Kaifiyat
Author:
Kaifi AzmiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
अपने समकालीन श्रेष्ठ कवियों में कैफ़ी आज़मी का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। कैफ़ी ने प्रगतिशील उर्दू कविता का माथा बहुत ऊँचा किया है और उसको बहुत शक्तिसम्पन्न बनाया है।</p>
<p>फ़ैज़ की नज़्मों में ग़ज़ल की-सी लाक्षणिकता, शिल्प-लाघव और प्रतीकों के व्यंग्यार्थ मिलते हैं; इसीलिए कुछ और भी, विषम वर्ग संघर्ष झेलनेवालों की कसक, पीड़ा और उम्मीद की चमक...जैसे चिंगारियाँ उड़ती हों...अपनी त्रासदिक मोहिनी से हमें विकल कर देती हैं। या मख़दूम...मख़दूम मुहीउद्दीन का अपना खरा समर्पित व्यक्तित्व अनायास ही हर इन्क़िलाबी का प्रतिनिधि व्यक्तित्व-सा बन जाता है, और तब शायरी की ज़मीन से वह कुछ ऊपर उठ जाता है...शायरी की ज़मीन को भी शायद कुछ ऊपर उठाते हुए।</p>
<p>कैफ़ी का अन्दाज़-ए-बयाँ कुछ और है। इन सबों से न्यारा। वह भावनाओं की पवित्रता, मुहावरे की शुद्धता और भाषा के स्वाभाविक सौन्दर्य और सौष्ठव और इनकी परम्परा की ख़ूबसूरती को बरक़रार रखते हुए, एक आम दर्दमन्द इनसान से एक आम दर्दमन्द इनसान की तरह मिलता है...अपनी कविताओं में...एक जाने-पहचाने रफ़ीक़ और दोस्त की तरह...बिलकुल हमारे दिल की बातों को गुनगुनाते हुए, कुछ हमारे ही दिल के लहज़े में। और सबसे बड़ी बात : उसके पास, इन सारी कैफ़ियत में, एक साफ़ दृष्टि और साफ़-स्पष्ट दिशा है...कि वह हमें कभी नहीं भटका सकता! हम आश्वस्त हैं।</p>
<p>—शमशेर बहादुर सिंह
ISBN: 9788126720255
Pages: 379
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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संजय कुमार ‘कुन्दन’ की शायरी किसी भी रूप में जब मेरे सामने आई तो मुझे यह समझने में बड़ी दुश्वारी हुई कि वे शायरी के हवाले से दिल पर बीतनेवाली वारदात का ज़िक्र कर रहे हैं या ये तमाम वारदातें तहरीर की शक्ल में संजय कुमार ‘कुन्दन’ को ख़ुद लिख रही हैं। ये वो सच्ची शायरी है जिसे समझने के लिए आपको दिल के आँगन में उतरना नहीं पड़ता, बल्कि दिल की पहली सतह पर ये अपनी जगह बनाती हैं, जबकि अपनी शायरी के ऐब को छुपाने के लिए लोग तरह-तरह के रंगो-रोग़न का इस्तेमाल करते हैं। चाहे ‘एक लड़का मिलने आता है...’, ‘उसको भी डर है’, ‘ख़याल कोई क़र्ज़ है’ हो या ‘तस्वीर’ ऐसा लगता है जैसे उन्होंने शब्दों के सहारे उन तमाम कैफ़ियतों की तस्वीर पेश कर दी है जहाँ बड़े-बड़े चित्रकार नाकाम होने पर उसे ऐब्सट्रैक्ट आर्ट का नाम दे दिया करते हैं। और शायरी इतनी आसान, इतनी सहज लेकिन दिल को काट देनेवाली है कि इसकी चुभन को हम भुला नहीं पाते।
