Chand-Shati
Author:
Jagdish GuptPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789392186462
Pages: 191
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: हिन्दी की समकालीन कविता में कुछ समय से आए बदलाव अभी ठीक से परिभाषित नहीं किए गए हैं, लेकिन यह निर्विवाद है कि वह काव्य-पीढ़ियों से आगे की, जीवन के ज़्यादा विस्तारों को देखती-पहचानती हुई कविता है। अपने पूर्वज कवियों का विवेक उसके अनुभव-संसार में उपस्थित है लेकिन उसकी संवेदना बिलकुल नई और अपनी है। इस संवेदना में यह जानने की बेचैनी है कि समाज, मानव-सम्बन्ध और राजनीति में हमने क्या-क्या खोया है, कौन-सी दुनियाएँ हमसे छूट गई हैं और हमारी मूलभूमि का, हमारी स्थानीयता का क्या हाल है। आश्चर्य नहीं कि रमण कुमार सिंह अपने पहले कविता-संग्रह ‘बाघ दुहने का कौशल’ की ज़्यादातर कविताओं में बार-बार उस जीवन को जाँचते-परखते लौटते हैं जो हमारे पीछे रह गया है और जिसकी जर्जरता और उदासी हमारा पीछा करती रहती है। एक सहज, गँवई यथार्थ और उसका जादू जो अब हमारा अतीत है और हमारे सामने फैले शहरी निम्न-मध्यवर्गीय यथार्थ के आपसी तनाव भी इन कविताओं की अन्तर्वस्तु बनाते हैं और उस ‘लुटेरे समय’ की छवियाँ उभारते हैं जो ‘दादी की लोरियों’ और ‘बुजुर्गों की लाठी’ से लेकर ‘आकाश की नीलिमा’ तक को छीन रहा है और जिसके प्रति विरोध दर्ज करना जरूरी है, अन्यथा वह हमारी अभिव्यक्ति को भी नष्ट कर दे सकता है। रमण कुमार सिंह की कविताओं में हमारे लोकजीवन का जर्जरित होता स्वरूप बहुत शिद्दत से व्यक्त हुआ है। वे एक तरफ उस संसार की बची-खुची चीजों, परम्पराओं और सम्बन्धों को कविता की स्थायी स्मृति की तरह बचा लेना चाहते हैं तो दूसरी तरफ उस युवक की बेचैनी के पास भी जाते हैं जो लोक में प्रवेश करते बाजार, टूटती चौपाल और डरावने हो रहे पनघट और राजनीति के सत्ता-समीकरणों का साक्षी है और इस यथार्थ को बदल पाने में असमर्थ है। ‘गुजरे हुए बाबा से संवाद’ इसी तरह की एक मार्मिक कविता है जिसमें आज की पीढ़ी का एक प्रतिनिधि अपने पूर्वज को ग्रामीण संस्कृति का मौजूदा हाल सुनाते हुए उस सपने के बारे में पूछता है जिसे देखते-देखते वे अन्ततः सो गए थे। गौरतलब यह है कि यथार्थ बदल रहा है लेकिन स्वप्न भी जीवित है। दरअसल रमण की कविता उम्मीद और नाउम्मीद के बीच कई तरह के रिश्तों की पहचान की दस्तावेज है और कई बार वे ‘देश-परदेस’ को भी इसी रूप में पहचानते हैं। ‘बाघ दुहने का कौशल’ की रचनाएँ हमें उस सरल और मासूम संसार में ले जाती हैं जो वास्तविकता में टूट रहा है, लेकिन हमारे स्वप्नों में साबुत है। भाषा की ताज़गी और शिल्प की लोक-लय के साथ गँवई-शहरी जीवन के विकल रूप रमण की कविताओं के केन्द्रीय बयान हैं जिनमें संवेदना की स्थानिकता का संगीत भी सुनाई देता है। मंगलेश डबराल
