Tulsidas "Nirala"
Author:
Suryakant Tripathi 'Nirala'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
“तुलसीदास में स्वाधीनता की भावना का पूर्ण प्रस्फुटन हुआ है। भारत के सांस्कृतिक सूर्य के अस्त होने पर देश में किस तरह अन्धकार छाया हुआ है, इसका मार्मिक चित्रण करते हुए निराला ने दिखलाया है कि किस प्रकार एक कवि इस अन्धकार को दूर करने की चेष्टा करता है। तुलसीदास के रूप में निराला ने आधुनिक कवि के स्वाधीनता-सम्बन्धी भावों के उद्गम और विकास का चित्रण किया है। छायावादी कवि की तरह निराला के तुलसीदास को भी देश की पराधीनता का बोध प्रकृति की पाठशाला में ही होता है; किन्तु छायावादी कवि की तरह वे भी कुछ दिनों के लिए नारी-मोह में पड़कर उस भाव को भूल जाते हैं। अन्त में जो ज्ञान प्रकृति की पाठशाला में मिला था, उसका दीक्षांत भाषण उसी नारी के विश्वविद्यालय में सुनने को मिलता है, और भविष्यवाणी होती है कि :
देश-काल के शर से बिंधकर
यह जागा कवि अशेष छविधर
इसके स्वर से भारती मुखर होंगी।
इस तरह हिन्दी जाति के सबसे बड़े जातीय कवि की जीवन-कथा के द्वारा निराला ने अपनी समसामयिक परिस्थितियों में रास्ता निकालने का संकेत दिया है।”
—नामवर सिंह
ISBN: 9789360862510
Pages: 72
Avg Reading Time: 2 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Rameshraaj
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- Description: हिंदी साहित्य जगत में विलक्षण प्रयोगों, नए-नए मुहावरों, अछूते प्रतीकों, पैनी और व्यंग्यात्मक भाषाशैली के साथ-साथ जनसापेक्ष रचनाशीलता के बल पर श्री रमेशराज ने एक महत्वपूर्ण मुक़ाम हासिल किया है। आपके मौलिक चिंतन में एक तरफ जहां असीम गहराई है, वहीं सम्प्रेषणशीलता सर्वत्र मौजूद होने के कारण पाठक-मन ऊबता नहीं। हर तथ्य आसानी के साथ ग्रहण करते हुए वह आत्मतोष से भर जाता है। तेवरी विधा के सूत्रधार श्री रमेशराज एक तेवरीकार के रूप में ही विख्यात हों, ऐसा कदापि नहीं है। आपने बेहतरीन मुक्तछंद कविताएं लिखी हैं। बालगीत कार के रूप में भी आपकी पहचान है। आपके गीत-नवगीत मन को गहराइयों तक छूते हैं। व्यंग्य व्यंजना का अद्भुत रंग लिए होते हैं। आपका चिंतन 'कविता क्या है?' जैसे मूलभूत प्रश्न को सुलझाता है। रस पर आपकी सूक्ष्म पकड़ है। समकालीन यथार्थवादी काव्य की रस-समस्या का समाधान खोजते हुए आपने एक नए रस "विरोधरस" की मौलिक खोज की है। काव्य की आत्मा पर चिंतन करते हुए "साधारणीकरण" के स्थान पर एक नया सिद्धांत "आत्मीयकरण" दिया है। नए-नए छन्दों को प्रतिष्ठापित करने वाले श्री रमेशराज की ताजा काव्यकृति मधु-सा ला (चतुष्पदी-शतक) है, जिसमें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विकृतियों और विसंगतियों पर तीखे प्रहार किए गए हैं।