Arjun Singh : Ek Sahayatri Itihaas ka
Author:
Ramsharan JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
जीवनी : चुरहट से दिल्ली तक देश के किसी विख्यात व जीवित राजनेता की जीवनी लिखना जोखिम-भरा काम है। जब जीवनी का नायक अर्जुन सिंह जैसा राष्ट्रीय नेता रहे, तब खंडन-मंडन की सम्भावना सतत रहेगी। केन्द्र व मध्य प्रदेश के विभिन्न मंत्री पदों और पंजाब के राज्यपाल पद पर रहनेवाले सिंह नेहरू-इन्दिरा काल के उन चन्द नेताओं में से एक थे जिनकी धर्मनिरपेक्षता, बहुलतावाद और समाजवाद में अभेद्य आस्था थी। वैश्वीकरण व एकलध्रुवीय व्यवस्था के दबावों के बावजूद सिंह ने राष्ट्रीय सम्प्रभुता को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा। उन्होंने अपनी प्रतिबद्धताओं की राजनीतिक क़ीमत भी चुकाई।
वे विवादों और उपेक्षाओं के भी शिकार हुए लेकिन अपने संकल्प-पथ से डिगे नहीं। सिंह ने अपनी विफलताओं व उपलब्धियों के साथ अपना जीवन जिया। यह जीवनी चुरहट से दिल्ली तक की यात्रा तय करनेवाले पथिक अर्जुन सिंह के राजनीतिक बसन्त व पतझड़ की यथार्थपरक कहानी है।
ISBN: 9788126719501
Pages: 480
Avg Reading Time: 16 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान कृष्ण के लीलाधाम स्वरूप का विस्तृत विवेचन इस तरह प्रस्तुत किया गया है जिससे पाठक उनके लौकिक तथा दार्शनिक पक्षों को सहज ही हृदयंगम कर सकेंगे। लीलाधर भगवान् श्रीकृष्ण के क्रिया-कलापों के संक्षिप्त विवरण उनके पूरे जीवन-विस्तार से इस तरह चुने गए हैं कि उनका एक मनोहारी सर्वव्यापी और सम्पूर्ण चरित्र लोगों के सामने समुपस्थित हो सके। श्रीकृष्ण सम्बन्धी अनन्त एवं अपार कथा-सागर से कोई भी लेखक कुछ बूँदें ही चुन सकता है। शर्त व्यक्ति अथवा लेखक की अपनी धारणा का है। विश्वरूप श्रीकृष्ण में वह सब है जो समस्त प्रकृति अथवा मनुष्य के प्रज्ञान में संचित है। ज्ञेय अथवा अज्ञेय स्वरूप के सम्पूर्ण व्याख्यान की क्षमता बेचारे मनुष्य में कहाँ है। वह अपनी जिज्ञासा के अनुसार उस विश्वव्यापी चरित्र का एक नन्हा आयाम ही देख पाया है।
पं. जयराम मिश्र ने एक विनम्र जिज्ञासु की तरह कृष्ण के सच्चिदानन्द, विश्वात्मन् स्वरूप को इस पुस्तक में प्रस्तुत कर हिन्दी पाठकों की महती सेवा की है तथा भारतीय संस्कृति और संज्ञान को सर्व सुलभ बनाया है।
Jag Darshan Ka Mela
- Author Name:
Shivratan Thanvi
- Book Type:

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कुछ लेख मेरे पढ़े हुए थे, कई अन्य पहली बार पढ़े और छात्रों को भी दिए (यद्यपि आज के सामान्य छात्रों से यह आशा रखना प्राय: व्यर्थ सिद्ध होता है कि वे ध्यान दे-देकर कोई किताब या लेख पढ़ेंगे)। आप सहज, पारदर्शी गद्य लिखते हैं। कई सवाल इस तरह उठाते हैं कि नया पाठक भी समझ जाए।
—प्रो. कृष्णकुमार
इन दिनों शिक्षा को बृहत्तर आशयों और आदर्शों से काटकर ‘कौशल विकास’ में बदलने का अभियान ज़ोर-शोर से चल रहा है। सरकारी उपक्रम हों या निजी, हर जगह शिक्षा का लक्ष्य यही मान लिया गया है कि वह इनसानों को व्यावसायिक या तकनीकी कौशल में दक्ष ‘मानव-संसाधन’ में रूपान्तरित कर दे। यह ‘कौशल’ नितान्त प्राथमिक धरातल का है या परम जटिल स्तर का, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। भाषा, साहित्य, कला और मानविकी आदि इन दिनों, इस शक्तिशाली ‘शिक्षा-दर्शन’ की समझ के चलते, शिक्षा जगत में हर स्तर पर जैसे दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। ऐसे समय में