Surkh
- Author Name:
Bhavesh Dilshad
- Book Type:

- Description: बनाव-सिंगार, बाग़, तितली, भोग-विलास से कोत तो क्या, बस पहाड़, जंगल, खाई, ख़ला, समन्दर, ये सब मुझे ाियादा पुकारते रहे। ये रहस्य, सन्नाटे, चुनौतियां और बेबाकियां। कभी हैरान करती रहीं, कभी तलाश तो कभी मुझे बयान। छटपटाहट, घुटन, कसक और उन्हीं लमहों में पूरी फ़क़ीरी, ािद और विध्वंस भी... इसी दौर में वो मुझे मिली। घूंघट, पर्दे और नक़्ली ोवरों के बोझ से घुटी-घुटी सी। दोनों ने तनहाई चुनी पर सच से चौंककर हम कतराये तो नहीं। एक-दूसरे का हाथ थामे बढ़ते रहे। एक-दूजे को जानने, पहचानने से चला सिलसिला समझने और महसूसने तक पहुंचा। फिर ढलने और पिघलने तक। बाहिर बरसों और यूं सदियों का सफ़र करते हम इकाई में रच-बस गये। अपने ही ढंग से, अपनी ही एक दुनिया में... वो मेरा पहला प्यार और इकलौती क़सम हो चुकी। प्यार, सफ़र, सिलसिला चल रहा है। चलता रहेगा। हम अपनी एक दुनिया बसा लेंगे। नहीं तो किसी अतल, अबूझ या गुमनाम कोने में एक-दूजे के सहारे जी लेंगे। हर क़दम नयी-नयी बेचैनियों, ख़लिशों के साथ वही सरमस्ती है। जबात की उथल-पुथल है। न चाहे भी रहेगी। इसी सफ़र के बीच इस ट्रायोलॉजी की शक्ल में खींच ली गयी मेरी और मेरी शाइरी की यह तस्वीर यहीं रह जाएगी। हमेशा के लिए! भवेश दिलशाद
Jyamiti
- Author Name:
Shanti Nair
- Book Type:

- Description: भारतीय स्त्री-कविता को बहुत दिनों से तलाश थी एक ऐसे स्त्री-स्वर की जिसके लेखन में निराला की नायिका पूरे ठस्से के साथ हँसती दिखाई दे, सबको दाँव देती हुई-सी हँसी। शान्ति नायर के कविता-संग्रह ‘ज्यामिति’ की कविताओं में सबको दाँव देती उसी हँसी का ताना-बाना मुझे विस्मय-विमुग्ध कर गया। उनमें बृहत्तर जगत के सरोकार अधिक मुखर और स्पष्ट रूप से सामने आते हैं, पर कविता की व्यंजना शक्ति की तिलांजलि दिये बग़ैर। संग्रह की ‘मैच द फ़ॉलोइंग’, ‘संजीवनी’, ‘दूध फटना’, ‘अनुष्ठान’ जैसी कविताओं में हमारे राजनीतिक-सामाजिक जीवन की समस्त विडम्बनाएँ जिस सजग बाँकपन के साथ व्यक्त हैं, वह किसी को भी एक झटके में उठाकर बैठा सकती हैं। ‘ट्रैफ़िक जाम’ कविता भास्वर प्रमाण है इस बात का कि पढ़ी-लिखी मध्यवर्गीय स्त्रियों पर अब कोई यह अभियोग लगा नहीं सकता कि दमित वर्गों-वर्णों की स्त्रियों का दुख उनके निजी दुखों में शामिल नहीं। चौके-चूल्हे, पास-पड़ोस, हाट-बाज़ार, दैनन्दिन जीवन के अन्य जीवंत प्रसंगों से धारोष्ण बिम्ब उठाकर जैसे भक्त-कवयित्रियाँ ध्वनि और रस-बोध से उच्छल कविताएँ सहज ही रच देती थीं, शान्ति नायर भी घरेलू बिम्बों को अद्भुत दार्शनिक उठान दे लेती हैं—‘अनिद्रा’ कविता में उदासीनता में ख़मीर का उठकर रात की सीमा के पार फूल जाना एक ऐसा बिम्ब है जो स्त्री ही साध सकती