Geetika
Author:
Suryakant Tripathi 'Nirala'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘गीतिका’ में संकलित अधिकांश गीतों का विषय प्रेम, यौवन और सौन्दर्य है, जिसकी अभिव्यक्ति के लिए निराला कहीं नारी को सम्बोधित करते हैं तो कहीं प्रकृति को, लेकिन आह्लाद की चरम अवस्था में नारी और प्रकृति का भेद ही मिट जाता है और तब नारी तथा प्रकृति एकमेक हो उठती हैं। कुछ गीत प्रार्थनापरक भी हैं, लेकिन स्वर इनका भी उल्लासपूर्ण ही है।</p>
<p>महाकवि निराला के काव्य में गीतिका का विशिष्ट स्थान है। इसमें संकलित गीत एक ओर उत्कृष्ट कविता का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं, तो दूसरी ओर निराला के गहन संगीत-ज्ञान का। कविता और संगीत का ऐसा सामंजस्य हिन्दी कविता में दुर्लभ है।
ISBN: 9789360868284
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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ऐसी रचनाएँ ही कवयित्री को महत्त्वपूर्ण बनाने में अपर्याप्त न होतीं लेकिन उसकी निगाह केवल अभ्यंतर और व्यष्टि तक सीमित नहीं है, वह बाह्य विश्व और समष्टि को भी देखती है। यह इसी दृष्टिसम्पन्नता का परिणाम है कि अनीता वर्मा वान गॉग, दा विंची और रेन्वा की सुप्रसिद्ध कृतियों के चाक्षुष पक्ष को ही नहीं देखतीं, उनमें छिपी तकलीफ़देह कहानियों और जटिल ज़िंदगियों को भी पहचानती-महसूस करती हैं। कलाकृतियों के पीछे के समाज और जीवन को हिंदी कविता में इस तरह कम ही देखा गया है। इससे भी आगे, अनीता वर्मा को अपने आसपास ‘इसी समय’ चलते ‘कोमलता और दर्द के व्यापक संसार’ का पूरा भान है जिसमें नवजात शिशु हैं, पूँजी के भयावह व्यापार हैं, वहशियों के बीच चीख़ती स्त्री है, ईर्ष्या, लालच और मासूम सपने हैं, मृत्यु की परछाइयों से परे हँसी और प्रेम हैं। यह दृष्टि महज़ एक ‘टूटता मकान’ नहीं देखती, उसके गिरते अतीत, भयानक भविष्य, मज़दूरों, भिखारियों, जानवरों तथा उस घर की गृहिणी को भी देखती है जिसकी ईंटें ले जाने के लिए अब एक ट्रक रात गये आता है। ‘घर’ में कवयित्री आज के बसेरे से शुरू कर आदिम आसरों तक जाती है, सारी पृथ्वी को निवास की तरह देखती है लेकिन इस क्रूर वास्तविकता को जानती है कि अब समझौतों से घर बनता है, जिसमें प्रेम संस्कारों पर टिका हुआ है। यथार्थ को देखती हुई कवयित्री की दृष्टि सर्वसंशयी नहीं है। कवयित्री अपने कथ्य, भाषा तथा शिल्प पर हमेशा एक संतुलित नियंत्रण रख पाने में सफल हो पाती है। वृहत्तर संसार की उसकी कविताएँ असंदिग्ध रूप से वंचितों, औरतों और बच्चों के पक्ष में हैं और पूँजी, मुनाफ़े, नियमों, बाज़ार, विज्ञापन, शोषण और नृशंसताओं के खिलाफ़ हैं। यदि ‘अमीर’ में विलासिता का जीवन उसके निशाने पर है तो ‘एक और प्रार्थना’ में उसे यह आत्म-विडंबनापूर्ण एहसास भी है–“प्रभु मेरी दिव्यता में/सुबह-सवेरे ठंड में काँपते/रिक्शेवाले की फटी कमीज ख़लल डालती है।” ‘तर्पण’ में धर्म और सभ्यता को मानवताविरोधी बताने का दुस्साहस है जबकि ‘विज्ञापन’ में उपभोक्तावाद से बर्बाद होते आदमी और समाज की तस्वीर है। स्त्रियों और बच्चों पर कुछ निहायत अलग ढंग की कविताएँ अनीता वर्मा के पास हैं। ‘अब भी विरोध’ में एक ऐसी औरत की कहानी है जो पहले ‘पैसे कमाती और दुआ माँगती थी’ लेकिन जब खुले, सुंदर संसार में आती है तो भी उसकी मुखालिफ़त की जाती है। ‘स्त्रियों से’ कविता का उद्बोधन लोकप्रिय नारीवादी पदावली का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि ‘अपनी निबिड़ताओं से निकाल लानी होगी उजली हँसी’ का आह्नान करता है। स्त्री-शरीर के बाज़ारीकरण का गहरा आकलन ‘इस्तेमाल’ में है जिसकी “शुक्र करो कि खूबसूरत माँएँ बच्चे नहीं बेचतीं/यह काम बदसूरत माँओं के लिए तय किया गया है” सरीखी मार्मिक पंक्तियाँ भयावह हैं। लक्ष्मणपुर बाथे और शंकर बिगहा के दलित हत्याकांडों पर लिखी गयी कविता एक रोती हुई स्त्री से शुरू होती है। स्कूली बच्चों पर लिखी अनीता वर्मा की ‘अपनी