शिवरतन जी के लेखों को पढ़ना शिक्षा के वास्तविक आशय, मूल्य-बोध और व्यावहारिक समस्याओं के निजी अनुभवों पर आधारित आकलन से गुज़रना है।—पुरुषोत्तम अग्रवाल
शिक्षा पर लिखनेवाले अधिकतर लोग या तो किसी विचारधारा को टोहते दिखाई देते हैं या आँकड़ों का पुलिंदा खोलकर अच्छी-बुरी तस्वीर उकेरते हुए। शिक्षा पर सिद्धान्तों की कमी नहीं है। इसलिए उस पर लिखनेवाले लोग इनमें से या तो किसी सिद्धान्त के साथ नत्थी हो जाते हैं, या उसके किसी एक पहलू के आँकड़ों को बटोरकर प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग कम हैं जो तमाम सिद्धान्तों को पचाकर और शिक्षा की नई-नई बहसों को समझकर, लेकिन उनमें बहे बिना, स्वतंत्र होकर सोच सकें। शिवरतन थानवी ऐसे चुनिन्दा लोगों में ही हैं।
—बनवारी
शिक्षक एकबारगी बस हो नहीं जाते हैं, वह होते रहने की एक अन्तहीन और अनवरत प्रक्रिया है। उसके लिए चाहिए ‘प्रयोगशील सत्य’ में यक़ीन, और उसका व्यवहार करने का साहस और कौशल। शिवरतन जी पुरानी काट के शिक्षक हैं; लेकिन यहाँ पुराने का मतलब बीत जाने से, अप्रासंगिक या ग़ैरफ़ैशनेबल होने से नहीं है। उनके निबन्धों में आपको एक उदग्र सजगता मिलेगी, सावधानी और चौकन्नापन। जो कुछ भी नया दिमाग़ सोच रहा है, उससे परिचय की उत्सुकता तो है, लेकिन वे सख़्ती से हर किसी की जाँच करते हैं। ग्रहणशीलता उनका स्वभाव है और वे शिक्षा और समाज के रिश्ते के अलग-अलग पहलू पर विचार करने के लिए जहाँ से मदद मिले, लेने को तैयार हैं। उन्मुक्त रूप से लेने और देने को ही वे शिक्षा मानते हैं।
—अपूर्वानंद
शिवरतन जी पिछले छह दशकों से सक्रिय हैं और लगातार एक विद्यार्थी की निष्ठा से पूरी शिक्षा व्यवस्था को देखते-परखते और उस पर लिखते रहे हैं।...किसी किताब की प्रासंगिकता इस बात में भी होती है कि वह अपने समय के ज्वलन्त प्रश्नों से कितना मुठभेड़ करती है। वह लेखक या शिक्षक ही क्या जो समाज में व्याप्त अन्धविश्वासों, जादू-टोने के ख़िलाफ़ न लिखे; बराबरी, सामाजिक समरसता की बात न कहे।
—प्रेमपाल शर्मा
Issac Newton
- Author Name:
Dr. Preeti Srivastava
- Book Type:

- Description: "आइजक न्यूटन सर आइजक न्यूटन अपने समय के बड़े एवं प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में थे। उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके बारे में कहा जाता था— प्रकृति अँधेरे में थी, प्रकृति के नियम अँधेरे में थे, तब न्यूटन पैदा हुए और चारों ओर उजाला हो गया। गुरुत्वाकर्षण का प्रसिद्ध सिद्धांत, जिसके अनुसार पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है, न्यूटन ने स्थापित किया था। न्यूटन का महान् ग्रंथ ‘प्रिंसिपिया’ विश्वप्रसिद्ध है, जिसमें उनके गति-नियमों (Laws of Motion) की व्याख्या है। इसके अतिरिक्त उन्होंने और भी अनेक खोजें की थीं। प्रस्तुत पुस्तक में न्यूटन के जीवन से संबंधित अनेक महत्त्वपूर्ण संदर्भों एवं घटनाओं तथा उनके स्वभाव, व्यवहार व प्रवृत्तियों का ब्योरेवार वर्णन है। विश्वास है, इसे पढ़कर पाठकगण सर आइजक न्यूटन के जीवन से संबंधित अनेक तथ्यों एवं संदर्भों को जान सकेंगे। "
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