Jagadguru Adya Shankaracharya
Author:
Shivdas PandeyPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 560
₹
700
Unavailable
"शंकराचार्य एक ऐसे शास्त्राचार्य का नाम है, जो संस्कृति-रक्षा को युद्ध मानकर शास्त्रार्थ करता है और जिसका अस्त्र-शस्त्र सबकुछ शास्त्र तथा जिसका युद्ध मात्र शास्त्रार्थ है एवं जिसकी शति हजारो-हजार वर्षों की ऋषि-प्रति-ऋषि एवं तपस्या-प्रति-तपस्या सिद्ध ज्ञान-संपदा है। वह न तो खलीफाओं की तरह युद्ध करता है और न नियोजित बोधिसवों की तरह, न ही जैसा देश, वैसा वेश, वैसा धर्म का सिका चलानेवाले ईसाई पादरियों की तरह। वह शास्त्र के शस्त्र से शास्त्रार्थ का युद्ध लड़ना जानता है—धर्म के क्षेत्र में ज्ञान तथा न्याय के निर्धारित विधानों के सर्वथा अनुरूप। यह युद्ध षड्दर्शनों तथा षड्चक्रों के साधकों के साथ-साथ इन ब्रह्मवादी शैव-दर्शन के तंत्रोन्मुख कश्मीरी शैवों से भी होता है और वह सोलह वर्षों में सभी विवादों का समाधान ढूँढ़कर वैदिक संस्कृति को पुन: स्थापित करता है। शंकराचार्य जैसा आचार्य होना, एक योगसिद्ध-ज्ञानसिद्ध तथा ध्यानसिद्ध आचार्य होना और ऐसे आचार्य का एक सिद्ध जगद्गुरु हो जाने का भी कोई विशेष अर्थ होता है।
वह समय आ गया है, जब पुन: एक बार भारत को जगद्गुरु शंकराचार्य का मात्र दर्शन-चिंतन-मंथन वाला युग नहीं, वरन् भारत डॉट कॉम विश्वगुरुवाले नए युग का भी गौरवशाली जगद्गुरु पद प्राप्त होना चाहिए।
भारतीय धर्म-दर्शन-संस्कृति परंपराओं के ध्वजवाहक कोटि-कोटि हृदयों के आस्थापुंज जगद्गुरु शंकराचार्य के प्रेरणाप्रद-अनुकरणीय जीवन पर केंद्रित पठनीय उपन्यास।
"
ISBN: 9789386054982
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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राम के जीवन में भारतीय आदर्शों के चरम विकास के दर्शन होते हैं। भक्ति-सम्प्रदाय में वे भगवान के अवतार माने जाते हैं। अतः उनके चारित्रिक गुण एवं जीवन का ज्ञान बड़े उत्साह से प्राप्त किया जाता है। रामलीला का आयोजन भारत में तो अत्यन्त प्राचीन काल से होता ही रहा है, विदेशों में भी सहस्रों वर्षों से बसे भारतीय इसे अक्षुण्ण बनाए हुए हैं। इस प्रकार रामलीला ने विदेशों में स्थापित भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध को ऐसा दृढ़ बना दिया है कि सहस्रों वर्षों तक निरन्तर प्रयत्न करते रहने पर भी काल उसे नष्ट करने में समर्थ नहीं हो सका है। इसमें सांस्कृतिक जीवन की ऐसी महत्त्वपूर्ण झाँकी मिलती है जो इस युग में भी समस्त क्षेत्रों में मानव का पथ-प्रदर्शन करने में सर्वथा समर्थ है।
देश के कोने-कोने में रामलीला के आयोजन की चर्चा अनेक धार्मिक तथा ऐतिहासिक ग्रन्थों में हुई। किन्तु किसी में उसका सम्यक् निरूपण प्राप्त नहीं होता। रामलीला का आयोजन प्रायः भक्ति-साधना के रूप में होता रहा है। अतएव भौतिकता से दूर रहनेवाले साधु-महात्मा इसके विश्लेषणात्मक इतिहास को धर्म-विरुद्ध समझ इससे दूर ही रहे। उन्हें तो रामलीला के दर्शन मात्र से प्रयोजन था। गोस्वामी जी राम का व्यापक प्रचार करना चाहते थे। उनके मत से तात्कालिक व्याधियों का सबसे बड़ा उपचार रामचरित था। जहाँ उन्होंने प्रचार के अनेक साधन अपनाए वहाँ मानस की रामलीला का आयोजन धूम-धाम से किया। रामलीला प्रचार का बड़ा उपयुक्त साधन है। कथा-वार्ता, मन्दिर या अखाड़ों में तो वह व्यक्ति जाता है जिसमें उस प्रकार की प्रवृत्ति रहती है, किन्तु रामलीला के कारण ऐसे जन भी उनकी ओर आकृष्ट होते हैं जिनकी सम्भावना नहीं की जाती। इसमें मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा भी मिलती हैं। प्रत्यक्ष दर्शन का प्रभाव श्रव्यकाव्य या उपदेश की अपेक्षा अधिक तथा स्थायी होता है।
