Biyaban Me
Author:
Sara RaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
सारा राय की कहानियाँ अनेक स्तरों पर सजग चेतना द्वारा रचित संसार हैं। उनके यहाँ भीतर की सम्पन्नता और भीतर का ख़ालीपन, बाहर की सम्पन्नता और बाहर का उजाड़ एक-दूसरे के आमने-सामने होते रहते हैं, बल्कि एक-दूसरे के बरक्स रखे आईनों की तरह वे परस्पर को कई गुना करते चलते हैं। व्यक्त और अव्यक्त यथार्थ एक-दूसरे के साथ नाज़ुक सन्तुलन साधते हुए एक सम्पूर्ण अनुभव की रचना करते हैं।</p>
<p>दृश्य, परिवेश, पात्र और अनुभव का ही नहीं, समय का भी एक पूरेपन के क़रीब ले जाता हुआ बोध, यानी एक साथ भंगुरता और अन्तहीनता का बोध उनकी कहानियों में आपको कभी भी हो सकता है। इसी तरह किसी सीमित घटना या क्रिया का अन्तहीनता में फिसल जाना उसे एक दूसरे ही आयाम में ले जाता है और सीमित जीवन-काल के आर-पार फैला अनन्त समय बड़ी सहजता से आपके समय-बोध का हिस्सा बन जाता है। एक साथ समय की रवानी और ठहराव का चित्र उनके यहाँ कुछ यों उभरता है—‘समय के बड़े-बड़े चकत्ते तैरते हुए निकल जाते हैं, जैसे वे कुछ हों ही ना। ऐसा लगता है जैसे दिन एक-एक करके नहीं, कई-कई के झुंड में बीत रहे हों, कभी-कभी पूरा एक मौसम एक अकेले दिन की तरह निकल जाता है।’</p>
<p>सारा राय की ताक़त उनके बहुत बारीक, बहुत मामूली मगर उन चुने हुए ब्यौरों में है, जिन्हें वे भीतरी और बाहरी दुनिया के तानों-बानों से कुछ इस तरह बुनती हैं कि एक रहस्य-सा उनके गिर्द घिर आता है। यह रहस्य उनकी कहानियों को हर बार पढ़ने पर नए सिरे से खुलता है। उनके बिम्ब, उनकी उपमाएँ हम सबकी जानी-पहचानी चीज़ों को एकदम अछूता-सा कोई सन्दर्भ देकर ऐसा एक मायालोक खड़ा कर देती हैं जिसमें—सेमल की फलियों से उड़ती रुई बर्फ़ के तूफ़ान में बदल जा सकती है, आसमान कुएँ में पड़े रूमाल में, लाल स्वेटर पहने स्कूल के फाटक से लुढ़कते-पुढ़कते बच्चे बीर-बहूटियों में और ‘आह सारा! द होल वर्ल्ड!’ कहते हुए पकड़ाई गई पनीर पूरी एक दुनिया में तब्दील हो जा सकती है।</p>
<p>किसी भी सम्बन्ध को परिणति तक पहुँचाने की हड़बड़ी उनके यहाँ नहीं है। सम्बन्धों के महीन रेशों को वे हल्के इशारों से कहे-अनकहे शब्दों में, बिम्बों में थामती हैं। वे ‘बियाबान में’ कहानी की नायिका का अपने लेखन के साथ का रिश्ता हो या रश्मि किरण के साथ का, ‘परिदृश्य’ कहानी की सीमी का अनामिका और उसके भाई के साथ धीरे-धीरे अस्तित्व में आया सम्बन्ध हो, मकड़ी के जाले की सुन्दर संरचना के निमित्त, बाबू देवीदीन सहाय का अपनी रूह के साथ पहली बार स्थापित हुआ सम्बन्ध हो या अनामिका का गंगा के कछार के साथ शेष दूसरे फ़्लैप पर...का तादात्म्य हो—ये सम्बन्ध जितनी देर के लिए, जितने भी, जैसे भी होते हैं, अपनी सम्पूर्ण सत्ता के साथ होते हैं। गंगा का कछार अलग मौसम में, किसी दूसरे समय पर, किसी अलग मनःस्थितियों में अलग ही रूप धर ले सकता है।</p>
