Monalisa Ki Aankhen
Author:
Suman KeshariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
सुमन केशरी की कविताएँ एक आधुनिक स्त्री की कविताएँ हैं : वे जितनी एक आधुनिक चौकस व्यक्ति हैं, उतनी ही एक संवेदनशील और सजग स्त्री भी। उनमें एक गहरा अवसाद और प्रतिरोध है लेकिन चीख़-पुकार नहीं। वे घटनाओं और आसपास जो हो रहा है, उससे प्रतिकृत तो होती हैं लेकिन उसे नाटकीय वक्तव्य बनाने से बचती हैं। उनके पास आधुनिकता का अतिरेक नहीं, संवेदना का सहज संयम है। उनकी कविता में मोनालिसा, माँ, बेटी, पूर्वज, सपने, चिड़िया, मणिकर्णिका, सम्बन्ध, औरत सब जीवन की असंख्य छवियों में से कुछ की तरह विन्यस्त होते <br />हैं।</p>
<p>सुमन केशरी की कविता यह अहसास बनाए रखती है कि जीवन विस्तृत और अबाध है और कविता उस पर, उस विशाल और जटिल वितान पर ससंकोच खुली खिड़की-भर है। उनकी कविता में कई मर्मचित्र हैं जो मन में बिंध से जाते हैं : ‘लहू का आलता लगाए’, ‘सुनो बिटिया/मैं उड़ती हूँ/खिड़की के पार चिड़िया बन/तुम आना’, ‘अपने ही तारे को/अस्त होते देखना/मरने जैसा है/धीरे...धीरे’, ‘पीठ दिए एक चिता को/धोती सुखाता दूसरी की आँच में/प्रेत-सा खड़ा’, ‘बिटिया बोली/चिड़िया का बच्चा बोला’, ‘चुटकी-भर विश्वास/नमक-सा’ आदि।</p>
<p>सुमन केशरी का संग्रह काव्य-कौशल की परिपक्वता और अनुभव के विस्तार के लिए उल्लेखनीय है। —अशोक वाजपेयी।
ISBN: 9788126724840
Pages: 104
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: हिंदी साहित्य जगत में विलक्षण प्रयोगों, नए-नए मुहावरों, अछूते प्रतीकों, पैनी और व्यंग्यात्मक भाषाशैली के साथ-साथ जनसापेक्ष रचनाशीलता के बल पर श्री रमेशराज ने एक महत्वपूर्ण मुक़ाम हासिल किया है। आपके मौलिक चिंतन में एक तरफ जहां असीम गहराई है, वहीं सम्प्रेषणशीलता सर्वत्र मौजूद होने के कारण पाठक-मन ऊबता नहीं। हर तथ्य आसानी के साथ ग्रहण करते हुए वह आत्मतोष से भर जाता है। तेवरी विधा के सूत्रधार श्री रमेशराज एक तेवरीकार के रूप में ही विख्यात हों, ऐसा कदापि नहीं है। आपने बेहतरीन मुक्तछंद कविताएं लिखी हैं। बालगीत कार के रूप में भी आपकी पहचान है। आपके गीत-नवगीत मन को गहराइयों तक छूते हैं। व्यंग्य व्यंजना का अद्भुत रंग लिए होते हैं। आपका चिंतन 'कविता क्या है?' जैसे मूलभूत प्रश्न को सुलझाता है। रस पर आपकी सूक्ष्म पकड़ है। समकालीन यथार्थवादी काव्य की रस-समस्या का समाधान खोजते हुए आपने एक नए रस "विरोधरस" की मौलिक खोज की है। काव्य की आत्मा पर चिंतन करते हुए "साधारणीकरण" के स्थान पर एक नया सिद्धांत "आत्मीयकरण" दिया है। नए-नए छन्दों को प्रतिष्ठापित करने वाले श्री रमेशराज की ताजा काव्यकृति मधु-सा ला (चतुष्पदी-शतक) है, जिसमें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विकृतियों और विसंगतियों पर तीखे प्रहार किए गए हैं।यथा- नसबंदी पर देते भाषण, जिनके दस लल्ली-लाला हाला पीकर बोल रहे हैं, ‘बहुत बुरी होती हाला’। अंधकार के पोषक देखो, करने आये भोर नयी नयी आर्थिक नीति बनी है, आज प्रगति की मधुशाला।। कवि ने अधर्मी साधुओं मौलवियों के दुराचरण पर बिना भेदभाव किये तटस्थ भाव से तीखे व्यंग्य कसे हैं- मुल्ला-साधु-संत ने चख ली, राजनीति की अब हाला गुण्डे-चोर-उचक्के इनके, आज बने हैं हमप्याला। जनसेवक को शीश नवाते, झट गिर जाते पाँवों पर ये उन्मादी-सुख के आदी, प्यारी इनको