Sulagti Huyi Chingari
Author:
Dilip Kumar Chauhan 'Baaghi'Publisher:
Author'S Ink PublicationsLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 170
₹
200
Available
लोकप्रिय कवि दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी' की कृति 'चाँद में भी दाग़ है' को पाठकों का असीम प्यार मिला । इस कृति में जीवन के उल्लास, उमंग एवं रोमानिया का ऐसा संयोजन था कि वह कृति सबके मन को स्पंदित कर गई। ' सुलगती हुई चिंगारी ' उसी श्रृंखला की अगली कड़ी है , जो अपने कहन एवं शिल्प में अपनी पहली कृत से सर्वथा भिन्न एवं नवीन है। इसमें पाठक को जीवन के विभिन्न अनुभवों, प्रश्नों एवं चुनौतियों से जुड़ी कविताएं पढ़ने को मिलेंगी। सुलगली हुई चिंगारी संकलन की कविताएं जितना खुद से प्रश्न करती हैं उतना ही वह पाठकों के समक्ष भी प्रश्न खड़ी करती हैं। भाषा के प्रवाह एवं शैली की सहजता में कवि ने इस जीवन और जीवन से परे के सत्य को बहुत ही स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया है । यह एक ही भाव एवं शैली में लिखी गई कवि दिलीप कुमार चौहान की अनूठी कृति है। इस संकलन का हर छंद एक दूसरे से जुड़ते हुए भी अपना स्वतंत्र अर्थ लिए हुए हैं। कवि दिलीप कुमार चौहान की संवेदनाएं, विचारों, भावों एवं कल्पनाओं की चिंगारी किस हद तक ज्ञान की लौ के रूप में प्रस्फुटित होकर समाज को प्रकाशमान करती है इसको परखने के लिए पाठकों को यह कृति अवश्य पढ़नी चाहिए।
ISBN: 9789392665035
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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सब पार्थिव और अपार्थिव दीवारों के ख़िलाफ़ हैं। सत्यमोहन भी इस ‘मुक्तिबोध’ के प्रति लापरवाह नहीं हैं। जीवन के प्रति यह स्वस्थ दृष्टिकोण है। वे ऐसा कुछ लिखते हैं, जो सबका जाना-समझा और अनुभूत होता है।
—पं. भवानी प्रसाद मिश्र
सत्यमोहन की प्रसन्न सकारात्मकता उनकी संक्रामक आत्मीयता का मूल है। दूब जैसे भीतर ही भीतर फैलती है वैसे ही उनकी रचनात्मकता विभिन्न विधाओं में फैलती है। वे जीवन के पात्र को कभी आधा ख़ाली नहीं देखते—आधा भरा हुआ देखते हैं। वे सफलता की तुलना में सार्थकता को श्रेयस्कर मानते हैं।
—प्रो. कांति कुमार जैन
सत्यमोहन से 'सर्जना-77' के दौरान पहचान हुई और 'गंगा' के प्रकाशन के समय प्रगाढ़ता बढ़ी। वे बेहद शालीन और प्रिय व्यक्तित्व के धनी हैं। उनकी रचनाएँ समय सापेक्ष हैं। छोटी-छोटी कविताओं में वे बड़ी बात कह जाते हैं। उनकी गजलें उद्वेलित करती हैं और उनका तरन्नुम बेहद प्रभावी है।
—कमलेश्वर
सत्यमोहन की साहित्य और रंगकर्म की गतिविधियों में उत्साही और सक्रिय सहभागिता रही है। उम्र के इस पड़ाव पर साहित्यिक जागरूकता और संलग्नता बनाए रखना प्रशंसनीय उपलब्धि है। उम्मीद है कि उनकी कल्पनाशील और आस्थावान रुचियाँ अभी भी जीवन्त रहेंगी।
—प्रो. मनोहर वर्मा
सत्यमोहन जी के लेखन में साफ़-सुथरी भाषा और सम्प्रेषण क्षमता है। उनकी रचनात्मकता की उड़ान काफ़ी ऊँची है। वे इस पड़ाव पर भी सक्रिय हैं यह क्या कम है, उनके जीवन की अपेक्षाएँ पूरी हों यही हमारी कामना है।
—डॉ. रमाकान्त श्रीवास्तव
Main Jab Tak Aayi Bahar
- Author Name:
Gagan Gill
- Book Type:

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Description:
‘मैं क्यों कहूँगी तुम से/अब और नहीं/सहा जाता/मेरे ईश्वर’—गगन गिल की ये काव्य-पंक्तियाँ किसी निजी पीड़ा की ही अभिव्यक्ति हैं या हमारे समय के दर्द का अहसास भी? और जब यह पीड़ा अपने पाठक को संवेदित करने लगती है तो क्या वह अभिव्यक्ति प्रकारान्तर से प्रतिरोध की ऐसी कविता नहीं हो जाती, जिसमें ‘दर्दे-तनहा’ और ‘ग़मे-ज़माना’ का कथित भेद मिटकर ‘दर्दे-इनसान’ हो जाता है? कविता इसी तरह इतिहास अर्थात समय का काव्यान्तरण सम्भव करने की ओर उन्मुख होती है।
