Awaz-Beawaz
Author:
Ashok Kumar PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘आवाज़-बेआवाज़’ की कविताएँ मानवीय और राजनीतिक सरोकारों का एक विशाल वितान रचती हैं। ये एक ऐसे हस्सास मन का प्रतिबिम्ब हैं, जिसकी चिन्ताएँ अपने अध्ययन-कक्ष से लेकर संसार के हर उस कोने तक व्यापती हैं जहाँ मनुष्यता संकट में है, जहाँ सर्वसत्तावादी राजनीति मानव-जीवन को अपना चारा बनाने को उद्यत है।
ये एक चिन्तनशील और सजग मस्तिष्क के वे हार्दिक उद्गार हैं जो केवल कविता में ही व्यक्त हो सकते थे। कश्मीर से लेकर फ़लस्तीन और प्रेम की सान्द्र अनुभूतियों से लेकर व्यक्ति के तीक्ष्ण व्यर्थताबोध तक ये कविताएँ अपने सघन शिल्प में एक लम्बी सड़क बनाती हैं जिस पर आप वर्तमान समय की वास्तविकताओं के एक बहुरूपदर्शी सफ़र पर निकलते हैं।
राजनीति की मौजूदा भंगिमाओं को ये कविताएँ अकसर ही अचूक ढंग से निडरतापूर्वक रेखांकित करती हैं, और उनके फलितार्थों के प्रति हमें आगाह करती हैं। ‘आवाज़ें पहले से रिकॉर्ड हैं’—यह एक वाक्य ही हमारे इस काल की सर्वाधिक भयावह परिस्थिति को समझने के लिए पर्याप्त है, जहाँ वे तमाम चीज़ें जिनसे जनतंत्र को उम्मीद थी, भीतर से ख़ाली हो गई प्रतीत होती हैं।
इन कविताओं के असंख्य बिम्ब और उनका आन्तरिक तनाव देर तक आपके साथ रहता है।
ISBN: 9789360860844
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Dakchal Samay Par Rekh
- Author Name:
Krishnamohan Jha 'Mohan'
- Book Type:

- Description: कृष्णमोहन झा 'मोहन' जीवनक जाहि मोड़ पर अपन बेस अनुभवी कनहा पर कविता केँ उठाक' मैथिली साहित्यक दुनिया मे प्रवेश कयलनि ओइ उमेर तक अबैत-अबैत सामान्य कवि हाँफ' लगैत अछि आ बेसी सँ बेसी अपना केँ दोहराब' लगैत अछि; मुदा मोहन जीक पहिल संग्रह 'ग्लोबल गाम सँ अबैत हकार' पढ़िक' बुझायल जे अपन युगक प्रश्न सँ गाँथल एवं राजनीतिक रूप सँ सचेत ओ एक टा एहेन प्रश्नाकुल कवि छथि जिनक चेतना ग्लोबल सँ ल'क' लोकल धरिक गूँज-अनुगूँज सुनबा लेल उत्सुक छनि।... ओइ दृष्टि सँ ई दोसर संग्रह हिनक पहिल संग्रहक विस्तार एवं पूरक प्रतीत होइत अछि। आइ कविता आ ओकर परिसर मे जे नाना प्रकारक विमर्शक हल्ला सुनाय पड़ैत अछि ओकर अइ संग्रह मे अनुपस्थिति एवं तकरा जगह पर भूमण्डलीकृत दुनिया मे गाम-घरक करुण नियति केँ अनुरेखित करब कृष्णमोहन जीक राजनीतिक समझ छियनि। एकैसम शताब्दीक तेसर दशकक आरंभ मे जीवन-स्थिति तँ एहेन विकट बनि गेल छै जे हिनका सदति 'सोहारीक त'र सँ बजार हुलकी' दैत देखार दै छनि। अइ विध्वंसक वास्तविकताक आगू हिनक कवि बेसी आशावादी बन' मे समर्थ नइँ छनि, मुदा किछु बरख पहिने हकार बनिक' जे दुख लोकक जीवन मे प्रवेश कयने छल ओकर चाँगुर सँ दकचल समय पर अपन रेख खिंचबाक प्रयत्न अइ संग्रहक कविता मे लक्षित कयल जा सकैत अछि। दूरसंचारक विस्फोटक कारणें आइ जीवनक सब क्षेत्र मे एक टा अरुचिकर एकरूपता व्याप्त अछि, जइ सँ कवितो बचल नहि अछि। बिनु अनुभवक एक टा रेडीमेड काव्यबोध प्राय: कविक रचना मे हेलैत देखार दैत अछि। खुशीक बात ई जे कृष्णमोहन झा 'मोहन' अनुभूत संसार सँ अपन अभिव्यक्ति केँ मार्मिक ओ प्रामाणिक बनबैत छथि एवं समकालीन मैथिली कविता केँ अपना तरहें समृद्ध करैत छथि। —कृष्णमोहन झा, सिलचर
Pushpanjali
- Author Name:
Arunima Sharma
- Book Type:

- Description: "साधारण भाषा में कहें तो पाँच वि, यानी विरह, विछोह, विराग, विद्रोह या वियोगावस्था में मन की भावनाएँ जब लयबद्ध होकर प्रस्फुटित होती हैं तो कविता अवतरित होती है। प्रतिदिन के ऊहापोह वाली दिनचर्या में मुझे इतनी फुरसत तो नहीं मिलती कि मैं कुछ लिखूँ या पढ़ूँ, पर जब भी ज्यादा एकाकीपन महसूस होता है या मन खुश होता है तो उन भावनाओं को मैं अवश्य ही शब्दों का जामा पहना देती हूँ। तब ‘वक्त के आईने में जिंदगी’, ‘कौन आया था’, ‘आत्मचिंतन’ जैसी गूढ़ एवं दार्शनिकता से भरी कविताओं की रचना होती है। मेरी कुछ कविताएँ, जैसे ‘पेड़ लगाओ, शहर बचाओ’, ‘पनिहारिन’, ‘छात्र या बेटियाँ’ किसी के आग्रह पर लिखी गई हैं। इसी तरह ‘गरमी का मौसम’, ‘समय’, ‘कुछ लिखने को है’, ‘घना कोहरा’, ‘तुम आ जाओ’, ‘फेसबुक’, ‘कश्मीर’, ‘वक्त नहीं है’, ‘सहयात्री एवं झाँसी की रानी’ इत्यादि की रचना भी परिस्थितिजन्य हुई है। ‘गंगा’ तो गंगा की उद्दाम और शांत लहरों को देखकर लिखी गई है। यह छोटी सी भूमिका है मेरी पुष्पांजलि की विभिन्न कडि़यों की, लेकिन मेरी अपने सुधी पाठकों से विनम्र आग्रह है कि वे मेरे एक-एक पुष्प के मकरंद का रसास्वादन यह जानते हुए करें कि लेखिका न तो साहित्य की प्राध्यापिका है और न ही उसमें पी-एच.डी.। मैं मूलतः विज्ञान की छात्रा रही हूँ, लेकिन कला एवं साहित्य से अपने विशेष जुड़ाव को छिपा भी नहीं पाती हूँ। —अरुणिमा शर्मा
Samudra Se Lautenge Ret Ke Ghar
- Author Name:
Amey Kant
- Book Type:

- Description: collection of poems
Oak Mein Boonden
- Author Name:
Zabir Hussain
- Book Type:

-
Description:
जाबिर हुसेन की कथा डायरियाँ अपने समय की बेरहमी से रू-ब-रू कराती हैं। सच्चाई की परतें खोलती हैं। उसी प्रकार, उनकी कविताएँ भी समाज की विसंगतियों से तकरार करती हैं। वो अपने कथ्य, लहज़े और डिक्शन से पाठकों को सम्मोहित करने की कोशिश नहीं करते।
उनकी तहरीरों में वर्तमान समय अपनी बारीकियों के साथ उभरता है। लेकिन, वो इसे किसी कटुता के दबाव से गम्भीर नहीं बनाते। सहजता उनकी कविताओं की वास्तविक पहचान है।
‘ओक की बूँदें’ उनका चौथा काव्य-संग्रह है। एक प्रकार से, यह संग्रह हाल ही में प्रकाशित उनकी काव्य-पुस्तक ‘कातर आँखों ने देखा’ का सृजनात्मक विस्तार है।
जाबिर हुसेन कविताओं में अपने दीर्घ सामाजिक सरोकारों के प्रति सम्मान का जो सूक्ष्म और मर्मस्पर्शी अहसास भरते हैं, वो बेहद अनोखा है। वर्तमान संग्रह की कविताएँ इस कथन पर मुहर लगाती हैं।
Thoda-Thoda Punna Thoda-Thoda Paap
- Author Name:
Kedar
- Book Type:

-
Description:
परिपक्व जीवन-अनुभवों और भाषा की गहरी समझ के साथ लिखी गई ये कविताएँ लोकजीवन की आत्मीय छवियों और सामाजिक सरोकारों से उपजी ज़िम्मेदार दृष्टि की परिचायक हैं।
केदार जानते हैं कि ‘एक पूरी ज़िन्दगी लिखना नहीं ठट्ठा-हँसी है / खीर है टेढ़ी’—ये कविताएँ ज़िन्दगी को लिखने के इसी कठिन उद्यम से निर्मित हुई हैं। इन कविताओं का कवि किसी धारा से बाँधा हुआ नहीं है। अनुभूति की प्रामाणिकता और परिवेश की पुनर्रचना केदार के काव्यात्म को एक सघन आयाम देते हैं। बचपन से लेकर जीवन के विभिन्न चरणों के विशिष्ट अनुभव इन कविताओं में उतरे हैं तो बतौर मनुष्य स्वयं से साक्षात्कार से लेकर समाज की स्थूल परिधियों और वहाँ मौजूद विसंगतियों तक उनकी दृष्टि जाती है।
‘सर्कस’, ‘होमवर्क’ और ‘कक्षा’ जैसी पारदर्शी कविताएँ जो बचपन का उत्सव मनाती हुईं हमें अपने सहज छन्द-प्रवाह से निर्भार करती हैं तो ‘नसीहत’ और ‘चिट्ठीरसैन’ जैसी कविताएँ हमें सोच के एक भिन्न और गम्भीर स्तर पर ले जाती हैं।
‘एक-एक शब्द की / चुकानी पड़ती क़ीमत / बहुत जलता लहू / हाथ, उस दिन ख़ाली हो जाता / शब्दों में जिस दिन कुछ / उतरता’—कहने वाले केदार अभिव्यक्ति का दायित्व भी जानते हैं और मूल्य भी।
Nind Thi Aur Raat Thi
- Author Name:
Savita Singh
- Book Type:

-
Description:
‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में एक स्तर पर जहाँ सविता सिंह के उन सरोकारों और विश्व-दृष्टि की निरन्तरता है जिनके कारण पिछले संग्रह ‘अपने जैसा जीवन’ को विपुल सराहना मिली, तो अन्य स्तरों पर उस अनूठे और स्वाभाविक विकास की अद्भुत छवियाँ भी हैं जिसकी जड़ें हमारे संश्लिष्ट यथार्थ में बसती हैं। पिछली सदी के नवें दशक में काव्य-सक्रियता की शुरुआत करनेवाली सविता सिंह की रचनाओं ने स्त्री-विमर्श के गहरे आशयों से संयुक्त सांस्कृतिक बोध के लिए हमारी भाषा में नई जगह बनाई है और हिन्दी कविता के समकालीन सौन्दर्यशास्त्र को सम्भावना के नए इलाक़े में पहुँचाया है, यह कहना अतिकथन नहीं लगता क्योंकि न्याय, शक्ति और क्षमता के लिए संघर्ष करनेवाली नई स्त्री के अनुभवों, स्वप्नों और सामर्थ्य से पूर्ण होती ये कविताएँ न सिर्फ़ नई उम्मीदों की तरफ़ जाती हैं, बल्कि एक प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक क्षतिपूर्ति का भरोसा भी दिलाती हैं।
‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में आकुल यथार्थ और स्वप्नमयता का द्वन्द्व है जिसकी गतिमानता हमारे समय के मानवीय मूल्यों वाले यथार्थ को विकृत करनेवाली या कि उसके रूपों को धुँधला करनेवाली ताक़तों के ख़िलाफ़ बड़ी सावधानी से अपना काम करती है। ये कविताएँ काफ़ी कुछ तोड़ती हैं, लेकिन तोड़ने के पश्चात् या कई बार ज़रूरत होने पर उसके साथ-साथ ही, रचती भी चलती हैं। इस दुहरी ज़िम्मेदारी वाली सक्रियता के ज़रिए सविता सिंह की कविताएँ हिन्दी जाति के सामूहिक मन का, उस मन के मर्म का, पुनर्संस्कार करती हैं—आत्मविश्वास से दीप्त विनम्रता के साथ, जिसमें दृष्टि की सफ़ाई और उद्देश्य की दृढ़ता प्रभुतावादी सत्ताओं के वर्चस्व को ही नहीं, कई बार उनके छल-भरे उदार-भाव को भी नेस्तनाबूद करने पर आमादा दीखती हैं।
‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में पीड़ा और अवसाद का भाव भी दम तोड़ता आख़िरी अहसास नहीं है, बल्कि अपने आवेग-संवेग से हमें आत्मा के उस सूने में ले जाता है जहाँ शायद हम कभी गए न थे और सच के वे बिम्ब पाए न थे जो अचानक ख़ुद को वहाँ प्रकट करने लगते हैं। इन कविताओं में प्रकृति, समय के स्त्रीकरण और ऐसी ही अन्य प्रविधियों के माध्यम से अपने ‘आत्मचेतस आत्मन्’ के आविष्कार की कोशिश है।
‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में स्त्री-विमर्श की तर्कशीलता का काव्यात्मक आभ्यन्तर, स्त्री-अस्मिता की पीड़ा, उदग्र ऐन्द्रीयता, सान्द्रता और संघर्ष सहजता की जिस ज़मीन पर उजागर हुए हैं, वह सचमुच नई खोज और आश्वस्ति की ज़मीन है।
Nazir Banarasi Ki Shayari
- Author Name:
'Nazeer' Banarasi
- Book Type:

-
Description:
यह ‘कविता की दुनिया में उर्दूमुखी हिन्दी और हिन्दीमुखी उर्दू के अकेले कवि के रूप में सबसे अधिक’ जाने-पहचाने और, ‘राष्ट्रीयता और आपसी भाईचारे अर्थात् भारतीयता के प्रतिनिधि कवि-शायर’ नज़ीर बनारसी की प्रतिनिधि रचनाओं का संग्रह है।
‘नज़ीर’ की सबसे बड़ी ख़ूबी उनकी भाषा की जन-सम्प्रेषणीयता है। भाषा और ग़ज़ल की विशेषता पर स्वयं नज़ीर का दृष्टिकोण एकदम साफ़ था। उनका कहना था—“शायर होने के नाते ग़ज़ल मेरा मिज़ाज है, ग़ज़ल को मैं दीगर असनाफ़े सुखन (रचना-विधा) के मुक़ाबले में मुश्किल समझता हूँ। मेरा विचार है कि ग़ज़ल में इस बात की सम्पूर्ण योग्यताएँ विद्यमान हैं कि वह सम्पूर्ण विचार और तसव्वुरात को अच्छी तरह और आसानी से पेश कर सके, क्योंकि इसका दामन काफ़ी फैला हुआ है।”
ज़ाहिर है कि इस किताब में उनकी उन सभी ग़ज़लों को ले लिया गया है, जिन्हें वे ख़ुद भी अहम मानते थे और उनके चाहनेवाले भी। इसके अलावा वे नज़्में भी यहाँ दे दी गई हैं, जिनसे उनका वैचारिक पक्ष साफ़ होता है।
गंगा प्रदूषण, आतंकवाद और फ़िरकापरस्ती आज भी ज्वलन्त समस्याएँ हैं। इन पर उनका नज़रिया ‘गंगा प्रदूषण’, ‘कैसे-कैसे ज़ेहन को फ़िरक़ापरस्ती खा गई’, ‘फ़िरक़ापरस्ती का चैलेंज’ और ‘फ़िरक़ापरस्ती के चैलेंज का जवाब’ में देखा जा सकता है। वाराणसी में बुनकरों की अलग तरह की समस्या है। ‘इस कटौती की मैयत उठाएँगे हम’ तथा ‘कटौती का दसवाँ’ के माध्यम से इस समस्या पर भी जिस तरह से चर्चा की गई है, उससे समाधान भी दिखाई देता और नज़ीर का एक्टीविस्ट चेहरा भी सामने आता है।
राष्ट्रीयता और आपसी भाईचारे का सन्देश तो क़दम-क़दम पर मिलता ही है। यही नज़ीर का वास्तविक चेहरा है, यही उनकी चिन्ता भी है और चिन्तन भी।
Aur Anya Kavitayen
- Author Name:
Vishnu Khare
- Book Type:

-
Description:
विष्णु खरे की कविताएँ हिन्दी भाषा के सामर्थ्य को कई तरह के विषयों में ले जाकर विस्तृत और स्थित करती हैं। उनमें महाभारत से आज के यथार्थ का वृहत् वितान बनता है। वाक्य-विन्यास में यदि शाब्दिक लाघव है, तो शब्दों में भाषायी अर्थ-गहनता। दोनों पर अद् भुत पकड़ और चुस्त अन्तर्गतियाँ हैं : ठहरी गहराइयाँ हैं तो पाँव उखाड़ देनेवाला प्रवाह भी।
खरे की कविता के दो स्पष्ट ध्रुवान्त बनते हैं। एक तो उस प्रकार की कविताएँ हैं, जो मौजूदा यथार्थ की भीड़ में कन्धे रगड़ती ही चलती हैं; दूसरी वे कविताएँ, जो हमें अनुभवों की अधिक अमूर्त शक्तियों का अहसास कराती हैं। दोनों के बीच फ़ासले हैं, किन्तु विरोध नहीं—यह आभास उनके काव्य-बोध को एक जटिल संगति देता है और अनुभूतियों के एक ज़्यादा बड़े क्षितिज की पहचान कराती है।
नैरेशन या वर्णन-विवरण की अनेक विधियों को विष्णु खरे ने अपनी कविताओं में कई तरह से इस्तेमाल किया है—इस बात को सही तरीक़े से लक्षित किया जाना चाहिए। एक अनोखा प्रयोग उनकी मिथकीय और ऐतिहासिक कविताओं में देखा जा सकता है। ‘महाभारत’ प्रसंग में रिपोर्ताज शैली का इस्तेमाल कविता, मिथक और मौजूदा यथार्थ को एक दुर्लभ त्रिकोणात्मक तनाव देता है।
—कुँवर नारायण
Kaifiyat
- Author Name:
Kaifi Azmi
- Book Type:

-
Description:
अपने समकालीन श्रेष्ठ कवियों में कैफ़ी आज़मी का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। कैफ़ी ने प्रगतिशील उर्दू कविता का माथा बहुत ऊँचा किया है और उसको बहुत शक्तिसम्पन्न बनाया है।
फ़ैज़ की नज़्मों में ग़ज़ल की-सी लाक्षणिकता, शिल्प-लाघव और प्रतीकों के व्यंग्यार्थ मिलते हैं; इसीलिए कुछ और भी, विषम वर्ग संघर्ष झेलनेवालों की कसक, पीड़ा और उम्मीद की चमक...जैसे चिंगारियाँ उड़ती हों...अपनी त्रासदिक मोहिनी से हमें विकल कर देती हैं। या मख़दूम...मख़दूम मुहीउद्दीन का अपना खरा समर्पित व्यक्तित्व अनायास ही हर इन्क़िलाबी का प्रतिनिधि व्यक्तित्व-सा बन जाता है, और तब शायरी की ज़मीन से वह कुछ ऊपर उठ जाता है...शायरी की ज़मीन को भी शायद कुछ ऊपर उठाते हुए।
कैफ़ी का अन्दाज़-ए-बयाँ कुछ और है। इन सबों से न्यारा। वह भावनाओं की पवित्रता, मुहावरे की शुद्धता और भाषा के स्वाभाविक सौन्दर्य और सौष्ठव और इनकी परम्परा की ख़ूबसूरती को बरक़रार रखते हुए, एक आम दर्दमन्द इनसान से एक आम दर्दमन्द इनसान की तरह मिलता है...अपनी कविताओं में...एक जाने-पहचाने रफ़ीक़ और दोस्त की तरह...बिलकुल हमारे दिल की बातों को गुनगुनाते हुए, कुछ हमारे ही दिल के लहज़े में। और सबसे बड़ी बात : उसके पास, इन सारी कैफ़ियत में, एक साफ़ दृष्टि और साफ़-स्पष्ट दिशा है...कि वह हमें कभी नहीं भटका सकता! हम आश्वस्त हैं।
—शमशेर बहादुर सिंह
Jeene Ke Liye Zamin
- Author Name:
Atma Ranjan
- Book Type:

- Description: आत्मा रंजन की ये कविताएं जीवन की उन लुकी छिपी संभावनाओं को बचाने की कविताएँ हैं जिनमें उड़ाने हैं, बीज के छतनार वट–वृक्ष में बदलने की संभावनाएं हैं। यह एक ऐसी आग की कविता है जिससे जलने की नहीं पकने की गंध आती है। जो मनुष्य की रोटी और रोशनी से जुड़ी है। आत्मा रंजन की कविता वस्तुतः जीवन की बहुत साधारण चीज़ों और बहुत साधारण और सामान्य लगती क्रियाओं में नये अर्थ तलाश करती है। वह साधारणता में छिपी असाधारणता को ढूंढ लेती है। वह स्पर्श और थपकी में लड़ने के हौसले को देख लेती है, क्योंकि वह थपकी के बीच आटे की लोई के रोटी के आकार में बदलने की क्रिया को लक्ष्य कर सकती है। यही कारण है कि वह जड़ों के जड़ हो गये या मान लिए गये अर्थ से अलग उसमें छिपी ऊर्जा को देख भी सकती है और समझ भी सकती है। यह एक ऐसी कविता है जो बार बार कुचले जाने के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने वाली घास को पहचानती है। इस कविता को किसी भी चीज़ के किसी अन्य चीज़ में होने की आकांक्षा नहीं है, वह अपने होने में ही चीज़ों के सुंदर होने को देख सकती है। यह कविता बंद पड़े दरवाज़ो पर साँकल की तरह दस्तक देती है। यह हमारे समय की विडंबनाओं और विद्रूपों के ख़िलाफ़ न केवल प्रतिरोध की बल्कि एक लगातार जूझते व्यक्ति की कविता है। यह कविता सबके जीने के लिए ज़मीन की आकांक्षा की कविता है। इसमें अपनी ज़मीन और अपनी भाषा की गंध है। झूंंब, हूल, कुटुवा, गाडका, बियूल की टहनियां जैसे अनेक स्थानीय संदर्भ हमारी भाषा में कुछ नया जोड़ते हैं। इन कविताओं में हमारे समय के बहुत सारे सवाल, महामारी से उपजे संकट और नफ़रत की राजनीति से बढ़ रही हिंसा, बाज़ारवाद और यूज़ एंड थ्रो की संस्कृति के अनेक चेहरे उजागर होते हैं। ये कविताएं न होने में होने की संभावनाओं को देखने की कविताएं हैं। – राजेश जोशी
Ladkiyaan Hain To
- Author Name:
Rajendra Prasad Pandey
- Book Type:

- Description: राजेन्द्र प्रसाद पांडेय की कविताओं की दुनिया काफी बड़ी और वैविध्यपूर्ण है। उनमें मनुष्य से लेकर पशु-पक्षियों और अन्य प्राणियों के प्रति भी संवेदना प्रकट हुई है। उनमें सरकारी योजनाओं की निरर्थकता और जनता की स्वार्थ-भावना का भी चित्रण हुआ है। ‘अधबना पुल, ईंटें और पुलघाट’ उनकी ऐसी ही कविता है, जिसमें व्यवस्था की नीतियों का पर्दाफाश हुआ है। ‘परबाबा की विदाई’ में मनुष्य की जिजीविषा, इच्छाओं और सद् विचारों का अच्छा चित्रण हुआ है। ‘सुख के दुख’, ‘कहाँ हो नन्दिता कँवर’, ‘बीज’, ‘दुख है पहचान का मरना’, ‘संस्कार युद्ध’, ‘लालन-पालन’, ‘नाच रही हो माँ’, ‘बेटी’, ‘रक्षाबन्धन पर दीदी को प्रणाम’, ‘पीपल को प्रणाम’ आदि उनकी बेहतरीन कविताएँ हैं। ये कविताएँ एक तरफ मानवीय मूल्यों और रिश्तों को सींचती हैं तो दूसरी तरफ हमारे समय की शिनाख्त करती हैं। साथ ही हमें जगाती और सचेत भी करती हैं।
Modern Abla
- Author Name:
Lata Haya
- Book Type:

- Description: Book
Lams
- Author Name:
Monika Singh
- Book Type:

-
Description:
ग़ज़ल एक विधा के रूप में जितनी लोकप्रिय है, ग़ज़ल कहनेवाले के लिए उसे साधना उतना ही मुश्किल है। दो मिसरों का यह चमत्कार भाषा पर जैसी उस्तादाना पकड़ और कंटेंट की जैसी साफ़ समझ माँगता है, वह एक कठिन अभ्यास है। और अक्सर सिर्फ़ अभ्यास उसके लिए बहुत नाकाफ़ी साबित होता है। यह तक़रीबन एक ग़ैबी है जो या तो होती है या नहीं होती।
मोनिका सिंह की ये ग़ज़लें हमें शदीद ढंग से अहसास कराती हैं कि उन्हें ग़ैब का यह तोहफ़ा मिला है कि ज़ुबान भी उनके पास है और कहने के लिए बात भी। और बावजूद इसके कि ये उनका मुख्य काम नहीं है, उन्होंने ग़ज़ल पर ग़ज़ब महारत हासिल की है। अपने भीतर की उठापटक से लेकर दुनिया-जहान के तमाम मराहिल, ख़ुशियाँ और ग़म वे इतनी सफ़ाई से अपने अशआर में पिरोती हैं कि हैरान रह जाना पड़ता है। शब्दों की किसी बाज़ीगरी के बिना और बिना किसी पेचीदगी के वे अपना मिसरा तराशती हैं जिसमें लय भी होती है और मायने भी।
‘यह सबक मुझको सिखाया तल्ख़ी-ए-हालात ने, साफ़-सीधी बात कहनी चाहिए मुबहम नहीं।' मुबहम यानी जो स्पष्ट न हो। यही साफ़गोई इनकी ग़ज़ल की ख़ूबी है, और दूसरे यह कि ज़िन्दगी से दूर वे कभी नहीं जातीं। वे पूछती हैं—‘जिस मसअले का हल ज़माने पास है तेरे, क्यूँ बेसबब उसकी पहल तू चाहता मुझसे।’ दिल के मुआमलों में भी उनके ख़यालों की उड़ान अपनी ज़मीन को नहीं छोड़ती। दर्द का गहरा अहसास हो या कोई ख़ुशी उनकी ग़ज़ल के लिए सब इसी दुनिया की चीज़ें हैं। ‘ढल रहा सूरज, उसे इक बार मुड़ के देख लूँ, रात लाती कारवाँ ज़ुल्मत भरा वीरान सब/ख़ौफ़ आँधी का कहाँ था, गर मिलाती ख़ाक में, बारहा मिलते रहे मुझसे नए तूफ़ान सब।’
उम्मीद है हिन्दी पाठकों को ये ग़ज़लें अपनी-सी लगेंगी।
Sapanon Ko Marane Mat Dena
- Author Name:
Bhawana
- Book Type:

- Description: collection of poems
Namvar Ke Notes
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
आज के विमर्शवादी दौर में नामवर जी के कक्षा-व्याख्यान शास्त्र-निर्माण की भारतीय परम्परा के चिह्न की तरह हैं।
भारतीय आचार्यों के प्रति उनका अनाक्रान्त भाव विस्मित करता है। वे स्वाभाविक रूप से उन स्थानों को बताते हैं जहाँ काव्यशास्त्र की परम्परा में उलट-फेर हुआ है। दूसरे जहाँ बचकर निकलते हैं, नामवर जी वहीं रुकते हैं।
पश्चिम में इंडोलॉजी के प्रति आकर्षण रहा है। इसमें काव्यशास्त्र भी एक है। इस आकर्षण के वस्तुगत कारण कौन से हैं? विचार करने पर स्पष्ट होता है कि वहाँ काव्यशास्त्र सम्बन्धी कुछ प्रस्तावनाएँ, आनुषंगिक चर्चाएँ ही रही हैं। भारतवर्ष में काव्यशास्त्र एक विधिवत् शास्त्र रहा है।
भारतीय काव्यशास्त्र शास्त्र-निर्माण की एकान्तिक साधना का फल नहीं है।
संस्कृत काव्यशास्त्र पर विभिन्न अनुशासनों का प्रभाव और अपने को असाधारण सिद्ध करने की बेचैनी दोनों प्रत्यक्ष हैं।
—इसी पुस्तक से
Aurat Ki Janib
- Author Name:
Dhirendra Kumar Patel
- Book Type:

- Description: इस संग्रह की कविताओं में ‘स्त्री’ को मानवीय पक्ष में उजागर करने के लिए उनके जीवन का चित्रण यथार्थ रूप में गहरे भावबोध से हुआ है। आज स्त्री विमर्श ने स्त्रियों के मौन को तोड़ा है। वे मुखर हुई हैं। उनका दबा क्रोध, आवेश पीड़ा स्वानुभूति के धरातल पर अभिव्यक्त हो रहा है, साथ ही स्त्री जीवन के लिए निर्धारित मानक और मूल्य भी बदलाव की सहज माँग करने लगे हैं। सबसे बड़ी बात ‘पैदा हुई औरत’ और ‘बनायी गयी औरत’ का भेद स्पष्ट होने लगा। इस स्पष्टता ने औरतों की एक नयी समझ विकसित की है। वे स्त्रीजनित तमाम समस्याओं, कुण्ठाओं और हिंसा को मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक स्तर पर समझने लगीं। वे समझने लगीं कि औरत के प्रेम की ताकत को वैसे शरीर के दायरे में सीमित कर दिया गया है। आख़िर पुरुष वर्ग ने शुरू से नारी के गुणों को लेकर उसकी इतनी सराहना कर दी है कि नारी उसी को अपना सर्वस्व मानने लगी। उसी के आधार पर जीवन जीती चली आ रही है। प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ स्त्री के पक्ष में समाज से संवाद है।
Pani Jaisa Des
- Author Name:
Vinay Kumar
- Book Type:

-
Description:
पानी जैसी तरल और पारदर्शी ये कविताएँ पानी के ही बारे में हैं, पानी के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में; और इस तरह पृथ्वी पर पानी के सहारे जीने वाले मनुष्य, और उसकी उत्तरजीविता के बारे में भी।
यह अकसर नहीं होता कि कोई एक तत्त्व कवि की चेतना में इस तरह पैवस्त हो जाए कि एक पूरी की पूरी पुस्तक उससे लिखवा ले, विनय कुमार के साथ यह दूसरी बार हुआ है। ‘यक्षिणी’ के बाद इस बार वे पानी पर ठहरे हैं, जो जीवन का आधार है, और सभ्यता की सबसे ज्यादा मार भी उसी पर है।
ये कविताएँ पानी के दुख की कविताएँ हैं जिसमें मनुष्यों के दुखों के प्रतिबिम्ब भी दिखाई देते हैं। इनमें तालाब हैं, नदियाँ हैं, उनके किनारों पर उगी-बसी जीवन-आकांक्षाएँ और हताशाएँ हैं। मंत्रों जैसी अखंडता में अनुस्यूत ये कविताएँ गहरे वैचारिक आलोड़न से उपजी हैं जिनका एक सिरा पर्यावरणीय सरोकारों की वर्तमानता से जुड़ा है और दूसरा सिरा जल की तात्त्विक अनंतता से।
Bichhdal Kono Pireet Jakan
- Author Name:
Vidyanand Jha
- Book Type:

- Description: Collection of Maithili Poems. मनुष्य केँ आ जीवनक आन सब रूप केँ जे गछाडऩे अछि आपदा ओ विपदा सभ तकर संताप समाएल अछि एहि संग्रहक अनेक कविता मे। निरंतर आभासी होइत जाइत एहि समय मे यथार्थक ठोस ऐन्द्रिक बोध खिया रहल अछि आ ताहि सँ जीवन मे कएक तरहक मारूक कमी ओ दिक्कत सभ आबि रहल अछि। जीवन ओ जगतक ठोस विवरण सभ सँ भरल-पुरल एहि संग्रहक कविता सभ थोड़बहुत काट करैत अछि एहि बातक। आ संगहि जगजियार होइत जाइत अछि एहि सँ जीवनक त्रासद विसंगति ओ विडम्बना सभ; शोषण ओ अन्यायक मर्मांतक रूप सभ; आ इतिहासक दारूण संत्रास सभ। जे किछु शुभ ओ सुंदर बचल अछि जीवनक व्यापक ओ गझिन तानीभरनी मे ताहि मे सँ किछु अनूप जोगाओल गेल अछि एहि संग्रह मे। आ बीच-बीच मे छिटकैत चलैत अछि अस्तित्वक स्वरूपक अबंचक कि रोमांचित कर’वला सूक्ष्म बात सभ सेहो। प्रकृति ओ मनुष्य, अपन संगिनी ओ रूपसी मिथिला, तथा भाषा ओ कलाक विभिन्न रूप सँ जे 'पिरीत’ छनि कवि केँ ताहि सँ डगडग करैत कविता सभ ही केँ जुड़ा दैत अछि, जीवन मे आस्था केँ टेक दैत अछि आ संघर्षक लेल संबल सेहो। दनुफक फूल जकाँ सादा, साफ, हल्लुकओ खलसैत भाषा ओ शिल्प मे रचल गेल एहि संग्रहक कविता सभ सहजहि जीवनक पिरितिया बना दैत अछि। गहन शुभाशंसाक संग हम हलसि क’ एकर स्वागत करैत छी। उत्सवक घड़ी थिक ई मैथिली कविताक लेल। —हरेकृष्ण झा
Urvashi Punah
- Author Name:
Puja Saxena
- Book Type:

- Description: Poems
Pratinidhi Shairy : Akbar Allahabadi
- Author Name:
Akbar Allahabadi
- Book Type:

-
Description:
1851 की जंगे–आज़ादी में हिन्दुस्तानियों की हार के बाद उर्दू अदब में शुरू होनेवाले रेनासाँ में ‘अकबर’ इलाहाबादी का नाम सफ़े–अव्वल के शायरों में गिना जाता है। धर्म पर आधारित इस रेनासाँ की सारी विशेषताएँ ‘अकबर’ के यहाँ पूरी स्पष्टता के साथ देखी जा सकती हैं।
‘अकबर’ के कलाम की एक विशेषता और भी है। उन्होंने अपनी शायरी की शुरुआत संजीदा रवायती शायरी के साथ की थी। वही गुलो–बुलबुल, वही साग़ रो–मीना, वही शीरीं–फ़रहाद, वही शमा और परवाना रवायती शायरी के सारे प्रतीक ‘अकबर’ की शुरुआती शायरी में नज़र आते हैं। लेकिन अकबर इसी रवायत पर क़ायम रहे होते तो तय है कि वे मामूली दर्जे के सैकड़ों शायरों में बस एक होते।
लेकिन ख़ुशनसीबी कि ऐसा नहीं हुआ। जल्द ही अकबर ने अपनी एक अलग राह बना ली और वे हास्य–व्यंग्य के पहले प्रमुख शायर के रूप में जल्वागर हुए। यूँ तो जाफ़र, मीर, सौदा, ग़ालिब और दूसरे शायरों के यहाँ हास्य और व्यंग्य की सुन्दर छटाएँ देखने को मिलती हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी बाक़ायदा हास्य–व्यंग्य का शायर नहीं कहा जा सकता। ये ‘अकबर’ थे जिन्होंने उर्दू शायरी में अपनी बात कहने के लिए हास्य–व्यंग्य का सहारा लिया और एक ऐसी नई रवायत की बुनियाद डाली जो आज तक फल–फूल रही है।
विचारधारा के स्तर पर देखें तो पश्चिमी ज्ञान–विज्ञान और पश्चिमी सभ्यता का जितना भारी विरोध ‘अकबर’ के यहाँ दिखाई देता है, उतना किसी और शायर के यहाँ नहीं दिखाई देता। इसी तरह ‘अकबर’ धार्मिक और सामाजिक सुधार के भी विरोधी थे। बदलते हुए हालात में ‘अकबर’ की शिकस्त लाज़मी थी और कहीं हास्य के साथ और कहीं दु:ख के साथ उन्होंने अपनी इस शिकस्त का इज़हार भी किया है। लेकिन इस नकारात्मक पहलू के अन्दर जो सकारात्मक तत्त्व मौजूद हैं, सावधानी के साथ उनकी निशानदेही किए बिना ‘अकबर’ के साथ इंसाफ़ करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...