Prasad Kavya Mein Bimb Yojana
Author:
Ramkrishna AgrawalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
बिम्ब भावों और विचारों के सम्प्रेषण का विशेष सहायक तत्त्व है। वह पाठक को काव्यवस्तु के मूल तक पहुँचाने और कवि के मानस का साक्षात्कार करानेवाला सीधा मार्ग है।</p>
<p>पहले अध्याय में बिम्ब के स्वरूप पर पाश्चात्य दृष्टि से विचार करने के उपरान्त भारतीय काव्यशास्त्र के विभिन्न सिद्धान्तों से उसकी तुलना की गई है। तत्पश्चात् बिम्ब के आधारभूत तत्त्वों, उसकी उपयोगिता एवं कार्यों और उसके वर्गीकरण पर विचार किया गया है। अन्त में कल्पना और भाषा से बिम्ब का सम्बन्ध दिखाया गया है।</p>
<p>दूसरे अध्याय में प्रसाद-काव्य के बिम्बों का विस्तृत वर्गीकृत अध्ययन किया गया है। उपात्त वस्तु के आधार पर प्रकृति और मानव के क्षेत्र से गृहीत वस्तुओं की विविधता का विस्तृत विवेचन हुआ है। तत्पश्चात् क्रमशः संवेदनाओं, प्रेरक अनुभूतियों और मूर्तता के आधार पर प्रसाद जी के बिम्बों का वर्गीकरण किया गया है।</p>
<p>तीसरे अध्याय में प्रसाद जी के बिम्बों के विकास पर विचार करते हुए उसके तीन चरण निर्धारित किए गए हैं—आरम्भिक काव्य, मध्यवर्ती काव्य और प्रौढ़ काव्य। इनकी व्यावर्तक विशेषताओं को स्पष्ट करने के लिए अध्याय के अन्त में कुछ पुनरावृत्त बिम्बों का विकासात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया है।</p>
<p>चौथे अध्याय में बिम्बगत गुणों के आधार पर प्रसाद जी के बिम्बों की सफलता और असफलता पर विचार किया गया है। तदनन्तर प्रसाद-काव्य के परम्परागत और नवीन बिम्बों का अध्ययन हुआ है।</p>
<p>पाँचवें अध्याय में बिम्ब के माध्यम से अभिव्यक्त होनेवाले प्रसाद जी के दार्शनिक तथा अन्य विचारों का विवेचन किया गया है। साथ ही ‘कामायनी’ के रूपक-तत्त्व के निर्वाह में बिम्ब-विधान का कितना योगदान रहा है, इस पर भी विचार हुआ है।</p>
<p>छठे अध्याय में छायावादी काव्य-बिम्बों की उपात्त वस्तु, बिम्बगत संवेदना, मूर्त और अमूर्त बिम्ब-विधान एवं बिम्बगत गुणों का संक्षिप्त विवेचन करते हुए उसमें प्रसाद जी का स्थान निर्धारित किया गया है। तत्पश्चात् बिम्बों में व्यक्त प्रसाद जी के व्यक्तित्व पर विचार किया गया है।</p>
<p>सातवाँ अध्याय प्रबन्ध का उपसंहार है।</p>
<p>प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक ने बिम्ब के माध्यम से प्रसाद के कविमानस का साक्षात्कार कराया है। हिन्दी में सम्भवतः पहली बार समग्र प्रसाद-काव्य की बिम्ब-योजना के विशद विश्लेषण एवं विवेचन के साथ-साथ बिम्ब के आधार पर कवि की विकास-यात्रा का निकट से अध्ययन किया गया है।
ISBN: 9788180311666
Pages: 362
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
इस संग्रह में एक वरदान माँगा गया है—‘ज़िन्दगी का रमणीय सतरंगी बुलबुला व्यर्थ न हो, कि दरख़्तों से झाँकता रोशन सूर्य अस्त न हो, विनाश तत्त्व के झपट्टे में भी भूमि की उग्रगन्धी धूल गमकती रहे और जीने का समृद्ध कबाड़ पूरे घर-भर में जमा होता रहे।’ इन सभी सचेतन बिम्बों में जिजीविषा का स्रोत उफन-उफनकर बहता है।
यह प्रवृत्ति महानगरीय कविता की मृत्युग्रस्त प्रवृत्ति पर चोट है। मृत्यु के प्रति एक सचेत एहसास के कारण जीवन के प्रति इसकी निष्ठा खोखली नहीं है, उसमें एक दृढ़ता है। इस तरह हमेशा अच्छी ज़िन्दगी पर मृत्यु का अंकुश तना होता है। इसलिए नेमाड़े जी की कविता मृत्यु के एहसास से ध्वनित विनाश तत्त्व को अनदेखा कर कोरे आशावाद की तरफ़ नहीं झुकती। वह महानगरीय कविता की तरह मृत्यु की प्रभुसत्ता को तटस्थता से स्वीकार नहीं करती, बल्कि इस प्रभुसत्ता को चुनौती देनेवाले जीवनदायी प्रेरणाओं के सन्दर्भ म़जबूती से खड़ी करती है। इस विनाश तत्त्व को मात देता जीवन के प्रति अदम्य उत्साह और उससे स्वभावत: प्राप्त जुझारूपन नेमाड़े जी का स्थायी भाव है। उनकी इसी विलक्षण जीवन-दृष्टि का दर्शन उनकी कविताओं में भी होता है।
—प्रकाश देशपांडे केजकर
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