Yaadon Ke Aaine Mein
Author:
Ozair E. RahmanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
उजैर ई. रहमान की ये ग़ज़लें और नज़्में एक तजरबेकार दिल-दिमाग़ की अभिव्यक्तियाँ हैं। सँभली हुई ज़बान में दिल की अनेक गहराइयों से निकली उनकी ग़ज़लें कभी हमें माज़ी में ले जाती हैं, कभी प्यार में मिली उदासियों को याद करने पर मजबूर करती हैं, कभी साथ रहनेवाले लोगों और ज़माने के बारे में, उनसे हमारे रिश्तों के बारे में सोचने को उकसाती हैं और कभी सियासत की सख़्तदिली की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं। कहते हैं, ‘साज़िशें’ बन्द हों तो दम आए, फिर लगे देश लौट आया है।’ इन ग़ज़लों को पढ़ते हुए उर्दू ग़ज़लगोई की पुरानी रिवायतें भी याद आती हैं और ज़माने के साथ क़दम मिलाकर चलनेवाली नई ग़ज़ल के रंग भी दिखाई देते हैं।</p>
<p>संकलन में शामिल नज़्मों का दायरा और भी बड़ा है। ‘चुनाव के बाद' शीर्षक एक नज़्म की कुछ पंक्तियाँ देखें :</p>
<p>सामने सीधी बात रख दी है/देशभक्ति तुम्हारा ठेका नहीं/ज़ात-मज़हब बने नहीं/बुनियाद/बढ़के इससे है कोई धोखा नहीं/कहते अनपढ़-गँवार हैं इनको/नाम लेते हैं जैसे हो गाली/कर गए हैं मगर ये ऐसा कुछ/हो न तारीफ़ से ज़बान ख़ाली। यह शायर का उस जनता को सलाम है जिसने चुनाव में अपने वोट की ताक़त दिखाते हुए एक घमंडी राजनीतिक पार्टी को धूल चटा दी। इस नज़्म की तरह उजैर ई. रहमान की और नज़्में भी दिल के मामलों पर कम और दुनिया-जहान के मसलों पर ज़्यादा ग़ौर करती हैं। कह सकते हैं कि ग़ज़ल अगर उनके दिल की आवाज़ हैं तो नज़्में उनके दिमाग़ की। एक नज़्म की कुछ पंक्तियाँ हैं :</p>
<p>देश है अपना, मानते हो न/दुःख कितने हैं, जानते हो न/पेड़ है इक पर डालें बहुत हैं/डालों पर टहनियाँ बहुत हैं/तुम हो माली नज़र कहाँ है/देश की सोचो ध्यान कहाँ है।
ISBN: 9788126730452
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Piramid Mein Ham
- Author Name:
Surendra Raghuvanshi
- Book Type:

- Description: Collection of Hindi Poems by Surendra Raghuvanshi
Urvashi : Dinkar Granthmala
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
उर्वशी और पुरूरवा की प्रेम-कथा का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। इस प्राचीनतम आख्यान को अपने युग के नए अर्थ से जोड़ने का सृजनात्मक प्रयास दिनकर की विलक्षण दृष्टि का परिचय है। वे मानते हैं कि उर्वशी सनातन नारी तो पुरूरवा सनातन नर का प्रतीक है। उर्वशी चक्षु, रसना, घ्राण, त्वक् तथा श्रोत्र की कामनाओं तो पुरूरवा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द से मिलनेवाले सुखों से उद्वेलित मनुष्य का प्रतीक है।
पुरूरवा और उर्वशी का प्रेम मात्र शरीर के धरातल पर आकार नहीं लेता, वह शरीर से जन्म लेकर मन और प्राण के गहन, गुह्य लोकों में प्रवेश करता है। रस के भौतिक आधार से उठकर रहस्य और आत्मा के अन्तरिक्ष में विचरण करता है। पुरूरवा के भीतर देवत्व की तृषा है। इसलिए मर्त्य लोक के नाना सुखों में वह व्याकुल और विषण्ण है। उर्वशी देवलोक से उतरी हुई नारी है। वह सहज, निश्चिन्त भाव से पृथ्वी का सुख भोगना चाहती है। पुरूरवा की वेदना समग्र मानव-जाति की चिरन्तन वेदना से ध्वनित है।
उर्वशी से पुरूरवा के बिछड़ने के बाद विरह को दिनकर एक दार्शनिकता के साथ व्यक्त करते हैं—संन्यास प्रेम को बर्दाश्त नहीं कर सकता, न प्रेम संन्यास को क्योंकि प्रेम प्रकृति और परमेश्वर संन्यास है और मनुष्य को सिखलाया गया है कि एक ही व्यक्ति परमेश्वर और प्रकृति दोनों को प्राप्त नहीं कर सकता। ...और वेदना की भूमि चूँकि पुरूरवा के संन्यास पर समाप्त नहीं हुई, इसलिए औशीनरी की व्यथा ने कविता को वहाँ समाप्त होने नहीं दिया।
निहितार्थ यही कि इन्द्रियों के मार्ग से अतीन्द्रिय धरातल का स्पर्श कर प्रेम की आध्यात्मिक महिमा को एक व्यापक धरातल पर रचती 'उर्वशी' दिनकर की अपने पाठ और प्रभाव में कभी न ख़त्म होनेवाली कृति है, एक दुर्लभ गीति-नाट्य कृति।
Shav
- Author Name:
Sanjay Alung
- Book Type:

- Description: Poems
Nakshtraheen Samay Mein
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

- Description: अशोक वाजपेयी का यह पन्द्रहवाँ कविता-संग्रह उनके पहले कविता-संग्रह के प्रकाशन के 50वें वर्ष में प्रकाशित हो रहा है। अपनी कविता के मूल स्वर और सरोकार पर अड़े रहे इस कवि ने हर बार अपनी कविता के संसार में कुछ ऐसा शामिल किया, खोजा है जो पहले नहीं था। इस बार समकालीन राजनीति में जो उथल-पुथल हुई है, उसके प्रतिरोध के रूप में उनकी कविता खड़ी हुई है। टेढ़ेपन पर अटल भरोसा रखनेवाले कवि ने इसमें कुछ सपाटबयानी भी की है। इस सबके बावजूद होने का अवसाद, गहरा आत्मालोचन और अदम्य जिजीविषा सब कुछ यहाँ एक साथ है। सयानापन और ज़िम्मेदारी, शब्द और शिल्प से कुछ खिलवाड़ तथा रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का सहज अध्यात्म फिर चरितार्थ है।
Hansti Hui Laraki
- Author Name:
Nirmala Thakur
- Book Type:

-
Description:
निर्मला ठाकुर की कविताएँ यह कहना चाहती हैं कि अनुभव रचना का एक ज़रूरी तत्त्व है। जीवनानुभव की रोशनी में बाहरी दुनिया को देखते हुए उन्होंने कविताओं को आकार दिया है। 'हँसती हुई लड़की' का केन्द्रीय सरोकार स्त्री है। स्त्री की बहुतेरी छवियाँ हैं। यहाँ जीवन का मार्मिक विस्तार है। ‘रूप—कई रूप’ कविता में ’नन्ही/मुन्नी दँतुली में हँसी—दूध की' से लेकर सन्ध्या की देहरी तक आ पहुँची स्त्री-जिजीविषा का वर्णन है। निर्मला ठाकुर ने बहुत संजीदगी के साथ आधी आबादी के संघर्षों व स्वप्नों को चित्रित किया है। ‘औरत की दुनिया’ इस सन्दर्भ में ख़ासतौर पर पढ़ी जानी चाहिए।
इन कविताओं का सशक्त पक्ष है ‘अबूझ की समझ’। यही कारण है कि इनमें सुसंवेद्य पारदर्शिता है। ‘बर्तन माँजती हुई स्त्री की फलश्रुति है—इधर देखो/मुखातिब हो ज़रा हमसे/मुख पर कौन सी छाया घनेरी/लिए बैठी हो/उठो न/चेहरा इधर कर/ऊपर उठाओ/समय का दर्पण तुम्हारे सामने है।’ कवयित्री ने स्त्री-जीवन के कोलाहल और अकेलेपन की शिनाख़्त की है।
रिश्ते, प्रकृति, रूपबोध व जनजीवन आदि कविताओं में शामिल हैं। 'स्वर्ग सुख' कविता पढ़कर निराला की वह ‘तोड़ती पत्थर’ याद आ सकती है। ‘जो करना’ आत्मकथात्मक है और बेहद मार्मिक।
भाषा-शिल्प की सहजता में विन्यस्त ये कविताएँ एक संवेदनशील मन का आईना हैं।
Ek Ped Chhatnar
- Author Name:
Dinesh Kumar Shukla
- Book Type:

-
Description:
दिनेश कुमार शुक्ल की कविता में जीवन और जन के राग का उत्सव है जो आश्चर्य नहीं कि अक्सर छन्द में आता है, नहीं तो छन्द की परिधि पर कहीं दूर-पास मँडराता हुआ। उनकी कविता समय की समूची दुखान्तिकी से परिचित है, उस पूरे अवसाद से भी जिसे समय ने अपनी उपलब्धि के रूप में अर्जित किया है, लेकिन वह उम्मीद की अपनी ज़मीन नहीं छोड़ती। कारण शायद यह है कि जन-जीवन, लोक-अनुभव और भाषा के भीतर निबद्ध जनसामान्य के मन की ताक़त की एक बड़ी पूँजी उनके पास है।
वृहत् विश्व-मानव-समाज की नियति के किसी एक हाथ में सिमट जाने की स्थिति पर व्यंग्यपूर्वक वे अगर कहते हैं कि 'आपकी अनुमति से ही आएँगे/सुख के बौर/आपकी सहमति से ही उठेगी/आँधी दु:ख की', तो स्पष्ट हो जाता है कि अपने समय के सब ख़तरों से वे बख़ूबी वाक़िफ़ हैं, लेकिन वे यह भी देख पा रहे हैं कि 'सब कुछ बिखरा हुआ पड़ा है/ध्वस्त पड़ी है सारी निर्मिति/किन्तु बचा है एक कंगूरा/साबुत सीधा सधा हुआ जो/ ताक रहा है आसमान को'। यही वह एक कंगूरा है जो सम्भवत: एक नए आरम्भ का प्रस्थान बिन्दु होगा जहाँ 'मुकुति-का-खिलइ-सहस-दल-कँवल/हँसइ-जीवन-नित-नूतन-धवल/बहइ-सर-सर-सर-झंझा-प्रबल/कि धँसकँइ-बड़ेन-बड़ेन-के-महल'। इन पंक्तियों में न सिर्फ़ एक भिन्न भविष्य के स्वप्न-नृत्य का नाद सुनाई देता है, बल्कि एक नए निर्माण का इरादा भी दिखाई देता है।
दिनेश कुमार शुक्ल की कविताएँ अपनी भाषा-सामर्थ्य के लिए भी विशेष जानी गई हैं। उन्होंने अपना एक अलग रंग रचा है, और छन्द परम्परा को नई कविता में भिन्न कौशल से बरता है जो लोक-स्मृति, जन-गण की पीड़ाओं और मनुष्य की जिजीविषा की विभिन्न मुद्राओं से सम्पन्न इस संग्रह की कविताओं में भी देखा जा सकता है।
Renuka
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
दिनकर बन्धनों और रूढ़ियों से मुक्त अपनी राह के कवि हैं। इसलिए उन्हें स्वच्छन्दतावाद के कवि के रूप में भी रेखांकित किया गया। ‘रेणुका’ में इसकी स्पष्ट झलक मिलती है।
संग्रह की पहली कविता ‘मंगल आह्वान’ में दिनकर का जो उन्मेष है, उससे पता चलता कि वे राष्ट्रीय चेतना से किस तरह ओतप्रोत थे—‘भावों के आवेग प्रबल/मचा रहे उर में हलचल।’ परतंत्र भारत में असमानता और अत्याचार से विचलित होने के बजाय वे आक्रोश से भरे दिखते हैं जिसे व्यक्त करने के लिए वे अतीत-गौरव के ज़रिए भी सांस्कृतिक चेतना अर्जित करते हैं—‘प्रियदर्शन इतिहास कंठ में/आज ध्वनित हो काव्य बने/वर्तमान की चित्रपटी पर/भूतकाल सम्भाव्य बने।’ इसी कड़ी में वे ‘पाटलिपुत्र की गंगा से’, ‘बोधिसत्व’, ‘मिथिला’, ‘तांडव’ आदि कविताओं में चन्द्रगुप्त, अशोक, बुद्ध और विद्यापति तथा मिथकीय चरित्रों—शिव, गंगा, राम, कृष्ण आकर्षक भाषा-शैली में याद करते हैं। वे ‘हिमालय’ में गुणगान तो करते हैं, लेकिन समाधिस्थ हिमालय जन में उदात्त चेतना का प्रतीक बन सके, इसलिए यह कहने से भी नहीं चूकते कि ‘तू मौन त्याग, कर सिंहनाद/रे तपी! आज तप का न काल/नव-युग-शंखध्वनि जगा रही/तू जाग, जाग, मेरे विशाल!’
संग्रह में ‘परदेशी’ एक अलग मिज़ाज की रचना है। इसमें पौरुष स्वर के बदले लोकनिन्दा का भय गहनता में प्रकट है। इसी तरह ‘जागरण’, ‘निर्झरिणी’, ‘कोयल’, ‘मिथिला में शरत्’, ‘अमा-सन्ध्या’ जैसी कविताएँ भी हैं जिनमें क्रान्तिधर्मिता नहीं, बल्कि प्रकृति, जीवन और प्रेम का सौन्दर्य-सृजन है। ‘गीतवासिनी’ की ये पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं—‘चाँद पर लहराएँगी दो नागिनें अनमोल/चूमने को गाल दूँगा दो लटों को खोल।’
‘रेणुका’ की कविताएँ भिन्न-भिन्न स्वरों की होते हुए भी अपनी जातीय सोच और संवेदना में बृहद् कैनवस लिये हैं। इस संग्रह के बग़ैर दिनकर का ही नहीं, उनके युग का भी सही आकलन सम्भव नहीं।
Likhane Ka Nakshhatra
- Author Name:
Malay
- Book Type:

-
Description:
मलय की कविता एक सृष्टि रचने की तरह लगती है। इसलिए उसके पाठ को पूरी तरह समझकर अर्थवस्तु की संगति खोजी जा सकती है। उसका पाठ पेचीदा है। यह एक पूरा नाट्य-व्यापार है जो चाक्षुष माध्यमों के मुक़ाबले अपनी ध्वनियों से टक्कर लेता है। कविता के इस पाठ का वस्तु की संश्लिष्टता से गहरा सम्बन्ध है। यह सामान्य कथन की कविता है भी नहीं। इस कविता का ठाठ जटिल है। यह गहरी और मज़बूत जड़ों वाली, व्यापक प्रशाखाओं में विकसित होनेवाली अनन्त संघर्षों से युक्त परम्परा का विनम्र स्वीकार भी है। यह स्वीकार पंच महाभूतों और इन्द्रियों के चर-अचर तक व्यापक है। संवाद की ललक का ऐसा व्यापक विस्तार कविता में कम ही देखने को मिलता है। एक अर्थ में मलय की कविता दृश्य बिम्बात्मक है। चाक्षुष प्रत्यय फंतासी बनकर खड़ा होता है।
आज के युग-सत्य कविता को वाचाल नहीं बनाते। मलय का काव्य-विवेक तमाम जीवनानुभूतियों से एक साथ टकराता है। अनुभव की चिनगारियाँ इस कविता में साफ़-साफ़ चमकती हैं। छोटे-छोटे दृश्य-बिम्ब व्यापक धरातल पर अपनी गतिशीलता में इतने क्रियाशील होते हैं कि निरन्तरता का एक नया द्वन्द्व उभरता है। मलय की कविता एक स्पन्दनशील जगत् की कविता है। यहाँ प्रत्येक शब्द सक्रिय है, उसकी क्रियाशीलता उसके व्यवहार से जानी जाती है। इस कविता में कुछ भी आरोपित नहीं है : न प्रगति, न प्रयोग। कवि अपनी कविता का स्रोत जीवन को मानता है। जहाँ भी, जैसा भी वह है, कविता का विषय है। अपनी सुदीर्घ रचना-यात्रा में मलय की कविता भटकी नहीं है। मलय की कविताओं की यह छठी पुस्तक है।
मलय की ये कविताएँ बन्धनों से मुक्ति के लिए सामूहिक प्रयासों की सार्थकता का स्वीकार हैं। कवि के सामने मेहनतकश समाज की अपार दु:ख-गाथाएँ हैं। इन गाथाओं के दु:ख को इन कविताओं में सुना जा सकता है।
—वीरेन्द्र मोहन
Shame-Shehre-Yaran
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: ‘ग़ुबारे-अय्याम’ फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ की आख़िरी कविता पुस्तक है जिसका प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ था। साल 1981 से 1984 के बीच लिखी गईं इन नज़्मों और ग़ज़लों का मुख्य स्वर अपने पूरे जीवन पर दृष्टिपात करने जैसा है। जैसाकि हमें मालूम है उनका निजी और सार्वजनिक जीवन असाधारण ढंग से घटनाप्रधान रहा। जेल भी गए और जीवन के कई साल निर्वासन में भी गुज़ारे। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ की पहली कविता ‘तुम ही कहो क्या करना है’ में फ़ैज़ ने प्रगतिशील सोच वाले उन तमाम लोगों के संघर्ष को शब्द दिए हैं जिन्होंने पूरी मानवता के लिए बराबरी और इज़्ज़त के सपने देखे थे; जो जवान हौसलों के साथ एक बड़ी दुनिया बनाने निकले थे, लेकिन उन्हें गहरी निराशा मिली—‘जब अपनी छाती में हमने/इस देस के घाओ देखे थे/था वेदों पर विश्वास बहुत/और याद बहुत से नुस्ख़े थे/...’ पर घाव इतने पुराने और जटिल थे कि ‘वेद इनकी टोह को पा न सके/और टोटके सब बेकार गए’। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ में संकलित ‘एक नग़्मा कर्बला-ए-बेरूत के लिए’, ‘एक तराना मुजाहिदीने-फ़िलस्तीन के लिए’, ‘हिज्र की राख और विसाल के फूल’ तथा ‘आज शब कोई नहीं है’ जैसी नज़्में और ग़ज़लें उनके आख़िरी दिनों की पीड़ा को व्यक्त करती हैं लेकिन उम्मीद से ख़ाली वे भी नहीं हैं।
Gitanjali
- Author Name:
Rabindranath Thakur
- Book Type:

- Description: गीतांजलि’ महान् रचनाकार नोबल पुरस्कार विजेता कवींद्र रवींद्रनाथ टैगोर का प्रसिद्ध महाकाव्य है। एक शताब्दी पूर्व जब इसकी रचना हुई, तब भी यह एक महाकाव्य था और एक शताब्दी के बाद भी यह महाकाव्य है तथा आनेवाली शताब्दियों में भी यह एक महाकाव्य ही रहेगा। इस महाकाव्य की उपयुक्तता तब तक रहेगी जब तक मानव सभ्यता जीवित है। उन्नीसवीं सदी में विश्व साहित्य के क्षेत्र में भारतीयों की पहचान इस महाकाव्य के माध्यम से हुई। यह महाकाव्य हर भारतीय की अनुभूतियों से अंतरंग रूप से जुड़ा है। यह अपने आप में एक अनूठा महाकाव्य है, जो साधारण व्यक्ति से लेकर प्रकांड विद्वान् के लिए समान रूप से प्रेरणादायी है। इस काव्य की रचना न किसी विशेष समाज, प्रांत या देश विशेष के लिए है। यह महाकाव्य मानव संस्कृति एवं सभ्यता के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। किसी महाकाव्य का अनुवाद दूसरी भाषा में करना तथा उसी भाषा में उसका शाब्दिक अर्थ मात्र करना काफी नहीं होता। अनुवाद से पूर्व यह आवश्यक है कि उस महाकाव्य में अंतर्निहित भावों को समझकर सम्यक् रूप में उसका मंथन किया जाए। गीतांजलि, जिसका अनुवाद विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं एवं सभी भारतीय भाषाओं में हो चुका है, ऐसे महाकाव्य का फिर से अनुवाद करने का साहस जुटाना अपने आप में अत्यंत प्रशंसनीय कार्य है।
Kuchh Aur Nazmein
- Author Name:
Gulzar
- Book Type:

-
Description:
गुलज़ार के गीत हिन्दी फ़िल्मों की गीत परम्परा में अपनी पहचान ख़ुद हैं, प्रवृत्ति के साथ उनके कवि का जैसा अनौपचारिक और घरेलू रिश्ता है, वैसा और कहीं नहीं मिलता। जितने अधिकार से गुलज़ार क़ुदरत से अपने कथ्य और मन्तव्य के सम्प्रेषण का काम लेते रहे हैं, वैसा भी और कोई रचनाकार नहीं कर पाया है। न फ़िल्मों में और न ही साहित्य में।
इस किताब में वे नज़्में शामिल हैं जिनमें से ज़्यादातर को आप इस किताब में ही पढ़ सकते हैं, यानी कि ये गीतों के रूप में फ़िल्मों के मार्फ़त आप तक कभी नहीं पहुँचीं। इसमें गुलज़ार की कुछ लम्बी नज़्में भी शामिल हैं, कुछ छोटी और कुछ बहुत छोटी जिन्हें उन्होंने ‘त्रिवेणी’ नाम दिया है। इनको पढ़ना एक अलग ही तजुर्बा है।
Jab Dharti Nagme Gayegi
- Author Name:
Sahir Ludhianvi
- Book Type:

-
Description:
साहिर लुधियानवी के फ़िल्मी गीतों का अपना एक अलग मेयार है। उनके गीतों से हम हर मौक़े के लिए गीत चुन सकते हैं—चाहे प्रेम का इज़हार हो या जुदाई का ग़म, ईश्वर के समक्ष पीड़ा का बयान हो या फिर हास्य-व्यंग्य की धार। उनसे हम अपने दिल की कैफ़ियत को बख़ूबी बखान कर सकते हैं।
बचपन में पिता के घर से बेघर होने की त्रासदी, माँ के साथ पिता के अमानवीय बर्ताव आदि ने किशोर साहिर के अन्दर जो अवसाद का मवाद भरा था; उसने उनके पूरे जीवन को प्रभावित किया और आगे चलकर शब्दों में आकार लिया। उनके आधे-अधूरे प्रेम की पीड़ा ने भी उनके शब्दों को प्राण तथा क़लम को ख़ूबी बख़्शी, जिससे वे समाज की विसंगतियों और जीवन-जनित हर पहलू को ख़ूबसूरती व बेबाकी से उभार सके। यह साहिर की क़लम की ताक़त ही है कि फ़िल्मी नग़्मों का उनका यह संकलन संगीत के सहारे के बिना भी अपने पाठ में अपनी अदबी गुणवत्ता का क़ायल बना लेने का माद्दा रखता है।
Dukh Naye Kapde Badal Kar
- Author Name:
Shariq Kaifi
- Book Type:

-
Description:
शारिक़ कैफ़ी की शाइ’री में, आदमी का इस दुनिया में होना, अपने जिस्म-ओ-जान, चेतना, जज़्बों और महसूस करने की तमामतर ताक़त के साथ, एक घर, एक ख़ानदान, एक मुहल्ले, उसके गली-कूचों और एक सामाजिक और सांस्कृतिक माहौल में होना, और दिल-ओ-दिमाग़ के छोटे-छोटे वाक़िआ’त से बनते-बिगड़ते वाक़िआ’त में, और उनके माध्यम से, होना है। ये वाक़िआ’ती तख़य्युल (घटना आधारित कल्पना) शारिक़ कैफ़ी की बहुत बड़ी ताक़त और पहचान है, और इसमें उनका कोई सानी नहीं। इसकी बदौलत उर्दू की इ’श्क़िया शाइ’री बिलकुल नई, अनोखी, ज़हनी, जज़्बाती और नफ़्सियाती (मनोवैज्ञानिक) बारीकियों से परिचित हुई है, जो उर्दू शाइ’री को उनकी बहुत ख़ास देन है।
शारिक़ का सफ़र अब जिस मर्हले (चरण) में है, वहाँ तक बेरहम हक़ीक़त-पसन्दी (यथार्थ-बोध) की लय तेज़तर होती जा रही है। ये भाव उनकी इ’श्क़ियात शाइ’री में भी जारी है, और ज़िन्दगी और दुनिया के उनके अनुभवों में भी।
ज़िन्दगी, दुनिया और कायनात के बारे में शारिक़ कैफ़ी के तज्रबात में अब बहुत फैलाव और व्यापकता आ गई है। यहाँ हर चीज़, हर शक्ल और हरकत को हर ख़याल और धारणा का उलट-पुलट करके देखा जा रहा है।
Lockdown Mein Fansi Jindagi
- Author Name:
Dilip Kumar
- Book Type:

- Description: Collection of Hindi Poem
Kroorata
- Author Name:
Kumar Ambuj
- Book Type:

-
Description:
‘क्रूरता’ संग्रह की कविताएँ अपने प्रकाशन के साथ ही ध्यानाकर्षण का केन्द्र बन गई थीं। ये कविताएँ हमारे समय में नागरिक होने के संघर्ष, चेतना और व्यथा को गहरे काव्यात्मक आशयों के साथ विमर्श का विषय बनाती हैं। इसी क्रम में कुमार अंबुज, हिन्दी कविता में पहली बार, ‘क्रूरता’ पद को व्यापक सामाजिक एवं राजनैतिक अर्थों में, ऐतिहासिक समझ के साथ व्याख्यायित और परिभाषित करते हैं। यहीं वे काव्य-विषयों की कोमल और सकारात्मक समझी जानेवाली पदावली की परिधियों को भी तोड़ते हैं।
उचित ही प्रबुद्ध आलोचकों-पाठकों ने इन कविताओं को ‘विडम्बना के नए आख्यान’ तथा ‘विचारधारा के सर्जनात्मक उपयोग’ का उदाहरण माना है। ये कविताएँ भाषा के सम्प्रेषणीय प्रखर मुहावरों, अभिव्यक्ति के संयम और वर्णन की चुम्बकीय शक्ति के लिए भी पहचानी गई हैं। कवि-कर्म की नई चुनौतियों का स्वीकार यहाँ स्पष्ट है। ये कविताएँ हमारे समय में उपस्थित तमाम क्रूरताओं की शिनाख़्त करने का गम्भीर दायित्व उठाती हैं। यही कारण है कि वे पाठक की चेतना में प्रवेश कर वैचारिक स्तर पर उद्विग्न करती हैं। सांस्कृतिक प्रतिरोध की दृष्टि से सम्पृक्त ये कविताएँ अनुभवों के वैविध्य और विस्तार में जाकर एकदम अछूते काव्यात्मक वृत्तान्तों को सम्भव करती हैं।
जो कुछ न्यायपूर्ण है, सुन्दर है, सभ्य सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है, उसे पाने की आकांक्षी और पक्षधर ये कविताएँ सहज ही साम्राज्यवादी, औपनिवेशिक, उपभोक्तावादी, साम्प्रदायिक और पूँजीवादी शक्तियों को अपने सूक्ष्म रूप में भी उजागर करती हैं। ‘क्रूरता की संस्कृति’ को चिह्नित करते हुए वे संवेदना, मनुष्यता, लौकिकता और करुणा का विशाल फलक रचती हैं, अपने काव्यात्मक अभीष्ट तक पहुँचती हैं।
मनुष्य समाज के साथ रागात्मक सम्बन्धों के ठोस आधार कुमार अंबुज की निगाह से कभी ओझल नहीं होते हैं, इसलिए उनकी ये कविताएँ सर्जना के नए पड़ावों तक यात्रा करती हैं। इन कविताओं की प्रासंगिकता और प्रतिबद्धता इन्हें नए सिरे से विचारणीय बनाती है। वे इस पक्ष के लिए भी रेखांकित की जाती रही हैं कि हिन्दी कविता का यह नया विकास है, विशेष अर्थ में एक नया प्रस्थान।
Teri Hansi Krishn Vivar Si
- Author Name:
Punam Sinha Shreysi
- Book Type:

- Description: Book
Sarson Se Amaltas
- Author Name:
Chitra Desai
- Book Type:

-
Description:
रिश्तों का जटिल संसार और प्रकृति का सरल, सहज अकुंठ विस्तार; इन कविताओं की जड़ें इन्हीं दो ज़मीनों में फैली हैं। रिश्ते रंग बदलते हैं तो उनको एक सम पर टिकाए रखना, ताकि ज़िन्दगी ही अपनी धुरी से न हिल जाए, अपने आप में बाक़ायदा एक काम है, जबकि अपने होने-भर से, हमारे इर्द-गिर्द अपनी मौजूदगी-भर से ढाढ़स बँधाती प्रकृति हमारी व्यथित-व्याकुल रूह के लिए एक सुकूनदेह विश्राम-भूमि। और यही नहीं, ये कविताएँ बताती हैं कि उनके रंगों में हमारी हर पीड़ा, हर उल्लास, हर उम्मीद, हर अवसाद के लिए कहीं कोई रंग उपलब्ध है जो हमारे अर्जित-अनार्जित सम्बन्धों के शहरों, जंगलों, पहाड़ों और पठारों के अलग-अलग मोड़ों पर मन को अपना-सा लगता है, और सब तरफ़ से निराश हो हम उसकी उँगली थाम अपने अन्तस की ओर चल पड़ते हैं—नए होकर लौटने के लिए।
शायद इसीलिए ये कविताएँ प्रकृति का अवलम्ब कभी नहीं छोड़तीं। प्रकृति के स्वरों में ये रिश्तों के राग को भी गाती हैं और विराग को भी। टूटते-भागते सम्बन्धों को पकड़ने की कोशिश में यदि इनकी हथेलियाँ रिस रही हैं और नानी के कहने से आसमान में दूर बैठे चाँद को मामा मान लेने पर पश्चात्ताप कर रही हैं तो यह भरोसा भी उनमें विन्यस्त है कि ‘भीतर जमे रिश्ते ही/बाहरी मौसम से बचाते हैं।’ संग्रह की कई कविताएँ सम्बन्ध या कहें कि ‘सेन्स ऑफ़ बिलांगिंग’ को बिलकुल अलग भूमि पर देखती हैं, मसलन यह छोटी-सी कविता : ‘तुम्हें ख़ुश रखने की आदत/देवदार-सी/मेरे भीतर उग रही है/और इसीलिए मैं बहुत बौनी होती जा रही हूँ।’ या फिर ‘अपाहिज सम्बन्ध’ शीर्षक एक और छोटी कविता।
संग्रह की अधिकांश कविताओं में प्रेम एक अंडरकरंट की तरह बहता है और कभी-कभी पर्याप्त मुखर होकर बोलता हुआ भी दीखता है—उछाह में भी और अवसन्नता में भी। लेकिन बहुत शालीन संयम के साथ, जो रचनाकार के अहसास की गहराई का प्रमाण है। शायद इसी गहरे का परिणाम यह भी है कि अपने आस-पास के भौतिक-सामाजिक यथार्थ को लक्षित कविताएँ इन्हीं विषयों पर लिखी गईं अनेक समकालीन कविताओं से कहीं अधिक सारगर्भित और व्यंजक हैं, उदाहरण के लिए, ‘बम्बई-1’, एंड ‘बम्बई-2’, ‘अफ़वाह’ और ‘पुल कहाँ गया’ शीर्षक कविताएँ। कहना न होगा कि अपनी संयत अभिव्यक्ति में सधी ये कविताएँ हिन्दी कविता के पाठकों के लिए संवेदना के एक अलग इलाक़े को खोलेंगी।
Punarvasu
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

