Dukh Naye Kapde Badal Kar
Author:
Shariq KaifiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Unavailable
शारिक़ कैफ़ी की शाइ’री में, आदमी का इस दुनिया में होना, अपने जिस्म-ओ-जान, चेतना, जज़्बों और महसूस करने की तमामतर ताक़त के साथ, एक घर, एक ख़ानदान, एक मुहल्ले, उसके गली-कूचों और एक सामाजिक और सांस्कृतिक माहौल में होना, और दिल-ओ-दिमाग़ के छोटे-छोटे वाक़िआ’त से बनते-बिगड़ते वाक़िआ’त में, और उनके माध्यम से, होना है। ये वाक़िआ’ती तख़य्युल (घटना आधारित कल्पना) शारिक़ कैफ़ी की बहुत बड़ी ताक़त और पहचान है, और इसमें उनका कोई सानी नहीं। इसकी बदौलत उर्दू की इ’श्क़िया शाइ’री बिलकुल नई, अनोखी, ज़हनी, जज़्बाती और नफ़्सियाती (मनोवैज्ञानिक) बारीकियों से परिचित हुई है, जो उर्दू शाइ’री को उनकी बहुत ख़ास देन है।</p>
<p>शारिक़ का सफ़र अब जिस मर्हले (चरण) में है, वहाँ तक बेरहम हक़ीक़त-पसन्दी (यथार्थ-बोध) की लय तेज़तर होती जा रही है। ये भाव उनकी इ’श्क़ियात शाइ’री में भी जारी है, और ज़िन्दगी और दुनिया के उनके अनुभवों में भी।</p>
<p>ज़िन्दगी, दुनिया और कायनात के बारे में शारिक़ कैफ़ी के तज्रबात में अब बहुत फैलाव और व्यापकता आ गई है। यहाँ हर चीज़, हर शक्ल और हरकत को हर ख़याल और धारणा का उलट-पुलट करके देखा जा रहा है।
ISBN: 9788193968185
Pages: 137
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अतीत और वर्तमान के बीच गहन रिश्ता बनाती ये कविताएँ हर वर्ग, हर आयु के पाठकों का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम हैं।
Sadran (Punjabi)
- Author Name:
Bittu Sandhu
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- Description: Awating description for this book
Log Bhool Gaye Hain
- Author Name:
Raghuvir Sahay
- Book Type:

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Description:
रघुवीर सहाय की कविताओं में हम एक ऐसे आधुनिक मानस को देख पाते हैं जो बौद्धिक और रागात्मक अनुभूतियों से सन्तुष्ट होकर अपने लिए एक सुरक्षित संसार की सृष्टि नहीं कर लेता; उसमें रहने लगना कवि के लिए एक भयावह कल्पना है। आज के पतनशील समाज में ऐसे अनेक सुरक्षित संसार विविध कार्य–क्षेत्रों में बन गए हैं—साहित्य में भी—और इनमें बूड़ जाने का ख़तरा पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते–बढ़ते तीव्रतम हो गया है। परन्तु (बातचीत में रघुवीर सहाय कहते हैं कि) समाज कविताओं से भरा पड़ा है : सड़क पर चलते ही हम उनसे टकराएँगे और हर कविता एक नया परिचय कराएगी। इस संग्रह की रचनाएँ कवि के निरन्तर बढ़ते हुए परिचयों के पीछे उसकी सामाजिक चेतना के विकास का भी संकेत देती हैं : कवि की चिन्ता है कि उस विकास के बिना कविता लिखते जाने का कोई मतलब ही नहीं होगा।
आज के पतनशील समाज के प्रति कवि की दृष्टि विरोध की है, परन्तु वह अपने काव्यानुभव से जानता है कि वह रचना जो पाठक के मन में पतन का विकल्प जाग्रत् नहीं करती, न साहित्य की उपलब्धि होती है न समाज की। ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ की परम्परा में वह उस शक्ति को बचा रखने को आतुर है जो उसने ‘दूसरा सप्तक’ और ‘सीढ़ियों पर धूप में’ पाई थी और जिस पर आए हुए ख़तरे को उसने ‘हँसो, हँसो जल्दी हँसो’ में दिखाया था। वह मानता है कि यही खोज नए समाज में न्याय और बराबरी की सच्ची लोकतंत्रीय समझ और आकांक्षा जगाती है और ऐसे समाज की रचना के लिए साहित्यिक और साहित्येतर क्षेत्रों में संघर्ष का आधार बनती है। जहाँ कहीं जन की यह शक्ति पतनोन्मुख संस्कृति के माध्यमों द्वारा भ्रष्ट की जा रही हो वहाँ वह चेतावनी देता है और जहाँ वह बची रहने पर भी देखी नहीं जा रही हो, उसकी पहचान कराता है। वह बचाने के लिए तोड़ता है और तोड़ने के लिए तोड़ने के व्यावसायिक उद्देश्य का विरोध करता है। पीड़ा को पहचानने की कोशिश वह ऐसे करता है कि उसी समय पीड़ा का सामाजिक अर्थ भी प्रकट हो जाए—वह मानता है कि सामाजिक चेतना का कोई अक्षर भंडार नहीं हो सकता, उसकी समृद्धि लोकतंत्र के पक्ष में संघर्ष से करती रहनी पड़ती है और इसी तरह सामाजिक नैतिकता की भी। ये कविताएँ इसी परम्परा की आज के दौर की अभिव्यक्तियाँ हैं।
Tolstoy Aur Saikil
- Author Name:
Kedarnath Singh
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Description:
‘ताल्स्ताय और साइकिल’ केदारनाथ सिंह की कविताओं का एक ऐसा संग्रह है, जो सबसे पहले कविता को देशज-नागर-वैश्विक इतिहास और भूगोल-विमर्श के बीच एक पुल बनाता है। केदारनाथ सिंह का काव्य-समय एक न होकर अनेक है और सांस्कृतिक बहुलता को अर्थ देता है। पहले की, पर लम्बे समय से बनी पहचान को यह छंद और छंद के बाहर नया विस्तार देनेवाला संग्रह है। एक कविता के शीर्षक के अनुसार ही कहें, यह एक ज़रूरी चिट्ठी का मसौदा है।
‘पानी की प्रार्थना‘, ‘त्रिनीदाद’, ‘पांडुलिपियाँ’, ‘घोंसलों का इतिहास’, ‘बुद्ध से’, ‘ईश्वर और प्याज’, ‘बर्लिन की टूटी दीवार को देखकर’ ‘जे.एन.यू. में हिन्दी’ और ‘शहरबदल’ जैसी कविताएँ अपनी अन्तर्वस्तु में गहन और बनावट में अपूर्व हैं। लुखरी का आत्मव्यंग्य न दूसरों को बख़्शता है, न अपने को। फंतासी और अयथार्थ भी आज की जटिल सच्चाई के ही सगोतिया हैं।
केदारनाथ सिंह की हर कविता एक नया प्रस्थान है जो काव्यात्मक-अकाव्यात्मक, सहज-जटिल को एक साथ साधने की विलक्षण कला का साक्ष्य है। जो कवि ‘ताल्स्ताय और साइकिल’ जैसी कविता लिख सकता है, जो चींटियों की रुलाई सुन सकता है, जो इब्राहीम मियाँ ऊँटवाले को पहचान सकता है, उस कवि को गहरी समझ के साथ ही पढ़ा जा सकता है। यह कविता और मनुष्य को बचाने की ऐसी कोशिश है जो देह-देहान्तर के रिश्तों को पहचानने में सक्षम है।
‘ताल्स्ताय और साइकिल’ केदारनाथ सिंह की लम्बी काव्य-यात्रा का एक ऐसा पड़ाव है, जहाँ समकालीन अनुभव के कई ऐसे धरातल उभरते दिखाई पड़ते हैं, जो उसके नए अनुषंगों को खोलते हैं और कई बार उसकी सुपरिचित परिधि को अतिक्रान्त भी करते हैं।
Chalo Tuk Mir Ko Sunne
- Author Name:
Meer Taqi Meer
- Book Type:

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Description:
मीर की शायरी इश्क़-ओ-मोहब्बत, ज़िन्दगी के रंज-ओ-ग़म, जीवन के दर्शन, इसके उतार-चढ़ाव, सामाजिक चेतना, समाज में धर्म का स्थान, बादशाहों का बनना-बिगड़ना, मानव मूल्य और उनके आपसी सम्बन्ध आदि अनेक पहलू अपने अन्दर समेटे हुए है। जब हम मीर के शे’र पढ़ते हैं तो हर शे’र में कोई नसीहत, कोई दर्शन, कोई सन्देश, कोई अनुभव छुपा रहता है। लेकिन मीर की शायरी की अस्ल बुनियाद इश्क़ है। मीर के पिता एक सूफ़ी थे और पिता ने मीर को बचपन से ही इश्क़ का पाठ पढ़ाया। बाप की इश्क़ की शिक्षा का मीर पर ऐसा असर पड़ा कि उनकी शायरी से इश्क़ का कोई पहलू अछूता न रहा। उनकी ग़ज़लों, मस्नवियों, रुबाइयों—सभी में इसी इश्क़ के तमाम नमूने भरे पड़े हैं जो पिछले ढाई सौ-तीन सौ वर्षों से हमारी शायरी का आधार हैं।
दाग़-ए-दिल-ए-ख़राब शबों को जले है ‘मीर’
इश्क़ इस ख़राबे में भी चराग़ इक जला गया
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