Subhedari
Author:
Avinash SubhedarPublisher:
Manovikas Prakashan LLPLanguage:
MarathiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 439.2
₹
549
Available
अविनाश सुभेदार यांचं ‘सुभेदारी' हे आत्मकथन म्हणजे लोकसेवेचं
असिधारा व्रत स्वीकारून संपूर्ण सेवाकाल त्याच निष्ठेने व्यतीत करणाऱ्या
एका ध्येयवेड्या ज्येष्ठ आयएएस अधिकाऱ्याचा, प्रसंगी अविश्वसनीय
वाटू शकणारा जीवनप्रवास आहे. या मनमोकळ्या निवेदनाचा विशेष
म्हणजे, त्याचा केंद्रबिंदू सर्वसामान्य माणूस हा आहे. साधारणपणे निवृत्त
अधिकारी आपल्या आठवणी शब्दबद्ध करतात, तेव्हा प्रकाशझोत स्वत:वर
ठेवतात. मात्र, सुभेदारांनी कटाक्षाने हा मोह टाळला आहे. ‘सुभेदारी'मधून
लेखकाने लोकहितास केंद्रस्थानी ठेवल्याचे पानोपानी जाणवते.
दुसरे वैशिष्ट्य म्हणजे, एखादा अपवाद सोडता कोठेही नकारात्मकता या
लिखाणात जाणवत नाही. तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी यांचे खासगी
सचिव म्हणून काम करताना या विलक्षण नेत्याचा सहवास त्यांना सलग चार
वर्षांपेक्षा अधिक काळ लाभला. त्याबाबतच्या आठवणी अत्यंत वाचनीय आहेत.
त्यात आजपर्यंत काळाच्या उदरात लपलेल्या अनेक प्रसंगांचा हृद्य परामर्श
वाचकांच्या मनातील राजकारण्यांविषयीची प्रतिकूल प्रतिमा काही अंशी बदलू
शकेल एवढा प्रभावी आहे. शासकीय सेवा पार पाडताना नोकरशाहीतील
अनेक आव्हाने झेलावी लागतात, कौटुंबिक जीवनाचा प्राधान्यक्रमही कित्येक
प्रसंगी दूर ठेवावा लागतो. ही बाजूही सुभेदार यांनी संयत शब्दांत मांडली आहे.
व्यक्तिगत स्तरावर विविध मान्यवरांबरोबर सुभेदार यांचे अत्यंत जिव्हाळ्याचे
ऋणानुबंध आहेत. तथापि, त्यांनी कधीही अशा नात्यागोत्याचा प्रभाव आपल्या
कारकिर्दीवर पडू दिला नाही. ही उपलब्धी आजच्या काळात दुर्मिळ म्हणावी लागेल.
ग्रामीण भागातून आलेला एक जिद्दी तरुण परिश्रम आणि सचोटी यांच्या जोरावर
सार्वजनिक जीवनात उच्च पदावर कसा पोहोचू शकतो, समाजोपयोगी भरीव
योगदान कसे देऊ शकतो, याचा वस्तुपाठ म्हणजे ‘सुभेदारी' हे प्रांजळ आत्मकथन
म्हणता येईल.
- दिलीप चावरे
‘टाइम्स ऑफ इंडिया'चे निवृत्त पत्रकार
Subhedari | Avinash Subhedar
सुभेदारी - अविनाश सुभेदार
ISBN: 9789363741591
Pages: 308
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
अपनी क्रान्तिकारी एवं साम्राज्य विरोधी गतिविधियों के लिए पुलिस-मुठभेड़ के बाद यशपाल 23 जनवरी, 1932 को इलाहाबाद में गिरफ़्तार हुए। इसके लिए उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा हुई। अपने कारावास के दौर में वे नैनी, सुल्तानपुर, बरेली, फतेहपुर आदि विभिन्न जेलों में रहे। राजनीतिक बन्दी होने से बी क्लास की सुविधाओं के कारण, जीवन की कोई विशेष आशा न होने पर भी, उन्होंने अपने इस समय को पढ़ने-लिखने और विभिन्न भाषाएँ सीखने में लगाया। उन्होंने कहानियाँ लिखीं और पढ़ी गई सामग्री के विस्तृत नोट्स लिए। दोस्तोवस्की, जुलियस फ्युचिक, ग्राम्शी और भगत सिंह आदि की तरह जेल-जीवन में एक तरह से उनका अधिकतर समय इस रचनात्मक उद्यम में ही बीता। जेल-प्रवास का दौर यशपाल के लिए वस्तुतः ढेर सारे फ़ैसलों का दौर भी था। जीवित बाहर निकलने के बाद भविष्य की चिन्ता तो थी ही, यह भी तय करना था कि अब करना क्या है।
