Shyamal Ghat Amrit Kalash
Author:
Vinamra Sen SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
Awating description for this book
ISBN: 9788195024513
Pages: 232
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘नंगातलाई का गाँव’—इस ‘स्मृति-आख्यान’ में डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी अपने दो लेखकीय रूपों में उपस्थित हैं। पहला—अपनी जीवनी के क़िस्सागो अर्थात् नंगातलाई और दूसरा—इस आख्यान के सजग लेखक यानी बिसनाथ। इस विलक्षण जुगलबन्दी के कारनामे में ‘आत्म’ लेखक का है और ‘कथा’ बिस्कोहर के बहाने भारतीय ग्रामीण जीवन सभ्यता की। ‘आत्म-व्यंग्य’ के कठिन शिल्प में दु:ख को मज़े लेकर कहने का करिश्मा जिस निरायास ढंग से सम्भव हुआ है उससे निराला, परसाई और नागार्जुन का स्मरण हो आता है।
दस अध्यायों में बमुश्किल समाहित बिस्कोहर कथा में लेखक ने पं. जगदम्बा पांडे जगेश, लक्खाबुआ, बल्दी बनिया, जनक दुलारी, सुग्गनजान, नदवी साहब, कृष्ण मोहम्मद, नैपाले, माने, अम्मा-दादा से लेकर अनेक अविस्मरणीय पात्रों का जो यथार्थ पुनर्सृजन किया है और उसमें उपस्थित-जागृत आम कुँजड़ा, बेड़नी, बनिया, मौलवी, भंगी, ठाकुर, ब्राह्मण आदि वर्ग के जय-पराजय, दु:ख-सुख, हास-परिहास, प्रेम-घृणा, मान-अभिमान, क्रोध-प्रसन्नता, विनम्रता-अहंकार आदि का सजीव उद्घाटन जिस निर्वैयक्तिता में किया है, वह आत्मकथा के आभिजात्य से मुक्ति का ऐसा बिन्दु है जिसमें नंगातलाई की यह कथा महाकाव्यात्मक गाथा के क़रीब पहुँच जाती है।
इस कालजयी आख्यान में लोक-सौन्दर्य के स्वाभिमान से पगी ऐसी सजल भाषा है जो शोख़, तीखी, मीठी, चोट खाई, लचीली और विदग्ध है। शब्द यहाँ अनेक अदेखी अनूठी भंगिमाओं में अर्थों का नया संसार रचते हैं। शब्दों की विपन्नता के रुदन के बीच यह किताब एक ऐसे आधार ग्रन्थ की तरह है जिसमें पूरबी अवधी का अजाना समृद्ध भाषा-संसार है।
प्रस्तुत कृति चूँकि लेखक के दो रूपों (जीवनीकार, आत्मकथा-लेखक) से बने प्रयोगधर्मी शिल्प में अपना कथा-विन्यास पाती है, अतः उसमें अतीत से लेकर भूमंडलीकरण तक के प्रभावों का यथार्थ इन्दराज है।
डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने स्मृति आख्यान की विधा के गौरव को जिस तरह पुनर्स्थापित किया है, वह हमारे समय की अनूठी और अप्रतिम साहित्यिक उपलब्धि मानी जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।
—लीलाधर मंडलोई
Baliya Bisrat Nahin
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- Description: इस पुस्तक की प्रसव-पीड़ा ने मुझे दुख भी दिया है और अपार सुख भी। दुख इस बात का कि अतीत के वे सुनहरे पल अब पुन: लौटकर नहीं आने वाले। और सुख इस बात का कि थोड़े दिनों के लिए ही सही, उन मनहर सुनहरे क्षणों को मैंने ज्यों का त्यों इस कृति में जिया है। जीने का मजा लिया है। इसमें कुछ प्रसंग तो ऐसे आये हैं, जिन्हें उरेहते समय मैं सिर्फ सुखी ही नहीं, आनन्द विभोर हो उठा हूँ, यथा 'कथा कन्या कलावती की', 'हम नाहीं जइबें गवनवाँ हे रामा', 'जब देवी बनी दिदिया', 'एक लड़कीनुमा लड़के की अजीब दास्तान', 'जब मान्य मुरली मनोहर सनिचरी से मिले' तथा 'मेरे शुभेच्छु शिवशंकर गौरीशंकर' आदि और भी कुछेक प्रकरण। इस किताब में कुछ ऐसी बातें आ पायी हैं, जिन्हें मैं देना चाहता था। मसलन बलिया (खासकर गुदड़ी बाजार) की नाचने-गाने वाली मशहूर तवायफों का इतिहास, मानीखेज भाँड़ (नाच) मंडलियों का इतिहास, विभिन्न प्रकारीय लोक नर्तकों-गायकों, स्वाँग सर्जकों का इतिहास, कुछ करतबी किन्नरों का इतिहास, जो मेरी जानिब सिकन्दर पुर में ज्यादा पाये जाते हैं। इसी तरह देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों, उच्च स्तरीय खिलाडिय़ों, वैज्ञानिकों तथा तबला, पखावज, बेंजू, पिस्टीन (बैण्डवादक), बाँसुरी आदि के वादकों का नामोल्लेख तक मैं नहीं कर सका हूँ। पुस्तक के प्राय: प्रसंग जाने, सुने, देखे, समझे तथा भोगे हुए यथार्थ पर आधारित हैं। कहीं-कहीं इन्हें मैंने कल्पना और अनुमान की आँखों से भी आँकने-झाँकने की कोशिश की है, मसलन 'नफवा चला ददरी देखने' या 'किस्सा-ए-कोलकाता' आदि। (इसी किताब से)
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