कक्षा’, ‘ज़ाहिद अली का पन्ना’ (जो बचपन और साम्प्रदायिकता दोनों विषयों के बीच अद्भुत आवाजाही करती है), ‘स्कूल’ तथा ‘हम जो हैं’ सरीखी रचनाएँ एक विरल कोमलता से बच्चों के जटिल वर्तमान तथा अनिश्चित भविष्य को देखती हैं। ज़मीन सार्वजनीन हो या निजी, विषय समसामयिक हों या देश-कालातीत, अनीता वर्मा ने एक ऐसी भाषा और शैली अर्जित की है, पूरी मानवीय सहानुभूति देने और अपनी अंतर्तम बात को कह पाने का ऐसा तरीक़ा, कि वे पिछले दो दशकों में उभरी हिंदी युवा कवियों की बड़ी पीढ़ी में भी अगली पंक्तियों में अपनी विशिष्ट पहचान और स्थायी जगह बना चुकी हैं। — विष्णु खरे
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Description:
जब भी हम अनुवाद, विशेषकर कविता का अनुवाद पढ़ते हैं, हम संशय में होते हैं। यह संशय तब तो और भी ज़्यादा होता है जब वह कविता, मसलन, फ़्रेंच या स्वीडिश से अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ी से हिन्दी जैसे तिर्यक रास्ते से भटकती आती हम तक पहुँचती है। “क्या वह ठीक वही कविता रह पाती है, जैसी वह मूल में है?” —यह संशय अनुवाद से ज़्यादा, अनुवाद की ओट में वस्तुतः कविता को लेकर संशय है जो इस विश्वास से जनमता है कि कविता का एक ‘स्थिर’, ‘मूल’ रूप होता है जो उस भाषा, शैली और ढाँचे में सुरक्षित होता है जिसमें वह लिखी गई है; और यह विश्वास भी कि जब हम उसे उसके ‘मूल रूप’ में पढ़ रहे होते हैं तब हम उसे यथा—अर्थतः ग्रहण कर रहे होते हैं। प्रस्तुत चयन हमें इस अन्धविश्वास से मुक्त करता हुआ उस विस्मयकारी प्रक्रिया के क़रीब ले जाता है जिसमें कविता भाषा, शैली और संरचना का निरन्तर उत्सर्जन करती हुई उस ‘एजेंसी’ की पकड़ से बाहर जाती रहती है जिसे हम ‘कवि’ या ‘रचयिता’ या ‘मूल’ कहते हैं।
इस चयन को पढ़ते हुए हम अनुभव करते हैं कि कविता निरन्तर रूपान्तरित और परिशोधित होती ऊर्जा है (जैसाकि इस चयन में शामिल स्वीडिश कवि टोमास ट्रान्सट्रोमर भी मानते हैं) और वह तभी तक ऊर्जा है जब तक वह रूपान्तरण और परिशोधन की प्रक्रिया में है। वह या तो मूल का निषेध है या वे तमाम पाठक उसका मूल हैं जो उसे अपनी सृजनात्मकता के भीतर से परिशोधित, रूपान्तरित और मुक्त होने देते हैं। वह किसी विशिष्ट देश, विशिष्ट भाषा या विशिष्ट कवि का सृजन नहीं, पाठक का सृजन है और इसी अर्थ में वह देश, भाषा और कवि का सृजन है। इस चयन में शामिल सारे अनुवादक ऐसे ही पाठक हैं और इसीलिए इन अनुवादों को पढ़ना, अपने भीतर निहित पाठक को उद्दीप्त कर उसे कविता के ‘होने’ की सतत प्रक्रिया में हिस्सेदार बनाना है; उसे उसकी ‘कर्मवाचक’ स्थिति से मुक्त कर कर्त्तृवाचक स्थिति में ले जाना है और अन्ततः उसे यह बोध कराना है कि कम से कम कविता की दुनिया में कर्तृत्त्व, स्वत्त्व का साधन नहीं है, वह स्वत्त्व का निषेध है।
कहना न होगा कि पाठक को उसकी इस गम्भीर और सृजनात्मक स्थिति का बोध करानेवाली यह एक अद्वितीय पुस्तक है। मनुष्यों के छह महाद्वीपों के बीच छुपा हुआ एक सातवाँ महाद्वीप है। जहाँ और जब भी कोई कविता लिखी (और पढ़ी) जाती है, यह महाद्वीप मूर्त और स्पन्दित होता है। इस महाद्वीप पर अस्तित्व का पुनर्वास होता है। हम इस महाद्वीप को ‘पुनर्वसु’ कहकर पुकार सकते हैं।
Clouds and Curses
- Author Name:
Amayraa Sahatiya
- Rating:
- Book Type:

- Description: a 20-year-old woman makes her debut as an author with clouds and curses, which contains a few sensitive topics. while hoping that the book holds you like the hugs you have been craving for, the poems are the unspoken words of the small-town girl, amayraa. she says, ‘this book is a cathartic attempt for me to get it all out. the things i have experienced, observed and heard are the poems in this book. “clouds and curses” is my medium of expression. i live for art, and it’s the purest way to unfold the essence of who i am.’
