Ram Katha
Author:
Hiralal ShuklaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Academics-and-references0 Ratings
Price: ₹ 200
₹
250
Available
आदिवासी जनजातियों की बोली हल्बी में रचित ‘राम कथा’ पुस्तक में सिर्फ़ राम की कथा ही नहीं है, बल्कि वह आध्यात्मिक चेतना भी है जिससे जीवन-उद्देश्य के लिए कठिन रास्ते और धुँधली दिशाएँ तय की जा सकती हैं और अपने सपनों के मुताबिक़ अपना संसार रचा जा सकता है। इस तरह अँधेरे में जैसे एक रोशनी हो—यह कथा—राम कथा।</p>
<p>गोस्वामी तुलसीदास की कृति ’रामचरितमानस’ ‘भक्ति-शक्ति और मुक्ति’ की कृति है। चार सौ वर्षों के बाद भी जन-जन में समाहित इस कृति में 'युग का समय और समय का युग' एक सम्पूर्णता में श्रेष्ठतम सृजन में 'देखने' और 'दिखने' को मिलता है। यह पुस्तक उसी समय-सृजन युग से जुड़ने और जोड़ने की एक सतत प्रक्रिया प्रतीत होती है।</p>
<p>यह पुस्तक रामकथा के बहाने हाशिए की ज़िन्दगी जी रही जनजातियों के लिए एक सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी तैयार करती है कि वही भक्ति सच्ची भक्ति है, जिसमें शक्ति के स्रोत हों और वही शक्ति वास्तविक शक्ति है, जिसमें मुक्ति की सम्भावना हो।
ISBN: 9788180319716
Pages: 95
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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और उस पर हो रहे आघातों को वे अपनी कविताओं का विषय बनाते हैं। मनुष्य की स्वाधीनता में उन्हें धर्म जहाँ भी बाधक लगता है वे उसका मुँहतोड़ प्रतिकार करते हैं। इस बिन्दु पर वे बड़े सेक्युलर (सांसारिक) हो जाते हैं जो निर्भय होकर किसी भी सत्ता से भिड़ना जानता है। राजनीति वह क्षेत्र है जहाँ से नंद बाबू का कवि ऊर्जा ग्रहण करता है। वे आततायी राजनीति का चेहरा उघाड़ते हैं और मनुष्यधर्मी राजनीति की प्रस्तावना भी करते हैं। उनका स्वाधीन भारत के समाजवादी दलों से सीधा जुड़ाव भी रहा और वे किसी कार्यकर्ता की तरह आन्दोलनों, रैलियों और चुनावों में भागीदारी करते रहे। उनके ये जीवनानुभव जब कविताओं में रूपान्तरित होकर आते हैं तब नॉस्टेल्जिया उनकी कविताओं की रूढ़ि नहीं शक्ति प्रतीत होता है। युवा आलोचक पल्लव ने परिश्रमपूर्वक रचनावली का सम्पादन किया है। उनकी भूमिका कवि के कृतित्व को गहराई से जानने-समझने के लिए आकृष्ट करती है। नंद चतुर्वेदी की काव्य यात्रा केवल कविताएँ लिखने तक सीमित नहीं थी। इस काव्य यात्रा में प्रभूत गद्य भी लिखा गया है। यह गद्य मोटे तौर पर दो प्रकार का है। चिन्तन-आलोचना-समीक्षा का गद्य और स्मृतियों का गद्य। ‘रचनावली’ के दूसरे खंड में चिन्तन-आलोचना-समीक्षा का गद्य संकलित कर लिया गया है। इस गद्य को पढ़ना नंद बाबू के काव्य सरोकारों को समझने का रास्ता देता है। ‘सप्त किरण’ शीर्षक से उन्होंने राजस्थान के कवियों की एक पुस्तक का सम्पादन भी किया था और इसे वे अस्तित्व रक्षा की संज्ञा देते थे। तो कहना न होगा कि अस्तित्व रक्षा के