Upgrahon Ka Rochak Sansar
Author:
Dr. D.D. OjhaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Science0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
अंतरिक्ष सदैव ही मानव के लिए रहस्यमय रहा है और अंतरिक्ष विज्ञान भी उतना ही प्राचीन है जितना कि स्वयं मानव।
भारत ने सर्वप्रथम 19 अप्रैल, 1975 को ‘आर्यभट्ट’ नामक उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया। उस समय अंतरिक्ष कार्यक्रम के क्षेत्र में भारत का स्थान विश्व में 11वाँ था, जो कि संप्रति छठे स्थान पर जा पहुँचा है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को गति देने का पूरा श्रेय स्वर्गीय डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई को है, जिनके अथक प्रयासों से भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतनी प्रगति की है। ‘चंद्रयान-I’ इस दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों की दक्षता एवं क्षमता का द्योतक है।
प्रस्तुत पुस्तक में अंतरिक्ष, उपग्रह एवं सुदूर संवेदन से संबंधित महत्त्वपूर्ण विषयों, यथा अंतरिक्ष अन्वेषण, इसमें पशुओं का योगदान, अतीत के अंतरिक्ष विज्ञानी, महिलाएँ, उपग्रह एवं प्रमोचन, विभिन्न प्रकार के उपग्रह, भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम, उद्देश्य, प्रमुख संस्थान, इसरो के जनक वैज्ञानिक, प्रथम अंतरिक्ष यात्री, भारतीय उपग्रहों का विहंगावलोकन, चंद्रयान-I मिशन एवं संबंधित नवीनतम जानकारी, कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार, विश्व के अन्य देशों के राष्ट्रीय संचार उपग्रह, आर्यभट्ट, रोहिणी, इनसैट उपग्रह, एजुसैट, कार्टोसैट, इनसैट-4 सी.आर., रिसैट-2 उपग्रह, उपग्रह संचार प्रणाली की विभिन्न क्षेत्रों में उपादेयता, भारत में जी.पी.एस. कार्यक्रम, विश्व के प्रमुख उपग्रह संचार तंत्र, सुदूर संवेदन तकनीक एवं उपयोगिता, भौगोलिक सूचना प्रणाली (जी.आई.एस.) एवं उपयोग, क्वेकसैट तथा सौर ऊर्जा उपग्रह आदि नवीनतम तकनीकी विषयों पर अति दुर्लभ जानकारी अत्यंत सरल एवं बोधगम्य भाषा में यथोचित चित्रों सहित प्रदान की गई है।
आशा है, पुस्तक में वर्णित तकनीकी जानकारी से प्रबुद्ध पाठकगण अवश्य लाभान्वित होंगे।
ISBN: 9789380186108
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: यदि संसार के 10 महान वैज्ञानिकों की सूची बनानी पड़े, तो उसमें आर्किमिडीज़ का नाम अवश्य रखना होगा। आर्किमिडीज़ एक महान गणितज्ञ ही नहीं, उच्च कोटि के भौतिकवेत्ता और यंत्रविद् भी थे। रोमन सेना के हमले से अपने सिराक्यूज नगर (सिसिली द्वीप, भूमध्य सागर) की रक्षा के लिए उन्होंने कई युद्ध-यंत्रों का आविष्कार किया था। आर्किमिडीज़ ‘द्रव-स्थिति-विज्ञान’ के संस्थापक माने जाते हैं। सुनार द्वारा सोने के मुकुट में मिलाई गई चाँदी का अध्ययन करके उन्होंने द्रव-स्थिति-विज्ञान के बुनियादी नियम खोज निकाले थे। उन्होंने उत्तोलक और घिरनियों के बारे में भी कई नियम खोज निकाले। पानी को नीचे से ऊपर उठाने के लिए आर्किमिडीज़ ने जिस यंत्र का आविष्कार किया था, वह ‘आर्किमिडीज़ का स्क्रू’ कहलाता है और आज भी मिस्र में उसका प्रयोग होता है। आर्किमिडीज़ के नाम से प्रसिद्ध वक्र (आर्किमिडीज़ का सर्पिल) का उपयोग आजकल रेडारों के निर्माण में होता है। उन्होंने न्यूटन से सदियों पहले कलन-गणित की भी नींव रख दी थी। आर्किमिडीज़ ‘बहुत बड़ी संख्या’ और ‘अनन्त’ के अन्तर को भली-भाँति समझ गए थे। ऐसे महान वैज्ञानिक का वध एक रोमन सैनिक के हाथों हुआ। आर्किमिडीज़ अपनी तरुणाई में उच्च अध्ययन के लिए मिस्र के सिकन्दरिया विश्वविद्यालय गए थे। इसलिए प्राचीन यूनानी विज्ञान के इस महान विद्या केन्द्र के बारे में कुछ विस्तार से जानकारी दी गई है। पुस्तक के आरम्भ में प्राचीन यूनानी विज्ञान के भूक्षेत्र का एक नक़्शा भी दिया गया है। आशा है, विज्ञान के विद्यार्थी और अध्यापक ‘आर्किमिडीज़’ के इस नए संशोधित संस्करण को प्रेरणाप्रद और उपयोगी पाएँगे।
