Urdu Ki Aakhiree Kitab
Author:
Ibne InshaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Satire1 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
उर्दू में तेज़ निगारी (व्यंग्य) के जो बेहतरीन उदाहरण मौजूद हैं, उनमें इब्ने इंशा का अन्दाज़ सबसे अलहदा और प्रभाव में कहीं ज़्यादा तीक्ष्ण है। इसका कारण है उनकी यथार्थपरकता, उनकी स्वाभाविकता और उनकी बेतकल्लुफ़ी। उर्दू की आख़िरी किताब उनकी इन सभी ख़ूबियों का मुजस्सिम नमूना है।</p>
<p>...यह किताब पाठ्य-पुस्तक शैली में लिखी गई है और इसमें भूगोल, इतिहास, व्याकरण, गणित, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर व्यंग्यात्मक पाठ तथा प्रश्नावलियाँ दी गई हैं। इस ‘आख़िरी किताब’ जुम्ले में भी व्यंग्य है कि छात्रों को जिससे विद्यारम्भ कराया जाता है, वह प्राय: ‘पहली किताब’ होती है और यह ‘आख़िरी किताब’ है। इंशा का व्यंग्य यहीं से शुरू होता है और शब्द-ब-शब्द तीव्र होता चला जाता है।</p>
<p>इंशा के व्यंग्य में यहाँ जिन चीज़ों को लेकर चिढ़ दिखाई पड़ती है, वे छोटी-मोटी चीज़ें नहीं हैं। मसलन—विभाजन, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की अवधारणा, क़ायदे-आज़म जिन्ना, मुस्लिम बादशाहों का शासन, आज़ादी का छद्म, शिक्षा-व्यवस्था, थोथी नैतिकता, भ्रष्ट राजनीति आदि। और अपनी सारी चिढ़ को वे बहुत गहन-गम्भीर ढंग से व्यंग्य में ढालते हैं—इस तरह कि पाठक को लज़्ज़त भी मिले और लेखक की चिढ़ में वह ख़ुद को शामिल भी महसूस करे।
ISBN: 9788126700455
Pages: 155
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Papi Vote Ke Liye
- Author Name:
Dinanath Mishra
- Book Type:

- Description: दिल्ली भारत का टिकट धाम है। टिकटार्थी चुनावों के पावन पर्व पर यहाँ तीर्थयात्रा को आते हैं। झुंड-के-झुंड घूमते रहते हैं। टिकट मंदिरों में माथा टेकने जाते हैं। सुबह से शाम तक दर्जनों नेताओं के पास, नेताओं के चमचों के पास दस्तक देते हैं। एक ही पुकार होती है—‘टिकटं देहि, टिकटं देहि।’ उनके विन्यास में सांस्कृतिक झलक होती है। ‘चाणक्य’ धारावाहिक में आपने ब्रह्मचारियों को सुबह-सुबह ही ‘भिक्षां देहि, भिक्षां देहि’ कहते सुना होगा। एक-एक सीट के लिए दस-दस, बीस-बीस टिकटार्थी आते हैं। हर एक के साथ उनका समर्थक मंडल होता है। सभी उम्मीदवारों के पास अपने जीतने के समीकरण होते हैं। लोकसभा चुनाव-क्षेत्र में उनकी जाति के कम-से-कम दो लाख वोट तो होते ही हैं। और किस-किस जाति में कितना समर्थन मिल जाएगा, इसका पूरा हिसाब होता है। जीतने का विश्वास उनमें लबालब भरा होता है। उनके और उनकी जीत के बीच में सिर्फ टिकट बाधा होती है। हफ्तों टिकट साधना करते हैं। मैं ‘साधना’ जानबूझकर कह रहा हूँ। उन्हें न भोजन की याद आती है, न नाश्ते की। न उन्हें नींद आती है, न चैन आता है। साधना में वे टिकटलीन हो जाते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि भारत सचमुच ही एक आध्यात्मिक देश है। जो टिकटलीन हो सकता है, वह ईश्वर में भी ओत-प्रोत हो सकता है। —इसी पुस्तक से ये व्यंग्य अपनी पठनीयता के दावेदार तब भी थे, जब अखबार के माध्यम से लाखों मन को छू रहे थे और अब भी हैं, जब पुस्तक के कलेवर में आपके हाथों में हैं।
Netaji Kahin
- Author Name:
Manohar Shyam Joshi
- Book Type:

-
Description:
‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान में अनियमित रूप से प्रकाशित स्तम्भ ‘नेताजी कहिन’ के साथ कई विचित्रताएँ जुड़ी हैं। पहली तो यह कि सम्पादक ‘म. श्या. जो.’ को एक बार नेताजी पर छोटा-सा व्यंग्य लिखने के कारण पाठकों ने यह ‘सज़ा’ दी कि वह लगातार व्यंग्य-स्तम्भ लिखे, सम्पादकी न बघारे! दूसरी यह कि समसामयिक घटनाओं को विषय बनाने के बावजूद यह स्तम्भ ‘सनातन’ में भी खूँटा गाड़े रहा। तीसरी यह कि राजनीतिक बिरादरी की संस्कारहीनता उजागर करनेवाले ये व्यंग्य कुछ महत्त्वपूर्ण पाठकों को स्वयं संस्कारहीन मालूम हुए। और चौथी यह कि बैसवाड़ी और भोजपुरी की छटा दिखाती ऐसी नेताई भाषा, कहते हैं, अब तक मात्र सुनी ही गई थी। लेकिन इस किताब में वह लिखी हुई, बल्कि बाक़ायदा छपी हुई है।
व्यंग्य इन लेखों का दुधारा है। नेताओं के साथ-साथ ‘किर्रुओं’ पर भी उसकी धार है। ‘किर्रू’ यानी जो नेताओं को कोसते भी रहते हैं और जीते भी रहते हैं उन्हीं के आसरे। दरअसल यहीं ‘म. श्या. जो.’ के व्यंग्य से बचाव मुश्किल है, क्योंकि तिलमिला उठता है हमारे ही भीतर बैठा कोई किर्रू! निश्चय ही ‘हिन्दुस्तान’ के नेताओं और ‘किर्रुओं’ पर किए गए ये व्यंग्य हिन्दी के ‘कामचलाऊ’ स्वरूप, राष्ट्रीय चरित्र और जातीय स्वभाव का बेहतरीन ख़ुलासा करते हैं।
Khattar Kakak Tarang
- Author Name:
Harimohan Jha
- Book Type:

- Description: खट्टर कका आई सँ पछस्तर साल पहिने ‘प्रकट’ भेलाह। केना? इ रहस्य बाद मे, मुदा भाङक भांगक तरंग मे एहन-एहन गूढ़ अर्थक फुलझड़ी छोड़ल जा सकैत अछि, इ प्रतिभा खट्टर कका कें छोड़ि कऽ ककरो लग नहि अछि। ओ कखनो सोमरस कें भाङ सिद्ध क दैत छैथ, तऽ आयुर्वेद कें महाकाव्य। कखनो अपन तर्क सँ भगवान कें मौसा बना लैत छैथ, तऽ कखनो समधि। ओ पातिव्रत्य कें व्यभिचार साबित कऽ सकैत छैथ, तऽ असती कें सती। हुनकर नजर मे कामदेव सृष्टि कें कर्ता छैथ। जेना कबीरदासक उनटे वाणी कहल जायत अछि, तहिना खट्टर कका उनटे गंङ्गा बहबैत छैथ। तरंग मे कहल हुनकर गप्पक जवाब प्रकांड पंडितो कें नहि फुरैत छहिन। हुनकर किछु तरंग देखू—ब्रह्मचारी कें वेद नहि पढ़बाक चाही, पुराण बहु-बेटी कें योग्य नहि अछि, दुर्गाक कथा स्त्रैण रचनै छैथ, गीता मे श्रीकृष्ण अर्जुन कें फुसला लेलथिन, दर्शनशास्त्रक रचना रस्सी देखि क भेल अछि, असली ब्राह्मण विदेश मे रहैत छैथ, मूर्खताक कारण पंडितगण छैथ, दही-चूड़ा-चीनी सांख्यक त्रिगुण अछि, स्वर्ग गेला पर धर्म भ्रष्ट भ जायत आदि। इ जनैत कि हुनकर तरंग कर्मकाडी कें लाल-पीअर करैत अछि, खट्टर कका मस्त रहैत छैथ, भांग घोंटैत रहैत छैथ, आ आनन्द-विनोदक वर्षा करैत रहैत छैथ। जेना शुरू मे कहल गेल कि खट्टर कका प्रकट भेलाह, तऽ ओ प्रकट होयते प्रसिद्ध भ गेलाह। मैथिलिए मे नहि, हिन्दी, गुजराती आदि भाषा मे सेहो पढ़ल गेलाह। ‘कहानी’, ‘धर्मयुग’ जकाँ पत्रिका खट्टर ककाक किछु तरंग छपलक। हुनकर लोकप्रियता एहन छलैन्हि कि हुनकर परिचय-पात, घर-द्वार जनैत लेल चिट्ठी आबऽ लागल। खट्टर कका हँसी-हँसी मे जरूर तरंग छोड़ैत छैथ, मुदा ओकरा ओ अपन तर्क सँ प्रमाणित सेहो क दैत छथिन। वेद, उपनिषद, पुराण सब पर हुनकर पकड़ छैन। तर्कक जाल एहन बुनताह कि पाठकगण सोच मे पड़ि जेताह। हुनकर चश्मा सँ देखब, त इ दुनिया मे सब उनिटा नजर आयत। मुदा, हुनकर बातक रस आ विनोद पाठकगण कें सब उलझन सुलझा दैतेन, इ भरोसा अछि।
Tulsidas Chandan Ghisain
- Author Name:
Harishankar Parsai
- Rating:
- Book Type:

-
Description:
हरिशंकर परसाई के लिए व्यंग्य साध्य नहीं, साधन था। यही बात उनको साधारण व्यंग्यकारों से अलग करती है। पाठक को हँसाना, उसका मनोरंजन करना उनका मक़सद नहीं था। उनका मक़सद उसे बदलना था। और यह काम समाज-सत्य पर प्रामाणिक पकड़, सच्ची सहानुभूति और स्पष्ट विश्व-दृष्टि के बिना सम्भव नहीं हो सकता। ख़ास तौर पर अगर आपका माध्यम व्यंग्य जैसी विधा हो। हरिशंकर परसाई के यहाँ ये सब ख़ूबियाँ मिलती हैं। उनकी दृष्टि की तीक्ष्णता और वैचारिक स्पष्टता उनको व्यंग्य-साहित्य का नहीं विचार-साहित्य का पुरोधा बनाती है।
तुलसीदास चन्दन घिसैं के आलेखों का केन्द्रीय स्वर मुख्यत: सत्ता और संस्कृति के सम्बन्ध हैं। इसमें हिन्दी साहित्य का समाज और सत्ता प्रतिष्ठानों से उसके सम्बन्धों के समीकरण बार-बार सामने आते हैं। पाक्षिक ‘सारिका’ में 84-85 के दौरान लिखे गए इन निबन्धों में परसाई जी ने उस दुर्लभ लेखकीय साहस का परिचय दिया है, जो न अपने समकालीनों को नाराज़ करने से हिचकता है और न अपने पूर्वजों से ठिठोली करने से जिसे कोई चीमड़ नैतिकता रोकती है।
गौरतलब यह कि इन आलेखों को पढ़ते हुए हमें बिलकुल यह नहीं लगता कि इन्हें आज से कोई तीन दशक पहले लिखा गया था। हम आज भी वैसे ही हैं और आज भी हमें एक परसाई की ज़रूरत है जो चुटकियों से ही सही पर हमारी खाल को मोटा होने से रोकता रहे।
Raag Bhopali
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

- Description: सीधा और स्पष्ट अवलोकन, गहरी विश्लेषण-दृष्टि, एक निश्चित और परिभाषित फ़ासले से अपने विषय को देखना, उसका निर्मम विवेचन करना, सटीक और सुस्पष्ट शब्दों का चुनाव और अपने आसपास के जीवन के प्रामाणिक अनुभवों से उपजी विवरणात्मकता—ये कुछ तत्त्व हैं जो शरद जोशी को एक विशिष्ट व्यंग्यकार बनाते हैं। जो वस्तु, व्यक्ति या विषय शरद जोशी की लेखनी के निशाने पर आता है, वह सचमुच कुछ देर के लिए कुछ नहीं रहता। उसकी एक-एक परत, उसकी आभा के एक-एक आवरण को उतारकर वे उसे उसी प्राकृतिक रूप में वापस कर देते हैं जैसा वह सत्ता की विभिन्न भंगिमाओं को ओढ़ने के पहले होता होगा। यह उनके व्यंग्य को दार्शनिक आभा देता है जो हास्य उत्पन्न करने को व्याकुल व्यंग्यकारों के यहाँ नहीं होती। शरद जोशी का व्यंग्य कहीं-कहीं इतना क्रूर, निर्दय और बहुपक्षीय होता है कि लगता है, आस्था को पैर टिकाने के लिए कोई जगह ही नहीं रही। लेकिन मनुष्यता फिर भी है, जो उनके व्यंग्य की रीढ़ है, और जो जीवन की अन्तिम और सबसे ज़्यादा भरोसेमन्द आस्था है। उसी के लिए, और उसी के नज़रिए से वे अपने विषयों की अप्राकृतिकता और हास्यास्पदता को देखते हैं, और उसी के हित में उनका अनावरण भी करते हैं। इस पुस्तक में उनके अपने शहर भोपाल के विषय में लिखे गए आलेखों को समेटा गया है।
Chhalkat Jaye Gyan Ghat
- Author Name:
K. D. Singh
- Book Type:

- Description: जब ढोल की बात चल ही पड़ी है, तो एक और खास बात है जिस पर आपको गौर करना चाहिए। ... और वह यह है कि, जो ढोल जितनी गहन, गम्भीर आवाज करता है, वह अन्दर से उतना ही खोखला होता है। ढोल की आवाज, उसके आकार-प्रकार पर कम, उसके खोखलेपन पर ज्यादा निर्भर करती है। ढोल की एक पोल भी होती है, जो कभी-कभी खुल जाती है। परम्परागत ढोल की तो पोल खुलते ही वह बजना बन्द हो जाता है और घर के किसी कोने पर सन्यास लेकर पड़ा रहता है, जब तक कि उसे उसकी पोल के साथ पुनः कस न दिया जाय। लेकिन आधुनिक पीढ़ी के ढोल तो, पोल खुलने के बाद भी उतनी ही गम्भीर रिदम के साथ पूरी बेशर्मी से बजते रहते हैं... और मजे की बात यह है कि लोग उसे सुनते भी रहते हैं... पूरी तन्मयता के साथ। बजनेवाले ढोल, अगर आपके नजदीक बज रहे हों, तो वे आपको कर्कश लग सकते हैं... लेकिन ज्यों-ज्यों ढोल और आपके बीच की दूरी बढ़ती जाती है, उनकी आवाज अपेक्षाकृत मधुर होती जाती है, और विश्वसनीय भी।
Rashtriya Naak
- Author Name:
Vishnu Nagar
- Book Type:

-
Description:
विष्णु नागर का व्यंग्य सबसे पहला हमला हमारी आदतों और ‘कंडीशनिंग्स’ पर करता है—वे आदतें जो हमारे ‘सामान्य नागरिक’ होने के अहं का निर्माण और पोषण करती हैं और जिनके आधार पर हमारी सुविधा और हमारा यथास्थितिवाद खड़ा होता है। यह व्यंग्य हमारे मुहावरों को विचलित कर देता है और हम यकायक, विकल होकर देखते हैं कि हमारे दैनिक जीवन की जो चीज़ें हमें तक़रीबन ‘परम’ प्रतीत होती हैं, सवाल उन पर भी उठाया जा सकता है, और सबसे बड़ी बात कि, उन पर हँसा भी जा सकता है।
स्थितियों के भीतर व्यंग्य की इस उपस्थिति को पकड़ने के लिए कई बार विष्णु नागर का व्यंग्यकार कल्पना और अतिरंजना का सहारा भी लेता है, लेकिन यह उनका यथार्थ से हटना या कटना नहीं है, बल्कि यथार्थ की एक सुलभ परत से आगे जाकर उसकी कुछ दुर्लभ और दुरूह छवियों तक पहुँचने की कोशिश करना है, इसीलिए कई बार ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ और ‘भैंस के आगे बीन बजाना’ जैसे मुहावरे भी उनकी व्यंग्य–रचना के प्रस्थान बिन्दु हो सकते हैं जो किसी व्यंग्य का निशाना होने के लिए इतने निरीह, निर्दोष और निष्पक्ष दिखाई देते हैं लेकिन विष्णु नागर उनसे भी अपना लक्ष्य साध लेते हैं।
Aur... Sharad Joshi
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

-
Description:
शरद जोशी जिस समय लिख रहे थे, भारतीय राजनीति समाजवाद की आदर्श ऊँचाइयों और व्यावहारिक राजनीति की स्वार्थी आत्म-प्रेरणाओं के बीच कोई ऐसा रास्ता तलाशने में लगी थी जिससे वह जनता की हितैषी दिखती हुई व्यवस्था और तंत्र को अपने दलगत और व्यक्तिगत हितों के लिए बिना किसी कटघरे में आए इस्तेमाल करती रह सके। लम्बे संघर्ष के बाद प्राप्त आज़ादी बहैसियत एक नैतिक प्रेरणा अपनी चमक खोने लगी थी। शासन, प्रशासन और नौकरशाही लोभ और लाभ की अपनी फौरी और निजी ज़रूरतों के सामने वृहत्तर समाज और देश की अवहेलना करने का साहस जुटाने लगी थी। सड़कें उधड़ने लगी थीं, और लोगों के घरों के सामने महँगी कारों को खड़ा करने के लिए गलियाँ घेरी जाने लगी थीं।
शरद जोशी ने भारतीय व्यक्ति के मूल सामाजिक चरित्र के विराट को परे सरकाकर आधुनिक व्यावहारिकता के बहाने अपनी निम्नतर कुंठाओं को पालने-पोसने वाले भारतीय व्यक्ति के उद्भव की आहत काफ़ी पहले सुन ली थी। उन्होंने देख लिया था जीप पर सवार होकर खेतों में जो नई इल्लियाँ पहुँचनेवाली हैं, वे सिर्फ़ फ़सलों को नहीं समूची राष्ट्र-भूमि को खोखला करनेवाली हैं।
आज जब हम राजनीतिक और सामाजिक नैतिकता की अपनी बंजर भूमि को विकास नाम के एक खोखले बाँस पर टाँगे एक भूमंडलीकृत संसार के बीचोबीच खड़े हैं, हमें इस पुस्तक में अंकित उन चेतावनियों को एक बार फिर से सुनना चाहिए जो शरद जोशी ने अपनी व्यंग्योक्तियों में व्यक्त की थीं।
Khamosh! Nange Hamam Mein Hain
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
- Book Type:

-
Description:
परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी और श्रीलाल शुक्ल की पीढ़ी के बाद यदि हिन्दी-विश्व को कोई एक व्यंग्यकार सर्वाधिक आश्वस्त करता है तो वह ज्ञान चतुर्वेदी हैं। वे क्या ‘नया लिख रहे हैं’—इसको लेकर जितनी उत्सुकता उनके पाठकों को रहती है, उतनी ही आलोचकों को भी। विशेष तौर पर, राजकमल द्वारा ही प्रकाशित अपने दो उपन्यासों—‘नरक यात्रा’ और ‘बारामासी’ के बाद तो ज्ञान चतुर्वेदी इस पीढ़ी के व्यंग्यकारों के बीच सर्वाधिक पठनीय, प्रतिभावान, लीक तोड़नेवाले और हिन्दी-व्यंग्य को वहाँ से नई ऊँचाइयों पर ले जानेवाले माने जा रहे हैं, जहाँ परसाई ने उसे पहुँचाया था।
ज्ञान चतुर्वेदी में परसाई जैसा प्रखर चिन्तन, शरद जोशी जैसा विट, त्यागी जैसी हास्य-क्षमता तथा श्रीलाल शुक्ल जैसी विलक्षण भाषा का अद्भुत मेल है, जो उन्हें हिन्दी-व्यंग्य के इतिहास में अलग ही खड़ा करता है। ज्ञान को आप जितना पढ़ते हैं, उतना ही उनके लेखन के विषय-वैविध्य, शैली की प्रयोगधर्मिता और भाषा की धूप-छाँव से चमत्कृत होते हैं। वे जितने सहज कौशल से छोटी-छोटी व्यंग्य-कथाएँ और व्यंग्य-टिप्पणियाँ रचते हैं, उतने ही जतन से लम्बी व्यंग्य रचनाएँ भी बुनते हैं। ‘नरक यात्रा’ और ‘बारामासी’ जैसे बड़े उपन्यासों में उनके व्यंग्य-तेवर देखते ही बनते हैं। ज्ञान चतुर्वेदी विशुद्ध व्यंग्य लिखने में उतने ही सिद्धहस्त हैं, जितना ‘निर्मल हास्य’ रचने में।
वास्तव में ज्ञान की रचनाओं में हास्य और व्यंग्य का ऐसा नपा-तुला तालमेल मिलता है, जहाँ ‘दोनों ही’ एक-दूसरे की ताक़त बन जाते हैं। और तब हिन्दी की यह ‘बहस’ ज्ञान को पढ़ते हुए बड़ी बेमानी मालूम होने लगती है कि हास्य के (तथाकथित) घालमेल से व्यंग्य का पैनापन कितना कम हो जाता है? सही मायनों में तो ज्ञान चतुर्वेदी के लेखन से गुज़रना एक ‘सम्पूर्ण व्यंग्य-रचना’ के तेवरों से परिचय पाने के अद्वितीय अनुभव से गुज़रना है।
Tanh Tanh Bhrashtachar
- Author Name:
Satish Agnihotri
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी साहित्य में व्यंग्य-लेखन की अनेक प्रविधियाँ और छवियाँ विद्यमान हैं। सबका लक्ष्य एक ही है—उन प्रवृत्तियों, व्यक्तियों व स्थितियों का व्यंजक वर्णन जो विभिन्न विसंगतियों के मूल में हैं। 'तहँ तहँ भ्रष्टाचार' व्यंग्य-संग्रह में सतीश अग्निहोत्री ने समकालीन समाज की अनेक विसंगतियों पर प्रहार किया है। फैंटेसी का आश्रय लेते हुए लेखक ने राजनीति के गर्भ से उपजी विभिन्न समस्याओं का विश्लेषण किया है।
ज्ञान चतुर्वेदी के शब्दों में, ‘सतीश अग्निहोत्री के इस व्यंग्य-संग्रह की अधिकांश रचनाओं में यह व्यंग्य-कौशल बेहद मेच्योरली बरता गया दिखता है। व्यंग्य के उनके विषय तो नए हैं ही, उनको पौराणिक तथा लोक-ग़ल्पों से जोड़ने की उनकी शैली भी बेहद आकर्षक है। आप मज़े-मज़े से सब कुछ पढ़ जाते हैं और फैंटेसी में बुने जा रहे व्यंग्य की डिजाइन को लगातार समझ भी पाते हैं।’
व्यंग्यकार के लिए ज़रूरी है कि उसके पास सन्दर्भों की प्रचुरता हो। वह विभिन्न प्रसंगों को वर्णन के अनुकूल बनाकर अपने मन्तव्य को विस्तार प्रदान करे। सतीश अग्निहोत्री केवल पौराणिक व लोक प्रचलित सन्दर्भों से ही परिचित नहीं, वे आधुनिक विश्व की विभिन्न उल्लेखनीय घटनाओं का मर्म भी जानते हैं। पौराणिक वृत्तान्त में लेखक अपने निष्कर्षों के लिए स्पेस की युक्ति निकाल लेता है।
‘एक ब्रेन ड्रेन की कहानी’ के वाक्य हैं, ‘कार्तिकेय मेधावी थे, पर तिकड़मी नहीं। इस देश को रास्ता बनानेवाले इंजीनियरों की ज़रूरत नहीं है, केवल पैसा ख़र्च करनेवाले इंजीनियरों की है।’ यह व्यंग्य-संग्रह प्रमुदित करने के साथ प्रबुद्ध भी बनाता है, यही इसकी सार्थकता है।
Meer Bimar Hue
- Author Name:
Fikr Tonswi
- Book Type:

- Description: "दिल्ली के चटख़ारे" शाहिद अहमद देहलवी की उन मज़ामीन का मज्मूआ है जिनमें गुज़रे ज़माने के दिल्ली शहर को बड़े ही दिलचस्प तरीक़े से बयान किया गया है। इन मज़ामीन में दिल्ली के बाज़ार, कटरे, मुहल्ले की खिड़कियाँ, फेरी वालों की सदाएँ, देग़ों और भट्टियों से उठने वाली महक का ऐसा बयान है कि पढ़ते हुए सारा मंज़र आँखों के सामने आ जाता है।
Pratinidhi Vyang : Harishankar Parsai
- Author Name:
Harishankar Parsai
- Book Type:

- Description: हरिशंकर परसाई हिन्दी के पहले रचनाकार हैं, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परम्परागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा है। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी पैदा नहीं करतीं, बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने-सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असम्भव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन-मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान-सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा-शैली में खास किस्म का अपनापा है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सिर पर नहीं, सामने ही बैठा है।
Vote Le, Dariya Mein Daal
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

-
Description:
शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य के ‘आइकॉन’ हैं। व्यंग्य की तीव्रता को उन्होंने जिस भाषा और तेवर के साथ सम्भव किया, और जो मानक निर्मित किया, उनके बाद कोई भी व्यंग्यकार उसे पार नहीं कर सका। उनके व्यंग्य-लेख वर्तमान हालात पर भी आज के व्यंग्यकारों से ज़्यादा सार्थक, प्रासंगिक और बेधक लगते हैं। गहरे सामाजिक सरोकार, समाज और राजनीति की परिपक्व समझ, खुली दृष्टि और तीखे ‘ऑब्ज़र्वेशन’ ने उन्हें जो अलग जगह दी, वह हिन्दी में आज भी उन्हीं की है।
इस पुस्तक में उनके राजनीतिकेन्द्रित लेखों को संकलित किया गया है, और उनमें भी ज़ोर चुनाव-विषयक टिप्पणियों पर है, इसीलिए इसका शीर्षक ‘वोट ले, दरिया में डाल’ पड़ा जो भारतीय लोकतंत्र पर एक टिप्पणी है।
पुस्तक में शामिल पचास से अधिक इन आलेखों में, जैसे हमारे देश की राजनीति की एक-एक कमज़ोर कड़ी का पोस्टमार्टम किया गया है। चुनाव में खड़े आदमी की छवि से शुरू करके शरद जोशी यहाँ ‘चुनाव गीतिका : सरलार्थ’ तक जाते हैं और लिखते हैं : ‘निशि व्यतीत हुई। ओ कज्जल-मलिन नयनोंवाली कामिनी, उठ। पोलिंग बूथों से राजनीति का कन्त तुझे टेर रहा है। चुनाव के कटे-कटे पोस्टरों से गृहों की दीवारें ऐसी प्रतीत हो रही हैं मानो किसी सुन्दरी के तन पर नख-क्षत हैं। प्रचार बन्द हो गया है। सभी जन मतदान हेतु केन्द्रों की ओर सत्वर गति से जा रहे हैं। ऐसे में हे गजगामिनी, तू गमन-विलम्बिनी होने की कलंकिनी मत बन।’ कहने की ज़रूरत नहीं कि भाषा का यह तत्सम ठाठ एक गहरे और सतह पर शान्त क्रोध की हुंकार है।
आशा है, शरद जोशी के ये लेख पाठकों को पुनः प्रतिरोध व अस्वीकार की उसी तमतमाती दुनिया में ले चलेंगे।
Tipoo Ka Afsana : Himmat-E-Marda
- Author Name:
Frank Huzur
- Book Type:

- Description: इस किताब में उत्तर प्रदेश के युवा, सुचर्चित, सुस्वीकृत, सजग और सफल मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव तथा समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री मुलायम सिंह यादव के बेटे, टीपू के राजनीतिक जीवन पर बने कार्टून इकट्ठे किए गए हैं। वे कार्टून जो ख़ुद अखिलेश यानी टीपू को भी उतने ही प्यारे हैं जितने देश के लाखों-लाख पाठकों को। या हो सकता है उनसे भी ज़्यादा, क्योंकि संस्कृति-साहित्य और रचनात्मकता से ख़ास लगाव रखनेवाला यह युवा समाजवादी कार्टून विधा में कुछ ज़्यादा ही रस लेता है। कार्टूनकार ने अपनी रेखाएँ उनके ख़िलाफ़ उकेरी हों तो भी अखिलेश उसके रचनात्मक आयाम को नज़रअन्दाज़ नहीं करते और अच्छे कार्टूनों को अपने फ़ोन में सहेजकर रखते हैं। यह नेता के रूप में उनकी वयस्कता और सोच के खुलेपन की निशानी है और समाजवादी सहिष्णुता की एक अनुकरणीय मिसाल। इन कार्टूनों में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल की खट्टी-मीठी झलकियाँ भी मिलेंगी और श्रेष्ठ कार्टून कला के संग्रहणीय नमूने भी जिन्हें आप भी अपने पास सँजोकर रखना चाहेंगे।
Shikayat Mujhe Bhee Hai
- Author Name:
Harishankar Parsai
- Rating:
- Book Type:

- Description: शिकायत मुझे भी है' में हरिशंकर परसाई के लगभग दो दर्जन निबन्ध संगृहीत हैं और इनमें से हर निबन्ध आज की वास्तविकता के किसी न किसी पक्ष पर चुटीला व्यंग्य करता है। परसाई के लेखन की यह विशेषता है कि वे केवल विनोद या परिहास के लिए नहीं लिखते। उनका सारा लेखन सोद्देश्य है और सभी रचनाओं के पीछे एक साफ-सुलझी हुई वैज्ञानिक जीवन-दृष्टि है, जो समाज में फैले हुए भ्रष्टाचार, ढोंग, अवसरवादिता, अन्धविश्वास साम्प्रदायिकता आदि कुप्रवृत्तियों पर तेज रोशनी डालने के लिए हर समय सतर्क रहती है। कहने का ढंग चाहे जितना हल्का-फुल्का हो, किन्तु हर निबन्ध आज की जटिल परिस्थितियों को समझने के लिए एक अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है। इसलिए जो आज की सच्चाई को जानने में रुचि रखते हैं, उनके लिए यह पुस्तक संग्रहणीय है।
Neki Kar, Akhbar Main Dal
- Author Name:
Alok Puranik
- Book Type:

-
Description:
तमाम दरियाओं की गन्दगी देखकर पता लगता है कि लोग अब दरियाओं में नेकी तो नहीं डालते। कोई वक़्त रहा होगा, जब नेकी दरिया में डाली जाती थी। कोई वक़्त रहा होगा, जब साधु-सन्त प्रवचन करते थे, अब प्रवचनों की मार्केटिंग होती है। रामकथा की मार्केटिंग होती है। राम की मार्केटिंग होती है। राम के चाकर तुलसीदास ने लिखा था कि बड़ी मुश्किल से खाने का इन्तज़ाम हो पाता है, मस्जिद में सोना पड़ता है। अब राम के चाकर एक मस्जिद छोड़, पचास मस्जिद भर की जगह क़ब्ज़ा कर लें। राम की चाकरी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नौकरी के रिटर्न इधर समान हो गए हैं। राम की चाकरी में लगे सीनियर लोग भी मर्सिडीज में चल रहे हैं और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नौकरी में लगे सीनियर लोग भी मर्सिडीज में चल रहे हैं। राम का कारोबार इधर बहुत रिटर्न वाला हो गया है। ग़ौर से देखने पर पता चलता है कि बाज़ार सिर्फ़ वहाँ नहीं है, जहाँ वह दिखाई पड़ता है। बाज़ार वहाँ भी है, जहाँ वह दिखाई नहीं पड़ता है।
बाज़ार के इस छद्म को पकड़ने की चुनौती ख़ासी जटिल है। यह किताब इस छद्म को समझने में महत्त्वपूर्ण मदद करती है। व्यंग्य के लपेटे से कुछ भी बाहर नहीं है, इस कथन की पुष्टि इस किताब में बार-बार होती है।
Urdu-Hindi Hashya-Vyangya
- Author Name:
Ravindranath Tyagi
- Rating:
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी व्यंग्यकारों में सुपरिचित रवीन्द्रनाथ त्यागी द्वारा संकलित-सम्पादित यह कृति उर्दू और हिन्दी के क़रीब चौबीस चुनिन्दा लेखकों की हास्य-व्यंग्य रचनाएँ प्रस्तुत करती है।
यह पुस्तक कुछ लोगों की इस धारणा को झुठलाती है कि श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य की परम्परा उर्दू में तो है, हिन्दी में नहीं; अथवा यदि है तो भी स्तरीय नहीं है। वस्तुतः हिन्दी-उर्दू व्यंग्य लेखन पर इस तरह विचार करना ग़लत है, क्योंकि सम्पादक के ही शब्दों में कहें तो “कम-से-कम अब यह स्थिति ज़रूर आ गई है, जब लिपि को छोड़कर उर्दू और हिन्दी, दोनों भाषाओं में और कोई अन्तर नहीं रहा।” इसलिए यदि उर्दू के पतरस बुखारी से लेकर कृष्ण चंदर तक तथा हिन्दी के अन्नपूर्णानन्द से लेकर लतीफ़ घोंघी तक की व्यंग्य रचनाओं को यहाँ देखा जाएगा तो अपने समय की धड़कनें उनमें समान रूप से सुनी जा सकेंगी।
वर्तमान जीवन के विविध क्षेत्रों में निहित जड़ीभूत संस्कारों और विद्रूपताओं पर ये रचनाएँ कसकर प्रहार करती हैं। इस प्रक्रिया में अनेकानेक दुर्लभ व्यंग्य-स्थितियाँ, धारदार भाषा-शैली, शिल्पगत अनूठे प्रयोग तथा यथार्थ को पारदर्शी बनाती हुई वैचारिकता संकलित निबन्धों को सहज ही अविस्मरणीय बना देती है। दूसरे शब्दों में हम हँसी-हँसी में ही सोच के गम्भीर बिन्दुओं का स्पर्श करने लगते हैं।
Nadi Mein Khada Kavi
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