साथ प्रारम्भ हुआ आलोचना, सम्पादन और समीक्षा का यह सिलसिला पूरी शताब्दी तक नंद बाबू को सक्रिय बनाए रखता है। उन्होंने राजस्थान के हिन्दी कवियों के एक बड़े चयन का सम्पादन भी किया। गद्य लेखन नंद बाबू के लिए जीवनपर्यन्त आपद धर्म बना रहा। वे कवि थे और कविता के सम्बन्ध में निरन्तर विचार करना उन्हें प्रिय था। नंद बाबू कवि होने के साथ सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विचार के समर्थक भी हैं। वे साहित्य को लोक शिक्षण का सस्ता औजार भले न मानते रहे हों तब भी उन्हें लोक रुचियों के विविध पक्षों पर लिखना जरूरी लगता था। उनके ऐसे ही निबन्धों की किताब ‘यह हमारा समय’ में उनके दो दर्जन से अधिक निबन्ध संकलित हैं जो हमारे जीवन और समय के विविध समकालीन पक्षों पर विचार करते हैं। नंद बाबू के इन निबन्धों में प्रवाह और ताजगी तो है ही भाषा की सुन्दर छवियाँ भी हैं। मनुष्य की मुक्ति उनकी चिन्ताओं का सबसे बड़ा केन्द्र है और उसके लिए वे समता को आवश्यक शर्त मानते हैं। गैर-बराबरी से अधिक मनुष्य विरोधी उन्हें शायद कुछ नहीं लगता और इस विषय पर वे अनेक बार लिखते हैं। नंद बाबू ने ‘धर्मयुग’ जैसी पत्रिका के लिए लिखा तो लघु पत्रिकाओं और लघु समाचार-पत्रों के लिए भी लिखा। उनके इस गद्य लेखन में जहाँ काव्य की सौन्दर्यपक्षीय चिन्ताएँ हैं वहीं काव्य के उपयोगपक्ष की वस्तुनिष्ठ चिन्ताओं पर भी लगातार जिरह भी। कवि का यह गद्य उनके काव्य संसार को बेहतर ढंग से समझने का रास्ता देता है, मनुष्यता के रास्तों का संधान करता है तो इसे पढ़ना प्रसन्न गद्य को पढ़ना भी है। ‘रचनावली’ के तीसरे खंड में नंद चतुर्वेदी के कथेतर लेखन को सहेजा गया है जिसमें संस्मरण, डायरी, पत्रों के साथ व्याख्यान और साक्षात्कार भी हैं। वे इस गद्य लेखन में अपने समय और समाज की छोटी बड़ी तमाम व्याधियों पर नज़र दौड़ाते हैं और राजनीति व राजनेताओं के सम्बन्ध में भी दो-टूक लिखने में संकोच नहीं करते। एक लेखक के रूप में उन्होंने समाजवादी विचारधारा का पक्ष चुना है लेकिन उनकी विचारधारा किसी गिरोहबन्दी से जन्म नहीं लेती। राजस्थान में सक्रिय रहे प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के साथ उनका संवाद रहा। वे लघु पत्रिकाओं के लिए लिखते रहे और उन्हें पढ़कर एक सजग पाठक के रूप में अपनी प्रतिक्रिया भी देते रहे। उनके संस्मरण प्राय: राजस्थान के साहित्य से जुड़े उन लोगों पर होते थे जिनके अवदान से नई पीढ़ी अनभिज्ञ है। जिनमें पंडित गिरिधर शर्मा नवरत्न, हाड़ौती के कवि भैरूलाल कालाबादल, कवि प्रकाश आतुर के साथ-साथ जैनेन्द्र, श्यामाचरण दुबे, शिवमंगल सिंह सुमन, अश्क दम्पती, यशपाल, देवीलाल सामर, आलम शाह खान, युगलकिशोर चतुर्वेदी, कवि चित्रकार रामगोपाल विजयवर्गीय, भागीरथ भार्गव, कल्याणमल लोढ़ा और क़मर मेवाड़ी जैसे लेखक-साहित्यकार शामिल हैं। नंद बाबू राजस्थान में समाजवादी आन्दोलन के जमीनी सिपाहियों में रहे हैं। अपने साथियों पर लिखते हुए