Chalte Rahe Raat Bhar
Author:
Rakesh MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
राकेश मिश्र की कविताएँ दैनिक जीवन में प्रयुक्त साधारण बिम्बों के द्वारा मानवीय संघर्ष की तस्वीरें खींचती हैं। कविता की छोटी-छोटी पंक्तियों में वे सामाजिक विसंगतियों एवं निरावृत सत्य का एक पूरा परिदृश्य अंकित करते हैं। इस दृष्टि से 'रोटियाँ’ शीर्षक कविता विशेष रूप से चिन्तनीय बन पड़ी है—'बाँध दो/सूखी रोटियाँ/कँटीले तारों से/पोत दो/मक्खन/सूखी रोटियाँ/नंगी हों/तो/दस्तावेज़ होती हैं/हमारी बेईमान आदमीयत की’। इस तरह मिश्र जी मनुष्य के मूलभूत संघर्ष, दु:ख-दर्द और उसकी नियति की सही पहचान रखते हैं। वे अपने आस-पास की सारी जानी हुई चीज़ों को बिलकुल साफ़-सुथरे और विश्वसनीय ढंग से व्यंजित करते हैं। इस ढंग की कविताओं में 'नारे’, 'चुप होती आवाज़’, 'हेलीकॉप्टर’, 'कंक्रीट की दीवारें’, 'आख़िर कब तक’, 'उदास बच्चे’, 'चलते रहे रात-भर’, 'कृष्ण विवर’, 'तस्वीर’, 'चौराहा’, 'शहर में रातें’, 'खिलारी’, 'गुरुजी’, 'शहर’, 'भूख’ तथा 'वह लड़की’ का समावेश किया जा सकता है। इससे यह माना जा सकता है कि मिश्र जी के लिए कविता सिर्फ़ कला-यात्रा नहीं है। वह सामाजिक दायित्वों को सजगता के साथ सम्पादित करने की विधा है। —पुरोवाक् से
ISBN: 9788183619097
Pages: 191
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘कैफ़ी’ के फ़िल्मी गीतों का मूल उर्दू पाठ ‘मेरी आवाज़ सुनो’ के उनवान से 1974 में प्रकाशित हुआ था और तब से इसके अनेकों संस्करण सामने आ चुके हैं।
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लेकिन कैसे कहना है—इस बारे में शायर एक हद तक अपनी बात चला ही सकता है। फ़िल्मी गीत अधिकतर रोमानी होते हैं जो रोमांस के सुखों या दु:खों का वर्णन होते हैं। लेकिन इस महदूद से दायरे में भी ‘कैफ़ी’ ने अपनी शायराना फ़ितरत का, अदीब की दूर-रस निगाह का दामन नहीं छोड़ा। काग़ज़ के फूल, हक़ीक़त, यहूदी की बेटी, गरम हवा और अर्थ जैसी फ़िल्मों के लिए ‘कैफ़ी’ ने जो गीत लिखे उनकी हैसियत किसी अदबपारे से कम नहीं, और यही बात फ़िल्म पाकीज़ा के उस अकेले गीत ‘चलते-चलते’ के बारे में कही जा सकती है जो ‘कैफ़ी’ के जादूबयान क़लम की सौग़ात है। लेकिन ये तो गिनी-चुनी मिसालें हैं; पूरा ख़ज़ाना इस समय आपके अपने हाथों में है।
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Description:
1905 में रियासत टोंक में जन्मे दाउद ख़ान शीरानी, जो आगे चलकर ‘अख़्तर’ शीरानी के नाम से मशहूर हुए, एक बहुत ही अमीर और प्रभावशाली पिता के पुत्र थे। देश-विभाजन से पहले ही उनके पिता हाफ़िज़ महमूद ख़ान शीरानी लाहौर आकर बस गए और यहाँ भी उनको वही मर्तबा हासिल हुआ जो टोंक में हुआ करता था। ज़ाहिर है कि नौजवान दाउद ख़ान के लिए पैसे-कौड़ी की कोई समस्या नहीं थी; शायरी भी उनके लिए पैसा कमाने का ज़रिया नहीं, शौक़ थी। फिर क्या कारण है कि यही दाउद ख़ान शीरानी बीच में ही तालीम से बेज़ार होकर आवारागर्दी को अपना मशग़ला बना बैठे? क्या कारण है कि ‘अख़्तर’ बनकर उन्होंने ख़ुद को शराब