यशपाल की यह डायरी उनकी रचनात्मक तैयारी का साक्ष्य है। इसमें उन अनेक कहानियों का पहला ड्राफ़्ट मिलता है जो बाद में ‘पिंजरे की उड़ान’ और ‘वो दुनिया’ में संकलित की गई। इस सामग्री में महात्मा गांधी की अहिंसा और सत्याग्रह, लेनिन की राजनीतिक पद्धति और फ़्रायड के मनोविश्लेषण जैसे परस्पर-विरोधी विचार-सरणियों तक पहुँचने और चीज़ों को देखने, समझने की यशपाल की चिन्ता को देखा जा सकता है। कुल मिलाकर यह सारी सामग्री उनकी उस रचनात्मक बेचैनी का साक्ष्य है जिससे उबरकर ही वे एक पत्रकार और लेखक के रूप में अपना रूपान्तरण करते हैं। इन्हें उनके जीवन के समान्तर रखकर पढ़ा जा सकता है। ये सिर्फ़ कुछ उदाहरण हैं कि यशपाल की यह जेल-डायरी उन्हें कैसे एक बेहतर रूप में समझने का अवसर देती है।
Inside Chhattisgarh: A Political Memoir
- Author Name:
Ilina Sen
- Book Type:

- Description: For thirty years, until his conviction in 2010 by the High Court, pediatrician Binayak Sen and his sociologist wife Ilina worked among people in Chhattisgarh's tribal heartland. They came here seeking fresh ideas for change—and stayed on. This fascinating memoir illuminates their journey and how their world imploded. Ilina vividly describes their years at the trade union CMSS, led by the iconic Shankar Guha Niyogi, where Binayak and three doctors started a hospital and she organized workers' education, joined the feisty women mine-workers' struggles and discovered the rich local history, cultural and farming traditions. These experiences later found expression in Rupantar, their own NGO and when the new state's government sought their advice for its women's policy and for Mitanan, a precursor of the national rural health mission. Candid and deeply felt, the book celebrates Chhattisgarh but also laments the lost opportunity for its inclusive and violence-free development.
Ramkrishna Pramhans
- Author Name:
Romain Rolland
- Book Type:

-
Description:
“मुझे एक ऐसे महापुरुष के चरणों में बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है जिसका जीवन उसकी समस्त शिक्षाओं व उपदेशों की अपेक्षाकृत हज़ारों गुणा अधिक उपनिषदों की वाणी की एक उत्कृष्ट जीवित व्याख्या है, जो वास्तव में मानवरूप में उपनिषदों की एक जीवित आत्मा है...जो भारत के विभिन्न विचारों का समन्वय है...।” यह महापुरुष और कोई नहीं, रामकृष्ण परमहंस थे।
स्वामी विवेकानन्द आगे लिखते हैं : “भारत-भूमि हमेशा विचारकों और ऋषियों से समृद्ध रही है। शंकर के पास एक महान मस्तिष्क था और चैतन्य के पास एक विशाल हृदय था और अब वह समय आ गया था जब मस्तिष्क और हृदय—इन दोनों के एक समन्वित मूर्तरूप की आवश्यकता थी—एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जिसके अन्दर एक ही शरीर में शंकर के चमत्कारिक मस्तिष्क और चैतन्य के आश्चर्यजनक रूप से उदार व विशाल हृदय का समावेश हो; जो प्रत्येक सम्प्रदाय में एक ही आत्मा, एक ही परमात्मा को कार्य करते हुए देखता हो; जो प्रत्येक वस्तु के अन्दर भगवान को देखता हो, जिसका हृदय इस संसार में भारतवर्ष व उसके बाहर सब जगह समस्त दीन-दुखियों, दुर्बलों, पददलितों और पीड़ितों के लिए आर्तनाद करता हो और इसके साथ ही जिसकी विशाल तीव्र बुद्धि परस्पर विरोधी विभिन्न सम्प्रदायों के बीच संगति स्थापित करनेवाले उदार विचारों की कल्पना करती हो...और उनमें संगति स्थापित करके मस्तिष्क और हृदय के एक सार्वभौम धर्म को जन्म देनेवाली हो—ऐसे मनुष्य ने जन्म लिया था।...