Ank Katha
Author:
Gunakar MuleyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Science0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
अंकों की जिस थाती ने हमें आज इस लायक़ बनाया है कि हम चाँद और अन्य ग्रहों पर न सिर्फ़ पहुँच गए बल्कि कई जगह तो बसने की योजना तक बना रहे हैं, उन अंकों का आविष्कार भारत में हुआ था। वही 1,2,3,4...आदि अंक जो इस तरह हमारे जीवन का हिस्सा हो चुके हैं कि हम कभी सोच भी नहीं पाते कि इनका भी आविष्कार किया गया होगा, और ऐसा भी एक समय था जब ये नहीं थे। हिन्दी के अनन्य विज्ञान लेखक गुणाकर मुळे की यह पुस्तक हमें इन्हीं अंकों के इतिहास से परिचित कराती है। पाठकों को जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया में चीज़ों को गिनने की सिर्फ़ यही एक पद्धति हमेशा से नहीं थी। लगभग हर सभ्यता ने अपनी अंक-पद्धति का विकास और प्रयोग किया। लेकिन भारत की इस पद्धति के सामने आने के बाद इसी को पूरे विश्व ने अपना लिया, जिसका कारण इसका अत्यन्त वैज्ञानिक और सटीक होना था। मैक्स मूलर ने कहा था कि ‘संसार को भारत की यदि एकमात्र देन केवल दशमिक स्थानमान अंक पद्धति ही होती, और कुछ भी न होता तो भी यूरोप भारत का ऋणी रहता।’ इस पुस्तक में गुणाकर जी ने विदेशी अंक पद्धतियों के विस्तृत परिचय, यथा—मिस्र, सुमेर-बेबीलोन, अफ्रीका, यूनानी, चीनी और रोमन पद्धतियों की भी तथ्यपरक जानकारी दी है। इसके अलावा गणितशास्त्र के इतिहास का संक्षिप्त परिचय तथा संख्या सिद्धान्त पर आधारभूत और विस्तृत सामग्री भी इस पुस्तक में शामिल है। कुछ अध्यायों में अंक-फल विद्या और अंकों को लेकर समाज में प्रचलित अन्धविश्वासों का विवेचन भी लेखक ने तार्किक औचित्य के आधार पर किया है जिससे पाठकों को इस विषय में भी एक नई और तर्कसंगत दृष्टि मिलेगी।
ISBN: 9788126728060
Pages: 364
Avg Reading Time: 12 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: परमाणु, जीवन का भी स्रोत हो सकता है, और विनाश का भी। मनुष्य ने उसे ऊर्जा के उत्पादन के लिए प्रयोग किया है तो बमों के रूप में इस ऊर्जा का विनाशकारी संचयन भी किया है जो एक ही बार में समूची पृथ्वी और जीव-जगत को नष्ट कर सकता है। विज्ञान-लेखक गुणाकर मुळे की यह पुस्तक परमणु की खोज, उसके इतिहास और संभावनाओं के बारे में तथ्यपरक जानकारी देते हुए उन सवालों पर भी विचार करती है जो परमाणु के ग़ैर जिम्मेदार इस्तेमाल के सन्दर्भ में हमारी स्थायी चिन्ता बने हुए हैं। विश्व के मौजूदा हालात को देखते हुए आज यह और भी ज़रूरी हो गया है कि 'परमाणु क्या है' से लेकर 'परमाणु क्या कर सकता है' तक के सभी पहलुओं की जानकारी बतौर एक जिम्मेदार नागरिक हमारे पास हो। यह पुस्तक यही करती है। न सिर्फ़ परमाणु, बल्कि उसकी आन्तरिक संचरना के बारे में अब तक की खोजों की विस्तृत पड़ताल करते हुए उन वैज्ञानिकों के बारे में यहाँ हमें पर्याप्त सूचनाएँ प्राप्त होती है जिन्होंने इस पर काम किया। भारत के प्राचीन ऋषि कणाद को भी मुळे जी चिन्तकों की उसी परम्परा में मानते हैं। उनका नाम ही 'कणाद' इसलिए पड़ा था कि उन्होंने सबसे पहले यह कल्पना की थी कि संसार का सब कुछ अत्यन्त छोटे-छोटे कणों से निर्मित है। छात्रों और सामान्य पाठकों के लिए सरल और सुग्राह्य भाषा में लिखित यह पुस्तक परमाणु विज्ञान की वृहत्तर समझ प्रदान करती है।
Surya
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:

- Description: धरती का समूचा जीवन सूर्य पर निर्भर है। इसलिए यदि यह कहा जाए कि सूर्य के बारे में जानना विश्व-जीवन को जानना है, तो ग़लत न होगा। इस नाते खगोल विज्ञान विषयक हिन्दी लेखकों में अग्रगण्य गुणाकर मुळे की यह पुस्तक न सिर्फ़ अद्यतन जानकारियों, बल्कि अपने सरल और रोचक भाषा-शिल्प की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। विद्वान लेखक ने इस कृति को ‘सूर्य और हम’, ‘सूर्य देवता’, ‘सूर्य : एक सामान्य तारा’, ‘सूर्य का परिवार’, ‘किरणों की भाषा’, ‘सूर्य की भट्ठी’, ‘सूर्य की सतह और इसका बाह्य वातावरण’, ‘पृथ्वी पर सूर्य का प्रभाव’, ‘सूर्य का जन्म और अन्त’ नामक नौ अध्यायों में बाँटा है। साथ ही परिशिष्ट में सूर्य सम्बन्धी विशिष्ट आँकड़े और तत्सम्बन्धी हिन्दी-अंग्रेज़ी पारिभाषिक शब्दावली इस पुस्तक को और अधिक उपयोगी बनाते हैं। लेखक के शब्दों को उद्धृत करें तो ‘हिन्दी में सूर्य पर यह अपनी तरह की पहली पुस्तक है।’ दरअसल पृथ्वी से सूर्य की दूरी, सूर्य के व्यास, सूर्य-सतह के क्षेत्रफल, उसके आयतन, द्रव्यमान, औसत घनत्व, घूर्णन-काल, उसकी सतह और केन्द्र के तापमान आदि खगोल भौतिकी के जटिल आँकड़े कहानी की तरह रोचक होकर हमारे सामने आते हैं, फलस्वरूप ज्ञान का एक विराट कोश सहज ही हमारे भीतर समा जाता है।
Ganit Se Jhalakti Sanskriti
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:

- Description: गणित और संस्कृति का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध रहा है। अतीत की कौन सी संस्कृति कितनी उन्नत रही है, यह उसकी गणितीय उपलब्धियों से पहचाना जा सकता है। किसी आदिम जनजाति की भौतिक अवस्था इस बात से भी जानी जा सकती है कि वह कहाँ तक गिनती कर सकती है। यूनानियों ने मिस्र से ज्यामितीय जानकारी हासिल करके उसका आगे विकास किया और उसे निगमनात्मक तर्कशास्त्र का इतना सुदृढ़ जामा पहनाया कि यूक्लिड (300 ई.पू.) की ज्यामिति आज भी सारी दुनिया के स्कूलों में पढ़ाई जाती है। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में संसार को भारत की सबसे बड़ी देन है—शून्य सहित सिर्फ़ दस संकेतों से सारी संख्याएँ लिखने की अंक-पद्धति, जिसका आज सारी दुनिया में व्यवहार होता है। गणित अब एक व्यापक विषय बन गया है। आज गणित के बिना किसी भी विषय का गहन अध्ययन सम्भव नहीं है। भौतिकी, रसायन, आनुवंशिकी आदि अनेक वैज्ञानिक विषयों के लिए गणित का बुनियादी महत्त्व है। इस पुस्तक के लेखक गुणाकर मुळे आजीवन हिन्दी भाषा-भाषी समाज को वैज्ञानिक चेतना से सम्पन्न बनाने का सपना देखते रहे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रख उन्होंने अनेकानेक ग्रन्थों की रचना की। गणित और संस्कृति के अन्तर्सम्बन्धों को रेखांकित करनेवाली यह पुस्तक भी उनकी इसी साधना का फल है जिसे पाठक निश्चय ही अत्यन्त उपयोगी पाएँगे।
Jivashmon Ki Kahani
- Author Name:
Ajit Kumar Pal
- Book Type:

- Description: जीवाश्मों की तुलना यदि पृथ्वी की आत्मकथा के पृष्ठों से की जाए तो पृथ्वी के विभिन्न भूभागों में इन्हें धारण करनेवाली कोशिकाएँ वस्तुत: बीते हुए कल के अभिलेखागार कही जाएगी। ‘फ़ॉसिल’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘फ़ॉसिलिस’ से हुई है जिसमें इसका अर्थ होता है ‘पृथ्वी के गर्भ से निकली हुई वस्तु’। इस प्रकार रोमन साम्राज्य के काल से लेकर अठारहवीं शताब्दी तक भू–गर्भ से प्राप्त प्रत्येक वस्तु को ‘फ़ॉसिल’ की संज्ञा दी जाती रही। इसके पश्चात् वैज्ञानिकों ने इस शब्द की सीमाओं को संकुचित करते हुए जो परिभाषा दी, उसका अभिप्राय है—‘भूवैज्ञानिक अतीत में पाए जानेवाले जीवों के चिह्न’। यद्यपि इनमें प्राणियों अथवा वनस्पतियों के अवशेष, उनके प्राकृतिक समदृश्य, अथवा उनकी जैविक गतिविधियाँ भी शामिल हैं। अत: जहाँ एक ओर जीवाश्मों (फ़ॉसिल) से हमें चर–अचर प्राणियों और वनस्पतियों की उत्पत्ति, विनाश तथा उनके आकृतिक उद्भव की जानकारी मिलती है। वहीं दूसरी तरफ़ वे कालान्तर में महाद्वीपों एवं महासागरों की भौगोलिक स्थिति, ध्रुवों के घूर्णन और भू-पपड़ी के भौतिक विकास का रहस्य भी उजागर करते हैं। जीवाश्मों के विषय में मानव की जिज्ञासा अत्यन्त प्राचीन है। पृथ्वी की आदि–सृष्टि से लेकर आज तक निरन्तर चलनेवाली विकास–प्रक्रिया की उलझी हुई शृंखलाओं को सुलझाने में जीवाश्मों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यही कारण है कि ‘डायनासोर’ की जीवाश्मीकृत अस्थियों से चिपकी हुई रक्त की एक बूँद में ‘एमिनो–एसिड’ की उपस्थिति ने मनुष्यों की कल्पना शक्ति को नए आयाम दिए हैं। मौलिक दृष्टि से इस पुस्तक में जीवन की उत्पत्ति से लेकर जीवाश्मीकरण की प्रक्रिया से जुड़े हर प्रश्न का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। जीवाश्म विज्ञान से सम्बन्धित नवीनतम शोध–कार्य के मुख्य अंश को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है, जो सम्भवत: राष्ट्रभाषा हिन्दी में अपनी तरह का प्रथम प्रयास है। महत्त्वपूर्ण तथ्यों से साक्षात्कार कराने हेतु अनेक श्वेत–श्याम छायाचित्रों को शामिल किया गया है, जो इस पुस्तक को और भी रोचक तथा ज्ञानवर्धक बनाते हैं।
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