मधुशाला।। दूषित होते पारिवारिक परिवेश का सजीव चित्रण देखिए- बेटे के हाथों में बोतल, पिता लिये कर में प्याला इन दोनों के साथ खड़ी है, कंचनवर्णी मधुबाला। गृहणी तले पकौड़े इनको, गुमसुम खड़ी रसोई में नयी सभ्यता बना रही है, पूरे घर को मधुशाला।। पारिवारिक मूल्यों में आयी गिरावट पर कवि की पैनी पकड़ इसप्रकार है- बेटे की आँखों में आँसू, पिता दुःखों ने भर डाला मजा पड़ोसी लूट रहे हैं, देख-देख मद की हाला। इन सबसे बेफिक्र सुबह से, क्रम चालू तो शाम हुयी पूरे घर में महँक रही है, सास-बहू की मधुशाला।। आज हमारा समाज सभ्यता के नाम पर कितना संस्कारविहीन हो गया है- मरा पड़ौसी, उसके घर को दुःख-दर्दों ने भर डाला हरी चूड़ियाँ टूट गयीं सब, हुई एक विधवा बाला। अर्थी को मरघट तक लाते, मौन रहे पीने वाले दाहकर्म पर झट कोने में, महँकी उनकी मधुशाला।। एक चतुष्पदी में सियासत का षडयंत्र देखिए- उसने की है यही व्यवस्था, दुराचरण की पी हाला प्याला जिसके हाथों में हो, बन जा ऐसा मतवाला। मत कर चिन्ता तू बच्चों की, मत बहरे सिस्टम पर सोच तेरी खातिर जूआघर हैं, कदम-कदम पर मधुशाला।। समाज को चेतना प्रदान करने वाले कवि का आचरण आज कैसा जनविरोधी हो गया है- कलमकार भी धनपशुओं का, बना आजकल हमप्याला दोनों एक मेज पर बैठे, पीते हैं ऐसी हाला। निकल रहा उन्माद कलम से, घृणा भरी है लेखों में महँक छोड़ती अब हिंसा की, अलगावों की मधुशाला।। दुष्टों, दुराचारियों के सम्मुख नतमस्तक होते क़लम के सिपाहियों पर तंज कसते हुए कवि कहता हैं- सबसे अच्छी मक्खनबाजी, हुनर चापलूसी का ला तुझको ऊँचा पद दिलवाये, चाटुकारिता की हाला। स्वाभिमान की बात उठे तो, दिखला दे तू बत्तीसी कोठी बँगला कार दिलाये, बेशर्मी की मधुशाला।। सारा परिवेश विषैला हो चुका है। हर सियासी दल से जनता को धोखा मिल रहा है। पूरा का पूरा सिस्टम एक अनसुलझा सवाल बन गया है। फिर भी कवि हार न मानते हुए रहनुमाओं से यह सवाल करता है तो करता है- कब तक सपना दिखलाओगे, गांधी के मंतर वाला और पियें हम बोलो कब तक, सहनशीलता की हाला। अग्नि-परीक्षा क्यों लेते हो, बंधु हमारे संयम की कब तक कोरे आश्वासन की, भेंट करोगे मधुशाला।। कुल मिलाकर रमेशराज जी के इस मधु-सा ला (चतुष्पदी-शतक) का साहित्य-जगत में उनकी अन्य कृतियों की तरह स्वागत होगा, ऐसा विश्वास है। ~अनिल 'अनल'
Mukarrar Irshad
- Author Name:
Irshad Khan Sikandar
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Ret Ret Lahoo
- Author Name:
Zabir Hussain
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जाबिर हुसेन अपनी शायरी को 'पत्थरों के शहर में शीशागरी' का नाम देते हैं। सम्भव है, ‘एक नदी रेत भरी’ से ‘रेत-रेत लहू’ तक 'शीशागरी' का यह तकलीफ़देह सफ़र ख़ुद जाबिर हुसेन की नज़र में उनके सामाजिक सरोकारों के आगे कोई अहमियत नहीं रखता हो। सम्भव है, वो इन कविताओं को अपनी डायरी में दर्ज बेतरतीब, बेमानी, धुंध-भरी इबारतें मानते रहे हों। इबारतें, जो कहीं-कहीं ख़ुद उनसे मंसूब रही हों, और जो अपनी तल्ख़ियों के सबब उनकी याददाश्त में आज भी सुरक्षित हों। इबारतें, जिनमें उन्होंने अपने आप से गुफ़्तगू की हो, जिनमें अपनी वीरानियों, अपने अकेलेपन, अपने अलगाव और अपनी आशाओं के बिम्ब उकेरे हों।
