Saur-Mandal
Author:
Gunakar MuleyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Science1 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
सूर्य! हमारी आकाश–गंगा के क़रीब 150 अरब तारों में से एक सामान्य तारा!...फिर भी कितना विराट, कितना तेजस्वी और कितना जीवनदायी!...लेकिन किसी भी आकाश–गंगा में अकेला नहीं होता कोई तारा अथवा कोई सूर्य। एक परिवार होता है उसका—कई सदस्योंवाला एक परिवार, और इसे ही कहा जाता है सौर–मंडल। हमारे सूर्य का भी एक मंडल है, जिसके छोटे–बड़े सदस्यों की कुल संख्या है नौ। सदस्य यानी कि ग्रह। इस प्रकार हमारे सौर–मंडल में नौ ग्रह शामिल हैं अर्थात् बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो। सौर–मंडल में स्थित इन ग्रहों के अपने–अपने उपग्रह भी हैं; उपग्रह, जैसे चन्द्रमा, जो कि हमारी पृथ्वी का उपग्रह है। कुछ ग्रहों के उपग्रहों की संख्या एकाधिक है, जैसे बृहस्पति 16 उपग्रहों का स्वामी है। सूर्य के परिवार में अभी तक क़रीब 60 उपग्रह खोजे जा चुके हैं।
संक्षेप में कहें तो अत्यन्त विलक्षण है हमारा सौर–मंडल और रोचक है उसका यह अध्ययन। विज्ञान–विषयक लेखकों में अपनी शोधपूर्ण जानकारियों और सरल भाषा–शैली के लिए समादृत गुणाकर मुले की यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सामग्री सँजोए हुए है। पूरी पुस्तक को 15 अध्यायों में बाँटा गया है और परिशिष्ट में कुछ विशिष्ट पैमाने और ग्रहों के बारे में कुछ प्रमुख आँकड़े भी हैं। सूर्य, सौर–मंडल तथा ग्रह–सम्बन्धी ज्योतिष–ज्ञान के अलावा लेखक ने हर ग्रह पर अलग–अलग अध्यायों की रचना की है। धूमकेतुओं और उल्कापिंडों पर अलग से विचार किया है। साथ ही, सौर–मंडल के जन्म और ग्रहों पर सम्भावित जीवन के शोध–निष्कर्षों से भी पाठकों को परिचित कराया है।
इस प्रकार अन्तरिक्ष–यात्राओं के इस युग में यह पुस्तक प्रथम सोपान की तरह है, क्योंकि अन्तरिक्ष–अनुसन्धान और यात्राओं का लक्ष्य अभी तक तो प्रमुखत: अपना ही सौर–मंडल ह
ISBN: 9788126706914
Pages: 100
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: अंतरिक्ष सदैव ही मानव के लिए रहस्यमय रहा है और अंतरिक्ष विज्ञान भी उतना ही प्राचीन है जितना कि स्वयं मानव। भारत ने सर्वप्रथम 19 अप्रैल, 1975 को ‘आर्यभट्ट’ नामक उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया। उस समय अंतरिक्ष कार्यक्रम के क्षेत्र में भारत का स्थान विश्व में 11वाँ था, जो कि संप्रति छठे स्थान पर जा पहुँचा है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को गति देने का पूरा श्रेय स्वर्गीय डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई को है, जिनके अथक प्रयासों से भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतनी प्रगति की है। ‘चंद्रयान-I’ इस दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों की दक्षता एवं क्षमता का द्योतक है। प्रस्तुत पुस्तक में अंतरिक्ष, उपग्रह एवं सुदूर संवेदन से संबंधित महत्त्वपूर्ण विषयों, यथा अंतरिक्ष अन्वेषण, इसमें पशुओं का योगदान, अतीत के अंतरिक्ष विज्ञानी, महिलाएँ, उपग्रह एवं प्रमोचन, विभिन्न प्रकार के उपग्रह, भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम, उद्देश्य, प्रमुख संस्थान, इसरो के जनक वैज्ञानिक, प्रथम अंतरिक्ष यात्री, भारतीय उपग्रहों का विहंगावलोकन, चंद्रयान-I मिशन एवं संबंधित नवीनतम जानकारी, कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार, विश्व के अन्य देशों के राष्ट्रीय संचार उपग्रह, आर्यभट्ट, रोहिणी, इनसैट उपग्रह, एजुसैट, कार्टोसैट, इनसैट-4 सी.आर., रिसैट-2 उपग्रह, उपग्रह संचार प्रणाली की विभिन्न क्षेत्रों में उपादेयता, भारत में जी.पी.एस. कार्यक्रम, विश्व के प्रमुख उपग्रह संचार तंत्र, सुदूर संवेदन तकनीक एवं उपयोगिता, भौगोलिक सूचना प्रणाली (जी.आई.एस.) एवं उपयोग, क्वेकसैट तथा सौर ऊर्जा उपग्रह आदि नवीनतम तकनीकी विषयों पर अति दुर्लभ जानकारी अत्यंत सरल एवं बोधगम्य भाषा में यथोचित चित्रों सहित प्रदान की गई है। आशा है, पुस्तक में वर्णित तकनीकी जानकारी से प्रबुद्ध पाठकगण अवश्य लाभान्वित होंगे।
