Mrityu Mere Dwar Par
Author:
Khushwant SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Unavailable
पुस्तक अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक खुशवन्त सिंह की पुस्तक ‘डेथ एट माई डोरस्टेप : ओबिट्युअरीज़’ का अनुवाद है जिसमें उन्होंने कई महान हस्तियों को श्रद्धांजलि देते हुए मृत्यु के विषय में अपना नज़रिया व्यक्त किया है।
पुस्तक के पहले खंड में उन्होंने दलाई लामा एवं आचार्य रजनीश के मृत्यु के बारे में विचारों को रखा है और बुढ़ापा, मृत्यु का अनुभव, मृत्यु के पश्चात् जीवन और मृतकों से ज्ञान के बारे में काफ़ी दिलचस्प अन्दाज़ में लिखा है। पुस्तक के दूसरे खंड में कई हस्तियों की मृत्यु के पश्चात् लिखी गई श्रद्धांजलियाँ जिनमें जेड.ए. भुट्टो, संजय गांधी, माउंटबेटन, रजनी पटेल, धीरेन भगत, प्रभा दत्त, हरदयाल, मुल्कराज आनन्द, नीरद बाबू, बलवन्त गार्गी, फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’, आर.के. नारायण, प्रोतिमा बेदी, नरगिस दत्त, अमृता शेरगिल, भीष्म साहनी सहित अपनी दादी माँ, राज-विला के छज्जू राम और अपने कुत्ते सिम्बा के अलावा अपने ऊपर भी समाधि लेख लिखा है।
इस पुस्तक को पढ़ते हुए खुशवन्त सिंह के चुटीले और खिलंदड़े अन्दाज़ की झलक मिलेगी और उनकी तटस्थता पाठकों को बेहद प्रभावित करेग
ISBN: 9789388933636
Pages: 191
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: वह अम्बेडकर ही थे जिनके सिद्धान्तों ने दलित वर्ग को नई चेतना प्रदान की। और बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा...उन्हीं के 1920 से लेकर 1956 तक के लेखों, अभिलेखों और अभिभाषणों का संकलन है। पाँच खंडों में विभाजित इस रचनावली में डॉ. अम्बेडकर की उसी सामग्री को लिया गया है जो अभी तक केवल मराठी में उपलब्ध थी। हमें खुशी है कि हम इस सामग्री को पहली बार सीधे हिन्दी में उपलब्ध करा रहे हैं। पहले खंड में बाबासाहेब के 1920 से 1928 तक के लेख व अभिभाषण प्रस्तुत हैं। अपने भाषणों में डॉ. अम्बेडकर ने जहाँ ब्राह्मणवाद पर कड़ा प्रहार किया, वहीं उन्होंने दलितों को भी नया दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया। प्रथम खंड में प्रस्तुत सामग्री बताती है कि किस तरह से हजारों सालों से दलितों पर हो रही जुल्म-ज्यादतियों के खिलाफ लडऩे के लिए बाबासाहेब ने दलित वर्ग को मानसिक रूप से सुदृढ़ किया और उन्हें उनके उद्धार का रास्ता भी दिखाया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह खंड दलित वर्ग ही नहीं बल्कि सामाजिक क्रान्ति में विश्वास रखनेवाले सभी महानुभावों की जिज्ञासाओं को तुष्ट करेगा।
Maulana Azad : Ek Jeevani
- Author Name:
S. Irfan Habib
- Book Type:

- Description: मौलाना अबुल कलाम आज़ाद स्वतंत्रता सेनानी, इस्लामी विद्वान, स्वतंत्र विचारक, अख़बारनवीस और आज़ाद भारत के पहले शिक्षामंत्री थे। उन्हें कोई औपचारिक तालीम तो नहीं मिली, लेकिन संस्कृति, दर्शन, भाषा और साहित्य के व्यापक स्वाध्याय से उन्होंने स्वयं कई विषयों में महारत हासिल की। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने कई पत्रिकाएँ और अख़बार निकाले। गांधी जी के अहिंसक सविनय अवज्ञा आन्दोलन से वह बहुत प्रभावित थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के बाद वह इसके सबसे युवा अध्यक्ष चुने गए। कांग्रेस के अध्यक्ष की हैसियत से, आज़ाद ने मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति के साथ-साथ दमनकारी ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ भी लड़ाई लड़ी। आज़ाद की इस गहन और विस्तृत जीवनी में, इतिहासकार एस. इरफ़ान हबीब पाठकों को आज़ाद की ज़िन्दगी के सबसे निर्णायक क्षणों से रू-ब-रू कराते हैं। एक अध्याय में हम आज़ाद की ग़ैर-मामूली परवरिश, उनके रसूख़दार ख़ानदान, इस्लामी दुनिया में उथल-पुथल और ज़िन्दगी के प्रति आज़ाद के स्वतंत्र विचारों के शुरुआती संकेत देखते हैं। इसके बाद यह किताब मौलाना आज़ाद के आलोचनात्मक इस्लामी चिन्तन, अख़्लाक़ी सवालों और पैन-इस्लामी बहसों की पड़ताल करती है। यह वह दौर था जिसने आज़ाद के मज़हबी नज़रिये और राष्ट्रवाद के प्रति उनके दृष्टिकोण को स्वरूप दिया। ‘आज़ाद, इस्लाम और राष्ट्रवाद’ शीर्षक अध्याय आज़ाद की सियासी ज़िन्दगी और समग्र राष्ट्रवाद में उनके अटूट भरोसे और मुस्लिम लीग की फ़िरक़ा-परस्त सियासत के प्रति उनके कट्टर विरोध के ब्योरे पेश करता है। ‘ग़ुबार-ए-ख़ातिर : धर्म और राजनीति से आगे’ शीर्षक अध्याय 1940 की दहाई में अहमदनगर फ़ोर्ट जेल में उनकी क़ैद के दौरान ख़तों की शक़्ल में लिखे गए निबन्धों संग्रह के ज़रिये आज़ाद के दार्शनिक विचारों और निजी पसन्द-नापसन्द को उजागर करता है। और आख़िर में, ‘एक नए भारत का निर्माण : शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान और बहुलवादी लोकाचार’ में प्राथमिक और प्रौढ़ शिक्षा की पहल के मार्फ़त देश की कमज़ोर शिक्षा प्रणाली को मज़बूत करने की आज़ाद की कोशिशों, देश की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक तरक़्क़ी को लेकर उनकी दूरअन्देशी और अभी अभी आज़ाद हुए देश की कला और संस्कृति को सँजोने में उनके योगदान को रेखांकित किया गया है। ‘मौलाना आज़ाद : एक जीवनी’ भारत के महान विचारकों और राष्ट्र-निर्माताओं में से एक की निर्णायक जीवनी है।
Yah Hamara Samay
- Author Name:
Nand Chaturvedi
- Book Type:

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Description:
इधर हिन्दी का गद्य-लेखन समृद्ध और सामाजिक जड़ता तथा रूढ़ियों पर अधिक उग्रता से प्रहार करने के लिए प्रतिबद्ध हुआ नज़र आता है। आज़ादी के लिए संघर्ष करते राष्ट्र-नायकों ने ‘समता और स्वतंत्रता’ के जिन दो महान लक्ष्यों को पाने का संकल्प किया, उन्हें धूमिल न होने का उत्साह हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य का केन्द्र है। मैंने इस पुस्तक में संकलित आलेखों में ‘समता और स्वतंत्रता’ के लिए अपनी प्रतिबद्धता को ‘पुनरावृत्ति’ की सीमा तक अभिव्यक्त किया है।
