Mera Ghar

Mera Ghar

Authors(s):

Trilochan

Language:

Hindi

Pages:

84

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

168 mins

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Book Description

style="font-weight: 400;">वयोवृद्ध त्रिलोचन इस समय हिन्दी के सम्भवतः सबसे गृहस्थ कवि हैं,&nbsp;इस अर्थ में कि हिन्दी भाषा अपनी जातीय स्मृतियों और असंख्य अन्तर्ध्वनियों के साथ,&nbsp;सचमुच उनका घर है। वे बिरले कवि हैं जिन्हें यह पूरे आत्मविश्वास से कहने का हक़ है कि&nbsp;‘पृथ्वी मेरा घर है/अपने इस घर को/अच्छी तरह&nbsp;मैं ही नहीं जानता।’&nbsp;इस घर में हुब्बी,&nbsp;पाँचू,&nbsp;टिक्कुल बाबा&nbsp;आदि&nbsp;सब रसे-बसे हैं। त्रिलोचन की कविता साधारण से साधारण चरित्र या घटना या बिम्ब को पूरे जतन से दर्ज करती है,&nbsp;मानो सब कुछ उनके पास-पड़ोस में है,&nbsp;कि&nbsp;‘तारे सब सहचर हैं मेरे’।</p> <p style="font-weight: 400;">इस संग्रह में त्रिलोचन की ऐसी कई कविताएँ पहली बार पुस्तकाकार संगृहीत हो रही हैं जो उनके किसी पिछले संग्रह में नहीं आ सकी थीं और इधर-उधर पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई थीं। इस चयन में बिना चीख़-पुकार मचाए,&nbsp;‘पीड़ा-संग्रह’&nbsp;है और यह मानने की बेबाकी भी<br>कि—</p> <p style="font-weight: 400;">‘मुझे अपने मरने का</p> <p style="font-weight: 400;">थोड़ा भी दु:ख नहीं</p> <p style="font-weight: 400;">मेरे मर जाने पर</p> <p style="font-weight: 400;">शब्दों से मेरा सम्बन्ध</p> <p style="font-weight: 400;">छूट जाएगा।’</p> <p style="font-weight: 400;">त्रिलोचन की कुछ अवधी कविताएँ इस संग्रह को&nbsp;‘घर की बोली’&nbsp;देती हैं। उनमें न सिर्फ़&nbsp;‘भाखा की महिमा’&nbsp;प्रगट है,&nbsp;पर स्वयं त्रिलोचन का अत्यन्त स्पन्दित भाषा संसार भी—एक बार फिर।&nbsp;—अशोक वाजपेयी

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