गगन गिल की इन आत्मपरक-सी लगती कविताओं के वैशिष्ट्य को पहचानने के लिए मुक्तिबोध के इस कथन का स्मरण करना उपयोगी हो सकता है कि कविता के सन्दर्भ ‘काव्य में व्यक्त भाव या भावना के भीतर से भी दीपित और ज्योतित’ होते हैं, उनका स्थूल संकेत या भाव-प्रसंगों अथवा वस्तु-तथ्यों का विवरण आवश्यक नहीं है। इन कविताओं का अनूठापन इस बात में है कि वे एक ऐसी भाषा की खोज करती हैं, जिसमें सतह पर दिखता हल्का-सा स्पन्दन अपने भीतर के सारे तनावों-दबावों को समेटे होता है—बाँध पर एकत्रित जलराशि की तरह।
यह भी कह सकते हैं कि ये कविताएँ प्रार्थना के नये-से शिल्प में प्रतिरोध की कविताएँ हैं—प्रतिरोध उस हर सत्ता-रूप के सम्मुख जो मानवत्व मात्र पर, स्त्रीत्व पर भी, आघात करता है। इन आघातों का दर्द अपने एकान्त में सहने पर ही कवि-मन पहचान पाता है कि ‘मैं जब तक आयी बाहर एकान्त से अपने/बदल चुका था मर्म भाषा का’। ये कविताएँ काव्य-भाषा को उसकी मार्मिकता लौटाने की कोशिश कही जा सकती हैं।
—नन्दकिशोर आचार्य
Mrityu Se Agey
- Author Name:
Rajneesh
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- Description: राजशाही के भ्रष्टाचार, कर्तव्यों के निर्वहन में उसकी विफलता, बढ़ती वासना से उत्पन्न नारी असुरक्षा, सामान्य व्यक्ति का जीवन संघर्ष, भगवान के प्रति उसकी आस्था और निराशा की उथल पुथल के बीच जीवन का यथार्थ खोजती कविताओं का संग्रह है "मृत्यु से आगे" मानव जीवन की संवेदनाओं एवं सामाजिक बदलाव को गहराई से समझने वाले कवि रजनीश के लिए कवितायें मात्र काल्पनिक दस्तावेज़ नही अपितु काव्यात्मकता एक बोध है जो ना केवल मानव की सोच बल्कि उसकी आत्मा को भी प्रभावित करता है I
Vidyapati Padavali
- Author Name:
Ramvriksh Benipuri
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Description:
यह ‘विद्यापति पदावली’ इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसका संग्रह बेनीपुरी जी ने किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध ललित निबन्धकार बेनीपुरी कवि, कहानीकार ही नहीं ग़रीबों, पीड़ितों और शोषितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। ऐसे लेखक के द्वारा विद्यापति की पदावली का सम्पादन प्रतीकात्मक अर्थ रखता है।
पुस्तक के प्रारम्भ में बेनीपुरी जी द्वारा लिखी गई भूमिका केवल विश्लेषण और सूचना की दृष्टि से नहीं, बल्कि नई अर्थ-मीमांसा की दृष्टि से नई है। इससे विद्यापति को हम पहले से कुछ अधिक जानने लगते हैं।
विद्यापति की यह पदावली शब्दों के अर्थ की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। बेनीपुरी जी शब्द पारखी थे। उन्होंने इस पदावली में शब्दों के सांकेतिक अर्थ को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो अन्यत्र दुर्लभ है। विद्यापति के पदों को गाते हुए चैतन्य महाप्रभु समाधिस्थ हो जाते थे। आनन्द कुमार स्वामी को पदावली काव्य-कला की दृष्टि से बहुत प्रिय थी। उन्होंने लिखा भी है। उस पदावली का यह प्रस्तुतीकरण अत्यन्त उपयोगी है। बेनीपुरी जी विद्यापति को ‘हिन्दी का जयदेव’ और ‘मैथिल कोकिल’ कहते थे। उनकी वाणी का बेनीपुरी द्वारा भावित यह संस्करण लोगों को अवश्य रुचेगा। भूमिका में बेनीपुरी ने अपनी चिर-परिचित शैली में पदों की भाषा और कविता माधुरी का जो वर्णन किया है, वह तो अन्यत्र दुर्लभ है ही।
‘राजा की गगनचुम्बी अट्टालिका’ से लेकर ग़रीबों की टूटी हुई फूस की झोंपड़ी तक में विद्यापति के पदों का जो सम्मान है; भूतनाथ के मन्दिर और कोहबर घर में पदों की जो प्रतिष्ठा है, उसको ध्यान में रखते हुए ही यह पुस्तक बेनीपुरी जी ने सम्पादित की है। इससे विद्यापति और उनकी पदावली की नई अर्थवत्ता और चमक उजागर होती है। पाठ्यक्रम की दृष्टि से यह सर्वोत्तम है।
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