लेकिन इन कविताओं में उभरने वाली तस्वीरें अकेले जाबिर हुसेन की अनुभूतियों को ही रेखांकित नहीं करतीं। अपने आप को सम्बोधित होकर भी ये कविताएँ एक अत्यन्त नाज़ुक दायरे का सृजन करती हैं। एक नाज़ुक दायरा, जिसमें कई-कई चेहरे उभरते-डूबते नज़र आते हैं।
जाबिर हुसेन की कविताएँ, बेतरतीब ख़्वाबों की तरह, उनके वजूद की रेतीली ज़मीन पर उतरती हैं, उस पर अपने निशान बनाती हैं। निशान, जो वक़्त की तपिश का साथ नहीं दे पाते, जिन्हें हालात की तल्ख़ियाँ समेट ले जाती हैं। और बची रहती है, एक टीस जो एक साथ अजनबी है, और परिचित भी।
यही टीस जाबिर हुसेन की कविताओं की रूह है। एक टीस जो, जितनी उनकी है, उतनी ही दूसरों की भी! ‘रेत-रेत लहू’ की कविताएँ बार-बार पाठकों को इस टीस की याद दिलाएँगी।
Shoodra
- Author Name:
Tribhuvan
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- Description: Hindi poems Shoodra by Tribhuvan
Mrityu Se Agey
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- Description: राजशाही के भ्रष्टाचार, कर्तव्यों के निर्वहन में उसकी विफलता, बढ़ती वासना से उत्पन्न नारी असुरक्षा, सामान्य व्यक्ति का जीवन संघर्ष, भगवान के प्रति उसकी आस्था और निराशा की उथल पुथल के बीच जीवन का यथार्थ खोजती कविताओं का संग्रह है "मृत्यु से आगे" मानव जीवन की संवेदनाओं एवं सामाजिक बदलाव को गहराई से समझने वाले कवि रजनीश के लिए कवितायें मात्र काल्पनिक दस्तावेज़ नही अपितु काव्यात्मकता एक बोध है जो ना केवल मानव की सोच बल्कि उसकी आत्मा को भी प्रभावित करता है I
Ek Ped Chhatnar
- Author Name:
Dinesh Kumar Shukla
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Description:
दिनेश कुमार शुक्ल की कविता में जीवन और जन के राग का उत्सव है जो आश्चर्य नहीं कि अक्सर छन्द में आता है, नहीं तो छन्द की परिधि पर कहीं दूर-पास मँडराता हुआ। उनकी कविता समय की समूची दुखान्तिकी से परिचित है, उस पूरे अवसाद से भी जिसे समय ने अपनी उपलब्धि के रूप में अर्जित किया है, लेकिन वह उम्मीद की अपनी ज़मीन नहीं छोड़ती। कारण शायद यह है कि जन-जीवन, लोक-अनुभव और भाषा के भीतर निबद्ध जनसामान्य के मन की ताक़त की एक बड़ी पूँजी उनके पास है।
वृहत् विश्व-मानव-समाज की नियति के किसी एक हाथ में सिमट जाने की स्थिति पर व्यंग्यपूर्वक वे अगर कहते हैं कि 'आपकी अनुमति से ही आएँगे/सुख के बौर/आपकी सहमति से ही उठेगी/आँधी दु:ख की', तो स्पष्ट हो जाता है कि अपने समय के सब ख़तरों से वे बख़ूबी वाक़िफ़ हैं, लेकिन वे यह भी देख पा रहे हैं कि 'सब कुछ बिखरा हुआ पड़ा है/ध्वस्त पड़ी है सारी निर्मिति/किन्तु बचा है एक कंगूरा/साबुत सीधा सधा हुआ जो/ ताक रहा है आसमान को'। यही वह एक कंगूरा है जो सम्भवत: एक नए आरम्भ का प्रस्थान बिन्दु होगा जहाँ 'मुकुति-का-खिलइ-सहस-दल-कँवल/हँसइ-जीवन-नित-नूतन-धवल/बहइ-सर-सर-सर-झंझा-प्रबल/कि धँसकँइ-बड़ेन-बड़ेन-के-महल'। इन पंक्तियों में न सिर्फ़ एक भिन्न भविष्य के स्वप्न-नृत्य का नाद सुनाई देता है, बल्कि एक नए निर्माण का इरादा भी दिखाई देता है।
दिनेश कुमार शुक्ल की कविताएँ अपनी भाषा-सामर्थ्य के लिए भी विशेष जानी गई हैं। उन्होंने अपना एक अलग रंग रचा है, और छन्द परम्परा को नई कविता में भिन्न कौशल से बरता है जो लोक-स्मृति, जन-गण की पीड़ाओं और मनुष्य की जिजीविषा की विभिन्न मुद्राओं से सम्पन्न इस संग्रह की कविताओं में भी देखा जा सकता है।
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