Kabhi Ke Baad Abhi

Kabhi Ke Baad Abhi

Language:

Hindi

Pages:

116

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

232 mins

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Book Description

<span style="font-weight: 400;">हिन्दी कविता के लोकतंत्र और लोकायतन में विनोद कुमार शुक्ल की कविता अनूठी सहजता के साथ उपस्थित मिलती है। विनोद कुमार शुक्ल जीवन के विपुल वैविध्य को नगण्य प्रतीत होते उदाहरणों में अनुभव करते हैं। यह </span><span style="font-weight: 400;">‘</span><span style="font-weight: 400;">मुलायम मामूलीपन</span><span style="font-weight: 400;">’ </span><span style="font-weight: 400;">उनकी कविता में आकर संवेदना का अक्षर-आलेख बन जाता है।</span></p> <p><span style="font-weight: 400;">कभी के बाद अभी विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं का वह संग्रह है जिस पर कवि के लम्बे जीवनानुभव की सजग छायाएँ हैं। इन छायाओं के बीच जितना दिखना चाहिए उतना ही दिखता है</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">अतिरिक्त कुछ भी नहीं। शब्दों की अन्तर्ध्वनियों और उनके सहजीवन के पारखी विनोद कुमार शुक्ल की कविताएँ मन्द्र स्वरों में व्यक्त होती हैं। वे कहते हैं</span><span style="font-weight: 400;">, ‘</span><span style="font-weight: 400;">चुप रहने को भी सुन लेना/जीवन की उम्मीद से।</span><span style="font-weight: 400;">’</span></p> <p><span style="font-weight: 400;">घर</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">पड़ोस</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">मृत्यु</span><span style="font-weight: 400;">, </span><span style="font-weight: 400;">जन्म सरीखे बीज-शब्द इस संग्रह की रचनाओं में अँखुए की तरह उकसे दिखाई देते हैं। ऐसे बहुतेरे शब्दों से हरे-भरे जीवन की शाश्वत सरलता पर कवि मुग्ध है।</span></p> <p><span style="font-weight: 400;">मनुष्य और प्रकृति के बीच सम्बन्धों के साझा-सौन्दर्य को कवि भाँति-भाँति से व्यक्त करता है। इसके पश्चात् भी जाने कितना है जो अल्पविराम के बाद और पूर्णविराम से पहले अनुभव किया जा सकता है। अपूर्णता की गरिमा और सार्थकता को भी विनोद कुमार शुक्ल ने रेखांकित किया है। इसका महत्त्व चीन्हते हुए लिखते हैं</span><span style="font-weight: 400;">, ‘</span><span style="font-weight: 400;">इस असमाप्त अधूरे से भरे जीवन को/अभी अधूरा न माना जाए/कि जीवन भरपूर जिया गया।</span><span style="font-weight: 400;">’</span></p> <p><span style="font-weight: 400;">प्रस्तुत कविता-संग्रह विनोद कुमार शुक्ल की रचनाशीलता की अद्वितीय आभा का एक और आयाम है।</span>

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