Dukh Naye Kapde Badal Kar
Author:
Shariq KaifiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Unavailable
शारिक़ कैफ़ी की शाइ’री में, आदमी का इस दुनिया में होना, अपने जिस्म-ओ-जान, चेतना, जज़्बों और महसूस करने की तमामतर ताक़त के साथ, एक घर, एक ख़ानदान, एक मुहल्ले, उसके गली-कूचों और एक सामाजिक और सांस्कृतिक माहौल में होना, और दिल-ओ-दिमाग़ के छोटे-छोटे वाक़िआ’त से बनते-बिगड़ते वाक़िआ’त में, और उनके माध्यम से, होना है। ये वाक़िआ’ती तख़य्युल (घटना आधारित कल्पना) शारिक़ कैफ़ी की बहुत बड़ी ताक़त और पहचान है, और इसमें उनका कोई सानी नहीं। इसकी बदौलत उर्दू की इ’श्क़िया शाइ’री बिलकुल नई, अनोखी, ज़हनी, जज़्बाती और नफ़्सियाती (मनोवैज्ञानिक) बारीकियों से परिचित हुई है, जो उर्दू शाइ’री को उनकी बहुत ख़ास देन है।</p>
<p>शारिक़ का सफ़र अब जिस मर्हले (चरण) में है, वहाँ तक बेरहम हक़ीक़त-पसन्दी (यथार्थ-बोध) की लय तेज़तर होती जा रही है। ये भाव उनकी इ’श्क़ियात शाइ’री में भी जारी है, और ज़िन्दगी और दुनिया के उनके अनुभवों में भी।</p>
<p>ज़िन्दगी, दुनिया और कायनात के बारे में शारिक़ कैफ़ी के तज्रबात में अब बहुत फैलाव और व्यापकता आ गई है। यहाँ हर चीज़, हर शक्ल और हरकत को हर ख़याल और धारणा का उलट-पुलट करके देखा जा रहा है।
ISBN: 9788193968185
Pages: 137
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Musaddas-E-Hali
- Author Name:
Khwaja Altaf Hussain 'Hali'
- Book Type:

-
Description:
‘मुसद्दस’ के काव्यात्मक पक्ष पर टिप्पणी करते हुए शमशेर कहते हैं : ‘उसका संगठन अद्भुत रूप से पुष्ट जान पड़ता है। कोई एक भाव बिलकुल उसी रूप में दोहराया नहीं गया। पूरी कविता की लड़ियाँ आपस में इस तरह गुँथी हुई हैं कि अगर एक को भी तोड़कर अलग करें तो पूरी कविता का सौन्दर्य उसी परिणाम में टूटता और बिखरता है।’
‘मुसद्दस-ए-हाली’ की रचना 1879 में उस समय हुई जब भारतीय समाज 1857 के विद्रोह में पराजित होने के बाद पस्ती और हताशा के दौर से गुज़र रहा था। ख़ास तौर पर भारतीय मुस्लिम समाज। मौलाना अल्ताफ़ हुसैन ‘हाली’ ने इसकी रचना सर सैयद अहमद ख़ाँ के आग्रह पर क़ौम को इस हालात से जगाने के लिए की। इस कृति की अहमियत का अनुमान सर सैयद के इस कथन से लगाया जा सकता है कि ‘अगर ख़ुदा ने मुझसे पूछा कि दुनिया में तुमने क्या किया तो मैं जवाब दूँगा कि मैंने हाली से ‘मुसद्दस-ए-हाली’ लिखवाई।’
इसी से प्रेरित होकर मैथिलीशरण गुप्त ने हिन्दू समाज को ध्यान में रखकर अपनी प्रसिद्ध कृति ‘भारत भारती’ की रचना की जो 1913 में प्रकाशित हुई। दोनों ही रचनाएँ अपने-अपने ढंग से भारत के लोगों को अपने वैभवशाली अतीत का स्मरण करने और अशिक्षा, अज्ञान तथा मानसिक दासता से मुक्त होने का आह्वान करती हैं।
यह ‘मुसद्दस-ए-हाली’ का प्रामाणिक पाठ है जिसे हिन्दी के प्रतिष्ठित कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने सम्पादित किया है। दस्तावेज़ी महत्त्व की इस प्रस्तुति में प्रयास किया गया है कि मुसद्दस के मूल पाठ के साथ-साथ इसकी पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक महत्ता भी पाठकों के सामने मौजूद रहे। यह काम करता है कवियों के कवि कहे जानेवाले शमशेर बहादुर सिंह का एक महत्त्वपूर्ण आलेख जो उन्होंने ‘भारत भारती’ और ‘मुसद्दस-ए-हाली’ को साथ-साथ पढ़ते हुए लिखा था। हाली द्वारा लिखी गईं पहले और दूसरे संस्करणों की भूमिकाओं का लिप्यन्तरण भी इसमें शामिल है।
Gujrat Ke Baad
- Author Name:
Jagannath Prasad Das
- Book Type:

-
Description:
कविता संवेदना और विचार के सहमेल से यथार्थ को उसकी समग्र सम्भावना के साथ व्यक्त करती है। जगन्नाथ प्रसाद दास की कविताओं को पढ़ते हुए निरन्तर अनुभव होता है कि कविता समकालीन यथार्थ के साथ परम्परा के संघर्ष को भी प्रकट करती है। ‘गुजरात के बाद’ की कविताएँ गहन आत्मानुभूति से उपजी हैं। परिवेश का प्रभाव तो है ही, कवि ने स्मृतियों को टटोलते हुए अर्थ की पूँजी सहेजी है।
इन कविताओं में उम्मीद का उजाला है। यह उजाला विषाद के क्षणों में भरोसा दिलाता है। कवि ने हमारे समय के संकटों को कई जगह संकेतित किया है। ‘अरण्य’ की पंक्तियाँ हैं : “वनस्पति की सघनता को भेदकर/लकड़हारे की पदचाप सुनाई पड़ती है/सहज कलरव का अविरल छन्द/हठात् थम जाता है/इतिहास की अन्तिम कथा-सा।”
जगन्नाथ प्रसाद दास की इन मूलत: ओड़िया कविताओं का अनुवाद करते समय राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने कविता की बहुअर्थी प्रकृति का ध्यान रखा है।
Dekhani
- Author Name:
Bhalchandra Nemade
- Book Type:

-
Description:
इस संग्रह में एक वरदान माँगा गया है—‘ज़िन्दगी का रमणीय सतरंगी बुलबुला व्यर्थ न हो, कि दरख़्तों से झाँकता रोशन सूर्य अस्त न हो, विनाश तत्त्व के झपट्टे में भी भूमि की उग्रगन्धी धूल गमकती रहे और जीने का समृद्ध कबाड़ पूरे घर-भर में जमा होता रहे।’ इन सभी सचेतन बिम्बों में जिजीविषा का स्रोत उफन-उफनकर बहता है।
यह प्रवृत्ति महानगरीय कविता की मृत्युग्रस्त प्रवृत्ति पर चोट है। मृत्यु के प्रति एक सचेत एहसास के कारण जीवन के प्रति इसकी निष्ठा खोखली नहीं है, उसमें एक दृढ़ता है। इस तरह हमेशा अच्छी ज़िन्दगी पर मृत्यु का अंकुश तना होता है। इसलिए नेमाड़े जी की कविता मृत्यु के एहसास से ध्वनित विनाश तत्त्व को अनदेखा कर कोरे आशावाद की तरफ़ नहीं झुकती। वह महानगरीय कविता की तरह मृत्यु की प्रभुसत्ता को तटस्थता से स्वीकार नहीं करती, बल्कि इस प्रभुसत्ता को चुनौती देनेवाले जीवनदायी प्रेरणाओं के सन्दर्भ म़जबूती से खड़ी करती है। इस विनाश तत्त्व को मात देता जीवन के प्रति अदम्य उत्साह और उससे स्वभावत: प्राप्त जुझारूपन नेमाड़े जी का स्थायी भाव है। उनकी इसी विलक्षण जीवन-दृष्टि का दर्शन उनकी कविताओं में भी होता है।
—प्रकाश देशपांडे केजकर
Ichchaon Ke Jivashm
- Author Name:
Usman Khan
- Book Type:

- Description: उस्मान ख़ान की कविता उखड़े हुए नागरिक के एलिएनेशन की कविता है। आततायी राज्य, अन्याय, सत्तात्मक दम्भ, लूट, निर्बुद्धिकरण और कुबुद्धिकरण, राजनीतिक पतन, सामाजिक विषमता और विभाजन ने उस्मान को आन्दोलित कर रखा है। वे बेज़ार हैं। यह मामूली मोहभंग नहीं है। लेकिन यह ग़ैरमामूली असन्तोष उन्हें न तो निरुपाय बनाता है और न ही असंयत। उनके यहाँ भाषा एक बड़े उपाय में बदल जाती है। लोकतंत्र, सत्ता और समाज के स्लम को वर्णित करने के लिए उस्मान को ‘स्ट्रीट लैंग्वेज’ उपलब्ध होती जाती है जो हिन्दुस्तानी विपन्नता, दारिद्र्य, असहमति और बेदखली की अस्ल अभिव्यंजना है। इस जन भाषा, जो नई हिन्दुस्तानियत की द्रोह-भाषा सरीखी है, को पाने के बाद उस्मान ख़ान समकालीन हिन्दी के मध्यवर्गीय टकसाली भाषिक रूप-बन्ध को आहिस्ता से परे हटा देते हैं और अपने निहंग अनुभवों और देखन को किसी निचाट ज़बान के हवाले कर देते हैं। इसीलिए उस्मान को पढ़ना काफ़ी कुछ ख़ुसरो की याद दिलाता है। तब यह बात भी खुल जाती है कि कविता के अपने कारोबार में वह ला-सानी हैं। कोई उन जैसा नहीं, वह किसी जैसे नहीं। फिर भी मुक्तिबोध की चिन्ताओं और राजकमल की उखड़ी हुई साँसों वाली कविता का यदि कोई काव्याकार देखना हो तो उस्मान ख़ान की बेचैन चहलक़दमियों में वह दिख जाएगा। और अपनी इस बेचैनी में वह मुक्तिबोध की तरह एक बडे भूभाग में नहीं भटकते—उनकी दुविधाएँ और द्वन्द्व बेहद संघनित और आन्तरिक होने के साथ ही प्रतिरोधात्मक और वैचारिक होते जाते है। जीवन के नष्ट होने की वजह यदि जनविरोधी तंत्र है तो इसका विकल्प ढूँढ़ना पड़ेगा जो तुरत-फुरत तो हासिल नहीं हो सकता। कह लीजिए कि उस्मान सामूहिक आत्मन् के निर्माण को किसी सतत् धीरज का परिणाम मानने से विरत नहीं होते। विपत्तियों को देखने-समझने का जो हुनर उन्होंने हासिल किया है और फ़कीरी बेबाक़ी, बाँकपन और तंज़ के साथ कहने की जो शैली उन्होंने पा ली है, हिन्दी कविता के समकाल में वह बड़ी रचनात्मक उपलिब्ध है जो उस्मान की क़द-काठी को नायाब और अप्रतिम बनाती है और अपनी पीढ़ी का सबसे निराला राजनीतिक काव्य-व्यक्तित्व। -देवी प्रसाद मिश्र
Pratinidhi Kavitayen : Bhawani prasad Mishra
- Author Name:
Bhawani Prasad Mishra
- Rating:
- Book Type:

-
Description:
बीसवीं सदी के तीसरे दशक से लेकर नौवें दशक की शुरुआत तक कवि भवानी प्रसाद मिश्र की अनथक संवेदनाएँ लगातार सफ़र पर रहीं।
हिन्दी भाषा और उसकी प्रकृति को अपनी कविता में सँजोता और नए ढंग से रचता यह कवि न केवल घर, ऑफ़िस या बाज़ार, बल्कि समूची परम्परा में रची-पची और बसी अन्तर्ध्वनियों को जिस तरकीब से जुटाता और उन्हें नई अनुगूँजों से भरता है, वे अनुगूँजें सिर्फ़ कामकाजी आबादी की अनुगूँजें नहीं हैं, उस समूची आबादी की भी हैं जिसमें सूरज, चाँद, आकाश-हवा, नदी-पहाड़, पेड़-पौधे और तमाम चर-अचर जीव-जगत आता है। स्वभावत: इस सर्जना में मानव-आत्मा का सरस-संगीत अपनी समूची आत्मीयता और अन्तरंगता में सघन हो उठा है। कविता में मनुष्य और लोक-प्रकृति और लोक-जीवन की यह संयुक्त भागीदारी एक ऐसी जुगलबन्दी का दृश्य रचती है जिसे केवल निराला, किंचित् अज्ञेय और यत्किंचित् नागार्जुन जैसे कवि करते हैं।
कविता के अनेक रूपों, शैलियों और भंगिमाओं को समेटे यह कवि पारम्परिक रूपों के साथ-साथ नवीनतम रूपों का जैसा विधान रचता है, वह उसकी सामर्थ्य की ही गवाही देता है। मुक्त कविता, गीत-ग़ज़ल, जनगीत, खंडकाव्य, कथा-काव्य, प्रगीत कविता के साथ उसकी सीधी-सादी प्रत्यक्ष भावमयी शैली के साथ आक्रामक, व्यंग्य और उपहासमयी, सांकेतिक और विडम्बनादर्शी भंगिमाएँ भी यहाँ मौजूद हैं। कई एक साथी कवियों में जैसी एकरसता देखी जाती है, भवानी प्रसाद मिश्र ने उसे अपनी भंगिम-विपुलता और शैली-वैविध्य से बार-बार तोड़ा है।
Naye Varsh Ki Subha
- Author Name:
Gerdur Kristny
- Book Type:

- Description: 1970 में रेकजाविक, आइसलैंड में जन्मी गेरदुर क्रिस्ट्नी गुद्योंसदोत्तिर एक बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न लेखिका हैं, जिन्होंने रचनात्मक लेखन की विभिन्न विधाओं में अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की है। कहानियाँ, नाटक, यात्रा-संस्मरण लिखे हैं। स्कूली बच्चों के लिए पाठ्य-पुस्तकें लिखी हैं। इन सबके साथ-साथ पत्रकार के रूप में भी विशेष ख्याति अर्जित की है। कई वर्षों तक आइसलैंड की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘मैनलिफ़’ की मुख्य सम्पादक रहीं और फ़ैशन लाइफ़-स्टाइल के साथ-साथ समसामयिक सामाजिक विषयों पर गम्भीर विश्लेषणात्मक लेख लिखे। गैरदुर को प्रकृति से बेहद प्यार है जो उनकी ‘प्रकृति’ कविता में स्पष्ट झलकता है। वे ईश्वर की उपस्थिति को बड़ी शिद्दत के साथ प्रकृति में महसूस करती हैं। ईश्वर एक सर्जनात्मक ऊर्जा के साथ उनकी कविताओं में मौजूद है। कवि को ‘लैंगनेस’ कविता में ‘बंजर में फूटती आवाज़ों की फुसफुसाहट’ में ईश्वर का प्रतिरूप दिखाई देता है। इसी तरह एक कविता में प्रेम और ऊन से बुनी शिशु यीशु की शॉल उन स्त्रियोचित गुणों को रेखांकित करती है जिनसे वह पूरे मानवीय समाज को सम्पृक्त करना चाहती हैं। उनकी कविता ‘चियर्स’ में सृष्टि की उत्पत्ति दो रूपों में व्यंजित हुई है—एक का सन्दर्भ है ईसाई धर्मग्रन्थ जैनेसिस में आई दन्तकथा तो दूसरे का सन्दर्भ है योहान सिगुरजनसन की आइसलैंड की अत्यन्त लोकप्रिय कविता ‘द कप’।
Kavya Chayanika
- Author Name:
Pramod Kovaprath
- Book Type:

- Description: बिगड़ते पर्यावरण की समस्या आज मनुष्य के लिए भूख के बाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या है। भूख जिस तरह एक देह के अस्तित्व के लिए आसन्न ख़तरा होती है, उसी तरह पर्यावरण-विनाश सृष्टि के अस्तित्व के लिए होता है। एक-एक व्यक्ति के रूप में जी रहे हम लोगों की आँखों से वह ख़तरा भले ही इतने स्पष्ट और ठोस रूप में न दिखाई देता हो, और भले ही हम बीच-बीच में प्रकृति द्वारा दी जानेवाली चेतावनियों को नज़रअन्दाज़ करने की ढीठता भी जुटा लेते हों, लेकिन जल, ज़मीन, हवा और हरियाली का सतत क्षरित होता जीवन उन निगाहों से अनचीन्हा नहीं रह जाता जो प्रस्तुत उल्लास की झीनी चदरिया के पार दूर क्षितिज के धुँधलके में लिखी जा रही नाश-विनाश की पटकथाओं की पंक्तियाँ पढ़ लेती हैं, यानी कवियों और रचनाशील हृदयों की निगाहें। यह पुस्तक प्रकृति और कवि के इसी अपने, और समाज की रिश्तेदारियों के धोखादेह प्रपंच से परे, उनके निहायत पवित्र और निजी रिश्ते का दस्तावेज़ है। पाठकगण इस किताब को सरकारों और संस्थाओं के रस्मी पर्यावरण-प्रेम और शुष्क रुदन के काव्यानुवाद के रूप में न लें। यह समष्टि-मन के रचनाकुल और ईमानदार स्नायुओं की पीड़ाजनित प्रतिक्रियाओं का संकलन है जिसमें हिन्दी के नए-पुराने, वरिष्ठ, श्रेष्ठ और सजग रचनाकारों ने प्रकृति के साथ अपनी सम्बन्ध-यात्रा के सबसे चिन्तित क्षणों को वाणी दी है। संग्रह में एक सौ एक समकालीन कविताएँ और पैंतालीस कवि शामिल हैं। कौन छोटा है, कौन बड़ा है, यह सवाल अप्रासंगिक है। क्योंकि कविता का विषय महत्त्वपूर्ण है, समस्याओं की भयंकरता प्रासंगिक है। एक ही त्रासदपूर्ण मुद्दा सबके लिए महत्त्वपूर्ण है। सब में आशंकाएँ हैं तो साथ ही आशाएँ भी हैं। प्रकृति की आसन्न मृत्यु पर चीख़ने के बजाय प्रतिरोध खड़ा करना ये रचनाकार अपना दायित्व समझते हैं।
Gungunati Nrityamay Kavitayen
- Author Name:
Pooja Saxena
- Book Type:

- Description: Poems
Bachche ki hansi
- Author Name:
Durgaprasad Jhala
- Book Type:

- Description: poetry
Surkh
- Author Name:
Bhavesh Dilshad
- Book Type:

- Description: बनाव-सिंगार, बाग़, तितली, भोग-विलास से कोत तो क्या, बस पहाड़, जंगल, खाई, ख़ला, समन्दर, ये सब मुझे ाियादा पुकारते रहे। ये रहस्य, सन्नाटे, चुनौतियां और बेबाकियां। कभी हैरान करती रहीं, कभी तलाश तो कभी मुझे बयान। छटपटाहट, घुटन, कसक और उन्हीं लमहों में पूरी फ़क़ीरी, ािद और विध्वंस भी... इसी दौर में वो मुझे मिली। घूंघट, पर्दे और नक़्ली ोवरों के बोझ से घुटी-घुटी सी। दोनों ने तनहाई चुनी पर सच से चौंककर हम कतराये तो नहीं। एक-दूसरे का हाथ थामे बढ़ते रहे। एक-दूजे को जानने, पहचानने से चला सिलसिला समझने और महसूसने तक पहुंचा। फिर ढलने और पिघलने तक। बाहिर बरसों और यूं सदियों का सफ़र करते हम इकाई में रच-बस गये। अपने ही ढंग से, अपनी ही एक दुनिया में... वो मेरा पहला प्यार और इकलौती क़सम हो चुकी। प्यार, सफ़र, सिलसिला चल रहा है। चलता रहेगा। हम अपनी एक दुनिया बसा लेंगे। नहीं तो किसी अतल, अबूझ या गुमनाम कोने में एक-दूजे के सहारे जी लेंगे। हर क़दम नयी-नयी बेचैनियों, ख़लिशों के साथ वही सरमस्ती है। जबात की उथल-पुथल है। न चाहे भी रहेगी। इसी सफ़र के बीच इस ट्रायोलॉजी की शक्ल में खींच ली गयी मेरी और मेरी शाइरी की यह तस्वीर यहीं रह जाएगी। हमेशा के लिए! भवेश दिलशाद
Pandit Ramprasad 'Bismil' (Mahakavya)
- Author Name:
Acharya Devendra Dev
- Book Type:

- Description: "महाकाव्य विषयक लगभग सभी शास्त्र-सम्मत मानकों पर खरी उतरनेवाली, सोलह सर्गों में निबद्ध इस महनीय महाकाव्य-कृति ‘पं. रामप्रसाद बिस्मिल’, में महाकवि देव ने बिस्मिलजी के अग्निधर्मा व्यक्तित्व और उनके जुझारू, किंतु अत्यधिक संवेदनशील कृतित्व का सजीव चित्रण, अपनी पूरी क्षमता और प्राणवत्ता के साथ किया है। —प्रो. सारस्वत मोहन ‘मनीषी’ अंतरराष्ट्रीय कवि एवं साहित्यकार वस्तुतः देवजी प्रसिद्ध से पूर्व सिद्ध कवि और महाकाव्यकार हैं। ‘पं. रामप्रसाद बिस्मिल’ महाकाव्य उनकी आत्मा की अमंद राष्ट्र-ज्योति की अनर्घ प्रस्तुति है। —प्रो.भगवान शरण भारद्वाज प्रख्यात साहित्यकार एवं शिक्षाविद् क्रांति के अमर पुरोधा ‘पं. रामप्रसाद बिस्मिल’ का भौतिक स्मारक, मेरे लाख प्रयत्न करके भी सरकार तो नहीं बनवा सकी, किंतु प्रस्तुत महाकाव्य के रूप में उनका ‘साहित्यिक स्मारक’ आचार्य देवेंद्र देव ने मेरे जीवनकाल में ही रचकर मुझे दे दिया है। —डॉ. मदनलाल वर्मा ‘क्रांत’ कवि एवं साहित्यकार संपूर्ण महाकाव्य में भावों का अनुगमन करती भाषा, अलकनंदा की अजस्र जलधारा की भाँति मंथर गति से चित्त को बहाती चलती है। हिंदी-जगत् खड़े होकर इस महाकाव्य का करतल ध्वनि से स्वागत करेगा। —प्रो मंगला रानी विद्वान् शिक्षाविद्"
Tap Ke Taye Huye Din
- Author Name:
Trilochan
- Book Type:

-
Description:
त्रिलोचन शास्त्री प्रगतिशील हिन्दी कविता के दूसरे दौर के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवियों में से हैं। इस कविता के पहले दौर के कवियों—मसलन पंत, निराला, नरेन्द्र, सुमन आदि ने छायावादी कविता के अन्तर्विरोधों को परिणति तक पहुँचाकर उसे यथार्थवादी भूमि पर उतार दिया था। प्रगतिशील कविता के दूसरे दौर के कवि मसलन—केदार, शमशेर, नागार्जुन, त्रिलोचन और मुक्तिबोध ने हिन्दी कविता को यथार्थ की भूमि पर निरन्तर विकसित किया। कहने की आवश्यकता नहीं कि यही यथार्थवादी कविता छायावादोत्तर हिन्दी कविता में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धारा है। इस धारा में त्रिलोचन का योगदान अपरिमित और ऐतिहासिक है।
त्रिलोचन जीवन-संघर्ष और जीवन-सौन्दर्य के अप्रतिम कवि हैं। उनकी कविता में चित्रित संघर्ष और सौन्दर्य केवल उनका नहीं, बल्कि उस हिन्दीभाषी जाति का संघर्ष और सौन्दर्य है, जिसे देखने और पहचानने की क्षमता हिन्दी कविता के आधुनिकतावादी माहौल में लगातार खोती गई है। त्रिलोचन ने न केवल उसे देखा और पहचाना, बल्कि उससे वैसा आन्तरिक लगाव स्थापित किया, जैसा कविता में तुलसीदास और निराला तथा गद्य में प्रेमचन्द जैसे कथाकारों में ही देखने को मिलता है। प्रगतिशील कवि त्रिलोचन ने प्रचलित अर्थ में राजनीतिक कविताएँ बहुत कम लिखी हैं पर राजनीति की मूल्यपरक गहरी चेतना निस्सन्देह उनकी कविता को सदा अनुप्राणित करती रही। उनकी कविता इस बात का प्रमाण है कि प्रगतिशील कविता कोई संकीर्ण और एकपक्षीय कविता नहीं, बल्कि ऐसी कविता है जिसमें जीवन की तरह ही व्यापकता और विविधता है, प्रकृति की तरह ही रंग-बिरंगापन है।
त्रिलोचन ने ग़ज़ल, रुबाई, सॉनेट जैसे हिन्दीतर कविता के क्लासिकीय काव्य-रूपों में भी कविता रची है और हिन्दी के नए-पुराने काव्य-रूपों तथा छन्दों में भी। उनकी विशेषता यह है कि वे काव्य-रूप की स्थिरता और सार-तत्त्व की गतिशीलता के द्वन्द्व से कविता में एक ऐसे वेग और शक्ति की सृष्टि करते हैं जिनकी मिसाल हिन्दी कविता में केवल ‘निराला’ में सुलभ है। क्लासिकीय अनुशासन और आधुनिक स्वच्छन्दता त्रिलोचन की अपनी पहचान है। तुलसीदास ने संस्कृत शब्दों के योग से अवधी भाषा को उन्नत किया था, त्रिलोचन ने अवधी भाषा के योग से खड़ी बोली को रस से भर दिया है। उनकी हीरे की तरह कठोर और दीप्तिपूर्ण काव्य-भाषा अवधी की देशी खांड-जैसी मिठास से युक्त है। ताज्जुब की बात नहीं कि प्रगतिशील हिन्दी कवियों की नवीनतम पीढ़ी त्रिलोचन जैसे कवियों के दाय को समझने और आत्मसात् करने की दिशा में ललक और लगन के साथ बढ़ रही है।
—नन्दकिशोर नवल
Pran-Bhang Tatha Anya Kavitayen
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

- Description: ं वर्तमान संग्रह को अपनी प्रारम्भिक रचनाओं का संग्रह बनाना चाहता था और इसका मुख्य रूप वही है भी। किन्तु पुरानी बहियों को उलटते-पलटते समय कुछ कविताएँ और मिल गईं, जिन्हें प्रारम्भिक रचनाएँ तो नहीं कहा जा सकता; किन्तु जो उसी न्याय से प्रकाश में आने के योग्य हैं, जिस न्याय से कवि की प्रारम्भिक रचनाएँ प्रकाशित की जाती हैं।' दिनकर जी के इस कथन से स्पष्ट है कि यह उनकी प्रारम्भिक कविताओं का संग्रह है। बावजूद इसके यह उनका एक ऐसा संग्रह भी है जिसके महत्त्व को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में उल्लेख किया है। प्रस्तुत संग्रह में एक लघु खंड काव्य 'प्रण-भंग' नाम से है जो महाभारत युद्ध में घटित श्रीकृष्ण के शस्त्र-ग्रहण की घटना पर आधारित है जिसे दिनकर जी ने खुद 'जयद्रथ-वध' के अनुकरण पर लिखा गया माना है। इस खंड काव्य में परम्परा और आधुनिकता का अन्तर्विरोध अपनी तार्किकता के साथ है। यही नहीं, इसमें भक्ति भी अपनी आस्था के साथ रूपायित हुई है। ‘प्रण-भंग’ के अलावा संग्रह की स्फुट कविताओं–‘शहीद अशफाक के प्रति’, ‘वायसराय की घोषणा पर’, ‘महात्मा गांधी’, ‘शहीदों के नाम पर’, ‘मूक बलिदान’, ‘तपस्या’, ‘शहीद’ आदि–में हम स्वर्णिम अतीत के प्रति संवेदनशीलता और अपने यथार्थ के प्रति अन्तर्विरोध को गहरे लक्षित कर सकते हैं। वहीं पुस्तक के अन्त में संगृहित अट्ठाईस क्षणिकाओं में सामाजिक पीड़ा और सांस्कृतिक चिन्तन है, तो सत्ता की शोषक-प्रवृत्ति के प्रति धारदार नज़रिया भी है जिसे इन पंक्तियों में देखा जा सकता है–‘राजा/तुम्हारे अस्तबल के/घोड़े मोटे हैं।/प्रजा भूखी और नंगी है।/घोड़ों को कोई अभाव नहीं।/लेकिन लोगों को हर तरफ़ की तंगी है।’ ‘प्रण-भंग और अन्य कविताएँ’ संग्रह के बारे में दिनकर जी के ही शब्दों को लेकर कहें तो यह उनके 'सम्पूर्ण काव्य-यात्रा पर प्रकाश डालता है
Jaise Chand Par Se Dikhti Dharti
- Author Name:
Harjendra Chaudhary
- Book Type:

- Description: हरजेन्द्र चौधरी के पहले कविता-संग्रह ‘इतिहास बोलता है’ की कविताओं में जो गड़गड़ाता आवेश था, वह इस संग्रह की कविताओं में काफ़ी हद तक मंथर हो गया लगता है। समाज और संसार को अपनी अवधारणाओं, अपने सपनों के मुताबिक ढाल लेने की वह बेचैनी इन कविताओं में भी दिखाई पड़ती है लेकिन अधिक संयत, अधिक सधे हुए रूप में। चतुर्दिक घटित हो रहे सामाजिक परिवर्तन की गहरी पहचान और उसके सघन अनुभव इन कविताओं को अपेक्षाकृत अधिक 'स्थायी' प्रभविष्णुता प्रदान करते दिखाई पड़ते हैं। कवि यहाँ सामाजिक परिवर्तन की दिशा-गति के बिम्ब रचता है, जिनमें एक नैतिक आग्रह और 'रेजिस्टेंस' भाव अन्तर्निहित है। धरती पर से चाँद देखने की बजाय चाँद पर से धरती देखने-दिखाने वाली इन कविताओं में भाषा और बिम्बों की गजब की ताज़गी है। ये कविताएँ एक गहरी मानवीय संवेदना की कविताएँ हैं। यह आकस्मिक नहीं है कि हरजेन्द्र चौधरी की कविताओं में किसान, कवि, औरत और बच्चे की उपस्थिति बार-बार दर्ज होती है। यहाँ इन्हें मानवीय संवेदना के बचे रहने के लक्षण और उसे बचाए रखने की चिन्ता के प्रमाणों के रूप में भी पढ़ा-देखा जा सकता है। साथ ही इन कविताओं में हम अपने 'समय का चेहरा' देख सकते हैं, जो निरन्तर बदल रहा है—जितना बाहर जीवन में, उतना ही इन कविताओं के भीतर भी। प्रतिकूल परिस्थितियाँ और मानवीय संघर्ष—दोनों की टकराहट भरी पारस्परिकता बार-बार इन कविताओं में स्थान पाती है। सामूहिक ज़िन्दगी को अनेकविध प्रभावित करने वाले 'सुदूर' कारणों को भी इन कविताओं में बिना किसी बड़बोलेपन के इतनी सहजता से स्थान दे दिया गया है कि पाठक चमत्कृत हुए बिना इनकी पकड़ में आ जाता है।
Nai Gulistan : Vols. 1-2
- Author Name:
Kaifi Azmi
- Book Type:

- Description: ग़ालिब का एक शेर ज़़रा सी हेर-फेर के साथ पेश है- होगा कोई ऐसा भी जो कैफ़ी को न जाने शायर तो वो अच्छा है पे... ... ... और इस ‘पे’ (लेकिन) के बाद बहुत कुछ आ सकता है, वह भी जो ‘ग़ालिब’ ने कहा और उसके अलावा बहुत कुछ और भी। कैफ़ी आज़मी के मुआमले में इस ‘पे’ के बाद उनके एक और व्यक्तित्व का तज़्करा भी आ सकता है जिसके दर्शन आपको इस संकलन के पृष्ठों में होंगे। इसमें कोई शक नहीं कि कालमनिगार एक वाहियाततरीन काम है। वक़्ती घटनाओं पर वक़्ती तब्सरा करना कालमनिगार का काम होता है। और यही कारण है कि कालमनिगार का क़लम जब ठहरता है तो बहुत जल्द उसका पाठक उसे भुला भी देता है। लेकिन इसी के बीच इक्का-दुक्का मिसालें ऐसी मिलती हैं जिनमें एक कालमनिगार का जौहर वक़्त की सरहदों को पार करता नज़र आता है। ‘नई गुलिस्ताँ’ में कैफ़ी की रचनाएँ भी इसी श्रेणी में रखी जाने की चीज़ें हैं। कॉलम के रूप में कभी छपी इन रचनाओं में कैफ़ी की अपनी एक अलग ही शैली अपने पूरे तबो-ताब के साथ दिखाई देती है। कैफ़ी का हमज़ाद एक हिकायतनवीस इनमें से अधिकांश रचनाओं का ‘सूत्रधार’ है और किसी नीति-कथा, किसी ऐतिहासिक घटना या किसी लतीफ़े के माध्यम से अपने समय की राजनीति पर एक चुभता हुआ तब्सरा करता है। फिर जिस तरह जातक कथाओं में बुद्ध अन्त में एक नीति-वाक्य बोलते दिखाई देते हैं, उसी तरह इन रचनाओं में कैफ़ी अन्त में एक ‘राजनीतिक-वाक्य’ बोलते नज़र आते हैं। अधिकांश रचनाओं का अन्त कुछ अशआर पर या कुछ सुप्रचलित अशआर की पैरोडी पर होता है जो अपना ख़ुद का एक लुत्फ़ पैदा करते हैं। इसके अलावा इस पूरे संकलन को नज़्म (पद्य) में लिखी नस्र (गद्य) का नाम दें, जो तथाकथित नस्री नज़्म (गद्य-काव्य) से कहीं बहुत ऊँचे दर्जे की चीज़ है, तो कुछ ग़लत नहीं होगा। इस पूरे संकलन में शायद ही कोई ऐसा वाक्य आपको मिले जिसमें कैफ़ी ने अपनी शे’री फ़ितरत छोड़ी हो और क़ाफ़ियापैमाई न की हो। दूसरे अलफ़ाज़ में, कैफ़ी की नस्र भी बड़े ठस्से के साथ यह कहती हुई नज़र आती है कि मैं किसी नस्रनिगार की नहीं, शायर की रचना हूँ। नतीजा यह कि पाठक के लिए इस अच्छे-ख़ासे भारी संकलन में बोर होने का कहीं कोई मुक़ाम नहीं है।
Har Pal Ek Pratiksha
- Author Name:
Durgaprasad Jhala
- Book Type:

- Description: Collection of Hindi Poems
Raheem Dohawali
- Author Name:
Vagdev
- Book Type:

- Description: "रहीम अर्थात् अब्दुर्रहीम खानखाना को अधिकतर लोग कवि के रूप में जानते है; लेकिन कविता ने उनका दूसरा पक्ष आवृत कर लिया हो, ऐसा नहीं है। रहीम का व्यक्तित्व बहुआयामी था। एक ओर वे वीर योद्धा, सेनापति, चतुर राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ थे तो दूसरी ओर कवि-हृदय, कविता-मर्मज्ञ, उदार चित्त, उत्कट दानी, मानवीयता आदि गुणों से ओत-प्रोत थे। रहीम का जीवन तीव्र घटनाक्रमों से भरा रहा। चार वर्ष की उम्र में पिता असमय बिछड़ गए। तीन पुत्र युवावस्था में ही एक-एक कर गुजर गए। एक धर्मपुत्र फहीम युद्ध में मारा गया। इसके बाद उपाधि और जागीरदारी छिन गई। इस प्रकार 7 2 वर्ष का उनका जीवन बारंबार कसौटी पर कसा गया; और इस रस्साकाशी ने उन्हें इस कदर तोड़कर रख दिया कि अंत समय में पुनः मिली उपाधि और सत्ता का भी वे उपभोगी नहीं कर सके। इस पुस्तक में उसी युग-पुरुष के जीवन-वृत्त और काव्य-संसार पर प्रकाश डाला गया है। यह पाठकोपयोगी सामग्री अब्दुर्रहीम खानखाना उर्फ रहीम के रचनाकर्म और व्यक्तित्व से परिचित कराएगी। "
Thee Hoon Rahoongi
- Author Name:
Vartika Nanda
- Book Type:

-
Description:
यह पहला मौक़ा है जब एक अपराध पत्रकार ने अपराध पर ही कविताएँ लिखी हैं। एनडीटीवी में बरसों अपराध बीट की प्रमुखता और बाद में ‘बलात्कार’ पर पीएच.डी. ने देश की इस विख्यात पत्रकार को महिला अपराध को एक अलहदा संवेदनशीलता से देखने की ताक़त दी। इसलिए इन कविताओं को संवेदना के अलावा यथार्थ के चश्मे से भी देखना होगा।
वर्तिका के लिए औरत टीले पर तिनके जोड़ती और मार्मिक संगीत रचती एक गुलाबी सृष्टि है और सबसे बड़ी त्रासदी भी। वह चूल्हे पर चाँद-सी रोटी सेंके या घुमावदार सत्ता सँभाले—सबकी आन्तरिक यात्राएँ एक–सी हैं। इस ग्रह के हर हिस्से में औरत किसी–न–किसी अपराध की शिकार होती ही है। ज़्यादा बड़ा अपराध घर के भीतर का, जो अमूमन ख़बर की आँख से अछूता रहता है। ये कविताएँ उसी देहरी के अन्दर की कहानी सुनाती हैं। यहाँ मीडिया, पुलिस, क़ानून और समाज मूक है। वो उसके मारे जाने का इन्तज़ार करता है और उसके बाद भी कभी–कभार ही क्रियाशील होता है।
वर्तिका की कविता की औरत थक चुकी है पर विश्वास का एक दीया अब भी टिमटिमा रहा है। दु:ख के विराट मरुस्थल बनाकर देते पुरुष को स्त्री का इससे बड़ा जवाब क्या होगा कि मारे जाने की तमाम कोशिशों के बावजूद वह मुस्कुराकर कह दे—‘थी.हूँ..रहूँगी...’।
Indraprasth Ke Kash-Pushp
- Author Name:
Kantesh Mishra
- Book Type:

- Description: भले हम किसी की आशाओं में न हों। हम हों हर प्रकार से बहिष्कृत विकल्प। हमारी प्रार्थना में किसी एक का भी होना, पृथ्वी पर प्रेम की सम्भावना, प्रबल बनाता है। -इसी पुस्तक से
Allama Iqbal
- Author Name:
Allama Iqbal
- Book Type:

- Description: ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतज़ार देख हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसितां हमारा ढूंढ़ता फिरता हूं मैं 'इक़बाल' अपने आप को आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूं मैं
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...