
Apani Sharton Per
Author:
Sharad PawarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
शरद पवार भारत की सर्वाधिक प्रभावशाली राजनैतिक हस्तियों में गण्य-मान्य हैं। पाँच दशक लम्बे अपने राजनैतिक जीवन में उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं हारा। चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। देश के रक्षामंत्री और फिर कृषि मंत्री के रूप में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। दो मौक़े ऐसे भी आए जब वे भारत के प्रधानमंत्री हो सकते थे। लोकप्रियता के ऊपर नीति और व्यावहारिकता को तरजीह देते हुए उन्होंने अक्सर सोच की नई धारा बनाई और अपने प्रशासनिक कौशल तथा सामंजस्यपूर्ण राजनीति के लिए प्रशंसा के पात्र बने।
वे भारत और महाराष्ट्र के इतिहास को साठ के दशक से देख रहे हैं। इस पुस्तक में उन्होंने गठबन्धन की राजनीति, कांग्रेस के भीतर लोकतंत्र के क्षरण, कृषि और उद्योग की स्थिति और भावी भारत के लिए सामाजिक समरसता तथा उदार दृष्टिकोण की अहमियत पर अपने विचार प्रकट किए हैं।
पुस्तक में वे देश पर आए संकट के कुछ क्षणों पर भी हमें दुर्लभ जानकारी देते चलते हैं, जिनमें आपातकाल और देश की क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय राजनीति पर उसके प्रभाव; 1991 में चन्द्रशेखर सरकार का पतन; राजीव गांधी और एच.एस. लोंगोवाल के बीच हुआ पंजाब समझौता; बाबरी मस्जिद ध्वंस; 1993 के मुम्बई दंगे; लातूर का भूकम्प; एनरॉन विद्युत परियोजना विवाद और श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा प्रधानमंत्री पद न लेने का फ़ैसला आदि निर्णायक महत्त्व के मुद्दे शामिल हैं। भारतीय राजनीति के कुछ बड़े नामों का रोमांचकारी आकलन भी उन्होंने किया है, जिससे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, वाई.बी. चव्हाण, मोरारजी देसाई, बीजू पटनायक, अटल बिहारी वाजपेयी, चन्द्रशेखर, पी.वी. नरसिम्हा राव, जॉर्ज फर्नांडीज और बाल ठाकरे के व्यक्तित्वों पर नई रोशनी पड़ती है।
'अपनी शर्तों पर’ में न सिर्फ़ देश के सबसे अनुभवी और प्रभावशाली नेताओं में से एक, शरद पवार, के अन्तर्दृष्टिपूर्ण संस्मरण हैं, बल्कि इस पुस्तक से हमें भारत के आधुनिक इतिहास को भी समझने का अवसर मिलता है।
ISBN: 9788126729890
Pages: 312
Avg Reading Time: 10 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Tulsi ram
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- Description: ‘मणिकर्णिका’ डॉ. तुलसी राम की आत्मकथा का दूसरा खंड है। पहला खंड ‘मुर्दहिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि ‘मुर्दहिया’ को हिन्दी जगत की महत्तपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया गया। साहित्य और समाज विज्ञान से जुड़े पाठकों, आलोचकों व शोधकर्ताओं ने इस रचना के विभिन्न पक्षों को रेखांकित किया। शीर्षस्थ आलोचक डॉ. नामवर सिंह के अनुसार ग्रामीण जीवन का जो जीवन्त वर्णन ‘मुर्दहिया’ में है, वैसा प्रेमचन्द की रचनाओ में भी नहीं मिलता। ‘मणिकर्णिका’ में ‘मुर्दहिया’ के आगे का जीवन है। आज़मगढ़ से निकलकर लेखक ने क़रीब 10 साल बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में बिताए। बनारस में आने पर जीवन के अन्त की प्रतीक ‘मणिकर्णिका’ से ही लेखक का जैसे नया जीवन शुरू हुआ। लेखक के शब्दों में ‘गंगा के घाटों तथा बनारस के मन्दिरों से जो यात्रा शुरू हुई थी, अन्ततोगत्वा वह कम्युनिस्ट पार्टी के दफ़्तर में समाप्त हो गई। मार्क्सवाद ने मुझे विश्व-दृष्टि प्रदान की, जिसके चलते मेरा व्यक्तिगत दुःख दुनिया के दुःख में मिलकर अपना अस्तित्व खो बैठा। मुर्दहिया में जो विचार सुप्त अवस्था में थे, वे ‘मणिकर्णिका’ में विकसित हुए।’ लेखक ने अपने जीवनानुभवों का वर्णन करते हुए उस ख़ास समय को भी विश्लेषित किया है जिसके भीतर प्रवृत्तियों का सघन संघर्ष चल रहा था। बनारस जैसे इस कृति के पृष्ठों पर जीवन्त हो उठा है। इस स्मृति-आख्यान में कलकत्ता भी है, अनेक वैचारिक सन्दर्भों के साथ। ‘मणिकर्णिका; डॉ. तुलसी राम के जीवन-संघर्ष की ऐसी महागाथा है जिसमें भारतीय समाज की अनेक संरचनाएँ स्वतः उद्घाटित होती जाती हैं।