<p>‘भूलभुलैयाँ’ जैसी कहानी में वे भव्य अतीत के कोनों-अँतरों को तलाशती हैं। इस प्रक्रिया में अतीत के साथ-साथ सम्भावित का भी एक लोक खुलता चला जाता है। बनारस की साकिन नूर मंज़िल हवेली के उस प्राचीन वैभव—जब ‘हर कमरे में लोग अंगूर के गुच्छों की तरह’ होते थे—के बरक्स बची थीं किले की दीवार जैसे कन्धोंवाले सैयद हैदर की बड़ी बेटी कुलसूम बानो, जिन्हें नूर मंज़िल जैसी विशाल हवेली में बन्द रहने के बावजूद नाचने और नाचते-नाचते लट्टू की तरह एक जगह सिमट आने के तथा छत की काई लगी काली मुँडेर से डैनों की तरह बाजुओं को फैलाकर उड़ने के एहसास से कोई वंचित नहीं कर पाया था।</p>
<p>दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जिससे सारा को परहेज़ हो। आज की कहानी की तरह सिर्फ़ लोगों को ही नहीं, सब कुछ को उनकी कहानियों में आने की छूट है। लोगों के अलावा ‘बियाबान में’ का लुटा-पिटा पुराना खँडहर बस हो, कहीं नहीं से कहीं नहीं तक जाता पुल हो, मेक्वायरी का चार एकड़ का बीहड़ हो, गंगा के किनारे तम्बुओं, लाइटों का उग आया नया नगर हो, हरी आग की तरह सारे में फैल जानेवाली लम्बी-लम्बी घास हो, पूरी सृष्टि ही चली आती है जीवन की सी सहजता के साथ। रामबाँस पर तीस सालों में सिर्फ़ एक बार आनेवाला फूल भी नहीं बचता उनकी आँख से। सुनहरी कलियों का वह नज़ारा मालती को एक उपलब्धि की तरह लगता है और दो दीवारों के बीच तथा मकड़ी का जाला बाबू देवीदीन सहाय के साथ हमें भी एक करिश्मे की तरह लगता है। इन छोटी-छोटी चीज़ों की एक करिश्मे की शक्ल में पहचान और जीवन में इनकी जादुई उपस्थिति में सारा की गहरी आस्था है।</p>
<p>उनके यहाँ हिन्दी के पूर्ववर्ती कथाकारों की अनुगूँज के साथ ख़ुद उनके रोयों की तरह संवेदनशील और उड़ानक्षम भाषा का विरल संयोजन है। चीज़ों को देखने का, उसे भाषा में सहेजने का सारा का ढंग अनोखा है। चीज़ें और उनके आस-पास वही है जिसे हम सब रोज़ देखते हैं या नहीं देखते। उन्हें सारा के साथ उनकी आँख से देखना आज की हिन्दी कहानी के परिदृश्य में एक अलग तरह का देखना है। ‘ऊपर का आकाश डालों से घटाटोप हो उठा और ज़मीन पर बरगद ने जड़ों के महल खड़े किए, कई-कई महल, एक-दूसरे की अनुगूँज की तरह।’</p>
<p>—ज्योत्स्ना मिलन
ISBN: 9788126710799
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सुगठित कथाकार, मार्मिक संवाद और सुरम्य प्रकृति चित्रण से समन्वित पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है यह पुस्तक ‘तेरी कुड़माई हो गई?’
