Harf Dar Harf
Author:
Kailash ManharPublisher:
Antika Prakashan Pvt. Ltd.Language:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 205
₹
250
Available
तुम्हारा खून तुम्हीं को पिलाया जाता है/तुम्हारा गोश्त तुम्हीं को खिलाया जाता है॥/काट कर टैक्स खज़ाने को भरा जाता है।/और फिर उसको ही विकास कहा जाता है॥/तुम्हारी खेतियाँ सरकार की अमानत हैं।/ तुम्हारे हाथों की मेहनत यहाँ जमानत हैं॥ /तुम्हारे पाँवों के सफर की कहाँ मंजि़ल है। /तुम्हारा दर्द सुने किसके पास वह दिल है॥ /तुम्हारी वोट से ज़्यादा कोई औकात नहीं। /वायदों से बड़ी मिलती कोई सौगात नहीं॥ /हरेक तरह की शहादत तुम्हीं को देनी है। /और बदले में बस फाकापरस्ती लेनी है॥/तुम भी हो मुल्क के बासिंदे तो उन्हें क्या?/तुम्हारे गम की लीडरों को भला क्या चिन्ता?/ये सियासत ही है आपस में तुम्हें लड़वाये।/ तुम कमाओ तो उसे भी ये सियासत खाये॥/ये जो जम्हूरियत की झूठी बातें करते हैं।/तुम ही मरते हो फसादी ये कहाँ मरते हैं॥/तुम अगर बात को समझो तो कोई बात बने।/तुम अगर होश में आओ तो कोई बात बने॥/ उठो इन्साफ की आवाज़ को बुलन्द करो।/नफरतों से भरे माहौल को अब बंद करो॥/उठो कि इंकलाब! जि़ंदाबाद बोलो तुम।/उठो कि फितरतों की सारी पोल खोलो तुम॥
ISBN: 9788193771334
Pages: 96
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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समकालीन हिन्दी कविता में अब एक काव्य-शैली का ही नाम है—लीलाधर जगूड़ी। जगूड़ी की इन कविताओं का सम्पर्क जताता है कि यथार्थ मनुष्य से भी प्राचीन है और कवि उसे हर बार अपने समय और स्थान की चेतना में सही दूरी रखकर अनावृत्त करता है। अपने ज़माने की संचार-भाषा को संकल्प से जोड़ने के बावजूद ये कविताएँ ‘बताती’ कम और ‘पूछती’ ज़्यादा हैं।
इन कविताओं में वैयक्तिक संवेदना ने भाषा को सांस्कृतिक चेतना के अधिक योग्य बनाया है। मानवकृत सभ्यता और इतिहास के बीच की बातचीत के लिए आदमी ही इन कविताओं का मुख्य आधार है। वही आदमी एक ‘सम्पूर्ण आदमी’ बन सकने के लिए तरह-तरह से अपनी सामुदायिक पहचान बनाता चलता है जो गाहे-बगाहे नियति के निरीह प्रसंग में अविश्वसनीय और अकेला दिखता है।
परिवेश ही जगूड़ी की इन कविताओं का मुख्य पात्र है। प्रत्येक स्थल पर यह महसूस होता रहता है कि हिंसा और युद्ध के बीच मानवीय श्रम के कई दूसरे रूप भी हैं जो उतनी ही तत्परता से भाषा का निर्माण करते हैं जितनी तत्परता से विचार व सौन्दर्य का। इन कविताओं में प्रवेश पाते ही हम अपने सामाजिक जीवन के एक-न-एक गहरे प्रसंग से जुड़ जाते हैं। समकालीन कविता में एक साथ कई स्तरों पर भाषा का ऐसा विकास दुर्लभ है।
Oak Mein Boonden
- Author Name:
Zabir Hussain
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जाबिर हुसेन की कथा डायरियाँ अपने समय की बेरहमी से रू-ब-रू कराती हैं। सच्चाई की परतें खोलती हैं। उसी प्रकार, उनकी कविताएँ भी समाज की विसंगतियों से तकरार करती हैं। वो अपने कथ्य, लहज़े और डिक्शन से पाठकों को सम्मोहित करने की कोशिश नहीं करते।
उनकी तहरीरों में वर्तमान समय अपनी बारीकियों के साथ उभरता है। लेकिन, वो इसे किसी कटुता के दबाव से गम्भीर नहीं बनाते। सहजता उनकी कविताओं की वास्तविक पहचान है।
