Islam Ka Saidhantik Parivesh
Author:
Zafar RazaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
प्रोफ़ेसर सैयद जाफ़र रज़ा उन विद्वान अध्यापकों में हैं, जो किसी भी विश्वविद्यालय के लिए गौरवपात्रिक होते हैं। मेरा उनका साथ कश्मीर विश्वविद्यालय, श्रीनगर से है। मैंने उनकी प्रबुद्धता के जौहर अनेक संगोष्ठियों में देखे हैं। इस्लामी धर्म, इतिहास, दर्शन, साहित्य और संस्कृति पर उन जैसी पैनी दृष्टि किसी दूसरे उर्दू साहित्यकार में मुझे देखने को नहीं मिली।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक में इस्लामी धर्म और समाज के बारे में सभी ज़रूरी जानकारी इस तरह पेश की गई है, कि कतरा में दजला की सैर करा दी है। उस पर सोहागा है, विद्वान लेखक की अपनी स्वस्थ, सन्तुलित एवं उदार दृष्टि, जिससे वे पहचाने जाते हैं। कोई बात बिना किसी ठोस आधार के नहीं लिखते हैं। यदि किसी विवादास्पद विषय पर उन्हें लिखना ही पड़ा, तो इस पर नज़र रखते हैं कि उनके क़लम से किसी के दिल को चोट न लगे। इस पुस्तक में भी इसका ख़याल रखा गया है।</p>
<p>यह अत्यन्त उपयोगी पुस्तक है, जिससे इस्लामी धर्म और समाज का सही परिचय मिलता है। यक़ीन है कि पुस्तक का हिन्दी-जगत में स्वागत होगा।
ISBN: 9789352210558
Pages: 263
Avg Reading Time: 9 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘गुरुग्रन्थ’ की अधिकांश रचनाएँ उन सिक्ख गुरुओं की हैं जो सीधे गुरु नानक देव की शिष्य-परम्परा में आते हैं तथा जिन्हें क्रमश: उन्हीं की ‘ज्योति का प्रतिरूप’ रहते आने के कारण, 'नानक' संज्ञा द्वारा अभिहित करने की परिपाटी भी चली आई है।
इसमें संगृहीत वाणियों के रचयिताओं की चेष्टा अधिकतर यही जान पड़ती है कि जो कुछ वास्तविक सत्य के रूप में अनुभूत हो उसे स्वयं अपने जीवन में भी उतारा जाए तथा वैसा ही करने का परामर्श किसी दूसरे को भी दिया जाए। वैसे सत्य का स्वरूप सदा एकरस एवं विश्वजनीन ही हो सकता है।
‘गुरुग्रन्थ' की एक ऐसी अन्य विशेषता, उसमें संगृहीत विविध रचनाओं के क्रमदान में भी पाई जा सकती है। उसमें आए हुए पदों को कोई ऐसा शीर्षक भी दिया हुआ नहीं मिलता जो विषयानुसार निश्चित किया गया हो तथा जिसके सहारे हमें उस मत-विशेष का परिचय मिल सके जिसे उनके रचयिताओं ने प्रकट किया होगा। उनका क्रम केवल रागानुसार ही स्थिर किया गया जान पाता है जिससे इस विषय में, हमें कोई भी सहायता नहीं मिल पाती। हमें यहाँ प्रत्यक्षत: केवल इतना ही पता चल पाता है कि सिक्ख गुरुओं ने, तथा कतिपय सन्तों, भक्तों ने एवं सूफियों तक ने भी एक ही प्रकार के गीत गाए होंगे।
Prayagraj: Ardhkumbh, Kumbh, Mahakumbh
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:

- Description: भक्ति, तीर्थ, धर्म, ब्रह्म और मोक्ष की अवधारणा को समझे बिना भारत और उसकी चेतना को समझ पाना सम्भव नहीं है। भारत में जहाँ कहीं भी देवनदी के एक से अधिक प्रवाह एक साथ मिलकर बहने लगते हैं, धाराओं का वह मिलन-स्थान ‘प्रयाग’ बन जाता है। हिमालय क्षेत्र में पंचप्रयाग तीर्थ ऐसे ही बने हैं। परन्तु जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती की तीन धाराओं का मिलन होता है, उस स्थान को प्रयागराज कहा गया है। यहाँ प्रतिवर्ष माघ स्नान के लिए, प्रति 6 वर्ष पर अर्धकुम्भ स्नान के लिए, प्रति 12 वर्ष पर कुम्भ स्नान के लिए और प्रति 144 वर्ष पर महाकुम्भ स्नान के लिए असंख्य लोग आते हैं। भाषा, जाति, प्रान्त आदि के भेदों को भुलाकर एक जन-समुद्र उमड़ आता है। भारतीय जीवन पद्धति में अमृतत्त्व का अनुसन्धान मानव जीवन का चरम लक्ष्य रहा है। अर्धकुम्भ, कुम्भ या महाकुम्भ के अवसर पर एकत्र होने वाला अपार जनसमुदाय सम्भवतः अमृत से भरे कुम्भ की अपनी अव्यक्त अभिलाषा को लेकर ही यहाँ पहुँचता है। प्रयागराज भारत का प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र होने के साथ ही भारतीय सात्विकता का सर्वोत्तम प्रतीक भी है। कुम्भ सम्बन्धी पौराणिक मान्यता का सर्वाधिक प्रचार शंकराचार्य ने किया था। लेकिन आदि शंकराचार्य के पूर्व भी प्रयाग में कुम्भ का आयोजन होता रहा है। इसका सबसे पुराना ऐतिहासिक वर्णन ह्वेनत्सांग (7वीं सदी ई.) ने किया था। उस समय प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर दुनिया भर से ऋषि-मुनि, राजा-महाराजा, सामन्त, कलाविद् और धर्मप्राण लोग लाखों की संख्या में एकत्र हुए थे। कुम्भ के दौरान संगम तीर्थ पर एक स्नान दिवस पर भक्तिभाव से कई बार इतने लोग जमा हो जाते हैं कि उनकी संख्या दुनिया के कई देशों की कुल जनसंख्या से भी अधिक होती है। श्रद्धालु श्रद्धा और भक्ति की एक अदृश्य डोर में बँधकर खिंचे चले आते हैं। श्रद्धा और आस्था का यह आवेग सदियों से चली आ रही हमारी परम्परा का हिस्सा है। प्रयागराज और कुम्भ की गौरवशाली परम्परा के बारे में जानना एक सुखद अनुभूति है।
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