Kroorata
Author:
Kumar AmbujPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘क्रूरता’ संग्रह की कविताएँ अपने प्रकाशन के साथ ही ध्यानाकर्षण का केन्द्र बन गई थीं। ये कविताएँ हमारे समय में नागरिक होने के संघर्ष, चेतना और व्यथा को गहरे काव्यात्मक आशयों के साथ विमर्श का विषय बनाती हैं। इसी क्रम में कुमार अंबुज, हिन्दी कविता में पहली बार, ‘क्रूरता’ पद को व्यापक सामाजिक एवं राजनैतिक अर्थों में, ऐतिहासिक समझ के साथ व्याख्यायित और परिभाषित करते हैं। यहीं वे काव्य-विषयों की कोमल और सकारात्मक समझी जानेवाली पदावली की परिधियों को भी तोड़ते हैं।</p>
<p>उचित ही प्रबुद्ध आलोचकों-पाठकों ने इन कविताओं को ‘विडम्बना के नए आख्यान’ तथा ‘विचारधारा के सर्जनात्मक उपयोग’ का उदाहरण माना है। ये कविताएँ भाषा के सम्प्रेषणीय प्रखर मुहावरों, अभिव्यक्ति के संयम और वर्णन की चुम्बकीय शक्ति के लिए भी पहचानी गई हैं। कवि-कर्म की नई चुनौतियों का स्वीकार यहाँ स्पष्ट है। ये कविताएँ हमारे समय में उपस्थित तमाम क्रूरताओं की शिनाख़्त करने का गम्भीर दायित्व उठाती हैं। यही कारण है कि वे पाठक की चेतना में प्रवेश कर वैचारिक स्तर पर उद्विग्न करती हैं। सांस्कृतिक प्रतिरोध की दृष्टि से सम्पृक्त ये कविताएँ अनुभवों के वैविध्य और विस्तार में जाकर एकदम अछूते काव्यात्मक वृत्तान्तों को सम्भव करती हैं।</p>
<p>जो कुछ न्यायपूर्ण है, सुन्दर है, सभ्य सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है, उसे पाने की आकांक्षी और पक्षधर ये कविताएँ सहज ही साम्राज्यवादी, औपनिवेशिक, उपभोक्तावादी, साम्प्रदायिक और पूँजीवादी शक्तियों को अपने सूक्ष्म रूप में भी उजागर करती हैं। ‘क्रूरता की संस्कृति’ को चिह्नित करते हुए वे संवेदना, मनुष्यता, लौकिकता और करुणा का विशाल फलक रचती हैं, अपने काव्यात्मक अभीष्ट तक पहुँचती हैं।</p>
<p>मनुष्य समाज के साथ रागात्मक सम्बन्धों के ठोस आधार कुमार अंबुज की निगाह से कभी ओझल नहीं होते हैं, इसलिए उनकी ये कविताएँ सर्जना के नए पड़ावों तक यात्रा करती हैं। इन कविताओं की प्रासंगिकता और प्रतिबद्धता इन्हें नए सिरे से विचारणीय बनाती है। वे इस पक्ष के लिए भी रेखांकित की जाती रही हैं कि हिन्दी कविता का यह नया विकास है, विशेष अर्थ में एक नया प्रस्थान।
ISBN: 9788183610902
Pages: 108
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘अपने जैसा जीवन’ एक नई तरह की कविता के जन्म की सूचना देता है। यह ऐसी कविता है जो मनुष्य के बाहरी और आन्तरिक संसार की अज्ञात–अपरिचित मनोभूमियों तक पहुँचने का जोखिम उठाती है और अनुभव के ऐसे ब्योरे या संवेदना के ऐसे बिम्ब देख लेती है, जिन्हें इससे पहले शायद बहुत कम पहचाना गया है। सविता सिंह ऐसे अनुभवों का पीछा करती हैं जो कम प्रत्यक्ष हैं, अनेक बार अदृश्य रहते हैं, कभी–कभी सिर्फ़’ अपना अँधेरा फेंकते हैं और ‘न कुछ’ जैसे लगते हैं। इस ‘न कुछ’ में से ‘बहुत कुछ’ रचती इस कविता के पीछे एक बौद्धिक तैयारी है, लेकिन वह स्वत:स्फूर्त ढंग से व्यक्त होती है और पिकासो की एक प्रसिद्ध उक्ति की याद दिलाती है कि कला ‘खोजने’ से ज़्यादा ‘पाने’ पर निर्भर है। प्रकृति के विलक्षण कार्यकलाप की तरह अनस्तित्व में अस्तित्व को सम्भव करने का एक सहज यत्न इन कविताओं का आधार है।
