Ankon Ki Kahani
Author:
Gunakar MuleyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Science0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
प्राचीन काल में हमारा देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में संसार के किसी भी दूसरे सभ्य देश से पीछे नहीं था। मध्ययुग में अरब देशों ने और यूरोप के देशों ने भारतीय विज्ञान की बहुत-सी बातें सीखीं। लेकिन यदि पूछा जाए कि विज्ञान के क्षेत्र में संसार को भारत की सबसे बड़ी देन कौन-सी है, तो उत्तर होगा—आज की हमारी अंक-पद्धति।
आज की हमारी अंक-पद्धति में केवल दस संकेत हैं—शून्य और नौ अंक-संकेत। इन दस अंक-संकेतों से हम बड़ी-से-बड़ी संख्या लिख सकते हैं। इन दस अंक-संकेतों के अपने स्वतंत्र मान हैं। इसके अलावा, हर अंक-संकेत का, संख्या में उसके स्थान के अनुसार, मान बदलता है। स्थानमान और शून्य की यह धारणा ही इस अंक-पद्धति की विशेषता है।
हमें गर्व है कि इस वैज्ञानिक अंक-पद्धति की खोज भारत में हुई है। सारे संसार में आज इसी भारतीय अंक-पद्धति का इस्तेमाल होता है।
लेकिन यह अंक-पद्धति मुश्किल से दो हज़ार साल पुरानी है। उसके पहले हमारे देश में और संसार के अन्य देशों में भिन्न-भिन्न अंक-पद्धतियों का इस्तेमाल होता था। आज की इस वैज्ञानिक अंक-पद्धति के महत्त्व को समझने के लिए उन पुरानी अंक-पद्धतियों के बारे में भी जानना ज़रूरी है। इस पुस्तक में मैंने देश-विदेश की पुरानी अंक-पद्धतियों की जानकारी दी है। तदनन्तर, इस शून्य वाली नई अंक-पद्धति के आविष्कार की जानकारी। यह भारतीय अंक-पद्धति पहले अरब देशों में और बाद में यूरोप के देशों में कैसे फैली, इसका भी रोचक वर्णन इस पुस्तक में है
निस्सन्देह, हिन्दी में यह अपनी तरह की पहली पुस्तक है जो विद्यार्थियों एवं सामान्य पाठकों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
ISBN: 9788190271318
Pages: 91
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Gunakar Muley
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- Description: विज्ञान के क्षेत्र में अन्तरिक्ष-अनुसन्धान सदैव ही उत्सुकता का विषय रहा है। पाठक इस विषय की मूलभूत और सैद्धान्तिक बातों को सहज-सरल तरीक़े से समझना चाहते रहे हैं। उनकी उत्सुकता के विषय आम तौर पर यह रहते हैं कि अन्तरिक्षयान पृथ्वी से चन्द्र, मंगल या शुक्र तक किस प्रकार पहुँचते हैं? राकेट किस प्रकार बनता है और यह कैसे कार्य करता है? राकेट में किन ईंधनों का इस्तेमाल होता है? राकेट-यानों को पार्थिव कक्षाओं में किस प्रकार स्थापित किया जाता है? ऊपर अन्तरिक्ष में भार-रहित अवस्था का निर्माण क्यों होता है? भविष्य में दूर के ग्रहों तथा नज़दीक के तारों तक की यात्राएँ कैसे सम्पन्न होंगी? इत्यादि। अपनी 'अन्तरिक्ष-यात्रा’ पुस्तक में प्रसिद्ध विज्ञान लेखक गुणाकर मुळे ने इन सारे प्रश्नों के साथ-साथ 'महिला अन्तरिक्ष-यात्री’, 'अन्तरिक्ष में भारत के बढ़ते क़दम’, 'अन्तरिक्ष में हथियारों की होड़’ जैसे विषयों की भी गहराई से पड़ताल की है, ताकि पाठक अन्तरिक्ष के हर एक पहलू से ठीक-ठीक अवगत हो सकें। पुस्तक में बहुत-से चित्र हैं, जो इस विषय की कई सूक्ष्म बातों को समझने में सहायक सिद्ध होंगे। विषय को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया गया है, ताकि पाठकों को विकास की भी जानकारी मिल सके, इसलिए परिशिष्ट में 'अन्तरिक्ष-यात्रा विज्ञान का संक्षिप्त विकासक्रम’ अध्याय विशेष महत्त्व का बन पड़ा है। साथ ही, विषय से सम्बन्धित 'हिन्दी-अंग्रेज़ी पारिभाषिक शब्दावली’ होने से पाठक अतिरिक्त रूप से लाभान्वित हो सकेंगे। अन्तरिक्ष-यात्रा के सैद्धान्तिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में ठोस आधार पर लिखी गई यह पुस्तक पाठकों के साथ-साथ शोधार्थियों और अध्येताओं के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी।
Jyamiti Ki Kahani
- Author Name:
Gunakar Muley
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- Description: विज्ञान की शिक्षा में ज्यामिति या रेखागणित के अध्ययन का क्या महत्त्व है, इसे सभी जानते हैं। महान आइंस्टाइन ने तो यहाँ तक कहा है कि इस विश्व के भौतिक गुणधर्मों को ज्यामिति के नियमों से ही भली-भाँति समझा जा सकता है। स्कूलों में ज्यामिति पढ़ाई जाती है, पर यह नहीं बताया जाता कि ज्यामिति की शुरुआत कैसे हुई, किन देशों में हुई और किन विद्वानों ने इसके विकास में योग दिया। स्कूलों में पढ़ाई जानेवाली ज्यामिति मूलतः यूक्लिड की ज्यामिति है। अतः विद्यार्थियों को जानना चाहिए कि यूक्लिड कौन थे और उन्होंने ज्यामिति की रचना कैसे की। इससे ज्यामिति को समझने में आसानी होगी। ज्यामिति के बहुत-से नियम यूक्लिड के पहले खोजे गए थे। यूक्लिड के पहले हमारे देश में भी ज्यामिति के अनेक नियम खोजे गए थे। ‘पाइथेगोर का प्रमेय’, न केवल भारत में, बल्कि चीन व बेबीलोन में भी खोजा गया था। इस पुस्तक में इन सब बातों की रोचक जानकारी दी गई है। साथ ही, पिछले क़रीब दो सौ साल में जो नई-नई ज्यामितियाँ खोजी गई हैं, उनका भी संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
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