में डुबो लिया? वह कौन सी प्रेरणा थी जिसने उनके और उनके वालिद या घरवालों के बीच कोई सम्बन्ध लगभग छोड़ा ही नहीं? वह कौन सी कसक थी जो उनको हिन्दुस्तान के कोने-कोने में लिए फिरी? इस और ऐसे ही दूसरे अनेक सवालों के जवाब अभी भी पूरी तरह और सन्तोषजनक ढंग से सामने नहीं आए हैं। लेकिन इतना तय है कि ‘अख़्तर’ शीरानी एक बहुत ही निराशाजनक सीमा तक अपने माहौल से कटे हुए थे, और उनके व्यक्तित्व की ठीक यही विशेषता उनके कृतित्व की निर्धारक शक्ति भी बनी।
रहा सवाल ‘अख़्तर’ साहब की शायरी का, तो इसमें शक़ नहीं कि वे बहुत कम उम्र में ही कुल-हिन्द शोहरत के शायरों में गिने जाने लगे थे और पत्र-पत्रिकाओं में उनका कलाम छपने के लिए होड़-सी लगी रहती थी। लेकिन उनकी उदासीनता का, दुनिया से बेज़ारी का आलम यह था कि अपने जीवनकाल में उन्होंने अपना संग्रह प्रकाशित कराने की तरफ़ ध्यान तक नहीं दिया; उनकी रचनाओं का संकलन उनकी मृत्यु के बाद ही हुआ। नागरी लिपि में ‘अख़्तर’ की अभी तक बहुत छोटे-छोटे दो-एक चयन ही सामने आए हैं जो कि पाठक की प्यास को बुझाने का पारा नहीं रखते। मगर यह शिकायत प्रस्तुत संकलन को लेकर नहीं आएगी, इसका हमें विश्वास है।
Lalak
- Author Name:
Ravindra Kumar
- Book Type:

- Description: "जब हमारे अंतस से बाह्य चीजें मेल नहीं खातीं, तब मन और मस्तिष्क में विक्षोभ और विद्रोह स्वाभाविक है। युवावस्था में यह स्थिति और भी तीव्रतम होती है। श्री रविन्द्र कुमार के कविता संकलन ‘ललक’ की सभी कविताएँ इसी तीव्रतम अनुभूति की अभिव्यक्ति हैं। रविन्द्रजी की कविताएँ सामाजिक परिवेश की कविताएँ हैं। उनकी कविता में मानवीय संवेदना, समाज की असमानता, वर्गभेद, पूँजीवाद व बाजारवाद के शोषण तथा अंध परंपराओं एवं कुरीतियों के दुष्परिणाम आदि पहलू प्रभावशाली तरीके से अभिव्यक्त हुए हैं। इसलिए ये कविताएँ पाठक को जागरूक करती हैं तथा उन्हें एक जिम्मेदार दृष्टि सौंपती हैं। संग्रह की शीर्षक कविता ‘ललक’ इस मायने में अति विशिष्ट कविता है क्योंकि यह कवि द्वारा बचपन में देखे गए स्वप्नों एवं सम्यक संकल्पों का लिखित दस्तावेज है। इस कविता में कवि रविन्द्र अपनी तरुणावस्था में (सन् 1997 में) लिखते हैं—‘‘मोटर गाडि़यों से करने की, मसूरी की सैर/ललक मुझे है इसकी/पर चढ़कर हिमगिरि की चोटी पर/ ललक है हिंद का तिरंगा फहराऊँ।’’ आज जब दिसंबर 2020 में मैं रविन्द्रजी की इस कविता की पांडुलिपि पढ़ रहा हूँ, तो मुझे कवि की यह कविता उनके द्वारा करीब ढाई दशक पहले अपने भविष्य की उपलब्धियों के बारे में की गई भविष्यवाणी लगती है। रविन्द्रजी विश्व की सबसे ऊँची पर्वत शृंखला माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढ़कर राष्ट्रध्वज फहरा चुके हैं। इस प्रकार, कवि की काव्य-पंक्तियाँ वास्तविक रूप से मूर्त हुई हैं।’’ —डॉ. अश्वघोष वरिष्ठ कवि "
Mohabbat Leke Aaya Hoon
- Author Name:
Aziz-ul-Hasan Majzub
- Book Type:

- Description: ख़्वाजा अज़ीज़ उल हसन मज्ज़ूब के लोकप्रिय कलाम का संग्रह सूफ़ीनामा सीरीज़ की एक और पेशकश है जिस का संपादन अब्दुल वासे ने किया है..