ऐसी कविता शायद एक स्त्री ही लिख सकती है। लेकिन सविता की कविताओं में प्रचलित ‘नारीवाद’ से अधिक प्रगतिशील अर्थों का वह ‘नारीत्व’ है जो दासता का घोर विरोधी है और स्त्री की मुक्ति का और भी गहरा पक्षधर है। इस संग्रह की अनेक कविताएँ स्त्री के ‘स्वायत्त’ और ‘पूर्णतया अपने’ संसार की मूल्य–चेतना को इस विश्वास के साथ अभिव्यक्त करती हैं कि मुक्ति की पहचान का कोई अन्त नहीं है। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि सविता की ज़्यादातर कविताएँ स्त्रियों पर ही हैं और वे स्त्रियाँ जब देशी–विदेशी चरित्रों और नामों के रूप में आती हैं तब अपने दु:ख या विडम्बना के ज़रिए अपनी मुक्ति की कोशिश को मूर्त्त कर रही होती हैं। उनका रुदन भी एकान्तिक आत्मालाप की तरह शुरू होता हुआ सार्वजनिक वक्तव्य की शक्ल ले लेता है। सविता सिंह लगातार स्मृति को कल्पना में और कल्पना को स्मृति में बदलती चलती हैं। यह आवाजाही उनके काव्य–विवेक की भी रचना करती है, जहाँ यथार्थ की पहचान और बौद्धिक समझ कविता को वायवीय और एकालापी होने से बचाती है। मानवीय संवेगों को बौद्धिक तर्क के संसार में पहचानने का यह उपक्रम सविता की रचनात्मकता का अपना विशिष्ट गुण है। इस आश्चर्यलोक में कविता बार–बार अपने में से प्रकट होती है, अपने भीतर से ही अपने को उपजाती रहती है और अपने को नया करती चलती है।
Jab Har Hansi Sandigdh Thi
- Author Name:
Pragya Pathak
- Book Type:

- Description: ‘मैंने जिसे देश समझकर प्यार किया वह विचारों की क़त्लगाह था।’ अपने आक्रोश और असहमति में पराग पावन जितने युवा हैं, अन्याय और शोषण की संरचना को समझने में उतने ही वयस्क। उनके इस पहले संग्रह में शामिल कविताओं का भावात्मक और भाषिक वैविध्य बताता है कि एक विधा के रूप में कविता को उन्होंने जितनी गम्भीरता से लिया है, वैसा कम ही युवा कवि करते हैं। स्मृतियों में बसी ‘चूल्हे की राख’ से आरम्भ होकर ‘कथा कहूँ कवि गंग की’ शीर्षक एक सुदीर्घ आख्यानपरक कविता तक उठनेवाला यह संग्रह उन हत्यारों की पहचान भी करता है जो कभी आपकी अस्मिता तो कभी असमर्थता पर आक्रमण कर बिना हथियार ही आपको संसार से नफ़ी कर देते हैं; और उन प्रातिभ चापलूसों को भी दिखाता है जो ‘दुखी किसी-किसी को, ख़ुश अधिकांश को करते हुए’ सब कुछ को अपने अनुकूल करने में तल्लीन हैं। पराग जहाँ ज़रूरी समझते हैं व्यंग्य को और जहाँ ज़रूरी समझते हैं करुणा को उसकी पूरी सम्भावना के साथ प्रयोग करते हैं। व्यक्ति और व्यवस्था, दोनों जगह निहित ख़तरों की पर्याप्त पहचान उन्हें हैं—‘गाँव 2020’ का अतियथार्थ हो या उस अध्यापक को याद करना जिसे बताना पड़ता है कि ‘प्रेम आदमी का अवैतनिक चिकित्सक है।’ ‘बेरोज़गार’ शीर्षक पराग की बहुत चर्चित कविता-शृंखला के अलावा न्यायाकांक्षी युवा चेतना के और भी आयामों को रेखांकित करने वाली कविताएँ इस संग्रह में मिलेंगी, और एक नागरिक मन की उदासी भी जिसे कोई धोखा नहीं देता, सिवा उसकी उम्मीदों के। साथ ही प्रेम के कंधे पर कुहनी टिकाए खड़ी उम्मीद भी यहाँ है—जहाँ शाम ख़त्म होती है/रात वहीं से शुरू नहीं होती/रात शुरू होती है तुम्हारे मेरा बाज़ू पकड़ने से/और उस बेआवाज़ वाक्य से/कि थक गए हो/चलो, घर चलें।
Dunia Jaisi Maine Dekhi
- Author Name:
Jagdish Prasad Agrawal
- Book Type:

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Description:
डॉ. जगदीश अग्रवाल प्रवासी भारतीय संघ से जुड़े हैं। विदेशों में रह रहे भारतीय के भीतर भी यहाँ के तीज-त्योहार, यहाँ के संस्कार, यहाँ के रीति-रिवाज, यहाँ का मौसम, पेड़-पौधे, पक्षी जीवित रहते हैं। विदेशों में बसने के बाद भी रिश्तों की नफ़ासत, रिश्तों के प्रति प्रतिबद्धताएँ बदल नहीं पातीं! कह सकते हैं कि प्रवासी भारतीय विदेशी सरज़मीं पर भारतीयता को जीवित रखने की कला को विकसित करते हैं। कभी यह भारतीयता कविता के रूप में सामने आती है तो कभी कहानी और उपन्यासों के रूप में।
डॉ. जगदीश अग्रवाल का यह कविता-संग्रह एक प्रवासी भारतीय की ऐसी ही भावनाओं को समर्पित है। इसका प्रकाशन एक तरह से प्रवासी भारतीयों को जोड़ने का भी प्रयास है—ऐसे भारतीयों को, जो किसी न किसी रूप में साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े हैं।
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