समय उसके अनुकूल था, यह आवश्यक था कि ऐसे मनुष्य का जन्म हो, और वह आया था, और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि उसका कर्मक्षेत्र एक ऐसी नगरी के निकट था, जो पाश्चात्य विचारों से पूर्ण थी, जो पश्चिमी विचारों के पीछे पागल हो उठी थी और जिस नगरी ने भारत के अन्य सब नगरों की अपेक्षा कहीं अधिक आचार-विचारों को अपनाया था। ऐसे स्थान में, बिना किसी किताबी ज्ञान के वह रहता था। इस महान मनीषी को अपना नाम तक भी लिखना न आता था, परन्तु हमारे विश्वविद्यालयों के बड़े-बड़े प्रतिभाशाली स्नातक उसकी बुद्धि की विराट शक्ति को देखकर दंग रह जाते थे...वह अपने समय का महान ऋषि था, जिसकी शिक्षाएँ वर्तमान समय के लिए सबसे अधिक लाभदायक हैं।”
...यदि मैं आपको एक भी सत्य बात कहता हूँ तो वह उसकी और केवल उसकी है और यदि मैंने आपसे कोई भ्रान्तिपूर्ण या ग़लत बातें कही हैं, तो वे सब मेरी अपनी हैं, उनका उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है।’’
“जिस मनुष्य की मूर्ति की मैं यहाँ स्थापना करना चाहता हूँ, वह तीस करोड़ नर-नारियों के दो सहस्र वर्षव्यापी आध्यात्मिक जीवन का परिपूर्ण रूप है। यद्यपि चालीस वर्ष हुए, उसका देहावसान (सन् 1886) हो चुका है, तथापि उसकी आत्मा आधुनिक भारत को प्राणदान कर रही है। वह गांधी के समान कर्मवीर नहीं था, कला या विचार में गेटे व टैगोर के समान प्रतिभाशाली नहीं था। वह बंगाल के एक छोटे से गाँव का रहनेवाला ब्राह्मण था, जिसका बाह्य जीवन संकीर्ण रूढ़ियों की सीमा में आबद्ध था। उसमें उल्लेख योग्य कोई विशेष घटना न थी, और तात्कालिक सामाजिक व राजनीतिक हलचल से वह सर्वथा पृथक् था; परन्तु उसके आन्तरिक जीवन में नाना देवताओं और मानवों का एक विचित्र समावेश था। उसका अभ्यन्तरीय जीवन उस सकल शक्ति की मूलाधार स्वरूपिणी दैवी ‘शक्ति’ का अंशमात्र था, जिस दैवी शक्ति की मिथिला के प्राचीन कवि विद्यापति और बंगाल के कवि रामप्रसाद ने वन्दना की है।
—रोमां रोलां
Sinhavlokan
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

-
Description:
स्वाधीनता-संग्राम के लिए क्रान्तिकारियों के अवदान का इतिहास लिखने की बात एक लम्बे अरसे से उठ रही थी। कुछ प्रयत्न भी हुए लेकिन वे उन लोगों के द्वारा किए गए थे जो बाहर के लोग थे। उन्हें इस आन्दोलन के आन्तरिक परिप्रेक्ष्य का इस कारण भी पता नहीं था कि क्रान्तिकारियों ने अपनी गतिविधि का कोई लिखित विवरण अथवा डायरी प्रकाशित नहीं की थी। उनमें घटनाएँ तो थीं लेकिन अन्त: प्रसंगों के अभाव में वे प्राय: बेजान और अधूरे रह गए थे। ‘सिंहावलोकन’ के प्रकाशन ने इस कमी को पूरा किया पर यशपाल इसे इतिहास नहीं मानते। उनका कहना था कि क्रान्तिकारियों के कृतित्व और व्यक्तित्व के आन्तरिक प्रत्यक्षीकरण के बिना इस महान आन्दोलन का आकलन सम्भव नहीं है। निश्चय ही इसे सम्पन्न करने के लिए एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी जो इस आन्दोलन के वैचारिक एवं भावात्मक आयामों से वैयक्तिक रूप से जुड़ा हो। ‘सिंहावलोकन' द्वारा यशपाल ने इस महत्तम कार्य को अपनी रचनात्मक ऊर्जा देकर एक महाकाव्यात्मक रूप प्रदान कर दिया है जो इतिहास होने के साथ-साथ समूचे स्वाधीनता-आन्दोलन की समीक्षा और उनकी वैयक्तिक सम्पृक्ति का सृजनात्मक विवरण भी है।
‘सिंहावलोकन' के तीनों खंडों को एक जिल्द में प्रकाशित करने का महत्त्व इस कारण बहुत बढ़ जाता है कि इसमें चौथे खंड का वह अप्रकाशित हिस्सा भी दिया जा रहा है जो उनके जीवन-काल में प्रकाशित नहीं हो सका था।
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