Brahmanda Parichaya
- Author Name:
Gunakar Muley
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- Description: अपने अस्तित्व के उषःकाल से ही मानव सोचता आया है—आकाश के ये टिमटिमाते दीप क्या हैं? क्यों चमकते हैं ये? हमसे कितनी दूर हैं ये? सूरज इतना तेज़ क्यों चमकता है? कौन-सा ईंधन जलता है उसमें? आकाश का विस्तार कहाँ तक है? कितना बड़ा है ब्रह्मांड? कैसे हुई ब्रह्मांड की उत्पत्ति और कैसे होगा इसका अन्त? क्या ब्रह्मांड के अन्य पिंडों पर भी धरती जैसे जीव-जगत् का अस्तित्व है? इस विशाल विश्व में क्या हमारे कोई हमजोली भी हैं, या कि सिर्फ़ हम ही हम हैं? इन सवालों के उत्तर प्राप्त करने के लिए सहस्राब्दियों तक आकाश के ग्रह-नक्षत्रों की गति-स्थिति का अध्ययन किया जाता रहा। विश्व के नए-नए मॉडल प्रस्तुत किए गए। परन्तु विश्व की संरचना और इसके विविध पिंडों के भौतिक गुणधर्मों के बारे में कुछ सही जानकारी हमें पिछले क़रीब दो सौ वर्षों से मिलने लगी है। इसमें भी सबसे ज़्यादा जानकारी पिछली सदी के आरम्भ से और फिर अन्तरिक्ष-यात्रा का युग शुरू होने के बाद से मिलने लगी है। खगोल-विज्ञान हालाँकि सबसे पुराना विज्ञान है, परन्तु ब्रह्मांड की संरचना और इसके विस्तार के बारे में सही सूचनाएँ पिछले क़रीब सौ वर्षों में ही प्राप्त हुई हैं। इस समूची जानकारी का ग्रन्थ में समावेश है। अगस्त 2006 में अन्तरराष्ट्रीय खगोल-विज्ञान संघ ने ‘ग्रह’ की एक नई परिभाषा प्रस्तुत की। इसके तहत सौरमंडल के ‘प्रधान ग्रहों’ की संख्या 8 में सीमित हो गई और प्लूटो, एरीस तथा क्षुद्रग्रह सीरेस अब ‘बौने ग्रह’ बन गए हैं। इस नई व्यवस्था का ग्रन्थ में समावेश है, विवेचन है। यह ‘ब्रह्मांड-परिचय’ ग्रन्थ सम्पूर्ण ज्ञेय ब्रह्मांड का वैज्ञानिक परिचय प्रस्तुत करता है—भरपूर चित्रों, आरेखों व नक़्शे सहित। ग्रन्थ के 12 परिशिष्टों की प्रचुर सन्दर्भ सामग्री इसे खगोल-विज्ञान का एक उपयोगी ‘हैंडबुक’ बना देती है। हिन्दी माध्यम से ब्रह्मांड के बारे में अद्यतन, प्रामाणिक जानकारी चाहने वाले पाठकों के लिए एक अनमोल ग्रन्थ।
Kaal Ki Vaigyanik Avdharna
- Author Name:
Gunakar Muley
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- Description: काल को किसी सरल व्याख्या में समेटना लगभग असम्भव है। प्रकृति की जिन शक्तियों ने मानव-मन को सबसे ज़्यादा आतंकित-विचलित किया है, काल अर्थात् समय उनमें सबसे प्रबल और रहस्यमय है। इसी काल को समझने के क्रम में कैलेंडरों, पंचांगों, तिथियों आदि का विकास हुआ। कल्पों, युगों, सदियों, वर्षों, महीनों, दिनों और घंटों की इकाइयों का आविर्भाव हुआ। लेकिन काल क्या है, इसका कोई बहुत सरल तथा अन्तिम उत्तर आज भी किसी के पास नहीं होता है। हम काल में जीते हैं, उसे अनुभव करते हैं, लेकिन वह है क्या, इसको व्याख्यायित नहीं कर सकते। लोकप्रिय विज्ञान-लेखक गुणाकर मुळे की इस पुस्तक में संगृहीत काल की वैज्ञानिक अवधारणा से सम्बन्धित उनके निबन्धों में काल को अलग-अलग आयामों से समझने का प्रयास किया गया है, साथ ही काल-सम्बन्धी चिन्तन के इतिहास तथा कैलेंडरों और पंचांगों के अस्तित्व में आने का वैज्ञानिक ब्यौरा भी दिया गया है। 'काल क्या है?', 'काल का इतिहास', 'कैलेंडरों की कहानी', 'प्राचीन काल के कैलेंडर', 'काल की वैज्ञानिक अवधारणा' तथा 'काल मापने के अन्तरराष्ट्रीय तरीक़े' जैसे समय की सत्ता को अलग-अलग दिशा से जानते-समझते अठारह आलेख इस पुस्तक को हर वर्ग के पाठक के लिए पठनीय तथा संग्रहणीय बनाते हैं।
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