-
Description:
जब भी हम अनुवाद, विशेषकर कविता का अनुवाद पढ़ते हैं, हम संशय में होते हैं। यह संशय तब तो और भी ज़्यादा होता है जब वह कविता, मसलन, फ़्रेंच या स्वीडिश से अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ी से हिन्दी जैसे तिर्यक रास्ते से भटकती आती हम तक पहुँचती है। “क्या वह ठीक वही कविता रह पाती है, जैसी वह मूल में है?” —यह संशय अनुवाद से ज़्यादा, अनुवाद की ओट में वस्तुतः कविता को लेकर संशय है जो इस विश्वास से जनमता है कि कविता का एक ‘स्थिर’, ‘मूल’ रूप होता है जो उस भाषा, शैली और ढाँचे में सुरक्षित होता है जिसमें वह लिखी गई है; और यह विश्वास भी कि जब हम उसे उसके ‘मूल रूप’ में पढ़ रहे होते हैं तब हम उसे यथा—अर्थतः ग्रहण कर रहे होते हैं। प्रस्तुत चयन हमें इस अन्धविश्वास से मुक्त करता हुआ उस विस्मयकारी प्रक्रिया के क़रीब ले जाता है जिसमें कविता भाषा, शैली और संरचना का निरन्तर उत्सर्जन करती हुई उस ‘एजेंसी’ की पकड़ से बाहर जाती रहती है जिसे हम ‘कवि’ या ‘रचयिता’ या ‘मूल’ कहते हैं।
इस चयन को पढ़ते हुए हम अनुभव करते हैं कि कविता निरन्तर रूपान्तरित और परिशोधित होती ऊर्जा है (जैसाकि इस चयन में शामिल स्वीडिश कवि टोमास ट्रान्सट्रोमर भी मानते हैं) और वह तभी तक ऊर्जा है जब तक वह रूपान्तरण और परिशोधन की प्रक्रिया में है। वह या तो मूल का निषेध है या वे तमाम पाठक उसका मूल हैं जो उसे अपनी सृजनात्मकता के भीतर से परिशोधित, रूपान्तरित और मुक्त होने देते हैं। वह किसी विशिष्ट देश, विशिष्ट भाषा या विशिष्ट कवि का सृजन नहीं, पाठक का सृजन है और इसी अर्थ में वह देश, भाषा और कवि का सृजन है। इस चयन में शामिल सारे अनुवादक ऐसे ही पाठक हैं और इसीलिए इन अनुवादों को पढ़ना, अपने भीतर निहित पाठक को उद्दीप्त कर उसे कविता के ‘होने’ की सतत प्रक्रिया में हिस्सेदार बनाना है; उसे उसकी ‘कर्मवाचक’ स्थिति से मुक्त कर कर्त्तृवाचक स्थिति में ले जाना है और अन्ततः उसे यह बोध कराना है कि कम से कम कविता की दुनिया में कर्तृत्त्व, स्वत्त्व का साधन नहीं है, वह स्वत्त्व का निषेध है।
कहना न होगा कि पाठक को उसकी इस गम्भीर और सृजनात्मक स्थिति का बोध करानेवाली यह एक अद्वितीय पुस्तक है। मनुष्यों के छह महाद्वीपों के बीच छुपा हुआ एक सातवाँ महाद्वीप है। जहाँ और जब भी कोई कविता लिखी (और पढ़ी) जाती है, यह महाद्वीप मूर्त और स्पन्दित होता है। इस महाद्वीप पर अस्तित्व का पुनर्वास होता है। हम इस महाद्वीप को ‘पुनर्वसु’ कहकर पुकार सकते हैं।
Prasad Ka Sampoorna Kavya
- Author Name:
Satyaprakash Mishra
- Book Type:

-
Description:
कवि जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी कविता में 'छायावादी काव्य आन्दोलन' के जनक, प्रवक्ता और उन्नायक हैं। उन्होंने खड़ी बोली को काव्य-भाषा के रूप में अनिर्णय के प्रथम दौर से मुक्त करके उसे अद्भुत रूप से समृद्ध और अभिव्यक्ति सम्पन्न बनाया। उनकी काव्य भाषा में गहरी अनुभूति सम्पन्नता और रोमांसलता का एक सांस्कारिक तेवर विद्यमान है। गोस्वामी तुलसीदास की तरह ही वे भाषित संक्षिप्तता और बिम्बात्मक क्षमता का मर्म पहचानने वाले कवि हैं।
‘गीति तत्त्व’ प्रसाद की कविता का दूसरा प्रमुख गुण है। अनुभूतियों की भीतरी झनझनाहट उनके गीतों से लेकर उनके महाकाव्य 'कामायनी' तक में समान रूप से विद्यमान हैं। प्रसाद अपनी कविताओं के माध्यम से मनुष्य जाति की उन्हीं अनुभूतियों को चित्रित करते हैं जिनमें एक भीतरी करुणा का आवेश हो और जो शब्द का स्पर्श पाते ही संगीत की प्राणवक्ता से झंकृत हो उठें। ‘झरना’, ‘आँसू’ और ‘लहर’ के गीत इसका प्रमाण तो हैं ही, ‘कामायनी’ की सम्पूर्ण अर्थवत्ता इसी गीत्यात्मक अनुगूँज से भ्री हुई है।
प्रसाद का अपने सारे ऐतिहासिक, दार्शनिक और ‘मिथकीय’ आवरण के बावजूद अपने वर्तमान में ही प्रामाणिक है। इतिहास, दर्शन और पुराण-कथाओं का उपयोग प्रसाद जी ने अपनी संस्कृति धरोहर को पुनरुज्जीवित करने के लिए तो किया ही है, उसके माध्यम से अपने समय के भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के मुख्य तेवर को पहचानने का काम भी वे करते हैं। इसीलिए उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता का एक गहरा सरोकार विद्यमान है।
Kavita Mein Sab Kuchh Sambhav
- Author Name:
Shailendra Shail
- Book Type:

- Description: collection of poems
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...