Chaunsath Sutra Solah Abhiman : Kamsutra Se Prerit
Author:
Avinash MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 100
₹
125
Available
अविनाश मिश्र कविता के अति विशिष्ट युवा हस्ताक्षर हैं। इस संग्रह में शामिल कविताएँ एक लम्बी कविता के दो खंडों के अलग-अलग चरणों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं। कवि प्रेम में आता है और साथ लेकर आता है—‘कामसूत्र’। ‘वात्स्यायन’ कृत कामसूत्र। इसी संयोग से इन कविताओं का जन्म होता है। कवि प्रेम और कामरत प्रेमी भी रहता है और दृष्टाकवि भी। वात्स्यायन की शास्त्रीय शैली उसे शायद अपने विराम, और अल्पविराम पाने, वहाँ रुकने और अपने आप को, अपनी प्रिया को, और अपने प्रेम को देखने की मुहलत पाना आसान कर देती है, जहाँ ये कविताएँ आती हैं और होती हैं। यह शैली न होती तो वह प्रेम में डूबने, उसमें रहने, उसे जीने-भोगने की प्रक्रिया को शायद इस संलग्नता और इस तटस्थता से एक साथ नहीं देख पाता।</p>
<p>कोई इन कविताओं को सायास रचा गया कौतुक भी कह सकता है, लेकिन इनका आना और होना इन कविताओं के शब्दों और शब्दान्तरालों में इतना मुखर है कि आप इनकी अनायासता और प्रामाणिकता से निगाह नहीं बचा सकते। ये उतनी ही प्राकृतिक कविताएँ हैं, जितना प्राकृतिक प्रेम होता है, जितना प्राकृतिक काम होता है।</p>
<p>काम की चौंसठ कलाएँ और स्त्री के सोलह शृंगार– इस संग्रह की 80 कविताओं के आलम्बन यही हैं।</p>
<p>इन कविताओं को पढ़ना प्रेम में होने, उसे जीने, अनुभूत करने की प्रक्रिया से गुज़रने या स्मृति-आस्वाद को दुहराने जैसा है। कवि का अनुभव-सत्य पाठक के जीवनानुभव के आस्वाद को नया अर्थ देने जैसा है।</p>
<p>किताब संग्रहणीय भी है, सुन्दर प्रेम-उपहार भी।
ISBN: 9789388753937
Pages: 104
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘मैंने जिसे देश समझकर प्यार किया वह विचारों की क़त्लगाह था।’ अपने आक्रोश और असहमति में पराग पावन जितने युवा हैं, अन्याय और शोषण की संरचना को समझने में उतने ही वयस्क। उनके इस पहले संग्रह में शामिल कविताओं का भावात्मक और भाषिक वैविध्य बताता है कि एक विधा के रूप में कविता को उन्होंने जितनी गम्भीरता से लिया है, वैसा कम ही युवा कवि करते हैं। स्मृतियों में बसी ‘चूल्हे की राख’ से आरम्भ होकर ‘कथा कहूँ कवि गंग की’ शीर्षक एक सुदीर्घ आख्यानपरक कविता तक उठनेवाला यह संग्रह उन हत्यारों की पहचान भी करता है जो कभी आपकी अस्मिता तो कभी असमर्थता पर आक्रमण कर बिना हथियार ही आपको संसार से नफ़ी कर देते हैं; और उन प्रातिभ चापलूसों को भी दिखाता है जो ‘दुखी किसी-किसी को, ख़ुश अधिकांश को करते हुए’ सब कुछ को अपने अनुकूल करने में तल्लीन हैं। पराग जहाँ ज़रूरी समझते हैं व्यंग्य को और जहाँ ज़रूरी समझते हैं करुणा को उसकी पूरी सम्भावना के साथ प्रयोग करते हैं। व्यक्ति और व्यवस्था, दोनों जगह निहित ख़तरों की पर्याप्त पहचान उन्हें हैं—‘गाँव 2020’ का अतियथार्थ हो या उस अध्यापक को याद करना जिसे बताना पड़ता है कि ‘प्रेम आदमी का अवैतनिक चिकित्सक है।’ ‘बेरोज़गार’ शीर्षक पराग की बहुत चर्चित कविता-शृंखला के अलावा न्यायाकांक्षी युवा चेतना के और भी आयामों को रेखांकित करने वाली कविताएँ इस संग्रह में मिलेंगी, और एक नागरिक मन की उदासी भी जिसे कोई धोखा नहीं देता, सिवा उसकी उम्मीदों के। साथ ही प्रेम के कंधे पर कुहनी टिकाए खड़ी उम्मीद भी यहाँ है—जहाँ शाम ख़त्म होती है/रात वहीं से शुरू नहीं होती/रात शुरू होती है तुम्हारे मेरा बाज़ू पकड़ने से/और उस बेआवाज़ वाक्य से/कि थक गए हो/चलो, घर चलें।
Orhan Aur Anya Kavitayen
- Author Name:
Shriprakash Shukla
- Book Type:

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Description:
‘आँधी में टूटकर गिरा हुआ मकान/तूफ़ान में सूखकर रेत हुई नदी/थककर गिरा हुआ आदमी/ज़्यादे भरोसे का होता है/अपनी-अपनी सम्भावनाओं में/समर्पित सफलता से/ज़्यादा मूल्यवान होती है/तनी हुई विफलता।’ श्रीप्रकाश शुक्ल के कविता-संग्रह ‘ओरहन और अन्य कविताएँ’ में शामिल कविता ‘तनी हुई विफलता’ की ये पंक्तियाँ रचनाकार के पक्ष को स्पष्ट कर देती हैं। प्रत्येक सजग और समर्थ रचनाकार बार-बार निजी और सामाजिक अनुभवों को चेतना की कसौटी पर कसता है। इसे ‘पुन:पाठ’ कहें या ‘अर्थान्तर’ सच्चाई यही है कि हर शब्द एक अनुभव माँगता है और हर अनुभव एक जीवन। इस आन्तरिक प्रक्रिया से गुज़रकर जो कवि समय को व्यक्त कर रहे हैं, उनमें श्रीप्रकाश शुक्ल महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रस्तुत संग्रह को पढ़ते हुए यह लगना अनायास नहीं कि ‘बनारस’ इसकी केन्द्रीयता है। बनारस के अनेक प्रसंग, स्थान और स्वभाव कविताओं में निहित व निनादित हैं।...और एक ‘सनातन नगर’ के बहाने कवि ने आधुनिकता के श्वेत-श्याम आवासों को टटोला है। श्रीप्रकाश शुक्ल में यह कहने का साहस व सलीका भी है कि, ‘सब कुछ बहुवचन में नहीं सोचा जा सकता।’ अपने तरीक़े से सोचते हुए उन्होंने ‘ओरहन’, ‘एक कवि की तलाश में’, ‘हमारे समय का एक शोकगीत’, ‘एक स्त्री घर से निकलते हुए भी नहीं निकलती है’ व ‘छठ की औरतें’ जैसी कई उदाहरणीय कविताएँ रची हैं।
इस संग्रह में ‘स्त्री’ को लेकर कुछ बेहद ख़ास कविताएँ हैं। बिना शब्दों का डमरू बजाए। निजी देसी मुहावरे में श्रीप्रकाश ‘लरिकोर’ जैसी अनूठी कविता लिखते हैं। भाषा के स्वीकृत विन्यास को सतर्क चुनौती देते हुए रची गई ये कविताएँ हमें संवेदनाओं के एक सघन संसार में ले जाती हैं, जहाँ अपेक्षित भाषाई मुखरता के साथ एक आत्मसंवादी स्वर भी है जिसमें प्रकृति के साहचर्य से दूर जाते समाज की चालाकियों का पर्दाफ़ाश भी है।
Parshuram Ki Pratiksha : Dinkar Granthmala
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
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Description:
आधुनिक युग के विद्रोही कवियों में रामधारी सिंह 'दिनकर' का महत्त्वपूर्ण स्थान है, और इसकी मिसाल है 'परशुराम की प्रतीक्षा'। यह पुस्तक एक खंडकाव्य है। इसकी रचना 1962 में भारत-चीन युद्ध के पश्चात् हुई थी। इसके ज़रिए राष्ट्रकवि का सन्देश है कि हमें नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा ख़ातिर सतत जागरूक रहना चाहिए। युद्धभूमि में शत्रु का विनाश करने के लिए हिंसा अनुचित नहीं है।