‘एक लड़का मिलने आता है...’ में ‘नींद की बदगुमानी’, ‘हाथों में लम्स की ठंडक’, ‘शाम की ख़ुशबू’, ‘खिलखिलाहट का बचपन’, ‘रोशनी की धड़कन पर सियाही का ख़ौफ़नाक हमला’ और ‘लरज़ते काँपते क़दमों की आहट’ ही नहीं है, बल्कि ‘महीन खद्दरों में क़ैद बड़े-बड़े तोंद की क़लम से लिखी कहानियों को जलाकर ख़ाक कर देने’ का अज़्म, ‘कारख़ाने के वहशी तगो-दौ में राख में दबी हुई आग की किरचियों को कुदेरने’ की मशक़्क्त और ‘कितने शहरों, कितने बाग़ों, कितनी मिट्टी से होकर गुज़रने वाले आवारा लम्हों’ का कर्ब भी शामिल है। ऐसा महसूस होता है शायरी संजय कुमार ‘कुन्दन’ की महबूबा है जिसने ज़िन्दगी के इस लम्बे, वीरान और डगमगाते हुए क़दमों पर उसे और उसके पढ़नेवालों को सहारा दिया है। मुस्तकिल तरक़्क़ी की मंज़िलों को तय कर रही इस शायरी की नज़र एक शेर :
‘न थक के बैठ कि तेरी उड़ान बाक़ी
है ज़मीन ख़त्म हुई, आस्मान बाक़ी है।’
—शानुर्रहमान
Khule Mein Aawas
- Author Name:
Kamlesh
- Book Type:

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हिन्दी साहित्य की निरन्तर बढ़ती स्मृति-क्षीणता के चलते अगर कइयों को कमलेश नाम
से कुछ ख़ास याद नहीं आएगा तो इसमें अचरज नहीं होना चाहिए। स्वयं कमलेश को नहीं होगा, क्योंकि पिछले बीस-पच्चीस बरसों से वे कम लिखते, बहुत कम छपाते और साहित्य के दृश्य और आयोजनों से दूर रहे हैं। लेकिन इससे यह बात मिट नहीं जाती कि वे हमारी पीढ़ी और उसके तुरत बाद की पीढ़ी के गाथा-पुरुष रहे हैं। तब की युवा कविता पर एक आलोचक की तरह पहली क़लम मैंने कमलेश और धूमिल की कविता पर ही चलाई थी और उन्हें ‘तलाश के दो मुहावरे’ कहा था।
कमलेश ने कम लिखा और जितना लिखा उसे मुनासिब सख़्ती से ख़ुद जाँचा और उसका कम ही सार्वजनिक किया। उनके यहाँ ऐन्द्रियता और सामासिक स्मृति का जो संगुम्फन है, वह हममें से कई के लिए ईर्ष्या का विषय रहा है।... अपने व्यक्तित्व और रचना के प्रति भयावह और बेहद दिखाऊ आत्मरति के इस युग में कमलेश हमेशा कुछ कहते कम, बुदबुदाते अधिक रहे हैं। उनके यहाँ कम ही अधिक है। उनकी कविता बासी नहीं हुई है, दशकों पहले की होने के बावजूद और बावजूद इधर कविता के व्यापक अख़बारीकरण के। उनके यहाँ जो अनुगूँजें हैं, उनकी कविता में जो अन्तर्ध्वनियाँ हैं, वे आज भी हम जैसे सुनकर अभिभूत होते हैं और वे अक्सर अन्यत्र सुनाई नहीं देतीं।
—अशोक वाजपेयी; ‘जनसत्ता’; 05 अगस्त, 2007
Anjur Bhari Ijot
- Author Name:
Romisha
- Book Type:

- Description: आँजुर भरि इजोत रोमिशाक प्रेम सम्बन्धी कविता स्त्री आ मनुष्यक सामूहिक जीवन मे अस्तित्वक अही अविचल यथार्थक वास्तविक मूल्य तकैत अछि। प्रपंच सँ संचालित सामाजिक व्यवस्थाक प्रवंचित मनुष्यक समस्त अभिलाषा केँ हुनकर काव्य-नायिका अपन जाग्रत चेतना सँ देखै छथि, आ जीवन मे किछु महत्त्वपूर्ण करबा लेल व्याकुल रहै छथि। अपन उद्यम मे यत्र-तत्र-सर्वत्र समाजक बहुमुखी आघात सहैतो कखनहुँ हताश नइँ होइ छथि। हुनकर स्त्री, पशु मनोवृत्तिक हिंस्र, खूँखार, वेधक दृष्टि-घात अहर्निश सहिकए क्रमश: पकठोस आ सावधान समझ बना लै छथि। एहेन स्त्री परिवार केँ सुगठित करबा लेल एक-एक साँस लगबै छथि। समस्त कर्तव्यक पूर्ति करैत हुनका एतबा