‘ओक की बूँदें’ उनका चौथा काव्य-संग्रह है। एक प्रकार से, यह संग्रह हाल ही में प्रकाशित उनकी काव्य-पुस्तक ‘कातर आँखों ने देखा’ का सृजनात्मक विस्तार है।
जाबिर हुसेन कविताओं में अपने दीर्घ सामाजिक सरोकारों के प्रति सम्मान का जो सूक्ष्म और मर्मस्पर्शी अहसास भरते हैं, वो बेहद अनोखा है। वर्तमान संग्रह की कविताएँ इस कथन पर मुहर लगाती हैं।
Chalo Shanti Ki Or
- Author Name:
Susheela Agrwal
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Main Tumhara Hoon
- Author Name:
Muni Kshamasagar
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“अभी मुझे और धीमे/क़दम रखना है। अभी तो चलने की/आवाज़ आती है।” अपनी साधना-यात्रा में ऐसा सूक्ष्म आत्मालोचन करनेवाले सन्त-कवि क्षमासागर जी अपनी अनुभूतियों की काव्याभिव्यक्ति एवं सूक्ष्म टिप्पणियों में ऐसा कुछ कह जाते हैं कि पाठक भाव-विभोर होते-न-होते विचारोद्वेलित हो उठता है। अत्यन्त कोमलता के साथ वे मनुष्य की सांसारिकता को दर्पण के सामने सरका देते हैं। पाठक बिम्ब-प्रतिबिम्ब में स्वयं को पाकर, कवि पर रीझता हुआ विचलित हो उठता है।
मनीषी कवि, चिन्तक एवं विज्ञानविद् मुनिश्री क्षमासागर दिगम्बर वीतरागी मुनि हैं। सागर के
एक सम्भ्रान्त, धर्मनिष्ठ एवं सुसमृद्ध सिंघई परिवार में जन्मे वीरेन्द्र कुमार ने सागर विश्वविद्यालय से भूगर्भ विज्ञान में एम.टेक. की उपाधि प्राप्त कर, तपोनिष्ठ आचार्य
श्री विद्यासागर जी के आध्यात्मिक आलोक में, अपनी अविवाहित युवावस्था (23 वर्ष) में, गृह-त्याग कर दीक्षा अंगीकार कर ली थी। वीरेन्द्र कुमार ने नया नाम पाया था, क्षमासागर। गृहस्थावस्था में वे घर-भर के लाड़ले थे। जीवन में न कहीं निराशा थी, न हताशा। न कहीं कोई असफलता, न कोई विरक्तिप्रेरक कटु प्रसंग। स्वेच्छा और स्वप्रेरणा से आत्मकल्याण की ओर वे प्रवृत्त हुए थे।
Aawazon Ke Ghere
- Author Name:
Dushyant Kumar
- Book Type:

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अपने आप से, अपने परिवेश और व्यवस्था से नाराज़ कवि के रूप में दुष्यन्त कुमार की कविताएँ हिन्दी का एक आवश्यक हिस्सा बन चुकी हैं। आठवें दशक के मध्य और उत्तरार्ध में अपनी धारदार रचनाओं के लिए बहुचर्चित दुष्यन्त जिस आग में होम हुए, उसे उनकी रचनाओं में लम्बे समय तक महसूस किया जाता रहेगा।
‘आवाज़ों के घेरे’ दुष्यन्त कुमार का एक ज़रूरी कविता-संग्रह है। इसमें धुआँ-धुआँ होती उस शख़्सियत को साफ़ तौर पर पहचाना जा सकता है, जिसे दुष्यन्त कहा जाता है। समग्रत: ये विरोध की कविताएँ हैं लेकिन रचनात्मक स्तर पर कवि का यह विरोध व्यवस्था से अधिक अपने आप से है, जहाँ व्यक्ति न होकर वह एक वर्ग है—मुट्ठियों को बाँधता और खोलता। बाँधना, जो उसकी ज़रूरत है और खोलना, मजबूरी। एक प्रकार की निरर्थकता और ठहराव का जो बोध इन कविताओं में है, वह सार्थक और गतिशील होने की गहरी छटपटाहट से भरा हुआ है। स्पष्टत: कवि का यही द्वन्द्व और छटपटाहट इन कविताओं का रचनाधाय है, जिसे सहज और सार्थक अभिव्यक्ति मिली है।
दुष्यन्त लय के कवि हैं, इसलिए मुक्तछन्द होकर भी ये कविताएँ छन्दमुक्त नहीं हैं। साथ ही यहाँ उनके कुछ गीत भी हैं और बाद में सामने आई बेहतरीन ग़ज़लों की आहटें भी। संक्षेप में, यह संग्रह दुष्यन्त की असमय समाप्त हो गई काव्य-यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है।
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