Aapeshikta Siddhant Kya Hai
- Author Name:
Lev Landau & yuri Rumer
- Book Type:

- Description: महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन (1879-1955 ई.) द्वारा प्रतिपादित आपेक्षिकता-सिद्धान्त को वैज्ञानिक चिन्तन की दुनिया में एक क्रान्तिकारी खोज की तरह देखा जाता है। इस सिद्धान्त ने विश्व की वास्तविकता को समझने के लिए एक नया साधन तो प्रस्तुत किया ही है, मानव चिन्तन को भी गहराई से प्रभावित किया है। अब द्रव्य, गति, आकाश और काल के स्वरूप को नए नज़रिए से देखा जा रहा है। सन् 1905 में ‘विशिष्ट आपेक्षिकता’ का पहली बार प्रकाशन हुआ, तो इसे बहुत कम वैज्ञानिक समझ पाए थे, इसके बहुत-से निष्कर्ष पहेली जैसे प्रतीत होते थे। आज भी इसे एक ‘क्लिष्ट’ सिद्धान्त माना जाता है। लेकिन इस पुस्तक में आपेक्षिकता के सिद्धान्त को, गणितीय सूत्रों का उपयोग किए बिना, इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि इसकी महत्त्वपूर्ण बातों को सामान्य पाठक भी समझ सकते हैं। संसार की कई प्रमुख भाषाओं में अनूदित इस पुस्तक के लेखक हैं, ‘नोबेल पुरस्कार’ विजेता प्रख्यात भौतिकवेत्ता लेव लांदाऊ और उनके सहयोगी यूरी रूमेर। परिशिष्ट में इनका जीवन-परिचय भी दिया गया है। इतिहास-पुरातत्त्व और वैज्ञानिक विषयों के सुविख्यात लेखक गुणाकर मुळे ने सरल भाषा में इस पुस्तक का अनुवाद किया है। कई वैज्ञानिक शब्दों और कथनों को स्पष्ट करने के लिए अनुवादक ने पाद-टिप्पणियाँ भी दी हैं। साथ ही, परिशिष्ट में ‘विशिष्ट शब्दावली’ तथा ‘पारिभाषिक शब्दावली’ के अलावा अल्बर्ट आइंस्टाइन की संक्षिप्त जीवनी भी जोड़ी गई है, चित्रों सहित। हिन्दी माध्यम से ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन करनेवाले पाठकों के लिए आपेक्षिकता सिद्धान्त के शताब्दी वर्ष में यह पुस्तक एक अनमोल उपहार की तरह है।
Computer Kya Hai
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:

- Description: कम्प्यूटर बड़ी तेज़ी से आधुनिक जीवन के अभिन्न अंग बनते जा रहे हैं, अब हमारे देश में भी। इस क्रान्तिकारी बुद्धि-सहायक साधन की अब हम उपेक्षा नहीं कर सकते। कम्प्यूटर केवल गणना का ही नहीं, केवल सूचनाओं को ग्रहण करके उनका विश्लेषण करनेवाला ही नहीं, यह संचार और नियंत्रण का भी एक शक्तिशाली साधन है। मानव-समाज बड़ी तेज़ी से कम्प्यूटरमय बनता जा रहा है। अनेक के लिए कम्प्यूटर आज भी एक करिश्मा है। कम्प्यूटर का विकास प्रमुख रूप से अंग्रेज़ी माध्यम में होने के कारण इसकी कार्यप्रणाली को समझने में कइयों को आज भी बड़ी कठिनाई होती है। लेकिन कम्प्यूटर के लिए दुनिया की सभी भाषाएँ समान महत्त्व की हैं। कम्प्यूटर की अपनी एक स्वतंत्र मशीनी भाषा है। इसलिए कम्प्यूटर के बुनियादी सिद्धान्तों को किसी भी भाषा में समझा जा सकता है। गुणाकर जी मानते थे कि कम्प्यूटर की कार्य-प्रणाली को मातृभाषा में आसानी से समझा जा सकता है। इसी उद्देश्य से उन्होंने कम्प्यूटर पर एक लम्बी लेखमाला लिखी थी। लेखमाला ख़ूब पसन्द की गई, और पाठक इसकी पुस्तकाकार माँग करते रहे। यह माँग अब पूरी हो रही है। साथ ही उसके बाद कम्प्यूटर के विषय में लिखे हुए उनके अन्य लेखों को भी इस पुस्तक में शामिल कर लिया गया है। कम्प्यूटर पर काम करनेवाले और करने की चाह रखनेवाले, सभी जिज्ञासु पाठकों के लिए एक आधारभूत पुस्तक।
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