Sirf tum
Author:
Rashmi GuptaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
आज के दौर में कई रिश्ते बदल गए हैं। मानवीय रिश्ते ही नहीं, रोटी और भूख के रिश्ते भी—तन और वस्त्र के रिश्ते भी—इंसान और समाज के रिश्ते भी। इन रिश्तों में शून्यता का एहसास मानव जीवन के लिए बहुत बड़ी त्रासदी है। इन्हीं शून्यता और सन्नाटे को ही तो कवि शब्द देता है तब काव्य के रूप में वह हमें उन पहलुओं से साक्षात्कार का मौक़ा देता जो हमारी दृष्टि ही नहीं कल्पना से भी ओझल होता है। रश्मि गुप्ता के यहाँ संवेदना का यही रंग हावी है जिसको उन्होंने सामाजिक यथार्थ की कसौटी पर ढाला है।</p>
<p>‘सिर्फ़ तुम’ की कवयित्री का यह पहला काव्य-संग्रह भी इस बात के साक्ष्य के लिए काफ़ी है कि नींद के आलम में अचेतन जिस तरह बिम्बों, इशारों और मवाद का तालमेल से सपने बुनता है रश्मि के यहाँ वही काम रचनात्मक क्रिया के दौरान चेतना अंजाम देती है।
ISBN: 9788119092116
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
लगभग एक शताब्दी वय के हिन्दी विश्व के श्रेष्ठ कवि रामदरश मिश्र का कवि व्यक्तित्व प्रारम्भ से ही अभिभूत करने वाला और हिन्दी की चिन्तन प्रक्रिया और कविता के सौन्दर्यबोध को सींचने वाला रहा है। उन्हें मिले लगभग सभी बड़े पुरस्कार भी इस बात की गवाही देते हैं। कविता की बुनियादी ज़मीन गीत, कवित्त, मुक्तक में निष्णात रामदरश जी ने समय रहते नई कविता के स्थापत्य की कमान हाथ में ले ली थी और धीरे-धीरे वे अभिव्यक्ति और अन्दाजे बयां के उस शिखर पर पहुँच गए जहाँ अनुभूति और संवेदना का रसायन गाढ़ा हो उठता है। उनकी कविता में सारे मौसम अपने सौन्दर्य और संघर्ष के साथ सामने आते हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि ऋतुओं पर लगभग सबसे ज्यादा कविताएँ उन्होंने लिखी हैं। ‘धरती छंदमयी होगी’ का स्वप्न देखने वाला यह कवि शताब्दी-भर के रचनात्मक समय को अपनी छाती से लगाए जैसे उसकी धड़कनों को बहुत पास से सुन रहा हो। ‘पथ के गीत’ से लेकर ‘समवेत’ तक की उनकी कविता यात्रा कविता की ऊर्ध्वमुखी यात्रा है। उसमें हमारी कवि परम्परा के साथ-साथ पिछली शताब्दी और इस सदी का समय प्रतिबिम्बित होता दिखता है। उनकी कविताओं में विश्वबन्धुता है, विराट का स्पन्दन है, जीवन के एक-एक पल को जीने की चाहत है। उनकी खूबी है कि वे एक कौंध, एक पुलक-भर से कविता रच लेते हैं और यही कौंध, पुलक, सुख, विषाद, विडम्बना और प्रश्नाकुलता उनकी कविताओं के क्रोमोज़ोम में अनुस्यूत है। यही वह कवि का सतत गंवई गार्हस्थ्य है जो यह कहने में गर्व का अनुभव करता है कि ‘हम पूरब से आए हैं’। सच कहें तो इन कविताओं में उनका समूचा कवि व्यक्तित्व समाहित है।
—ओम निश्चल
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