Sochati Hain Auraten
- Author Name:
Kumar Nayan
- Book Type:

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Description:
हिन्दी के पायेदार कवि-शायर कुमार नयन की कविताएँ अपने समय के जनमूल्यों से जुड़ती हुई करुणा, न्याय, प्रेम और प्रतिरोध की धारा रचती हैं। कवि की मानें तो ‘यह आग का समय है और उसके पास सिर्फ़ प्रेम है’, जिसके सहारे रोज़ बदलती दुनिया में उसे विश्वास है कि ‘प्यार करने को बहुत कुछ है इस पृथ्वी पर।’ कुमार नयन की कविताओं का एक-एक शब्द अपने ख़िलाफ़ समय से इस उद्घोष के साथ संघर्षरत है कि ‘तुम्हारी दुनिया बर्बर है, तुम्हारे क़ानून थोथे हैं।’ ये शब्द अपनी नवागत पीढ़ी से करुण भाव में क्षमा-याचना करते हैं, ‘क्षमा करो मेरे वत्स, तुम्हें बचपन का स्वाद नहीं चखा सका।’
लोकतंत्र के तीनों स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका को पूँजी साम्राज्यशाही की चाकरी में दंडवत् देख कवि-मन आहत हो चौथे स्तम्भ मीडिया की ओर भरोसे से देखता है, लेकिन वहाँ से भी उसका मोहभंग हो जाता है, जब वह देखता है कि 'अन्य कामों के अतिरिक्त/एक और काम होता है अख़बार का/आदमी को आदमी नहीं रहने देना।' वस्तुत: मनुष्य को मनुष्य की गरिमा में प्रतिष्ठित देखने की सदिच्छा ही इन कविताओं के मूल में है, जिसके लिए मनुष्य विरोधी सत्ता-व्यवस्था के प्रतिरोध में कवि मुसलसल अड़ा दिखता है।
कुमार नयन की कविताएँ स्त्री के प्रेम, संघर्ष और निर्माण के प्रति अपनी सम्पूर्ण त्वरा के साथ एक अनोखी दास्तान रचती हैं। स्त्री के विविध रूपों के चित्रण में कवि की संवेदनक्षम दृष्टि उसे सृष्टि के नवनिर्माण की धातृ के रूप में प्रतिष्ठित करती जान पड़ती है। कविताओं में एक प्रकार का ख़ौफ़, आतंक, भय और संशय का स्वर प्रभावी दीख पड़ता है, जबकि कुमार नयन प्रेम और विश्वास के कवि हैं। पाठक इस द्वैत को समझ पाएँ तो उन्हें इन कविताओं का आत्मिक आस्वाद प्राप्त होगा!
