Lihaaf
Author:
Ismat ChugtaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
बहैसियत अदबी भाषा उर्दू की ताक़त जिन कुछ लेखकों को पढ़ते हुए एक ठोस आकार की शक्ल में नमूदार होती है, उनमें इस्मत चुग़ताई को चोटी के कुछ नामों में शुमार किया जा सकता है। जहाँ तक ज़बान को इस्तेमाल करने के हुनर का सवाल है, बेदी और मंटो में भी वह महारत दिखाई नहीं देती जो उनमें दिखती है। बेदी कहानी को मूर्तिकार की सी सजगता से गढ़ते थे और मंटो की कहानी अपने समय के कैनवस पर अपना आकार ख़ुद लेती थी। लेकिन इस्मत की कहानी भाषा और भाषा में बिंधी हुई सदियों की मानव-संवेदना की चाशनी से इस तरह उठती है जैसे किसी खौलती हुई कड़ाही में, भाप को चीरकर कोई मुजस्समा उठ रहा हो।</p>
<p>इससे यह नहीं समझ लिया जाना चाहिए कि इस्मत अपनी कहानी में कोई कलात्मक चमत्कार करती हैं, वह ज़िन्दगी से अपने सच्चे लगाव को कहानी का ज़रिया बनाती हैं और जिस शब्दावली का चयन उनकी ज़बान करती है, वह ख़ुद भी ज़िन्दगी से उनके इसी शदीद इश्क़ से तय होती है। सिर्फ़ कोई एक शब्द या कोई एक पद, और आपको अपनी आँखों के सामने पूरा एक दृश्य घटित होता दिखता है। ‘यह इतना बड़ा चीख़ता-चिंघाड़ता बम्बई’ —इस संग्रह की पहली ही कहानी में यह एक वाक्य आता है, और सच में बम्बई को किसी और तरह से चित्रित करने की ज़रूरत नहीं रह जाती। इसी बम्बई में सरला बेन हैं। ‘कभी किसी ने उन्हें हटकर रास्ता देने की ज़रूरत तक न महसूस की। लोग दनदनाते निकल जाते और वह आड़ी होकर दीवार से लग जातीं।’ एक कहानी का यह एक वाक्य क्या एक मानव जाति के एक प्रतिनिधि के बरसों का ख़ाका नहीं खींच देता।</p>
<p>यही हैं इस्मत चुग़ताई, जिन्हें यूँ ही लोग प्यार से आपा नहीं कहा करते थे। जिस मुहब्बत से वे अपने किरदारों और उनके दु:ख-सुख को पकड़ती थीं, वही उनके आपा बन जाने का सर्वमान्य आधार था। इस किताब में उनकी सत्रह एक से एक कहानियाँ शामिल हैं जिनमें प्रसिद्ध 'लिहाफ़' भी है। इसमें उन्होंने समलैंगिकता को उस वक़्त अपना विषय बनाया था जब समलैंगिकता के आज जवान हो चुके पैरोकार गर्भ में भी नहीं आए थे। और इतनी ख़ूबसूरती से इस विषय को पकड़ना तो शायद आज भी हमारे लिए मुमकिन नहीं है। उनकी सोच की ऊँचाई के बारे में जानने के लिए सिर्फ़ इसी को पढ़ लेना काफ़ी है।
ISBN: 9788126727049
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
उषाकिरण खान की कहानियाँ अधिकतर ग्रामीण परिवेश की हैं। ग्रामीण जीवन की मान्यताएँ उनके संस्कार-कुसंस्कार, उनके अन्दर की ऊर्जा से पाठकों को रू-ब-रू कराती उनकी कथाएँ सबको साथ लेकर चलती हैं। आधुनिक भाषा में जिन्हें दलित कहा जाता है उनके बीच रहनेवाली उषाकिरण खान की कहानियों में न तो दलितमुक्ति का पाखण्ड है न नारीमुक्ति का आडम्बर है।
साहित्यिक भाषा के होते हुए भी छोटे-छोटे वाक्यों में कथा लिखने के कारण सहज सुगम शैली में सब कुछ कह जाना उनकी विशेषता है।
उषाकिरण खान एक विदुषी महिला हैं। कहानी ही नहीं सांस्कृतिक, सामाजिक विषयों पर अपनी इतिहासप्रिय लेखनी का समर्थ परिचय देती हैं।
उषाकिरण के पात्र कल्पित नहीं होते; आप उन्हें इंगित कर खोज निकाल सकते हैं।
प्रस्तुत संग्रह की चुनिन्दा कथाओं में उनके अत्यन्त विपन्न कोशी तटबन्ध के गाँव की स्त्रियों के दु:ख हैं तो विदेश से आयी कन्या के सपनों के गाँव की त्रासदी भी। सामाजिक सद्भाव के प्रतीक की क्षीण आशा है तो तार-तार होती समरसता भी है।
यह तय है कि उषाकिरण खान की कथाओं में शिक्षित, अशिक्षित सभी जाति, वर्ग तथा धर्म की स्त्रियों की समीचीन कथा है—सृजनधर्मी स्त्रियों की कथा।
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