Bhartiya Sanskriti Ka Pravah
Author:
KripashankarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Academics-and-references0 Reviews
Price: ₹ 156
₹
195
Unavailable
प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय संस्कृति के प्रवाह का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया गया है।</p>
<p>इस पुस्तक में भारतीय संस्कृति के विकास का विवेचन उसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में किया गया है।</p>
<p>संस्कृति अपरिवर्तनशील नहीं होती, वरन् उत्पादन प्रणाली के विकसित होने के साथ संस्कृति भी रूपान्तरित होती रहती है। मनुष्य सामाजिक चेतना और सौन्दर्यवृत्ति की अभिव्यक्ति हर युग में करता है। संस्कृति की कहानी इसी अभिव्यक्ति की कहानी है।</p>
<p>भारतीय संस्कृति तथा जीवन-दर्शन का प्रारम्भ से ही जीवन के प्रति एकांगी दृष्टिकोण नहीं रहा है। सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास भारतीयों का उद्देश्य था। यह सत्य है कि कुछ धार्मिक समुदायों तथा दार्शनिकों ने जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया था। परन्तु सामान्य जीवन में जीवन के प्रति उल्लास बना रहा और भारतीय विचारकों ने जीवन के उद्देश्यों को चार पुरुषार्थों के रूप में प्रस्तुत किया।</p>
<p>भारत का इतिहास सहस्रों वर्ष पुराना है और यह आश्चर्य की बात है कि इस काल में अनेक साम्राज्य बने तथा बिगड़े, अनेक जातियों का उत्कर्ष तथा पतन हुआ, भारत ने अनेक विदेशी आक्रमण झेले परन्तु इतिहास की परम्परा नहीं टूटने पाई। भारत का इतिहास संश्लेषण के प्रयत्नों का इतिहास है। अनेक विदेशी जातियों, धर्मों तथा संस्कृतियों ने हमारी वर्तमान भारतीय संस्कृति का निर्माण किया है। इस प्रकार की मिश्रण की प्रक्रिया आज भी हमारे देश में देखी जा सकती है।</p>
<p>यह पुस्तक न केवल इस विषय के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी; वरन् साधारण पाठकों के लिए जो अपनी संस्कृति को समझना चाहते हैं, लाभदायक होगी।
ISBN: 9789352210329
Pages: 163
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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