Neem Ka Shahad
- Author Name:
Rajvardhan Azad
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी कविता के क्षेत्र में राजवर्धन आज़ाद का प्रवेश एक सुखद संयोग है। एक कुशल नेत्र चिकित्सक यहाँ समर्थ कवि के रूप में प्रकट हुआ है। कवि कर्म का सम्बन्ध हृदय से भी है। जो व्यक्ति मनुष्य की आँखों की रोशनी लौटाता है, वह हृदय से कितना संवेदनशील होगा इसका प्रमाण यह कविता-संग्रह है।
‘नीम का शहद’ कवि डॉ. राजवर्धन आज़ाद के अनुसार एक नवीन प्रयोगधर्मिता का उदाहरण है। अपनी भावनाओं को सूत्रों में अभिव्यक्त करना या यूँ कहें कि कम शब्दों में अधिक भावों को व्यक्त करना है—‘ज़िन्दगी है उल्फ़त/जिनकी है क़िस्मत/जिनके हैं ख़ादिम/उनकी है जन्नत।’
मुक्त छंद के कवि डॉ. आज़ाद की भावनाएँ सूक्ष्म हैं। कविता के केन्द्र में मनुष्य का जीवन है। विभिन्न भाव-भंगिमाओं से परिपूर्ण डॉ. आज़ाद की कविताएँ पृथ्वी से जन्नत तक की उड़ान भरती हैं। व्यक्ति, परिवार, समाज, राज्य, देश-विदेश की गतिविधियाँ कविता के मुख्य सरोकारों में शामिल हैं। प्रकृति, प्रवृत्ति, परछाईं, पीढ़ियाँ, परिवार, परमेश्वर के साथ स्व से शिखर तक डॉ. आज़ाद की कविताओं में उपस्थित हैं। देश एवं देश की परिस्थितियों को लेकर डॉ. आज़ाद चिन्तित रहते हैं। उनकी चिन्ता यह भी है कि जिनके कंधों पर देश को विकसित करने की जिम्मेवारी है, वे स्वयं बीमार हैं। अर्थात अयोग्य हैं। ‘बीमार है मुल्क’ कविता में वे लिखते हैं—‘बीमार है मुल्क/बीमार हैं कुर्सियाँ/बीमार हकीम से/हम दवा पूछ रहे हैं।’
उनकी कविता दुनिया में हो रहे पल-पल बदलाव की ख़बर रखती है। साथ ही संस्कृति के अवमूल्यन के प्रति सचेत भी करती है। एक कवि संवेदनशील संस्कृतिकर्मी भी होता है, इसलिए संस्कृति के अवमूल्यन से उनका चिन्तित होना स्वाभाविक है। संस्कृति के विभिन्न केन्द्रों का विपरीत व्यवहार डॉ. आज़ाद जैसे संवेदनशील एवं कर्मशील कवि को सोचने पर विवश कर देता है। उन्हीं के अनुसार—‘रक्षक बने भक्षक/मित्र बने तक्षक/संस्कृति हुई तार-तार/तस्कर बने परीक्षक।’
डॉ. राजवर्धन आज़ाद हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी में भी कविता लिखते हैं। इनकी संवेदनशीलता तमाम विधाओं में मानवीयता के अत्यंत क़रीब है। ‘नीम का शहद’ कवि हृदय व्यक्तियों के लिए ‘नीम’ और ‘शहद’ के गुणों से परिपूर्ण फलदायी सिद्ध होगा।
—डॉ. कल्याण कुमार झा
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