Aranya Gatha
Author:
ShaivalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 100
₹
125
Unavailable
1968 से 1975 तक खेतिहर आबादी, सामन्तवादी शोषण, वर्ण-विरोध और तमाम दूसरी असंगतियों से जुड़ा एक विशाल साहित्य बंगाल में सामने आया। ’75 के बाद हिन्दी, तेलुगू व मराठी में भी यह अन्तर्ध्वनि तेज़ हुई। शैवाल की कहानियों के लेखन की यह सामान्य पृष्ठभूमि है। यह दूसरी बात है कि इस वृहत्तर पृष्ठभूमि में शैवाल का अपना संसार भी झाँकता है। शैवाल की कहानियों में अलग-अलग स्थितियाँ ही नहीं हैं, अलग-अलग हलचलें हैं। अलग-अलग छाया-ध्वनियाँ हैं, भीतर के संसार के अलग-अलग शेड्स हैं और एक ऐसी रूढ़िमुक्त भाषा है जो अपने चरित्रों की बोलियों से परहेज़ नहीं करती।</p>
<p>शैवाल ने सामान्य जन की कहानियाँ भी लिखी हैं और बिहार के उन्हीं सामान्य लोगों को विशिष्ट बनाकर भी ढेर सारी कहानियाँ लिखी हैं। इन कहानियों का मूल राग एक ही है और वह आदिम राग भी है, जिसे मैं हिन्दुस्तान का केन्द्रीय अन्तर्विरोध मानता हूँ।</p>
<p>शैवाल की इन कहानियों में गाँव की दुनिया पर बढ़ते हुए दबावों की यंत्रणा है, असंगठित-साधनहीन फिर भी परिस्थितियों से जूझते हुए स्त्री-पुरुष हैं तथा छोटे-छोटे समुदायों के भीतर का आतंक है। इनमें ‘मरुयात्रा’ का कष्ट-भरा अनुभव और वह मारक आतंक भी है, जिससे घिरा हुआ परमेसरा कहता है, ‘सुक्को कुओं में कूद गई, मालिक।’ सूचना चाहे बड़ी न हो, पर सुअर की तरह रीं-रीं कर उसका रोना क्या इस घटना से बाहर जाकर हमें कुछ और सुनने के लिए बाध्य नहीं करता?</p>
<p>— डॉ. सुरेन्द्र चौधरी
ISBN: 9788171195794
Pages: 135
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Gajanan Madhav Muktibodh
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- Description: मुक्तिबोध यानी वैचारिकता, दार्शनिकता और रोमानी आदर्शवाद के साथ जीवन के जटिल, गूढ़, गहन, संश्लिष्ट रहस्यों की बेतरह उलझी महीन परतों की सतत जाँच करती हठपूर्ण, अपराजेय, संकल्प-दृढ़ता। नून-तेल-लकड़ी की दुश्चिन्ताओं में घिरकर अपनी उदात्त मनुष्यता से गिरते व्यक्ति की पीड़ा और बेबसी, सीमा और संकीर्णता को मुक्तिबोध ने पोर-पोर में महसूसा है। लेकिन अपराजेय जिजीविषा और जीवन का उच्छल-उद्दाम प्रवाह क्या ‘मनुष्य’ को तिनके की तरह बहा ले जानेवाली हर ताक़त का विरोध नहीं करता? जिजीविषा प्रतिरोध, संघर्ष, दृढ़ता, आस्था और सृजनशीलता बनकर क्या मनुष्य को अपने भीतर के विराटत्व से परिचित नहीं कराती? मुक्तिबोध की कहानियाँ अखंड उदात्त आस्था के साथ आम आदमी को उसके भीतर छिपे इस स्रष्टा महामानव तक ले जाती हैं। अजीब अन्तर्विरोध है कि मुक्तिबोध की कहानियाँ एक साथ विचार कहानियाँ हैं और आत्मकथात्मक भी। मुक्तिबोध की कहानियाँ प्रश्न उठाती हैं—नुकीले और चुभते सवाल कि ‘ठाठ से रहने के चक्कर से बँधे हुए बुराई के चक्कर’ तोड़ने के लिए अपने-अपने स्तर पर कितना प्रयत्नशील है व्यक्ति? मुक्तिबोध की जिजीविषा-जड़ी कहानियाँ आत्माभिमान को बनाए रखनेवाले आत्मविश्वास और आत्मबल को जिलाए रखने का सन्देश देती हैं—भीतर के ‘मनुष्य’ से साक्षात्कार करने के अनिर्वचनीय सुख से सराबोर करने के उपरान्त।
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