—शिव नारायण सम्पादक, 'नई धारा'।
Log Bhool Gaye Hain
- Author Name:
Raghuvir Sahay
- Book Type:

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Description:
रघुवीर सहाय की कविताओं में हम एक ऐसे आधुनिक मानस को देख पाते हैं जो बौद्धिक और रागात्मक अनुभूतियों से सन्तुष्ट होकर अपने लिए एक सुरक्षित संसार की सृष्टि नहीं कर लेता; उसमें रहने लगना कवि के लिए एक भयावह कल्पना है। आज के पतनशील समाज में ऐसे अनेक सुरक्षित संसार विविध कार्य–क्षेत्रों में बन गए हैं—साहित्य में भी—और इनमें बूड़ जाने का ख़तरा पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते–बढ़ते तीव्रतम हो गया है। परन्तु (बातचीत में रघुवीर सहाय कहते हैं कि) समाज कविताओं से भरा पड़ा है : सड़क पर चलते ही हम उनसे टकराएँगे और हर कविता एक नया परिचय कराएगी। इस संग्रह की रचनाएँ कवि के निरन्तर बढ़ते हुए परिचयों के पीछे उसकी सामाजिक चेतना के विकास का भी संकेत देती हैं : कवि की चिन्ता है कि उस विकास के बिना कविता लिखते जाने का कोई मतलब ही नहीं होगा।
आज के पतनशील समाज के प्रति कवि की दृष्टि विरोध की है, परन्तु वह अपने काव्यानुभव से जानता है कि वह रचना जो पाठक के मन में पतन का विकल्प जाग्रत् नहीं करती, न साहित्य की उपलब्धि होती है न समाज की। ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ की परम्परा में वह उस शक्ति को बचा रखने को आतुर है जो उसने ‘दूसरा सप्तक’ और ‘सीढ़ियों पर धूप में’ पाई थी और जिस पर आए हुए ख़तरे को उसने ‘हँसो, हँसो जल्दी हँसो’ में दिखाया था। वह मानता है कि यही खोज नए समाज में न्याय और बराबरी की सच्ची लोकतंत्रीय समझ और आकांक्षा जगाती है और ऐसे समाज की रचना के लिए साहित्यिक और साहित्येतर क्षेत्रों में संघर्ष का आधार बनती है। जहाँ कहीं जन की यह शक्ति पतनोन्मुख संस्कृति के माध्यमों द्वारा भ्रष्ट की जा रही हो वहाँ वह चेतावनी देता है और जहाँ वह बची रहने पर भी देखी नहीं जा रही हो, उसकी पहचान कराता है। वह बचाने के लिए तोड़ता है और तोड़ने के लिए तोड़ने के व्यावसायिक उद्देश्य का विरोध करता है। पीड़ा को पहचानने की कोशिश वह ऐसे करता है कि उसी समय पीड़ा का सामाजिक अर्थ भी प्रकट हो जाए—वह मानता है कि सामाजिक चेतना का कोई अक्षर भंडार नहीं हो सकता, उसकी समृद्धि लोकतंत्र के पक्ष में संघर्ष से करती रहनी पड़ती है और इसी तरह सामाजिक नैतिकता की भी। ये कविताएँ इसी परम्परा की आज के दौर की अभिव्यक्तियाँ हैं।
Swadhinta Ka Stri-Paksha
- Author Name:
Anamika
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- Description: नई स्त्री शिक्षा-सम्बलित-सजग स्त्री है! उसके प्रेम का पात्र बन पाना, उसके टक्कर का पुरुष बन पाना इतना आसान भी नहीं! स्त्रीवाद आप में उसके प्रेम के योग्य हो पाने की उमंग जगाता है! आत्मविकास का एक मौका देता है आपको! आत्मविश्वास की पहली सीढ़ी है आत्मनिरीक्षण! खौलते हुए पानी में चेहरा नहीं दिखता! अहंकार, क्रोध-लोभ या कामना एक विकट आँच है! इस आँच की सवारी मन को अदहन का पानी बना देती है: अन्तर्मन तो समझता है, लेकिन उसकी रिले-सर्विस जरा स्लो है, और उसका स्विच ‘ऑफ’ कर देने की सुविधा भी होती है, बाइबिल इसी अर्थ में तो कहती है–‘सीइंग दे दोंट सी, हियरंग दे दोंट हियर!’ सब बड़ी विभूतियों, लगातार सबको खरी-खोटी सुनानेवाले आत्मग्रस्त विष्णुओं का यही हाल है, मूर्ख वे थोड़े हैं–पर उनका आत्मबल कम है: बुरा जो ढूँढ़न मैं चला, बुरा न मिल्या कोय, जो दिल ढूँढ़ा आपना, मुझसे बुरा न कोय! स्त्री आन्दोलन यही विनय, यही आत्मसाक्ष्य जगाना चाहता है। प्रत्याक्रमण में, प्रतिघात या प्रतिशोध में इसकी आस्था नहीं है, शान्त प्रतिरोध यह करता है, आपको मौका देता है कि आप अपने भीतर झाँकें और सचमुच महसूस करें कि चित्त के पितृसत्तात्मक दबावों से या आदतन आपसे ऐसा व्यवहार नहीं हो गया जो दूसरों से आप अपने लिए नहीं चाहते? एक गम्भीर संकल्प लें कि अब ऐसा बिलकुल नहीं होगा। –भूमिका से
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