गोस्वामी जी के पूर्व से वाल्मीकीय ‘रामायण’ के अनुसार रामलीला होती थी। उसके प्रति जनता में आस्था भी थी। वाल्मीकीय ‘रामायण’ के निर्माण काल की सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थिति तत्कालीन समय से भिन्न थी। वाल्मीकीय ‘रामायण’ के आधार पर होनेवाली रामलीला में धार्मिक भावना की प्रधानता थी। वह मुसलमानी शासन तथा इस्लाम धर्म के कारण उस युग में उपादेय सिद्ध नहीं हो सकती थी। गोस्वामी जी उसको नया तथा उपयोगी स्वरूप प्रदान करना चाहते थे। यह रामलीला का आन्दोलन था। रामलीला के आयोजन से जनता में नव-चेतना जग पड़ी। उनके सामने एक उदाहरण प्रत्यक्ष रूप में आ गया। राम की भाँति विपत्तियों में धैर्य रखने तथा पराक्रम द्वारा कार्य करने से राक्षसी प्रवृत्तियों का विनाश हो सकता है। भारतीय संस्कृति का मूर्त रूप पाकर जनता ने अपने हृदय का परिष्कार किया तथा चरित्र सुधारा। गोस्वामी जी की रामलीला की लहर सारे उत्तरी भारत में फैलती हुई दक्षिण में भी जा पहुँची। सारा देश राममय हो गया। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा अटक से लेकर कटक तक रामलीला का आन्दोलन व्याप्त हो गया। इस क्षेत्र में गोस्वामी जी को अपूर्व सफलता मिली।
Rigved : Mandal-2
- Author Name:
Govind Chandra Pandey
- Book Type:

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वेद सनातनविद्या के काव्यात्मक प्रतिपादन हैं। ऋग्वेद संहिता के अनुवाद एवं व्याख्या का प्रयास अनेक भाषाओं में समय-समय पर होता रहा है, किन्तु अभी तक उपलब्ध सभी अनुवादों में काव्यपक्ष की उपेक्षा अथवा पद्यानुवाद की प्रस्तुति के असम्भव प्रयास ही किए गए हैं जो ऋचाओं के साथ पूरा न्याय नहीं करते हैं। वेदों में भावों की सनातनता एक व्यापक ध्वनि के रूप में सूक्तों, संवादों और आख्यानों में विद्यमान है। प्रस्तुत अनुवाद में पादानुसारी किन्तु भावपरक अनुवाद पर विशेष आग्रह सोद्देश्य है ताकि ऋचाओं की काव्यात्मकता का यथासम्भव सम्प्रेषण एवं मूल की अर्थयोजना का क्रम अनुवाद में सुरक्षित रहे।
भाषान्तर में व्याख्या का सूक्ष्म प्रकार अनिवार्य होता है और वही अनुवाद का वर्तमान और अतीत के मध्य संवाद बनाकर बहुत कुछ को परम्परा में जीवित तथा प्रगतिशील रखता है। अतः ग्रन्थ में अनुवाद के लिए उपयुक्त भाषा, पुरातन ध्वनि बहुलता और समसामयिक सजीवता के संरक्षण की दृष्टि से तत्सम, तद्भव एवं देशी शब्दों के समन्वित प्रयोग किए गए हैं। साथ ही, गम्भीर और बहुमुखी अर्थों को स्पष्ट करने के लिए क्रियापदों के अनुवाद, दुरूह पदों के अर्थनिर्वचन में धातुपाठ, निरुक्त की पद्धति एवं आधुनिक तथा तुलनात्मक व्याकरण के अनुसरण से सहायता ली गई है।
वेद आर्षकाव्य के निर्देशन के साथ-साथ अध्यात्मगवेषियों के मार्गदर्शक भी हैं। अतः ऋचाओं में संश्लिष्ट आधियाज्ञिक, आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक अर्थों को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है। व्याख्याकारों में जहाँ विवाद की स्थिति है, वहाँ प्राचीन एवं नवीन दोनों ही मतों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार काव्यात्मक पक्ष की प्रस्तुति, निगूढ़ अर्थ के आयामों का विश्लेषण और विवादित स्थलों का तुलनात्मक विवेचन इस ग्रन्थ के अनुवाद एवं व्याख्या की अभीप्सित विशेषताएँ हैं।
इस खंड में ‘ऋग्वेद’ के दूसरे मंडल का व्याख्या सहित हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है।
Yamgita
- Author Name:
Ashok Kumar Sharma
- Book Type:

- Description: मृत्यु के देवता माने गए यमराज के उपदेशों पर आधारित यमगीता है। कठोपनिषद्, विष्णु पुराण तथा अग्नि पुराण में उपलब्ध यमगीता किसी को भी अज्ञात के भय, भविष्य की चिन्ता और मृत्यु के आतंक से मुक्त करने वाला ग्रंथ है। गीताओं में प्राय: सृष्टि और परमात्मा के रहस्यों की बातें प्रमुख होती हैं, लेकिन यह ग्रंथ जीवन में निराशा से बचने और निरन्तर उन्नति करने के जटिल सिद्धान्त सरल भाषा में बताता है। दुखों-कष्टों एवं असफलताओं से बचने के लिए आध्यात्मिक सिद्धान्तों का भी वर्णन इस गीता में है। इस ग्रंथ में तीन यमगीताओं के सार के साथ ही इनके आधुनिक सन्दर्भ भी हैं।
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