कचोट अवश्य होइ छनि जे समाज आ कि परिवार हुनकहु मादे सोचथि। कवयित्रीक ई अपेक्षा एक टा महत्त्वपूर्ण पक्ष केँ उद्घाटित करैत समाज केँ ई संकेत दैत अछि जे पारिवारिकताक रक्षा मे आ परिवारक गठन मे जीवन झोंकि देनिहारि स्त्रीक पहचान आ हुनकर मनोबलक संज्ञान लेब अनिवार्य अछि। सूर्य, चन्द्रमा, फूल, पवन, प्रकाश, प्रेम, मनुष्यता, नैतिकता, विवेकशीलता, कृतज्ञता आदिक प्रति मोहाविष्ट हएब; प्राकृतिक अवदान सँ आह्लादक रूपक गढ़ब, कविता मे मोहक आ बहुरंगी व्यंजना उपस्थित करब...तय करैत अछि, जे रोमिशा केँ मानवीय परिवेश लेल बड़ बेसी अनुराग छनि। इएह अनुराग हुनका जनसरोकारक दायित्व सँ बन्हने रखतनि, आ हुनकर रचनात्मकता केँ उत्कर्ष देतनि। —देवशंकर नवीन
Akaal Mein Saaras
- Author Name:
Kedarnath Singh
- Book Type:

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केदारनाथ सिंह की कविताओं का संग्रह ‘अकाल में सारस’ आज की हिन्दी कविता को एक सर्वथा नया मोड़ देने की सार्थक कोशिश है। इस संग्रह के साथ यह उम्मीद बनी रहेगी कि कविता अपनी जड़ों में ही फैलती है और उसी से प्राप्त ऊर्जा के बल पर वह अपने समय, परिवेश, आदमी के संघर्ष, प्रकृति में धडक़ती हुई जिजीविषा को उपयुक्त शब्द देने में कामयाब होती है। ‘अकाल में सारस’ में जनपदीय चेतना में रची-बसी भाषा की ऐन्द्रिकता, अर्थध्वनि, मूर्तता, गूँज और व्याप्ति को पहचानना उतना ही सहज है जितना साँस लेना। पर इस सहज पहचान में बहुत कुछ है जो उसी के ज़रिए जीवन की छिपी हुई या अधिक गहरी सच्चाइयों के प्रति उत्सुक बनाता है। एक तरह से देखें तो इन कविताओं की सरलता उस विडम्बनापूर्ण सरलता का उदाहरण है जो वस्तुओं में छिपे जीवन-मर्म को भेदकर देखने की अनोखी हिकमत कही जा सकती है।
‘अकाल में सारस’ में भाषा के प्रति अत्यन्त संवेदनशील तथा सक्रिय काव्यात्मक लगाव एक नए काव्य-प्रस्थान की सूचना देता है। भाषा के सार्थक और सशक्त उपयोग की सम्भावनाएँ खोजने और चरितार्थ करने की कोशिश केदार की कविता की ख़ास अपनी और नई पहचान है। प्रगीतों की आत्मीयता, लोक-कथाओं की-सी सरलता और मुक्त छन्द के भीतर बातचीत की अर्थसघन लयात्मकता का सचेत इस्तेमाल करते हुए केदार ने अपने समय के धडक़ते हुए सच को जो भाषा दी है, वह यथार्थ की तीखी समझ और संवेदना के बग़ैर अकल्पनीय है। केदार के यहाँ ऐसे शब्द कम नहीं हैं जो कविता के इतिहास में और जीवन के इस्तेमाल में लगभग भुला दिए गए हैं, पर जिन्हें कविता में रख-भर देने से सुदूर स्मृतियाँ जीवित वर्तमान में मूर्त हो उठती हैं। परती-पराठ, गली-चौराहे, देहरी-चौखट, नदी-रेत, दूब, सारस जैसे बोलते-बतियाते केदार के शब्द उदाहरण हैं कि उनकी पकड़ जितनी जीवन पर है उतनी ही कविता पर भी। ‘अकाल में सारस’ एक कठिन समय की त्रासदी के भीतर लगभग बेदम पड़ी जीवनाशक्ति को फिर से उपलब्ध और प्रगाढ़ बनाने के निरन्तर संघर्ष का फल है।
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