यथा- नसबंदी पर देते भाषण, जिनके दस लल्ली-लाला हाला पीकर बोल रहे हैं, ‘बहुत बुरी होती हाला’। अंधकार के पोषक देखो, करने आये भोर नयी नयी आर्थिक नीति बनी है, आज प्रगति की मधुशाला।। कवि ने अधर्मी साधुओं मौलवियों के दुराचरण पर बिना भेदभाव किये तटस्थ भाव से तीखे व्यंग्य कसे हैं- मुल्ला-साधु-संत ने चख ली, राजनीति की अब हाला गुण्डे-चोर-उचक्के इनके, आज बने हैं हमप्याला। जनसेवक को शीश नवाते, झट गिर जाते पाँवों पर ये उन्मादी-सुख के आदी, प्यारी इनको मधुशाला।। दूषित होते पारिवारिक परिवेश का सजीव चित्रण देखिए- बेटे के हाथों में बोतल, पिता लिये कर में प्याला इन दोनों के साथ खड़ी है, कंचनवर्णी मधुबाला। गृहणी तले पकौड़े इनको, गुमसुम खड़ी रसोई में नयी सभ्यता बना रही है, पूरे घर को मधुशाला।। पारिवारिक मूल्यों में आयी गिरावट पर कवि की पैनी पकड़ इसप्रकार है- बेटे की आँखों में आँसू, पिता दुःखों ने भर डाला मजा पड़ोसी लूट रहे हैं, देख-देख मद की हाला। इन सबसे बेफिक्र सुबह से, क्रम चालू तो शाम हुयी पूरे घर में महँक रही है, सास-बहू की मधुशाला।। आज हमारा समाज सभ्यता के नाम पर कितना संस्कारविहीन हो गया है- मरा पड़ौसी, उसके घर को दुःख-दर्दों ने भर डाला हरी चूड़ियाँ टूट गयीं सब, हुई एक विधवा बाला। अर्थी को मरघट तक लाते, मौन रहे पीने वाले दाहकर्म पर झट कोने में, महँकी उनकी मधुशाला।। एक चतुष्पदी में सियासत का षडयंत्र देखिए- उसने की है यही व्यवस्था, दुराचरण की पी हाला प्याला जिसके हाथों में हो, बन जा ऐसा मतवाला। मत कर चिन्ता तू बच्चों की, मत बहरे सिस्टम पर सोच तेरी खातिर जूआघर हैं, कदम-कदम पर मधुशाला।। समाज को चेतना प्रदान करने वाले कवि का आचरण आज कैसा जनविरोधी हो गया है- कलमकार भी धनपशुओं का, बना आजकल हमप्याला दोनों एक मेज पर बैठे, पीते हैं ऐसी हाला। निकल रहा उन्माद कलम से, घृणा भरी है लेखों में महँक छोड़ती अब हिंसा की, अलगावों की मधुशाला।। दुष्टों, दुराचारियों के सम्मुख नतमस्तक होते क़लम के सिपाहियों पर तंज कसते हुए कवि कहता हैं- सबसे अच्छी मक्खनबाजी, हुनर चापलूसी का ला तुझको ऊँचा पद दिलवाये, चाटुकारिता की हाला। स्वाभिमान की बात उठे तो, दिखला दे तू बत्तीसी कोठी बँगला कार दिलाये, बेशर्मी की मधुशाला।। सारा परिवेश विषैला हो चुका है। हर सियासी दल से जनता को धोखा मिल रहा है। पूरा का पूरा सिस्टम एक अनसुलझा सवाल बन गया है। फिर भी कवि हार न मानते हुए रहनुमाओं से यह सवाल करता है तो करता है- कब तक सपना दिखलाओगे, गांधी के मंतर वाला और पियें हम बोलो कब तक, सहनशीलता की हाला। अग्नि-परीक्षा क्यों लेते हो, बंधु हमारे संयम की कब तक कोरे आश्वासन की, भेंट करोगे मधुशाला।। कुल मिलाकर रमेशराज जी के इस मधु-सा ला (चतुष्पदी-शतक) का साहित्य-जगत में उनकी अन्य कृतियों की तरह स्वागत होगा, ऐसा विश्वास है। ~अनिल 'अनल'
Isee Kaya Mein Moksha
- Author Name:
Dinesh Kushawah
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Description:
दिनेश कुशवाह संवेदनात्मक ज्ञान के आलोचकीय विवेक सम्पन्न कवि हैं। उनकी कविताएँ सहजबुद्धि के विवेक से उपजी रचनाएँ हैं; इसीलिए मुक्त छन्द में होने के बावजूद उनमें संगति, गत्यात्मकता, आन्तरिक लय, संवेदना एवं प्रेम के स्वर प्रमुख हैं। व्यक्तियों, सम्बन्धों, स्थानों पर केन्द्रित दिनेश कुशवाह की कविताएँ स्मृति, आत्मीयता और मूल्यांकन की ईमानदार मनुष्योपयोगी कलाकृतियाँ हैं।
दिनेश कुशवाह की प्रेम कविताओं में प्रेम समाजशास्त्रीय या मनोवैज्ञानिक अध्ययन के विषय के रूप में जीवनीशक्ति की तरह आता है—आर्द्र और ऊष्ण! विषयों की विविधता, प्रगतिशील मूल्यों की पक्षधरता एवं परकाया प्रवेश से कवि ने अपनी कविताओं का संसार उदार एवं व्यापक बनाया है। दिनेश कुशवाह की लड़की विषयक, अभिनेत्रियों पर और ‘एकलव्य की तरफ़ से’ जैसी कविताएँ उतनी ही प्रामाणिक हैं जितनी हमारी नज़रों के सामने की यह दुनिया। ‘लड़की और सोना’, ‘नदी’ तथा ‘खजुराहो में मूर्तियों के पयोधर’ सौन्दर्य के दोनों पक्षों की गंगा-जमुनी कृतियाँ हैं। संक्षेप में दिनेश कुशवाह की सौन्दर्य-दृष्टि दार्शनिक महत्त्वाकांक्षा रखती है।
कविताओं में मौजूद प्रवाहमयता, रागात्मकता, ओजस्विता के प्रसंग में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दिनेश कुशवाह का कवि-कर्म विद्यापति के अपरूप रूप, तुलसी के कवित्व विवेक, कबीर की आँखिन देखी, मीर-ग़ालिब की दुनिया और विश्व साहित्य के गम्भीर अध्ययन से उत्पन्न सूझ और लोकसंपृक्ति से परिचालित होता है। पाठकों को हर्ष होगा कि दिनेश कुशवाह की कविताओं में समझ में न आने लायक कुछ नहीं है। अपठनीय, दुर्बोध, भीषण बौद्धिक कविताओं के इस संकटपूर्ण समय में उनकी कविताएँ पढ़ने और याद रखने योग्य हैं। वे प्रेम, सौन्दर्य और परिवर्तनकामी चेतना के कवि हैं। सही मायने में ‘मेजर वेवलेंथ’ के कवि।
—प्रह्लाद अग्रवाल
Raja Ayogya Hai Tatha Anya Kavitayen
- Author Name:
Madhulika Ben Patel
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Description:
राजा अयोग्य है तथा अन्य कविताएँ' भारतीय समाज का आईना है। कविता संग्रह की शुरुआत 'आईना' से होती है। आगे की कविताएँ भारतीय समाज में व्याप्त अविश्वास, भुखमरी, गरीबी, धोखा, बेरोजगारी, किसानों की बदहाली, लोकतंत्र की दुर्दशा, शासक की नियति, औरतों के साथ छल, पुरुषों की नियति, पारिवारिक संबंधों की प्रगाढ़ता, माँ की ममता, स्त्री की सहृदयता को दिखाने का मुकम्मल आईना बनती हैं। इस कविता संग्रह की कविताओं को पढ़ने पर भारतीय समाज और भारतीय मन का चित्र स्वतः उभरकर सामने आ जाता है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह कविता संग्रह पाठकों के हृदय में अपना मुकम्मल स्थान जरूर बनायेगा।
प्रो. बिपिन कुमार हिन्दी विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
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