Dharm Aur Vishvadrishti
Author:
Periyar E.V. RamasamyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
यह किताब ई.वी. रामासामी नायकर 'पेरियार' (17 सितम्बर, 1879—24 दिसम्बर, 1973) के दार्शनिक व्यक्तित्व से परिचित कराती है। धर्म, ईश्वर और मानव समाज का भविष्य उनके दार्शनिक चिन्तन का केन्द्रीय पहलू रहा है। उन्होंने मानव समाज के सन्दर्भ में धर्म और ईश्वर की भूमिका पर गहन चिन्तन-मनन किया है। इस चिन्तन-मनन के निष्कर्षों को इस किताब के विविध लेखों में प्रस्तुत किया गया है। ये लेख पेरियार के दार्शनिक व्यक्तित्व के विविध आयामों को पाठकों के सामने रखते हैं। इनको पढ़ते हुए कोई भी सहज ही समझ सकता है कि पेरियार जैसे दार्शनिक-चिन्तक को महज़ नास्तिक कहना उनके गहन और बहुआयामी चिन्तन को नकारना है।</p>
<p>यह किताब दो खंडों में विभाजित है। पहले हिस्से में समाहित वी. गीता और ब्रजरंजन मणि के लेख पेरियार के चिन्तन के विविध आयामों को पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। इसी खंड में पेरियार के ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी मूल लेख भी समाहित हैं जो पेरियार की ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी अवधारणा को स्पष्ट करते हैं।</p>
<p>दूसरे खंड में पेरियार की विश्वदृष्टि से सम्बन्धित लेखों को संगृहीत किया गया है जिसमें उन्होंने दर्शन, वर्चस्ववादी साहित्य और भविष्य की दुनिया कैसी होगी जैसे सवालों पर विचार किया है। इन लेखों में पेरियार विस्तार से बताते हैं कि दर्शन क्या है और समाज में उसकी भूमिका क्या है? इस खंड में वह ऐतिहासिक लेख भी शामिल है जिसमें पेरियार ने विस्तार से विचार भी किया है कि भविष्य की दुनिया कैसी होगी?
ISBN: 9788183619677
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Ashok Kumar Sharma
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- Description: तत्त्वं क्षेत्रं व्योमातीतमहं क्षेत्रज्ञ उच्यते। अहं कर्ता च भोक्ता च जीवन्मुक्तः स उच्यते॥ तत्त्व (सत्य) क्षेत्र (देह) से परे होता है और उसे क्षेत्रज्ञ (आत्मा) कहा जाता है। मैं कर्ता (क्रिया करनेवाला) और भोक्ता (भोग करनेवाला) हूँ। जो इस सत्य को जानता है, वही सच्चा जीवन्मुक्त कहलाता है।
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