थाई आवास बना लिया। पिछली पीढ़ी के अनेक लेखकों यथा भिखारी ठाकुर, अज्ञेय, हजारीप्रसाद द्विवेदी, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, त्रिलोचन, भीष्म साहनी, रघुवीर सहाय और नामवर सिंह के संस्मरण वरेण्य खंड में दिए गए हैं। कवि के सहचर रहे श्रीकांत वर्मा, सोमदत्त, देवेंद्र कुमार बंगाली, विजय मोहन सिंह और वरयाम सिंह पर लिखे स्मृति आलेखों को दूसरे खंड में रखा गया है। तीसरे खंड में कुछ अनाम लोग हैं जिनका प्रभाव कवि पर पड़ा। ‘स्मृति में जीवन’ की ख़ास बात यह है कि केदारनाथ सिंह की उन कविताओं को भी इन संस्मरणों के साथ दे दिया गया है जिनकी संरचना में स्मृति है अथवा इन संस्मरणों से जुड़ी कोई शख़्सियत। कवि की अनुपस्थिति में ये संस्मरण कवि की नयी उपस्थिति संभव कर रहे हैं जिसके आलोक में हमारा आज और बेहतर दिखाई देता है। सम्पादक द्वय ने कवि के गद्य संसार में से स्मृति के ये ख़ास प्रसंग चुनकर पाठकों के लिए रख दिए हैं, कहना न होगा कि इन संस्मृतियों में जीवन की उष्मा भरी हुई है।</