-
Description:
अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बज़िद कि अब नहीं उठूँगी।
फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही उठूँगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छन्द।
कथा लेखन की एक नई छटा है इस उपन्यास में। इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज़ में चलते हैं। हमारी चिर-परिचित हदों-सरहदों को नकारते लाँघते। जाना-पहचाना भी बिलकुल अनोखा और नया है यहाँ। इसका संसार परिचित भी है और जादुई भी, दोनों के अन्तर को मिटाता। काल भी यहाँ अपनी निरन्तरता में आता है। हर होना विगत के होनों को समेटे रहता है, और हर क्षण सुषुप्त सदियाँ। मसलन, वाघा बार्डर पर हर शाम होनेवाले आक्रामक हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी राष्ट्रवादी प्रदर्शन में ध्वनित होते हैं ‘क़त्लेआम के माज़ी से लौटे स्वर’, और संयुक्त परिवार के रोज़मर्रा में सिमटे रहते हैं काल के लम्बे साए।
और सरहदें भी हैं जिन्हें लाँघकर यह कृति अनूठी बन जाती है, जैसे स्त्री और पुरुष, युवक और बूढ़ा, तन व मन, प्यार और द्वेष, सोना और जागना, संयुक्त और एकल परिवार, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, मानव और अन्य जीव-जन्तु (अकारण नहीं कि यह कहानी कई बार तितली या कौवे या तीतर या सड़क या पुश्तैनी दरवाज़े की आवाज़ में बयान होती है) या गद्य और काव्य : ‘धम्म से आँसू गिरते हैं जैसे पत्थर। बरसात की बूँद।’
Baital Chhabbisi
- Author Name:
Vinod Bhatt
- Book Type:

-
Description:
गुजराती के सुविख्यात व्यंग्य लेखक विनोद भट्ट की यह कृति अपने पृष्ठों में सैकड़ों ऐसी बेजोड़ व्यंग्य कथाएँ सँजोए हुए हैं, जो मनोरंजक तो है ही, हमारी परम्परागत संस्कारशीलता का परिष्कार भी करती हैं। ये अनायास ही हमें वहाँ तक ले जाती हैं, जहाँ स्थितियाँ, इतिहास और चरित्र नए अर्थ देने लगते हैं। विनोद वस्तुतः पौराणिक और ऐतिहासिक मिथकों के सहारे समकालीन समाज की बहुविध विसंगतियों और मानव-स्वभाव की क्षुद्रताओं पर तीखे कटाक्ष करते हैं। कम-से-कम शब्दों में बड़ी-से-बड़ी बात कहना उनकी ख़ास पहचान बन चुकी है।
यह व्यंग्य-संग्रह कई उप शीर्षकों में बँटा हुआ है, जिनमें संगृहीत कथाएँ एक ख़ास अन्दाज़ में एक ख़ास विषय को उठाती हैं। इसके लिए परम्परागत भारतीय लोक-कथाओं, जातक-कथाओं, पच्चीसी, बत्तीसी तथा मेघदूत की शैली का उपयोग किया गया है। इससे कथाओं की पठनीयता और सहज ग्राह्यता में बढ़ोतरी हुई है, यहाँ तक कि ये आसानी से हमारी स्मृति का हिस्सा बन जाती हैं और इनकी प्रभावशीलता हमें दूसरों को सुनाने की उत्तेजना से
भर देती है।
Alag
- Author Name:
Gyan Chaturvedi
- Book Type:

- Description: सामयिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विसंगतियों और विडम्बनाओं पर तीखा प्रहार करते हुए व्यंग्य परम्परा को एक नई भाषा और शिल्प प्रदान करनेवाला विशिष्ट संकलन। लेखक यहाँ हमारे दैनिक जीवन और रोज़मर्रा की विडम्बनापूर्ण घटनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण कर न सिर्फ़ हमें झकझोरता है, बल्कि उन कारणों को भी परत-दर-परत खोलता है जो इनके मूल में हैं। इस संकलन का हर आलेख हास-परिहास करते हुए संवेदना के स्तर पर पाठकों से रिश्ता बनाकर उनके दु:ख, बेचैनी के साथ जुड़ता है और उन्हें आश्वस्त कर सोच का एक नया स्तर भी प्रदान करता है। पुस्तक में राजनीति के विभिन्न रंगों, सत्तालोलुपता और भ्रष्टाचार को बेनक़ाब किया गया है और आन्तरिक स्थितियों पर दृष्टिपात करते हुए चीज़ों को देखने की एक नई दृष्टि की ओर भी संकेत किया गया है। अपने व्यंग्य-उपन्यासों से हिन्दी व्यंग्य को एक नई ऊँचाई देनेवाले ज्ञान चतुर्वेदी की इन रचनाओं से हँसी उतनी नहीं आती, जितनी अपने आसापास की विडम्बनाएँ हमें कोंचती हैं। शायद यही व्यंग्यकार की सफलता भी है।
Customer Reviews
5 out of 5
Book
July 15, 2025, 4:17 am
Anuj Kumar Deo
brilliant piece!! this makes me laugh just by thinking about the texts and contexts! one must read this
5 Book