दिनकर परशुराम धर्म को भारत की जनता का धर्म मानते हैं। परशुराम को भारत की जागरूक जनता का प्रतीक मानते हैं। इसलिए पौराणिक पृष्ठभूमि में परशुराम के वैशिष्ट्य को रेखांकित करते लिखते हैं—“लोहित में गिरकर जब परशुराम का कुठार पाप-मुक्त हो गया, तब उस कुठार से उन्होंने एक सौ वर्ष तक लड़ाइयाँ लड़ीं और समन्तपंचक में पाँच शोणित-हृद बनाकर उन्होंने पितरों का तर्पण किया। जब उनका प्रतिशोध शान्त हो गया, उन्होंने कोंकण के पास पहुँचकर अपना कुठार समुद्र में फेंक दिया और वे नवनिर्माण में प्रवृत्त हो गए। भारत का वह भाग, जो अब कोंकण और केरल कहलाता है, भगवान् परशुराम का ही बसाया हुआ है। लोहित भारतवर्ष का बड़ा ही पवित्र भाग है। पुराकाल में वहाँ परशुराम का पापमोचन हुआ था। आज एक बार फिर लोहित में ही भारतवर्ष का पाप छूटा है। इसीलिए, भविष्य मुझे आशापूर्ण दिखाई देता है—
ताण्डवी तेज फिर से हुंकार उठा है,
लोहित में था जो गिरा, कुठार उठा है।”
'परशुराम की प्रतीक्षा' राष्ट्रकवि दिनकर की ऐसी कृति है जो भारत-चीन सीमा पर युद्ध के हालात बनते ही समीचीन हो जाती है। हर युग में नई उम्मीद और नए प्रतिरोध के साथ पढ़ी जानेवाली एक काजलयी कृति।
Piramid Mein Ham
- Author Name:
Surendra Raghuvanshi
- Book Type:

- Description: Collection of Hindi Poems by Surendra Raghuvanshi
Magadh
- Author Name:
Shrikant Verma
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- Description: मगध में संगृहीत कविताएँ इतिहास नहीं हैं, इतिहास का सम्मोहन हैं, मायालोक हैं; जिनमें नगर एवं गणराज्य, ‘मगध’, ‘अवन्ती’, ‘कोसल’, ‘काशी’, ‘श्रावस्ती’, ‘चम्पा’, ‘मिथिला’, ‘कोसाम्बी’ धूल में आकार लेते और धूल में निराकार हो जाते हैं बवंडर की तरह। इन कविताओं के नायक और नायिकाएँ हैं, इतिहास के निर्माता और गवाह, चन्द्रगुप्त, अशोक, बिंबिसार, अजातशत्रु, कालिदास, शकटार, वसंतसेना, वासवदत्ता, अम्बपाली...जिनका नाम लेते ही न जाने कितनी कहानियाँ जाग उठती हैं, कितने संस्मरण कौंध जाते हैं। जरा, मरण, रोग, शोक, पतन, उत्थान, युद्ध, हत्या, जय, पराजय! मनुष्य की समग्र गाथा में महाकाव्यत्व होता है। ये कविताएँ उसी समग्रता और उसी महाकाव्यत्व को प्रस्तुत करने का एक उपक्रम हैं। ये पाठक को स्तब्ध करती हैं, चौंकाती हैं, भयभीत करती हैं, शोक-सन्देश की तरह उन पर छा जाती हैं, अनहोनी की तरह मँडराती हैं और होनी की तरह आकर बैठ जाती हैं। ये बिना चेतावनी दिए पाठक को अपनी गिरफ़्त में ले लेती हैं। इनका असर जादुई है। जैन और बौद्ध दर्शन का स्मरण दिलाती हुई मगध में संगृहीत कविताएँ काल की एक झाँकी हैं और महाकाल की स्तुति! ये अतीत का स्मरण हैं, वर्तमान से मुठभेड़ और भविष्य की झलक! मगध श्रीकान्त वर्मा की कविताओं में एक नया मोड़ है।
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