इस संग्रह की कहानियाँ नि:सन्देह बेजोड़ हैं इनमें नदी की तरह सरस प्रवाह है।
Bhoot Bhai Sahab Aur Any Kahaniyan
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Choti Upanyas(Volume-3)
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Shea Butter
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Kaifi Hashmi
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Description:
जब समय और वस्तुजगत को किसी भाषा में व्यक्त या उत्कीर्ण करने की तमाम प्रविधियाँ आजमाई जा चुकी हों और उनकी असफलताएँ हर जगह दर्ज हो रही हों, ऐसे समय में कैफ़ी हाशमी का हिन्दी कहानी के परिक्षेत्र में आना किसी महत्वपूर्ण घटना की तरह है। अवाक् और अचम्भित करनेवाली प्रामाणिक-विश्वसनीयता के साथ, भाषिक अवबोध और उसे विन्यस्त करने में सक्षम मौलिक संरचना के साथ ‘शिया बटर’, ‘कैफ़े कॉफ़ी डे’, ‘बंकर’ जैसी कहानियों का आना कहानियों की प्रचलित निरन्तरता में एक नए प्रस्थान की तरह है। जैसे किसी ट्रेन ने अपनी पटरी और यात्री ने अपना रास्ता बदल दिया हो।
पिछली सदी के एक विख्यात और हमारे भर्तृहरि जैसे भाषा-चिन्तक ने कहा था कि कोई भी भाषा असंख्य पगडंडियों की एक लम्बी और रहस्यपूर्ण सुरंग जैसी होती है। आप एक दरवाज़े से इसमें दाख़िल होते हैं, तो सब कुछ वहाँ जाना-पहचाना, स्मृतियों में पहले से ही मौजूद गली-मोहल्लों, पड़ोसियों-परिजनों, चौराहों-बाज़ारों और उनमें घूमते-टहलते पात्रों के साथ दृश्यमान होता है। सारे लैंडस्केप वही होते हैं, लेकिन अगर कहीं आप दूसरे दरवाज़े से दाख़िल हुए तो वही जगह एक ऐसे मायालोक या भूल-भुलैयाँ में तब्दील हो जाती है, जिससे बाहर निकल पाना न सिर्फ़ असम्भव-सा हो जाता है, बल्कि किसी एडिक्ट जैसे खुमार में आप वहीं रह जाना चाहते हैं, मुक्ति की किसी भी आशा और कामना को त्याग कर।
कैफ़ी हाशमी की कहानियाँ बहुत गहरी और एकाग्र संवेदना के साथ उस दुर्लभ संरचना को प्रत्यक्ष करती हैं, जहाँ बाह्य वस्तुजगत की समस्त सचल और अचल उपस्थितियाँ एक-दूसरे में पिघलती और विलीन होती हुई क़िस्से के उस जादू को पैदा करती हैं, जो पुरानी फ़ैंटसी और जादुई यथार्थवाद के बाद का जादू है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण यह तथ्य है कि ये कहानियाँ हमारे आज के ही जीवन की भयग्रस्त, मार्मिक लेकिन फिर भी ख़ुशियों, प्यार, उम्मीदों से भरी हुई टाइमलाइन की अनमोल कहानियाँ हैं।
—उदय प्रकाश
Teen Nigahon Ki Ek Tasvir
- Author Name:
Mannu Bhandari
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Description:
‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ जैसे कालजयी उपन्यासों की रचयिता मन्नू भंडारी की कहानियाँ अपने मन्तव्य की स्पष्टता, साफ़गोई और भाषागत सहजता के लिए ख़ास तौर पर उल्लेखनीय रही हैं। उनकी कहानियों में जीवन की बड़ी दिखनेवाली जटिल और गझिन समस्याओं की गहराई में जाकर, उनके तमाम सूत्रों को समेटते हुए, एक सरल, सुग्राह्य और पठनीय रचना को आकार दिया जाता है।
इस संग्रह में शीर्षक-कहानी के अलावा शामिल ‘अकेली’, ‘अनथाही गहराइयाँ’, ‘खोटे सिक्के’, ‘हार’ और ‘चश्मे’ आदि सभी कहानियाँ जीवन के विभिन्न सन्दर्भों को एक ख़ास रचनात्मक आलोचना-दृष्टि से देखते हुए पाठक को सोचने और अपने वातावरण को एक नई, ताज़ा निगाह से देखने को प्रेरित करती हैं।
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