Mrityunjayee
Author:
Bhagwat Jha AzadPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
‘मृत्युंजयी’ का मुख्यराग है—लोक मुक्ति। दलित, शोषित, उपेक्षित, प्रताड़ित, पीड़ित; आर्थिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक दृष्टि से सर्वथा उपेक्षित और अज्ञान के अन्धकार में भटकते अज्ञानी लोगों की बिलखती चेतना के रेगिस्तानी समुद्र में आस्था और संकल्प की सुगम राह बना डालने की युक्ति : “करो उपकृत धरा लोक को/अपना ज्ञान बाँटकर उनको/श्रम से मंडित जग जीवन है/यह रहस्य बतला कर उनको।”</p>
<p>“अपने सत्कर्मों से मानव/जीवन काल बढ़ा सकता है/धर्म आचरण से आत्मा को/वह उदात्त बना सकता है।”</p>
<p>कवि ने यहाँ तत्त्व के लिए संघर्ष किया है, अभिव्यक्ति को सक्षम बनाने के लिए संघर्ष किया है और लोक दृष्टि विकसित करने के लिए जन संघर्ष को अनिवार्य माना है : “मिटा भूत के पद्चिन्हों को/भूल पुराने व्यथा-व्यंग्य को/नई राह पर कदम बढ़ाकर/नई कहानी लिख डाला है/एक नया संसार बनाकर।”</p>
<p>‘मृत्युंजयी’ पढ़कर आप एक ऐसे फूल की कल्पना कर सकते है जो कभी जुही भी हो जाता है तो कभी कमल, कभी मौलश्री, कभी अमलतास तो कभी शेफालिका। ‘मृत्युंजयी’ पढ़ने और उसकी संवेदना के आन्तरिक सतह का स्पर्श करने के पश्चात आपको सहज अनुभव होगा कि महाकवि भागवत झा ‘आज़ाद’ अपने शब्दों से जीवन की परिधि का विस्तार करते हैं। उनकी कविता मानव मन में उच्चतर जीवन मूल्यों के प्रति उत्कंठा और आस्था जगाती है और इस तरह मानवीय नश्वरता के विरुद्ध शाश्वरता का जयगान करती है।
ISBN: 9789395737227
Pages: 32
Avg Reading Time: 1 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
भाषा के छंद और स्वच्छंद के बीच से अपना रास्ता बनातीं गगन गिल की ये कविताएँ न केवल उनकी अपनी रचना-यात्रा का, बल्कि आधुनिक हिंदी कविता का भी एक नया पड़ाव मानी गयीं। इस संग्रह के साथ, कह सकते हैं कि, हिंदी कविता में लय का संताप और संताप की लय इतनी मुखर होकर लौटी।
गगन गिल का केंद्रीय सरोकार मानव-नियति का दुख रहा है। कभी वह उन्हें शोकगीतों तक ले गया है और कभी बौद्ध दर्शन तक। उन्होंने इस विषय को इतनी विविध तरह से टटोला है, गोया दुख ईश्वर जैसे किसी मूर्तिकार का कोई शिल्प हो। इस प्रक्रिया में उन्होंने जिस चीज़ को एक औज़ार की तरह बरता है वह है भाषा और कहन का शिल्प।
‘थपक थपक दिल थपक थपक’ की संश्लिष्ट बुनावट भाषा-प्रयोग में एक घटना की तरह है। किसी स्थिति-विशेष को भाषा (की चाबी) से खोलते हुए, फिर भाषा को लय से, लय को शब्द-आवृत्ति से और शब्द-आवृत्ति से मौन को, अबोले को उघाड़ते-उलीचते ये रचनाएँ एक अनूठी संरचना गढ़ती हैं जो हमें कविता के उत्स की अनुभूति कराती है। दुःख की पहली आह की तरह।
ये कविताएँ दुर्बोध दीखती हैं, हैं नहीं। सरल जान पड़ती हैं, निकलती नहीं। वे अर्थ-विशेष के आशय से बार-बार फिसलती हैं और इस विचलन में ही अर्थवान होने का स्वप्न रचती हैं, इस आकांक्षा में, कि यदि कहीं कोई तत्त्व है, तो वह भाषा और शब्दार्थ से परे है जिसे जानना उतना ज़रूरी नहीं जितना महसूस करना और आत्मसात करना।
Vansha : Mahabharat Kavita
- Author Name:
Harprasad Das
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हरप्रसाद दास अपनी आधुनिक दृष्टि, गहन परम्परा-बोध और अपने विशिष्ट ओड़िया स्वर के लिए पहचाने जाते हैं। ‘वंश’ में संकलित कविताएँ उनकी सुदीर्घ काव्य-साधना का एक अद्वितीय उदाहरण हैं।
वास्तव में यह ‘महाभारत’ के प्राय: सभी चरित्रों के गम्भीर अन्तर्मन्थन की एक सुघड़ काव्य-शृंखला है। सत्तर कविताओं के माध्यम से कवि ने ‘महाभारत’ की जो पुनर्रचना की है, उसका प्रयोजन कथा का तकनीकी आधुनिकीकरण भर नहीं है। ‘महाभारत’ की कथा-वस्तु या उसके चरित्रों की अन्त:प्रकृति में सतही बदलाव लाने की कोई चेष्टा यहाँ नहीं है। यह पुनर्पाठ आधुनिक और आत्मसजग कवि के द्वारा, ‘महाभारत’ के साथ सृजनात्मक अन्तर्पाठीयता का एक रिश्ता बनाने की कोशिश है। उस समय में इस समय को जोड़ देने के जोड़-तोड़ से क़तई अलग, यह साभ्यतिक संकट की त्रासदी के अनुभव और अवबोध की कविता है, जिसे वे कथा के प्राचीन रूपाकार में कुछ इस तरह रचते हैं कि हम पूरे ‘महाभारत’ को अपने सामयिक अनुभव की विडम्बनाओं और व्यर्थ हताशाओं की तरह घटता देखते हैं।
अपने लोक-जीवन के दैनिक समय में जीते-मरते लोगों के बीच, परिवेश की पास-पड़ोस की छवियों के रूबरू होते हुए, हम पाते हैं कि ‘महाभारत’ हमारे लिए महज़ किसी दूरस्थ क्लासिकी ऊँचाई या गहराई का प्रतीक या रूपक-भर नहीं है। लोक-जीवन की साधारण साम्प्रतिकता में, परिवार के संस्कारों में, क़िस्सों की तरह रचा-बसा ‘महाभारत’, हरप्रसाद की सर्जना के माध्यम से, हमारी आन्तरिकता का एक मार्मिक दस्तावेज़ बन जाता है। साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण है कि ‘वंश’ की रचना में क्लासिकी और लोक का ऐसा अनूठा समन्वय है जो मनुष्य के आस्तित्विक संकट को सहज लोक-वाणी में सम्प्रेषित करता है।
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