सम्बन्धों की ऊष्मा की आँच नंद बाबू पाठकों तक पहुँचाते हैं। हीरालाल जैन और नरेंद्रपाल सिंह जैसे अपने स्थानीय साथियों के अलावा देश में समाजवादी आन्दोलन के अगुआ रहे जयप्रकाश नारायण और डॉ. राममनोहर लोहिया पर भी उन्होंने लिखा। उनकी डायरी और अपने पत्रों में वे अपने निजी दायरे सार्वजनिक करते हैं। दो-टूक टिप्पणियाँ और निर्भीक कथन। इनमें बहुधा आत्मीयता का रस भी है तो बेहद निजी निराशाएँ भी। कथेतर की विभिन्न विधाओं में संकलित इस खंड में नंद चतुर्वेदी की रचनाशीलता के अनेक रूप विद्यमान हैं जो कवि के व्यापक दाय का प्रमाण बन गए हैं। ‘नंद चतुर्वेदी रचनावली’ के चौथे और अन्तिम खंड में मुख्यत: कवि का अनुवाद कर्म है। नंद बाबू ने कविता और गद्य दोनों का अनुवाद किया। माना जाता है कि काव्यानुवाद बहुत मुश्किल साहित्य कर्म है क्योंकि अनुवादक ऐसा ही व्यक्ति होना चाहिए जो दोनों भाषाओं को ठीक से जानता हो। नंद बाबू ने साहित्यिक पत्रिकाओं के आग्रह पर काव्यानुवाद किये। ये काव्यानुवाद बहुत पुरानी प्राकृत की कविताओं के थे जो हाल कवि की गाथा सप्तशती से अंग्रेजी के रास्ते आए थे। ठीक इसी तरह कुछ संथाली कविताओं का अनुवाद भी उन्होंने किया जिन्हें अंग्रेजी में कवि सीताकांत महापात्र ने प्रस्तुत किया था। इन दोनों काव्यानुवादों में नंद बाबू की अपनी मेधा दिखाई देती है जो इन कविताओं की मूल संवदेना तक पाठकों को पहुँचाने में समर्थ है। इससे पहले उन्होंने अपनी पत्रिका बिंदु और उस दौर की अनेक पत्रिकाओं के लिए साहित्य शास्त्र तथा साहित्य के अन्य प्रासंगिक विषयों पर लिखे प्रसिद्ध अंग्रेजी निबंधों का अनुवाद भी किया। इस खंड में नंद बाबू द्वारा अनुवादित दो सम्पूर्ण कृतियाँ भी पढ़ी जा सकती हैं। ए. अप्पादुराई की एक अत्यन्त विचारोत्तेजक और महत्त्वपूर्ण किताब को उन्होंने अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद के लिए चुना। लगभग सवा दो सौ पृष्ठों की इस किताब का नाम था ‘भारतीय राजनीतिक चिन्तन’ जिसका अनुवाद नंद बाबू ने रघुवर दयाल के साथ मिलकर किया। 1990 में आई इस पुस्तक की गम्भीर सामग्री को जिस सहज और प्रभावी हिन्दी में नंद बाबू ने अनुवादित किया वह उनकी अद्भुत भाषिक क्षमता का उदाहरण है। दूसरी पुस्तक ‘दहेज पीड़ित महिलाएँ : एक अध्ययन’ लेखिका रंजना कुमारी की है जो भारत में महिला आन्दोलन में अग्रणी रही हैं। मुजफ्फरपुर, बिहार से 1991 में छपी इस छोटी-सी किताब में उस दौर की दहेज समस्या का गम्भीरता से अध्ययन किया गया था। ये दोनों पुस्तकें हिन्दी अनुवाद के बाद और चर्चित हो गईं। अपने जीवन के उत्तरार्ध में भी वे अनुवाद करते रहे। कभी कला प्रयोजन के सम्पादक हेमन्त शेष के आग्रह पर तो कभी और किसी पत्रिका के कहने पर। असल बात यही है कि साहित्य में जिस जीवन दृष्टि के लिए नंद बाबू संकल्पवान थे उसे बनाए रखने और गति देने के लिए अनुवाद भी एक जरूरी रास्ता लगता था।
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