Jai Shankar Prasad Granthavali Vol. 1-4
Author:
Jaishankar PrasadPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 4800
₹
6000
Available
हिन्दी नाटक-साहित्य में प्रसाद जी का विशिष्ट स्थान है। इतिहास, पुराण-कथा और अर्द्धमिथकीय वस्तु के भीतर से प्रसाद ने राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल को पहली बार अपने नाटकों के माध्यम से उठाया। दरअसल उनके नाटक अतीत-कथा-चित्रों के द्वारा तत्कालीन राष्ट्रीय संकट को पहचानने और सुलझाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ‘चन्द्रगुप्त’, ‘स्कन्दगुप्त’ और ‘ध्रुवस्वामिनी’ का सत्ता-संघर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्न से जुड़ा हुआ है। प्रसाद ने अपने नाटकों की रचना द्वारा भारतेन्दुकालीन रंगमंच से बेहतर और संश्लिष्ट रंगमंच की माँग उठायी। उन्होंने नाटकों की अन्तर्वस्तु के महत्त्व को रेखांकित करते हुए रंगमंच को लिखित नाटक का अनुवर्ती बनाया। इस तरह नाटक के पाठ्य होने के महत्त्व को उन्होंने नजरअन्दाज नहीं किया। नाट्य-रचना और रंगमंच के परस्पर सम्बन्ध के बारे में उनका यह निजी दृष्टिकोण काफी महत्वपूर्ण और मौलिक है। प्रसाद जी के नाटक निश्चय ही एक नयी नाट्य-भाषा के आलोक में चमचमाते हुए दिखते हैं। अभिनय, हरकत और एक गहरी काव्यमयता से परिपूर्ण रोमांसल भाषा प्रसाद की नाट्य-भाषा की विशेषताएँ हैं। इसी नाट्य-भाषा के माध्यम से प्रसाद अपने नाटकों में राष्ट्रीय चिन्ता के संग प्रेम के कोमल संस्पर्श का कारुणिक संस्कार देते है।
ISBN: 9788180315442
Pages: 2592
Avg Reading Time: 86 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Prem Aur Patthar
- Author Name:
Varsha Das
- Book Type:

-
Description:
इस लघु-नाटक संकलन में वर्षा दास द्वारा किए गए चार कहानियों के नाट्य-रूपान्तरण हैं जिनमें उन्होंने कहानी के मूल मन्तव्य को बिना कोई हानि पहुँचाए उसे नाट्य-रूप दिया है। पहला नाटक डॉ. लोकनाथ भट्टाचार्य की बांग्ला कहानी ‘प्रेम ओ पाथर’ पर आधारित है। इसके केन्द्र में शिव की एक प्राचीन प्रस्तर-मूर्ति है जो कथा-नायक के लिए एक बड़े नैतिक निर्णय का आधार बनती है। वह उस मूर्ति की चोरी करनेवाले एक तथाकथित संस्कृति-प्रेमी द्वारा दी जानेवाली नौकरी को भी ठुकरा देता है और आगे हमेशा के लिए उससे सम्बन्ध समाप्त कर लेता है।
दूसरा नाटक लाभुबहन मेहता की गुजराती कहानी ‘बिन्दी’ पर आधारित है जिसमें एक युवती के आकस्मिक वैधव्य और फिर उसके जीवन के एक नए मोड़ की कहानी को रूपायित किया गया है। नाटक ‘मरा हुआ’ डॉ. लोकनाथ भट्टाचार्य की ही बांग्ला दिलचस्प नाटक है जिसमें एक कुत्ते की मौत और मनुष्यों से उसके सम्बन्ध को बहुत मनोरंजक ढंग से प्रकाश डाला गया है।
‘जेसल-तोरल’ एक गुजराती लोककथा पर आधारित नाटक है जिसमें एक किंवदन्ती के माध्यम से हमें एक नैतिक सबक मिलता है। कहानी एक लुटेरे की है जो अन्त में अपने किए पर पश्चात्ताप करता है और बदल जाता है।
Mere Bachche
- Author Name:
Arthur Miller
- Book Type:

- Description: अमेरिका ही नहीं, विश्व के श्रेष्ठ नाट्यकार आर्थर मिलर का नाटक ‘ऑल माइ संस’ एक ऐसी ही कृति है जो एक ओर व्यक्तिगत स्वार्थ एवं संकुचित दृष्टिकोण तथा दूसरी ओर सामाजिक हित एवं सहज मानवीयता के संघर्ष को मूर्त करती है। यह संघर्ष तब और अर्थपूर्ण तथा मार्मिक हो उठता है जब हम इसके एक छोर पर पिता को और दूसरे छोर पर पुत्र को पाते हैं। जिओ केलर सेना के लिए दागी सिलिंडर दे देते हैं जिसके फलस्वरूप 21 पायलट मर जाते हैं। यद्यपि इसके लिए वे पकड़े जाते हैं पर चालाकी से सारा दोष अपने साझीदार के सिर डाल वे मुक्त हो जाते हैं। जब इस तथ्य का उनके पुत्र क्रिस केलर को पता चलता है तो वह अत्यन्त क्षुब्ध होता है; देश के प्रति, देशवासियों के प्रति ऐसा जघन्य अपराध करने के लिए पिता को जेल ले जाने को तैयार हो जाता है। पिता अपनी भूल स्वीकार करते हैं और अपने को गोली मारकर उस भूल का प्रायश्चित्त करते हैं। विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में लिखे गए इस नाटक का कथानक सार्वभौम महत्त्व का है; ऐसी स्थिति किसी भी देश, किसी भी काल में पाई जा सकती है जब लोभ के कारण, व्यक्ति स्वार्थ के लिए एक व्यक्ति देश एवं समाज का बहुत बड़ा अहित कर बैठता है। हम सही मायनों में लड़ाई की विभीषिका से भले ही न गुज़रे हों, पर आए दिन जनकल्याण के कामों में जो धोखाधड़़ी, लूट-खसोट दिखलाई पड़ती है वह कम बड़ा अपराध नहीं है, उसका ‘ऑल माइ संस’ की घटनाओं से अद् भुत साम्य प्रतीत होता है।
Ek Adhpaka Sa Natak
- Author Name:
Chirag Khandelwal
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी में मौलिक नाटकों की कमी की शिकायत से भरे माहौल में एक अधपका-सा नाटक सुखद विस्मय और भरोसेमन्द आश्वस्ति की तरह है। युवा नाटककार चिराग़ खंडेलवाल की यह कृति मौजूदा दौर के विपर्यय को उसकी पूरी बेतरतीबी के साथ उजागर करती है। इसके किरदार ऐसे हालात से रू-ब-रू हैं जो सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर जितने विघटनकारी हैं, व्यक्तिगत स्तर पर भी उतने ही मारक और व्यर्थताबोध भरने वाले हैं। दरअसल पूरा परिदृश्य ही बेतुकेपन, विवेकहीनता और विसंगितयों से खंडित है। ऐसे में सम्पूर्णता सम्भव नहीं है। नाटक इस यथार्थ को रेखांकित करते हुए सम्पूर्णता के स्वप्न को जगाता है।
एक अधपका-सा नाटक की एक उल्लेखनीय विशेषता इसका सरल फ़ार्म है। पारम्परिक ढाँचे को पूरी तरह नकारे बिना, ‘नाटक के अन्दर नाटक’ जैसी युक्ति को अपनाते हुए नाटककार ने मानो सारे बन्धन खोलकर यह सुविधा दे दी है कि पात्र अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ एक-एक शब्द जोड़ते हुए इसको अद्यतन कर सकते हैं और अपने समय-समाज के प्रासंगिक सवालों को इसमें शामिल कर सकते हैं। इस तरह यह नाटक हमेशा नया और समकालीन बना रहता है।
Ande Ke Chhilke : Anya Ekanki Tatha Beej Natak
- Author Name:
Mohan Rakesh
- Book Type:

- Description: आधुनिक हिन्दी नाटय साहित्य और कथा की दुनिया में मोहन राकेश का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। हिन्दी-रंगान्दोलन को एक नई गति और समृद्धि देने में उनकी निर्णायक भूमिका रही है। ‘अंडे के छिलके : अन्य एकांकी तथा बीज नाटक’ उनके कई प्रयोगधर्मी एकांकियों का संग्रह है। प्रयोगशीलता को मोहन राकेश रंगमंच की भाषा और उसके मानवीय पक्ष की समृद्धि से जोड़कर देखते थे, अर्थात् रंगमंचीय उपकरणों की न्यूनता के बावजूद कठिन से कठिन प्रयोग कर पाने की क्षमता के साथ जोड़कर। जयदेव तनेजा राकेश के नाटकों की एक दुर्लभ विशेषता पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि, ''उनके नाटकों में मंचीय सफलता और प्रदर्शनीयता के साथ-साथ साहित्यिकता और पठनीयता का भी विलक्षण गुण विद्यमान है। उनमें इन दोनों विशेषताओं का अद्भुत सामंजस्य हुआ है। नाटकों को पद्य मानने का ही यह परिणाम है कि उनके नाट्य-संवादों और रंग-निर्देशों की भाषा में कोई अन्तर नहीं है। सम्भवत: यही कारण है कि उनके नाटकों को देखते या सुनते हुए ही नहीं, पढ़ते हुए भी बीच में छोड़ना कष्टकर प्रतीत होता है।'' संक्षेप में, इस संग्रह में शामिल नाटकों को हम राकेश के बहुस्तरीय नाट्य-लेखन के समर्थ उदाहरणों के रूप में देख सकते हैं।
Maile Hath
- Author Name:
Jean Paul Sartre
- Book Type:

-
Description:
पार्टी की विचारधारा से ‘भटके’ पार्टी प्रमुख के सचिव के तौर पर काम करने और उसे गोली से उड़ाने की ज़िम्मेदारी युवा पार्टी कार्यकर्ता ह्यूगो के कन्धों पर डाली जाती है। वो इस काम को अंजाम भी दे देता है...लेकिन क्या उसने उस राजनीतिक क़त्ल को एक आवेगी अपराध के जामे में छुपाया है? इस सवाल का जवाब तब साफ़ होता है जब दो साल की सज़ा काटकर, जेल से छूटने के बाद, वो अपने पुराने साथियों और ख़ुद अपने-आप से, इस कत्ल को करने के अपने वास्तविक उद्देश्यों का खुलासा करने की कोशिश करता है।
The Listner के शब्दों में ‘ज्याँ पॉल सार्त्र आज दुनिया के सबसे चर्चित लेखक हैं’ और ये उनका सबसे चर्चित नाटक। सर्वप्रथम पेरिस में सन् 1948 में मंचित यह नाटक साम्यवाद की मानसिकता और तौर-तरीक़ों की एक बेहतरीन (क्लासिक) विवेचना करता है।
Madhavi
- Author Name:
Bhisham Sahni
- Book Type:

-
Description:
प्रख्यात लेखक भीष्म साहनी का यह तीसरा नाटक ‘माधवी’ महाभारत की एक कथा पर आधारित है। ऋषि विश्वामित्र का शिष्य गालव अपनी शिक्षा समाप्ति के समय गुरु-दक्षिणा देने की हठ करता है और विश्वामित्र उसके हठी स्वभाव से क्रुद्ध होकर आठ सौ अश्वमेधी घोड़े माँग लेते हैं। अश्वमेधी घोड़ों की खोज में भटकता हुआ गालव अन्त में दानवीर राजा ययाति के आश्रम में पहुँचता है। राज-पाट से निवृत्त राजा ययाति गालव की प्रतिज्ञा सुनकर असमंजस में पड़ जाते हैं, किन्तु वे दैवी गुणों से युक्त अपनी एकमात्र पुत्री माधवी को, यह कहकर उसे सौंप देते हैं कि जहाँ कहीं किसी भी राजा के पास आठ सौ अश्वमेधी घोड़े मिलें, उनके बदले वह माधवी को राजा के पास छोड़ दें। माधवी के बारे में कहा गया है कि उसके गर्भ से उत्पन्न बालक चक्रवर्ती राजा बनेगा।
यहीं से माधवी की कथा आरम्भ होती है। अनूठे और मर्मस्पर्शी घटना-चक्र में गुज़रते हुए, इस नाटक के प्रधान पात्र—माधवी, गालव, ययाति, विश्वामित्र और अनेक राजागण अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं, और एक विकट, हृदयग्राही मानवीय स्थिति के परिप्रेक्ष्य में, ये चरित्र नए-नए आयाम ग्रहण करते हैं। इनके केन्द्र में ययाति-कन्या माधवी है, जो लगभग एक अलौकिक मिथकीय परिवेश में रहते-बसते हुए भी अत्यधिक सजीव, सर्वथा प्रासंगिक और आकर्षक बनकर उभरती है।
Grees Puran Katha-Kosh
- Author Name:
Kamal Naseem
- Book Type:

- Description: एशिया और पश्चिमी देशों के सारे साहित्य-संस्कृति की रीढ़ हैं भारतीय और ग्रीस-पुराण-कथाएँ। अपोलो, हेराक्लीज़ ऑरोरा, ऐफ्रॉडायटी ट्रॉय इत्यादि न जाने कितने देवी-देवता, वीर नायक-नायिकाएँ स्थान और घटनाएँ हैं, जिनके ज़िक्र अंग्रेज़ी और भारतीय साहित्य में प्रारम्भ से ही आने लगते हैं और आगे हर क्षेत्र में इनके सन्दर्भ मिलते हैं। कमल नसीम ने बेहद ही परिश्रम से इन परिचयात्मक कहानियों को वर्गीकृत किया और प्रामाणिक रूप से लिखा है। यह अनोखा, विलक्षण सन्दर्भ-कोश एकदम नए ढंग से हमें इस उपयोगी, ज्ञानवर्धक और दिलचस्प सामग्री से परिचित कराता है। हज़ारों महाकाव्यों, काव्यों, नाटकों, फ़िल्मों इत्यादि की आधारभूत सामग्री की पृष्ठभूमि खोलता है। इसमें हैं—देवी-देवता, वीर, पराक्रमी, चमत्कारी नायक, योद्धा, सुन्दर-कुरूप नायिकाएँ, घटनाएँ, घटना-स्थल, युद्ध और निर्माण, विजय-पराजय, स्वप्न और इतिहास, मनुष्य के आदिम और उदात्त रूप, सम्बन्धों के घिनौने और पूज्य धरातल। ये कहानियाँ जितनी रोचक, रोमांचक, प्रतीकात्मक और ज्ञानवर्धक हैं, उतनी ही उपयोगी भी। पुस्तक में पीछे दी गई अनुक्रमणिका की सहायता से वांछित प्रसंगों का विस्तृत विवरण आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। यह ऐसा कोश है, जिसे न सिर्फ़ इतिहास के छात्र, प्राध्यापक वरन् सुधी पाठक भी पढ़ना और सँजोकर रखना चाहेंगे।
Andher Nagari
- Author Name:
Bhartendu Harishchandra
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक 'अंधेर नगरी' भारतेन्दु ने बनारस में नेशनल थियेटर के लिए एक दिन में सन् 1881 में लिखा था जो काशी के दशाश्वमेघ घाट पर उसी दिन अभिनीत भी हुआ था। 'अंधेर नगरी' को रोचक विनोदपूर्ण बनाने के लिए उसका कथात्मक ढाँचा सादा सामान्य रखा है, पर व्यंग्य को तीव्रतर बनाने के लिए ज़रूरी संकेत पहले दृश्य से ही दिए गए हैं। 'अंधेर नगरी' अंग्रेज़ राज्य का ही दूसरा नाम है। संवाद व्यंग्यपूर्ण अभिप्रायमूलक है। समूचा प्रकरण तमाशा जैसा ही है। क्योंकि 'अंधेर नगरी' की अंधेरगर्दी जिस हास्यास्पद परिणति तक दिखाई गई है, वह अकल्पनीय या अविश्वसनीय होते हुए भी यथार्थ के निकट है।
Shreshth Bharatiya Ekanki : Vol. 1
- Author Name:
Prabhakar Shrotriya
- Book Type:

-
Description:
आज रंगमंच के उपयुक्त सशक्त नाटकों की शायद सबसे अधिक आवश्यकता है। क्योंकि टी.वी. और फ़िल्मों द्वारा फैलाए गए प्रदूषण को सशक्त नाटक ही सही चुनौती दे सकते हैं, परन्तु इस दृष्टि से वर्तमान परिदृश्य बहुत आशाजनक दिखाई नहीं पड़ता। विभिन्न भारतीय भाषाओं में अच्छे नाटकों का लगातार अभाव होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में यह बहुत आवश्यक है कि भारतीय भाषाओं में रंगमंच के योग्य उत्कृष्ट नाटकों का परस्पर आदान-प्रदान हो। इसी उद्देश्य से इस पुस्तक के रूप में एक प्रयत्न भारतीय भाषा परिषद् द्वारा किया गया।
दो खंडों में प्रकाशित ‘श्रेष्ठ भारतीय एकांकी : खंड एक’ में ओड़िया, बांग्ला, कन्नड़, मराठी और हिन्दी के श्रेष्ठ एकांकी संकलित हैं। इसमें रंगमंच के उपयुक्त एकांकी ही प्रायः चुने गए
हैं। विभिन्न विभागों का सम्पादन सम्बन्धित भाषाओं के अधिकारी विद्वानों द्वारा किया गया है। उन्होंने भूमिकाओं में अपनी-अपनी भाषा के नाटक और एकांकी साहित्य के विकास और विशिष्टताओं का गहरा विवेचन किया है। इनसे पाठकों को सम्बन्धित भाषाओं के अवदान की पर्याप्त जानकारी मिल सकेगी। एकांकियों के हिन्दी अनुवाद अत्यन्त प्रामाणिक अनुवादकों द्वारा करवाए गए हैं, ताकि नाटक के कथ्य और नाट्य-भाषा दोनों की रक्षा की जा सके।
‘एकांकी’ विधा एक तरह से वर्तमान युग का अवदान और आन्दोलन है। अपने समय की ज्वलन्त समस्याएँ और चिन्ताएँ इनके मूल में होती हैं। ऐसी कृतियाँ एक बड़े पाठक और दर्शक समाज के सम्मुख प्रस्तुत करना आज हमारे समय की माँग है।
आशा है, यह संकलन इस अर्थ में भी उपादेय होगा।
Hanoosh
- Author Name:
Bhisham Sahni
- Book Type:

- Description: ‘हानूश’ भीष्म साहनी का एक ऐसा नाटक है जिसमें कलाकार की सृजन की अदम्य अकुलाहट और उसकी निरीहता को रूपायित किया गया है। धर्म और सत्ता के गठबन्धन के साथ सामाजिक शक्तियों के संघर्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति भी है यह अनमोल नाटक ‘हानूश’। कलाकार के पारिवारिक तनावों का अनूठा अंकन हुआ है ‘हानूश’ में। इस नाटक में एक ऐसे कलकार को केन्द्रीय भूमिका मिली है जो शुरू में ताला बनानेवाला एक सामान्य मिस्त्री है, बाद में उसके दिमाग़ में घड़ी बनाने का विचार उत्पन्न होता है और वह घड़ी बनाने में लग जाता है। विषम परिस्थितियों से जूझता हुआ वह घड़ी बनाने के काम में लगातार सत्रह साल गुज़ार देता है और अन्ततः इस लगन और कड़ी मेहनत के परिणामस्वरूप वह चेकोस्लोवाकिया की पहली घड़ी बनाने में कामयाब होता है। उसकी बनाई गई घड़ी नगरपालिका की मीनार पर लगाई जाती है, लेकिन इतनी बड़ी सफलता के बाद कलाकार को क्या मिलता है? बादशाह कलाकार की आँखें निकलवा लेता है, ताकि वह उस तरह की दूसरी घड़ी नहीं बना सके। चेक-इतिहास की इस छोटी-सी घटना से भीष्म साहनी ने हिन्दी को यह यादगार नाटक सौंपा है जो आज छह दशक बाद भी रंग-प्रेमियों के लिए यथार्थ और आश्चर्य का एक सामंजस्य-सा प्रतीत होता है।
Mahabhoj 'Natak'
- Author Name:
Mannu Bhandari
- Book Type:

-
Description:
मन्नू भंडारी को इसका श्रेय जाना चाहिए कि उन्होंने अतिपरिचित परिस्थितियों के, इतने व्यापक फलक को, बिना किसी प्रचलित मुहावरे का शिकार हुए, समेट लिया है। इसी नाम से उनके चर्चित उपन्यास का यह नौ दृश्यीय नट्यान्तरण अत्यन्त यथार्थपरक और तर्कसंगत है। इस नाटक में हम समाज में सक्रिय अनेक ताक़तों और ग़रीबों के जीवन पर उनके प्रभाव की परिणतियों को दृश्य-दर-दृश्य खुलते देखते हैं।
...(मोहन) राकेश के बाद पहली बार हम इस नाटक में सुगठित संवादों का श्रवण-सुख भी पाते हैं।
—राजेंद्र पॉल; ‘फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस’।
‘महाभोज’ सामाजिक यथार्थ का रूखा अंकन मात्र नहीं है, यह बहुत सोचे-समझे, रचनात्मक डिज़ाइन की उत्पत्ति है, साथ ही बहुत सघन भी। इस नाटक को उन राजनीतिक नाट्य-रचनाओं में गिना जाएगा जो सिर्फ़ दर्शकों की भावनाओं और आक्रोश का दोहन मात्र नहीं करतीं, बल्कि यथार्थ की क्रूर और विचलित करनेवाली छवि के शक्तिशाली प्रक्षेपण के द्वारा दर्शक की नैतिक संवेदना को चुनौती देती हैं और उन्हें अपने विवेक की खोज में प्रवृत्त करती हैं।
—अग्नेश्का सोनी; ‘पेट्रियट’।
और सबसे ज़्यादा यह उपन्यास/नाटक मन्नू भंडारी की संवेदनशील जागरूकता की एक देन है और नाटककारों की श्रेणी में उनके चिर-अभीप्सित आगमन का प्रमाण भी।
—कविता नागपाल; ‘द हिन्दुस्तान टाइम्स’।
Katha Shakuntala Ki
- Author Name:
Radhavallabh Tripathi
- Book Type:

- Description: शकुंतला-दुष्षंत की कथा की इस नाट्य-प्रस्तुति को जो चीज़ विशिष्ट बनाती है, वह है इसका काल-बोध और तत्कालीन परिवेश का तथ्यपरक निरूपण। ‘महाभारत’ में किंचित् परिष्कृत रूप में सबसे पहले आनेवाली यह कथा वास्तव में वैदिक काल की है। इसके पात्र वेदों के समय से सम्बन्ध रखते हैं। दुष्यंत के पुत्र भरत का ज़िक्र भी वेदों में मिलता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ‘महाभारत’ में यह कथा जिस रूप में आई, उसके बजाय यह नाटक इस कथा के उस रूप को आधार बनाता है जो वैदिक काल में रहा होगा। ‘महाभारत’ में, और उसके बाद हम जिस भी रूप में इस कथा को देखते हैं, उसकी जड़ें सामन्ती मूल्य-संरचना में हैं। वैदिक संस्करण निश्चय ही कुछ भिन्न रहा होगा और उसका परिप्रेक्ष्य आदिम मूल्यबोध से रहा होगा। इस नाटक में कथा के उसी रूप को पकड़ने का प्रयास किया गया है। इसीलिए यहाँ ‘दुष्यंत’ को ‘दुष्षंत’ कहा गया है जो ‘महाभारत’ तथा वैदिक साहित्य में आता है। यह प्रचलित कथा मूलत: मातृसत्तात्मक समाज से ताल्लुक़ रखती है जहाँ लड़कियों को अपना जीवन साथी चुनने की पूरी छूट है, जैसाकि शकुंतला भी करती है। नाटक में भूख और अकाल की भी चर्चा है जिन्हें वेदों के ही कुछ प्रसंगों के आधार पर पुन:सृजित किया गया है। भाषा, संवाद-रचना और प्रसंगानुकूल दृश्य-रचना के चलते यह नाटक शकुंतला की जानी-पहचानी कथा को हमारे सामने नए और भावप्रवण रूप में प्रस्तुत करता है; जो मंच के लिए जितना अनुकूल है, साधारण पाठ के लिए भी उतना ही रुचिकर है।
Madhukar Shah : Bundelkhand Ka Nayak
- Author Name:
Govind Namdev
- Book Type:

-
Description:
भारत के स्वतंत्रता-आन्दोलन के ऐसे न जाने कितने अध्याय होंगे, जो इतिहास के पन्नों पर अपनी जगह नहीं बना पाए। देश के दूर-दराज़ हिस्सों में जनसाधारण ने अपने दम पर विदेशी शासकों से कैसे लोहा लिया, क्या-क्या झेला, उस सबको क़लमबन्द करने की उस समय न किसी को इच्छा थी, न अवसर। लेकिन पीढ़ियों तक जीवित रहनेवाली किंवदन्तियों में इतिहास के ऐसे अदेखे सूत्र मिल जाते हैं।
1857 के स्वतंत्रता-संग्राम से पहले 1842 के बुन्देल-विद्रोह का प्रकरण भी ऐसा ही है। लिखित इतिहास में इस विषय पर विस्तार से कहीं कुछ भी उपलब्ध नहीं है, लेकिन कुछ सूचनाएँ अवश्य मिलती हैं। उन्हीं को आधार मानकर जुटाई हुई बाक़ी जानकारी को लेकर इस नाटक की रचना की गई है।
कह सकते हैं कि यह रंगमंच के एक सिद्ध जानकार की क़लम से निकली रचना है, जो इस ऐतिहासिक प्रकरण को इतनी सम्पूर्णता से एक नाटक में बदलती है कि इसे पढ़ना भी इसे देखने जैसा ही अनुभव होता है।
बुन्देलखण्ड की खाँटी ज़ुबान, अंग्रेज़ अफ़सरों की हिन्दी और लोकगीतों के साथ बुनी गई यह नाट्य-कृति एक समग्र नाट्य-अनुभव रचती है।
Sampurna Natak : Mrinal Pandey
- Author Name:
Mrinal Pande
- Book Type:

-
Description:
विख्यात कथाकार, पत्रकार और समाज-चिन्तक मृणाल पाण्डे के नाटकों का यह संग्रह उनके एक और महत्त्वपूर्ण रचना-पक्ष को सामने लाता है। नाटककार के रूप में उनकी यात्रा अस्सी के दशक से शुरू हुई और अपनी तमाम कार्यकारी तथा रचनात्मक व्यस्तताओं के बीच समय-समय पर उन्होंने इसे बरक़रार रखा। उनका पहला नाटक ‘मौजूदा हालात को देखते हुए’ था जिसका प्रकाशन ‘नटरंग’ में और भोपाल में मंचन भी हुआ, लेकिन दुर्भाग्य से उसकी कोई प्रतिलिपि अब प्राप्य नहीं है। यही स्थिति उनके रेडियो नाटकों की भी है, जिनमें से अधिकांश आकाशवाणी के आर्काइव्ज़ में गुम हैं। सो इस संग्रह में दो ही रेडियो नाटक शामिल हो सके हैं, ‘सुपर मैन की वापसी’ और ‘धीरे-धीरे रे मना’।
पुस्तक के मुख्य भाग में मृणाल जी के पाँच पूर्णकालिक नाटक हैं जो न केवल नाटककार के रूप में उनकी प्रतिभा के परिचायक हैं बल्कि उनकी वैचारिक आत्मनिर्भरता को भी रेखांकित करते हैं। संग्रह का पहला नाटक ‘जो राम रचि राखा’ उस दौर में लिखा गया था जब हिन्दी में जनवादी तर्ज की ‘प्रतिबद्धता’ धार्मिक आस्था की तरह स्थापित थी। उस दौर में उन्होंने इस नाटक के पात्र मन्ना सेठ के हास्यास्पद क्रान्ति-स्वप्नों के माध्यम से अपने समाज से अपरिचित और निरर्थक प्रतीकों से भरी तत्कालीन वैचारिक दुनिया की तरफ़ इशारा किया। इस पर उनको आलोचना भी सहनी पड़ी।
आलोचना उन्हें अपने नवीनतम नाटक ‘शर्मा जी की मुक्तिकथा’ (2002) पर भी मिली जिसको आलोचकों ने जटिल और ‘बहुत प्रयोगधर्मी’ कहा। लेकिन इस सबके बावजूद मृणाल पाण्डे का नाटककार अपने समय की जटिलताओं का सामना करता रहा। उनका मानना है कि “अपनी सच्ची स्थिति को, वह चाहे जितनी भी जटिल क्यों न हो, परिभाषित करना हर लेखक की लेखकीय अनिवार्यता है।” उनके एक पहले नाटक ‘आदमी जो मछुआरा नहीं था’ का फोकस ही यह है कि मनुष्य के लिए उसकी स्वतंत्रता और नियति अन्तत: एक निजी सवाल है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि मृणाल पाण्डे के ये सभी नाटक मंच की कसौटी पर भी खरे उतर चुके हैं। इसलिए सिर्फ़ पाठक ही नहीं, रंगकर्मी भी इस संकलन को उपयोगी पाएँगे और हमें उम्मीद है कि इससे उनकी यह शिकायत काफ़ी हद तक दूर हो जाएगी कि हिन्दी में मंचन करने लायक मौलिक नाटक नहीं लिखे जा रहे।
Khiraki Khol Do
- Author Name:
Varsha Das
- Book Type:

- Description: ‘खिड़की खोल दो’ में वर्षा दास के चार नाटक संकलित हैं। इन चारों नाटकों में उन्होंने मानव-जीवन को अलग-अलग पहलुओं से समझने का प्रयास किया है। संग्रह का पहला नाटक ‘नहीं कभी नहीं’ एक स्वतंत्रचेता स्त्री को केन्द्र में रखकर चलता है जिसे नाटक में एक अपेक्षाकृत दुर्बलमना पुरुष के बरक्स उभारा गया है। 'मैं कौन हूँ' दो चोरों की कहानी है जो एक रात चोरी करने निकलते हैं तो इत्तेफ़ाक़न उनका सामना जीवन के कुछ ऐसे पक्षों से होता है जो उन्हें अपने बारे में नए सिरे से सोचने पर बाध्य कर देते हैं। आम आदमी की ज़िन्दगी से जुड़े दु:ख उन्हें बदल देते हैं। 'खिड़की खोल दो' में एक किशोरी अपने परिवार में पहली बार उन परम्पराओं को चुनौती देती है जिन्हें हर परिवार में स्त्री के व्यक्तित्व के दमन के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है और अन्तत: अपनी बात मनवा लेती है। 'सपना' संग्रह का पूर्णकालिक नाटक है जिसमें जीवन के और भी जटिल हालात को उकेरते हुए नाटककार ने एक बड़े सपने की तरफ़ इशारा किया है।
Phir se Jahanpanah
- Author Name:
Prabhakar Shrotriya
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Shri Maithlisharan Gupt Ke Natak
- Author Name:
Maithlisharan Gupt
- Book Type:

-
Description:
श्रीमैथिलीशरण गुप्त के नाटकों का यह संग्रह एक साथ प्रकाशित होने के कारण ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इस अर्थ में और भी महत्त्वपूर्ण है कि अभी तक अप्रकाशित, ‘निष्क्रिय-प्रतिरोध’ और ‘विसर्जन’, नाटकों के पहली बार प्रकाशन के कारण अधिकतर मूल्यवान है। इसमें पाँच मौलिक और चार अनूदित कुल नौ नाटक सम्मिलित हैं। इन सभी प्रकार के नाटकों के चयन में गुप्त जी ने वैविध्य का ध्यान रखा है। इन नाटकों का मुख्य उद्देश्य अपने समय के महत्त्वपूर्ण और चुनौती-भरे प्रश्नों का उत्तर देना रहा है।
‘अनघ’ नाटक अहिंसा, करुणा, लोक-सेवा आदि पर आधारित है। ‘विसर्जन’ में पहली बार बेगार प्रथा की ख़िलाफ़त की गई है। यह बेगार प्रथा और शोषण के ख़िलाफ़ सशक्त नाटक है। ‘निष्क्रिय-प्रतिरोध’ दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग पर केन्द्रित है जो महात्मा गांधी द्वारा कुलियों पर किए गए अत्याचार के विरोध की याद दिलाता है। महाकवि भास के संस्कृत नाटकों के किए गए अनुवादों में पारिवारिकता, उदारता, सत्याग्रह, लोक-सेवा, अन्तरात्मा की प्रतिध्वनि और अहिंसा आदि मूल्यों की मार्मिक अभिव्यक्ति है। श्रीमैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा लिखित इस संग्रह के नाटक उनके समय के प्रश्नों को समझाने और उनका उत्तर खोजने के अतिरिक्त आज के नारी-विमर्श एवं दलित-विमर्श के चिन्तन को भी रेखांकित करते हैं।
Raja Chamba Aur Char Bhai
- Author Name:
Habib Tanveer
- Book Type:

- Description: ‘राजा चम्बा और चार भाई’ हबीब तनवीर का लिखा और उन्हीं के द्वारा खेला गया ऐसा नाटक है जिसकी अपेक्षित चर्चा नहीं हुई। राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखकर लिखा गया यह ऐतिहासिक दिखनेवाला नाटक, किसी समय या किसी मुल्क के इतिहास से तो ताल्लुक़ नहीं रखता, लेकिन इसकी विषयवस्तु हर दौर और हर जगह के लिए आज भी मौज़ूँ है। राजनीति, जिसका एकमात्र उद्देश्य सत्ता हासिल करना होता है और जिसके लिए वह जन-गण के कल्याण का बहाना करती है, लोगों को बाँटकर ही अपना मनचाहा पाती है। एक काल्पनिक भूगोल में यह नाटक हमारा परिचय कुछ गंभीर वास्तविकताओं से कराता है। हबीब साहब ने अपने नाटकों में अकसर ही सत्ता और ताक़त को आईना दिखाते हुए अवाम की आवाज़ को बुलन्द किया है। यह नाटक उसी अवाम को एक रहने का सन्देश देता है, और बताता है कि आपसी मन-भेद सिर्फ़ विनाश की ओर ले जाता है। तीन अंकों और सत्रह दृश्यों में बँटा यह नाटक आज के समय में ख़ासतौर पर प्रासंगिक है। नाट्य-समूह इसे खेलते हुए जिस सार्थकता का अहसास करेंगे, उतना ही उपयोगी यह पाठकों को पढ़ते हुए भी लगेगा।
Shastra-Santan
- Author Name:
Rameshwar Prem
- Book Type:

-
Description:
“कुरुक्षेत्र में दिन में ही रहो, बस! रात में वहाँ मत रहो। यदि तुम रात में वहाँ रहे तो दिन में जो देखोगे, ठीक उसका उलटा पाओगे।” ‘शस्त्र-सन्तान’ का यह सूत्र वाक्य—केवल ‘महाभारत’ (आरण्यक पर्व) तक ही सीमित नहीं है। अस्तित्व के तब से अब तक के महावृत्तान्त में यह गूँज रहा है और यह उसके अन्तर्विरोधों तथा दर्दनाक विडम्बना को एक झटके में उजागर करता है। क्या पता हम जो देख रहे हैं—अगले क्षण उसका अर्थ उलट जाए! यह नाटक निःशब्द रात्रि में गांधारी, शववाहक, शस्त्र संचयकर्ताओं और विलाप करती स्त्रियों के मद्धिम स्वरों से शुरू होकर एक ऐसी बीहड़ सांगीतिक रचना में परिवर्तित होता है, जहाँ करुणा के साथ शब्द और महारंग काक की आवाज़ें भी हैं। एक ऐसी सांगीतिक रचना जो खींचती है, रुलाती है और सत्य के काँटों से भरी मरुभूमि पर ढकेल देती है।
यह नाटक कुरुक्षेत्र की रातों के बहाने रक्त में ऊभ-चूभ विगत, वर्तमान, आगत की भी कथा है, जिसमें जटिल सम्बन्धों और सत्य के लिए संघर्षरत आत्माओं का पुनरुद्घाटन होता है।
बहुविदित महाआख्यान के बहाने ‘शस्त्र-सन्तान’ हिन्दी नाटक के इतिहास में समकालीन काव्य की भाषा के नाटकीय प्रक्षेपण का अप्रतिम उदाहरण है।
Lakshagrih Evam Anya Natak
- Author Name:
Vratya Basu
- Book Type:

-
Description:
बांग्ला के प्रख्यात नाटककार और रंगकर्मी व्रात्य बसु से हिन्दी के पाठक अपरिचित नहीं हैं। वर्षों पहले ‘चतुष्कोण' शीर्षक से उनके चार नाटकों का संग्रह हिन्दी में अनूदित होकर आ चुका है, जिसे नाटक-प्रेमी पाठकों के साथ-साथ रंगकर्मियों ने भी बहुत उत्साह के साथ स्वीकार किया।
इस संग्रह में उनके तीन नाटक संकलित हैं—‘लाक्षागृह’, ‘संध्या की आरजू में भोर का सरसों फूल’ और ‘बम’ (बोमा)। व्रात्य बसु का नाटककार अपने समय को लक्षित होता है लेकिन जहाँ से वे अपने वर्तमान को देखते हैं, वह एक वृहत् दृष्टि-बिन्दु है। इस संग्रह में शामिल नाटक भी इसके अपवाद नहीं हैं। ‘लाक्षागृह’ में यदि वे महाभारत की एक घटना को आधार बनाकर मनुष्य की चिरन्तन प्रवृत्तियों की पड़ताल करते हैं तो, ‘संध्या की आरजू...’ के अपने पात्रों को आज के कॉरपोरेट तंत्र में स्थित करते हैं और इधर उभरी नई विडम्बनाओं पर प्रकाश डालते हैं। समय के इस बड़े अन्तराल के बीच ‘बम' की पृष्ठभूमि आज़़ादी के पहले का अविभाजित बंगाल है जिसमें हमें अरविन्द घोष मिलेंगे—ऋषि के रूप में नहीं, क्रन्तिकारी के रूप में...!
इसके अलावा इन नाटकों का सबसे बड़ा आकर्षण इनका भाषा-सौष्ठव और मंचीयता है जो इन्हें एक तरफ़ अभिनेय बनाती है तो दूसरी तरफ़ पठनीय भी। कथ्य स्वयं एक तत्त्व है जिसके लिए इन्हें पढ़ा ही जाना चाहिए।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...