है। इसी तरह ‘पुट्टू’ कविता में तैयार पुट्टू को साँचे के बाहर कर देने की ख़ातिर जो धक्का दिया जाता है, उसका मर्म स्त्री, एक समधीत स्त्री ही समझ सकती है जो घर के काम ही नहीं करती, सब कामों से समय चुराकर पढ़ती भी है, जिसमें यह समझने की भी विलक्षण प्रज्ञा है कि जीवन की असल चुनौती है ज्ञान का संज्ञान में बदलना। दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना—कैसे—यह आपको शान्ति नायर की कविताएँ बख़ूबी समझा देती हैं। स्त्री की पसलियों का ‘लाड़ला दर्द’, ‘कर्तव्य के बिछावन’ पर यहाँ कुनमुनाकर सोता है पर नींद में मुस्कुराता हुआ।
Trishanku Swarg
- Author Name:
Akkitam Achyutan Nambudiri
- Book Type:

- Description: त्रिशंकु स्वर्ग ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मलयालम भाषा के शीर्षस्थ कवि अक्कितम अच्युतन नम्बूदिरी की चुनिन्दा कविताओं का संकलन है। उनकी कविताओं में परम्परा और आधुनिकता का अपूर्व मेल दिखाई पड़ता है। वेदों के गहन अध्ययन से परम्परा के उदात्त तत्वों को उन्होंने अपनी कविता में उतारा, तो सात दशक पहले प्रकाशित उनके खंड काव्य ‘इरूपदाम नूट्टांडिंडे इतिहासम्’ (बीसवीं शताब्दी का इतिहास) से मलयालम कविता में आधुनिकता का प्रवेश हुआ। परम्परा की निरन्तरता में विश्वास रखने वाले इस महाकवि के लिए मनुष्यता की पक्षधरता और मानवीय वेदना का परित्राण हमेशा सर्वोपरि रहा, जिसका प्रमाण इस चयनिका की कविताओं में मिलता है।
Talash
- Author Name:
Govind Geete
- Book Type:

- Description: Book
Rudra Samagra
- Author Name:
Ramgopal Sharma 'Rudra'
- Book Type:

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Description:
रामगोपाल शर्मा ‘रुद्र’ उत्तर-छायावाद काल के ऐसे कवि हैं, जो आधी शताब्दी से अधिक समय तक शब्द ब्रह्म की साधना में लीन रहे और उसकी लीलाएँ स्वयं देखते तथा हिन्दी काव्य प्रेमियों को दिखाते रहे। मस्ती, जिंदादिली और फक्कड़पन उनकी भी कविता का मिजाज है, लेकिन उनकी विशिष्टता यह है कि इसके साथ उनमें शास्त्रज्ञता और कलामर्मज्ञता का अद्भुत मेल है। ‘रुद्र’ जी ने अंतःप्रेरणा से कई शैलियों में काव्य-रचना की है। कभी उनकी शैली सरल है, कभी संस्कृतनिष्ठ और कभी उर्दू के लहजे से प्रभावित। सर्वत्र उनमें एक विदग्धता मिलती है, जिसे देखकर ही निराला ने उनके संबंध में अपना यह मत प्रकट किया था कि वे हिन्दी के एक ‘पाएदार शायर’ हैं। उनके शब्द जितने सटीक और व्यंजक हैं, बिंब उतने ही भास्वर।
धीरे-धीरे ‘रुद्र’ जी की अभिव्यक्ति सघन होती गई है, उनमें अर्थ-संकुलता बढ़ती गई है और उनके छंद छोटे होते गए हैं। लेकिन ताज्जुब है, इस दौर में भी उन्होंने ‘बंधु ! जरूरी है मुझको घर लौटना’ जैसे सरल गीत रचे, जो पुरानी और नई पीढ़ी के काव्यप्रेमियों को समान रूप से प्रिय हैं।