Lucknow Ki Panch Raten
- Author Name:
Ali Sardar Zafari
- Book Type:
-
Description:
उर्दू के आधुनिक लेखक और कवि अली सरदार जाफ़री प्रगतिशील आन्दोलन के अगुआ रहे। न केवल स्वतंत्रता-सेनानी और आन्दोलन के कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने योगदान दिया, बल्कि कविता के अलावा गद्य-लेखन और विशेषकर भक्ति आन्दोलन पर मौलिक कार्य भी किया।
सरदार जाफ़री विख्यात मानवतावादी कवि पाब्लो नेरूदा और तुर्की कवि के मित्र रहे। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में जन्मे जाफरी ने दुनिया भी देखी और वक़्त के थपेड़े भी खाए। ‘लखनऊ की पाँच रातें’ यात्राओं, दोस्तियों और देश-विदेश में फैले जाने-अनजाने व्यक्तियों के बारे में लिखी किताब है। यह यात्रा-वृत्तान्त, संस्मरण, आत्म-स्मरण और रेखाचित्र—सबका मिला-जुला रूप है, लेकिन इसमें ज़बर्दस्त पठनीयता है।
बलरामपुर से मुम्बई और विदेश तक के सफ़र में अलीगढ़ के पड़ाव पर के.एम. अशरफ़ जैसे शिक्षक, मुहम्मद हबीब, इरफ़ान हबीब जैसे इतिहासकार, सज्जाद जहीर, ख़्वाजा अहमद अब्बास तथा इस्मत चुग़ताई जैसे प्रसिद्ध लेखकों का संग-साथ मिला। लखनऊ के पड़ाव पर सिब्ते हसन, यशपाल, रशीद जहाँ और मजाज़ मिले। ‘लखनऊ की पाँच रातें’ एक तरह से मजाज़ पर है।
दुर्लभ संस्मरणों की इस किताब में छोटे-छोटे मगर बड़ी अहमियत वाले प्रसंग आते जाते हैं तो उस सुनहरे दौर की रील आँखों के सामने घूम जाती है।
रूसी डाक्टरनी गेलेना से लेकर काक्स बाज़ार की चेहरू माँझी जैसी बेमिसाल स्त्रियों को भुलाना मुश्किल है। यह छोटी-सी ख़ूबसूरत किताब हर घर की शान समझी जाएगी।
Camera : Meri Tisari Ankh
- Author Name:
Radhu Karmakar
- Book Type:
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Description:
राधू करमाकर दरअसल राजकपूर के सबसे विश्वस्त सिनेमैटोग्राफ़र थे। ‘आवारा’ और ‘श्री 420’ जैसी उत्कृष्ट फ़िल्मों की उनकी ख़ूबसूरत फ़ोटोग्राफ़ी को आज भी दर्शक उत्सुकता और रोमांच से देखते और सराहते हैं। राधू करमाकर की गणना उस दौर के विश्व के दस महान सिनेमैटोग्राफ़रों में की जाती थी। सोवियत रूस में इनकी कुछ फ़िल्मों को सिनेमैटोग्राफ़ी के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था जिनका फ़्रेम-दर-फ़्रेम विश्लेषण करके सिनेमैटोग्राफ़ी के विद्यार्थी फ़ोटोग्राफ़ी के गुर सीखते थे। यह पुस्तक उसी महान सिनेमैटोग्राफ़र की आत्मकथा है। इसमें मामूली कृषक परिवार से निकलकर भारतीय सिनेमा के सिनेमैटोग्राफ़ी के क्षेत्र में उनके शिखर पर पहुँचने की रोचक यात्रा दर्ज है।
राधू करमाकर के बयान में विलक्षण शालीनता है जो बॉलीवुड की दिखावे और बड़बोली दुनिया से अलग है। इनकी यह शालीनता केवल शब्द-व्यवहार नहीं है, यह उनके निजी व्यक्तित्व का अनिवार्य हिस्सा है। इस आत्मकथा में न तो कोई तेवर है और न ही कोई नाटकीय पैंतरे।
Lokdeo Nehru
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:
- Description: रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुस्तक है 'लोकदेव नेहरू'। पंडित नेहरू के राजनीतिक और अन्तरंग जीवन के कई अनछुए पहलुओं को जिस निकटता से प्रस्तुत करती है यह पुस्तक, वह केवल दिनकर जी के ही वश की बात लगती है। दिनकर जी ने 'लोकदेव' शब्द विनोबा जी से लिया था जिसे उन्होंने नेहरू जी की श्रद्धांजलि के अवसर पर व्यक्त किया था। दिनकर जी का मानना भी है कि 'पंडित जी, सचमुच ही, भारतीय जनता के देवता थे।' जैसे परमहंस रामकृष्णदेव की कथा चलाए बिना स्वामी विवेकानन्द का प्रसंग पूरा नहीं होता, वैसे ही गांधी जी की कथा चलाए बिना नेहरू जी का प्रसंग अधूरा छूट जाता है। इसीलिए इस पुस्तक में एक लम्बे विवरण में यह समझाने की कोशिश गई है कि इन दो महापुरुषों के पारस्परिक सम्बन्ध कैसे थे और गांधी जी के दर्पण में नेहरू जी का रूप कैसा दिखाई देता है। गांधी जी और नेहरू जी के प्रसंग में स्तालिन की चर्चा, वैसे तो बिलकुल बेतुकी-सी लगती है, लेकिन नेहरू जी के जीवन-काल में छिपे-छिपे यह कानाफूसी भी चलती थी कि उनके भीतर तानाशाही की भी थोड़ी-बहुत प्रवृत्ति है। अत: इस पुस्तक में पाठक नेहरू जी के प्रति दिनकर जी के आलोचनात्मक आकलन से भी अवगत होंगे। वस्तुत: दिनकर जी के शब्दों में कहें तो 'यह पुस्तक पंडित जी के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि है।'
Ye Shahar Lagai Mohe Ban
- Author Name:
Jabir Husain
- Book Type:
-
Description:
इस किताब के आख़िरी सफहे पर यह इबारत दर्ज है—
‘कहते हैं, रूहों की आँखें हमेशा सलामत होती हैं। उनकी याददाश्त कभी फिना नहीं होती। वो सिर्फ़ गैब
से आनेवाली किसी मोतबर आवाज़ की मुन्तजिर होती हैं।’
अपनी पिछली तमाम तहरीरों से बिलकुल अलग, इस किताब में, जाबिर हुसेन ने अपने पात्रों के नाम नहीं लिए। उस बस्ती का नाम लेने से भी परहेज़ किया, जिसकी बे-चिराग़ गलियों में इस लम्बी कथा-डायरी की बुनियाद पड़ी।
एक बिलकुल नए फ्रेम में लिखी गई यह कथा-डायरी कुछ लोगों को ज़िन्दा रूहों की दास्ताँ की तरह लगेगी। लेकिन इस दास्ताँ की जड़ें किसी पथरीली ज़मीं की गहराइयों में छिपी हैं।
जाबिर हुसेन ने इस पथरीली ज़मीन की गहराइयों में उतरने का ख़तरा मोल लिया है। जिन ज़िन्दा रूहों को उन्होंने इस तहरीर में अपना हमसफ़र बनाया है, वो अगर उनसे खूं-बहा तलब करें, तो उनके पास टूटे ख़्वाबों के सिवा देने को क्या है! जाबिर हुसेन जानते हैं, ये टूटे ख़्वाब उनके लिए चाहे जितने क़ीमती हों, बस्ती की ज़िन्दा रूहों के सामने उनकी कोई वक्अत नहीं।
Hum Nahin Change Bura Na Koy
- Author Name:
Surendra Mohan Pathak
- Book Type:
- Description: लोकप्रिय साहित्य हिन्दी अकादमिक जगत के लिए मूल्यांकन की चीज़ कभी नहीं रहा, लेकिन हिन्दी के शिक्षित समाज का बड़ा तबका उसके ही असर में रहता आया है। हमें लोकप्रिय साहित्य का बाज़ार तो दिखता है, उसकी आन्तरिक दुनिया की बनावट नहीं दिखती। ऐसे में लोकप्रिय लेखन के एक बड़े नाम सुरेन्द्र मोहन पाठक अपनी आत्मकथा लिखकर बहस और मूल्यांकन की एक नई ज़मीन तैयार कर रहे हैं। उनका अपना जीवन है भी ऐसा जिसके बारे में दूसरों को दिलचस्पी हो। कान में सुनने की मशीन, आँखों पर मोटे लेंस का चश्मा लगाए, नौकरी करते हुए, तीन सौ से अधिक सफल उपन्यास लिखनेवाले पाठक जी अपने ही रचे किसी अमर किरदार जैसे आकर्षक व्यक्तित्व वाले हैं। लेखन के तौर-तरीक़े और ख़ुद के लिए तय किया हुआ अनुशासन अचरजकारी। लाखों पाठकों की रुचि को समझना, उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के दबाव को धत्ता बताते हुए, उनके दिमाग़ पर क़ब्ज़ा जमाना—यह कोई मामूली बात नहीं है। इन सब बातों को समझने में एक औज़ार का काम कर सकती है यह आत्मकथा—'हम नहीं चंगे बुरा न कोय’। यह सुरेन्द्र मोहन पाठक के लेखकीय जीवन के सबसे हलचल वाले दिनों की कथा है। यह उनके समय के पल्प फ़िक्शन इंडस्ट्री को जानने के लिए भी ज़रूरी किताब है।
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