Musaddas-E-Hali
Author:
Khwaja Altaf Hussain 'Hali'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
‘मुसद्दस’ के काव्यात्मक पक्ष पर टिप्पणी करते हुए शमशेर कहते हैं : ‘उसका संगठन अद्भुत रूप से पुष्ट जान पड़ता है। कोई एक भाव बिलकुल उसी रूप में दोहराया नहीं गया। पूरी कविता की लड़ियाँ आपस में इस तरह गुँथी हुई हैं कि अगर एक को भी तोड़कर अलग करें तो पूरी कविता का सौन्दर्य उसी परिणाम में टूटता और बिखरता है।’</p>
<p>‘मुसद्दस-ए-हाली’ की रचना 1879 में उस समय हुई जब भारतीय समाज 1857 के विद्रोह में पराजित होने के बाद पस्ती और हताशा के दौर से गुज़र रहा था। ख़ास तौर पर भारतीय मुस्लिम समाज। मौलाना अल्ताफ़ हुसैन ‘हाली’ ने इसकी रचना सर सैयद अहमद ख़ाँ के आग्रह पर क़ौम को इस हालात से जगाने के लिए की। इस कृति की अहमियत का अनुमान सर सैयद के इस कथन से लगाया जा सकता है कि ‘अगर ख़ुदा ने मुझसे पूछा कि दुनिया में तुमने क्या किया तो मैं जवाब दूँगा कि मैंने हाली से ‘मुसद्दस-ए-हाली’ लिखवाई।’</p>
<p>इसी से प्रेरित होकर मैथिलीशरण गुप्त ने हिन्दू समाज को ध्यान में रखकर अपनी प्रसिद्ध कृति ‘भारत भारती’ की रचना की जो 1913 में प्रकाशित हुई। दोनों ही रचनाएँ अपने-अपने ढंग से भारत के लोगों को अपने वैभवशाली अतीत का स्मरण करने और अशिक्षा, अज्ञान तथा मानसिक दासता से मुक्त होने का आह्वान करती हैं।</p>
<p>यह ‘मुसद्दस-ए-हाली’ का प्रामाणिक पाठ है जिसे हिन्दी के प्रतिष्ठित कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने सम्पादित किया है। दस्तावेज़ी महत्त्व की इस प्रस्तुति में प्रयास किया गया है कि मुसद्दस के मूल पाठ के साथ-साथ इसकी पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक महत्ता भी पाठकों के सामने मौजूद रहे। यह काम करता है कवियों के कवि कहे जानेवाले शमशेर बहादुर सिंह का एक महत्त्वपूर्ण आलेख जो उन्होंने ‘भारत भारती’ और ‘मुसद्दस-ए-हाली’ को साथ-साथ पढ़ते हुए लिखा था। हाली द्वारा लिखी गईं पहले और दूसरे संस्करणों की भूमिकाओं का लिप्यन्तरण भी इसमें शामिल है।
ISBN: 9789392757624
Pages: 159
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
हिन्दी में युवा कविता के बाद नए कवियों की एक पीढ़ी आई थी, जिसने आत्मीयता और घरेलूपन से भरी कविताएँ लिखकर हिन्दी कविता की उदासी और एकरसता से भरी हुई दुनिया में नवीन स्फूर्ति का संचार किया। श्याम कश्यप उस पीढ़ी के अन्यतम सदस्य थे, जिनकी कविताएँ ‘गेरू से लिखा हुआ नाम’ में संगृहीत हुईं और इस तरह अपनी पहचान बनाई। लेकिन प्रचार-प्रसार के तंत्र को मुँह चिढ़ानेवाले श्याम ने महत्त्व काव्य-साधना को दिया, उतना अपने यशो-विस्तार को नहीं, जिसके परिणामस्वरूप उनके अपने पाठक भी उनसे किंचित् निराश होते रहे। लेकिन पहले संग्रह के बाद प्रकाशित होनेवाला उनका यह दूसरा संग्रह ‘लहू में फँसे शब्द’ इस बात का प्रमाण है कि इस बीच भले ही उनकी कविताएँ ठिकाने से उनके पाठकों तक नहीं पहुँचीं, वे कविता के साथ निरन्तर रहे हैं और कविता लगातार उनका पीछा करती रही है।
स्वभावतः श्याम की इस संग्रह की कविताओं में प्रत्यक्ष होनेवाला विकास हमें सम्मोहित करता है। श्याम सर्वप्रथम प्रकृति के कवि हैं, फिर मनुष्य के, फिर समाज के, फिर सम्पूर्ण मनुष्यता क्या, सम्पूर्ण पृथ्वी के। उनकी ऐन्द्रिय संवेदना जिन विलक्षण और उदात्त बिम्बों में अभिव्यक्त होती है, वे हमारे भीतर उस अवकाश की सृष्टि करते हैं, जो मानवीय आत्मा के पंख फैलाने के लिए आवश्यक है और जो वर्तमान युग में लगातार कम होता जा रहा है। जहाँ तक मनुष्य से लेकर सम्पूर्ण पृथ्वी तक की बात है, श्याम ने अपनी कविताओं में उसके अनेकानेक आयामों को समेटा है। इन तमाम वस्तुओं के प्रति एक गहन चिन्ता का भाव ही नहीं है इनमें, वह आस्था भी है, जो निराशा के बादलों को इन्द्रधनुषी किरणों से तार-तार कर देती है।
निस्सन्देह श्याम सटीक वर्णन और चित्रण के कवि हैं, लेकिन ‘लहू में फँसे शब्द’ की कविताएँ पढ़ते हुए आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाएँगे, ऐन्द्रिय संवेदना से भावों में और भावों से फिर विचारों में उतरते जाएँगे, जहाँ की दुनिया उस अमूर्तता से युक्त है, जिसके बिना कोई कला-कृति सार्थक नहीं हो सकती। कहने की आवश्यकता नहीं कि आज का यांत्रिकता और औपचारिकता से भरा हुआ दौर जहाँ हमें निरर्थकता के किनारे तक पहुँचा रहा है, श्याम की ये कविताएँ जिनमें शब्द, बिम्ब, भाव और विचार सभी विस्फोट करते हैं, हमारे सामने एक उजास से भरे हुए क्षितिज का उन्मीलन करती हैं। प्रसाद के शब्दों को ज़रा-सा बदलकर कहें, तो ‘तुमुल कोलाहल-कलह में यह हृदय की बात रे मन!’
Nepathy Mein Hansi
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

- Description: ये कविताएँ पिछले सात आठ बरसों में लिखी गई है । हमारे आसपास इस बीच बहुत तेजी से परिवर्तन हुए हैं । घटनाओं की गीत इतनी तेज और अप्रत्याशित बल्कि कहना चाहिये कि विस्मित कर देने वाली है कि उसे अव- धारणाओं में पकड़ना अगर असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो गया है । दृश्य गहरी मानवीय तकलीफों और बेचैनियों से भरा है । इन कविताओं में .शायद इसके कुछ संकेत मिलें । शायद इसीलिए इन कविताओं में 'मूड्स' की बहुत भिन्नताएं हैं । निराशा, उदासी और उन्माद के इस दृश्य के बीच भी उम्मीद बची है । और यह उम्मीद है, इस देश की विराट श्रमशील जनता-जों बहुत थोड़े में अपना गुजर-बसर करते हुए भी, ज्यादा से ज्यादा जगह को मनुष्य के रहने लायक और सुंदर बनाने में जुटी हैं । ये कविताएँ उस धुँधले उजाले को देख और दिखा सकें ऐसी मेरी इच्छा है ।
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