इस संकलन में उन्हीं सब सन्दर्भों और परम्पराओं को खँगाला गया है जो समता के विचारों और पक्षों को मज़बूत करती हैं। ‘धर्म’ के उसी पक्ष को बार-बार रेखांकित किया है जो धर्म के स्थूल, बाहरी कर्मकांड को महत्त्वहीन मानता है लेकिन जो संवेदना के उन सब चमकदार पक्षों को शक्ति देता है जो सार्वजनिक जीवन को गरिमामय बनाते हैं।
पुस्तक में अर्थ और बाज़ार केन्द्रित व्यवस्था के कारण हुई बरबादियों का बार-बार ज़िक्र हुआ है।
पुस्तक में कई विषयों पर लिखे आलेख हैं जिनमें समय के दबावों, उनको समता और स्वतंत्रता के वृहत्तर उद्देश्यों में बदलनेवाले आन्दोलनों की चर्चा है। ‘समता’ ही केन्द्रीय चिन्ता है जिसे अवरुद्ध करने के लिए विश्व की नई पूँजीवादी शक्तियाँ अपने सांस्कृतिक एजेन्डा के साथ जुड़ी हुई
हैं।
ये आलेख किसी ‘तत्त्ववाद’ की भूमिका नहीं हैं। ये उन चिन्ताओं की अभिव्यक्ति और साधारणीकरण हैं जो भारत के जनजीवन से जुड़ी और भविष्य के विकास की सम्भावनाएँ हैं। भारत की समृद्धि ‘समता और स्वतंत्रता’ की परम्पराओं से जुड़ी है; यह बताना इस पुस्तक का प्रयोजन है। आलेख ‘निराशा का कर्तव्य’ डॉ. राममनोहर लोहिया का है। मैंने उसका प्रस्तुतिकरण किया है।
—भूमिका से
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Thakkan Se Nagarjun : Ek Jeevan Yatra
- Author Name:
Shobhakant
- Book Type:

- Description: साहित्य की लगभग हर विधा में निष्णात माने जाने वाले नागार्जुन को लेकर अनेक लोगों ने अपने-अपने ढंग से लिखा है। कोई उनके परम्पराभंजक और प्रगतिशील रूप को अहमियत देता है, कोई उन्हें जनकवि कहता है, कोई नव-जनवादी। उनके प्रकृति-प्रेम पर मुग्ध होने वाले भी मिलेंगे, और उनके गद्य पर जान छिड़कने वाले भी कम नहीं हैं। कुछ हैं जो उनकी घुमक्कड़ी का ही बखान करते नहीं थकते। नागार्जुन ऐसी शख्सियत थे, जिनसे जुड़ा कोई न कोई किस्सा उनके शुभचिन्तकों-प्रशंसकों-समकालीनों और पाठकों तक के पास मिल जाएगा। इसीलिए यह भी स्वाभाविक है कि कई सच्ची-झूठी कहानियाँ भी उन्हें लेकर साहित्यिक दुनिया में बनीं और फैलीं। सार्वजनिक जीवन में जिस साहित्यकार की ऐसी बहुरंगी छवि है, उसकी निजी जिन्दगी कैसी रही होगी? साहित्यिक-रचनात्मक कर्म को सर्वोपरि मानने वाले नागार्जुन के रिश्ते अपने परिजनों के साथ किस तरह के रहे? पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में उनको कितना संघर्ष करना पड़ा? किस तरह के उतार-चढ़ाव से गुजरते हुए वे साहित्य में एक नई लकीर खींच सके? उनकी बहुआयामी सृजनात्मकता की पृष्ठभूमि क्या रही? इन सभी सवालों के जवाब आपको इस किताब में मिलेंगे। यह बाबा नागार्जुन की जीवनी है। जीवन की हर घटना को समेटने का दावा तो यह पुस्तक नहीं करती, लेकिन इसमें उनके जीवन के उन सभी पहलुओं पर रोशनी जरूर डाली गई है, जिनसे पता चलता है कि एक कर्मकांडी पिता की एकमात्र सन्तान ठक्कन कालान्तर में सबके चहेते ‘बाबा’ किस तरह बने। यह पुस्तक नागार्जुन को समझने की एक नई खिड़की खोलती है।
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