एक विद्वान् ने उनके संबंध में यह राय जाहिर की है कि चूंकि उन्होंने आलोचकों के कहने पर अपना मार्ग नहीं बदला, इसलिए वे उस पर काफी दूर निकल गए हैं। निश्चय ही इस कथन में सच्चाई है, क्योंकि उनके काल के अनेक कवि जहाँ अपनी जमीन छोड़कर अपनी चमक खोते गए हैं, या फिर धर्म और दर्शन की शरण में जाकर कोरे पद्यकार बनकर रह गए हैं, वहाँ ‘रुद्र’ जी की संवेदना लगातार गहरी होती गई है। प्रत्येक पीढ़ी के कवि अपने ढंग से समकालीन जीवन को प्रतिध्वनित करते हैं। ‘रुद्र’ जी साठ वर्षों के अपने कवि-जीवन में कभी अगतिक नहीं हुए और अपनी कविता में बदलती जीवन स्थितियों की अभिव्यक्ति करते रहे।
‘रुद्र समग्र’ क्यों? इसलिए कि इस लापरवाह, लेकिन बेहद खूबसूरत कवि की कविता को विस्मृत होने से बचा लिया जाए। यह वह कविता है, जो अपनी सीमाओं में हिन्दी कविता के एक महत्त्वपूर्ण दौर का ऐतिहासिक अभिलेख है और जिसका हिन्दी कविता के परवर्ती विकास में किसी न किसी रूप में योगदान भी है।
Shoonya Ki Jheel Mein Prem
- Author Name:
Mayank Murari
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- Description: ‘शून्य की झील में प्रेम’ में लौकिक प्रेम को अलौकिक प्रेम में परिवर्तित होते हुए देखना सुखद अनुभूति है। प्रेम जिसकी महिमा आदिकाल से आराध्य देवताओं से लेकर साधारण मनुष्य तक व्याप्त है जिसने भी इस धरती पर जन्म लिया और जब तक जीवित रहा।-ख़ुदेजा ख़ान मयंक मुरारी का नवीनतम कविता-संग्रह ‘शून्य की झील में प्रेम’ विश्व के प्रेम साहित्य को नए अरमानों से सुसज्जित करने का सुपर्ण सुयत्न है जिसके महत्त्व पर ख़ुदेजा ख़ान और स्वयं कवि ने यथेष्ट प्रकाश डाला है। कुछ आरम्भिक उद्धरण इसे पूर्णता प्रदान करते हैं। इसमें मेरे जैसे पाठक के लिए कुछ भी जोड़ पाना असम्भव है। यह प्रेम का मधु है जो मौन की अपेक्षा करता है। मयंक जी सिद्धहस्त एकान्त निस्पृह साधक हैं जिनका कवि-कर्म किसी तारीफ का मोहताज नहीं। उन्होंने इन टुकड़ों में अपना हृदय-रस उड़ेल दिया है जो समस्त भारतीय मानस को रसाप्लावित करेगा। शून्य की झील इश्क और अध्यात्म के सामासिक ऐश्वर्य को इंगित करने वाला प्रतीक बन मयंक मुरारी की काव्य-साधना का महत्तम राग बन जाती है। इसी के साथ वे न केवल हिन्दी बल्कि सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के उन सारस्वत कवियों के शिरोमणि बनने की ओर अग्रसर हैं जो इश्क़ के रूहानी और डिवाइन तत्वों का प्रतिनिधित्व करने की सामर्थ्य रखते हैं। प्रत्येक टुकड़े की शिरोरेखा की भाँति प्रदत्त गद्य मुखड़े पूरी पुस्तक को नई रश्मियों से आलोकित करते हैं। यह पुस्तक सहृदय पाठकों का हृदय हार बने, यही कामना है। अस्तु। अरुण कमल
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