Braj Ritusanhar
Author:
Prabhudyal MeetalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 600
₹
750
Available
“हिन्दी की परम्परा और सर्जनात्मक वैभव का बहुत बड़ा हिस्सा ब्रज काव्य है। ब्रज काव्य में भक्ति, शृंगार और प्रकृति पर केन्द्रित कविताएँ अपनी विपुलता, विविधता और काव्य-कौशल के लिए विख्यात रही हैं। उनमें सौन्दर्य को भाषिक सौन्दर्य में रूपान्तरित करने की अद्भुत क्षमता दीख पड़ती है। लगभग सात दशकों पहले मथुरा के एक विद्वान–रसिक श्री प्रभुदयाल मीतल ने ‘ब्रजभाषा साहित्य का ऋतु-सौन्दर्य’ नाम से प्रकृति-काव्य का एक संचयन प्रकाशित किया था जिसकी प्रस्तावना महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने लिखी थी। अपनी परम्परा के स्मृति-लोप के इस अभागे समय में इसे ‘ब्रज ऋतुसंहार’ शीर्षक से पुनर्प्रकाशित कर रहे हैं। रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत ऐसे गौरवग्रन्थों को फिर से पाठकों के सामने लाने का यह एक उपक्रम है। स्मृति के पुनर्वास की एक चेष्टा।”
—अशोक वाजपेयी
ISBN: 9788126730964
Pages: 294
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: वरिष्ठ कवि दुर्गाप्रसाद झाला की कविता कोई भावुक वायवीय कविता नहीं जैसे कि उम्र के इस दौर के कवियों की अक्सर हो जाया करती है। वह यथार्थ के एक ठोस धरातल पर खड़ी वास्तविक कविता है जो निराशा के तमाम बादलों के बीच उम्मीद के सूरज की तरह चमक रही है—'उम्मीद उदास नहीं है/ वह पेड़-पौधों में खिलखिला रही है।' इस संघर्ष में कवि की ही नहीं बल्कि मनुष्य मात्र की पक्षधरता उनके भीतर स्पष्ट है—'अब तय करना है/ तुम्हें क्या करना है।' यह स्पष्ट सोच किसी बूढ़े का विभ्रम न होकर एक अनुभवी कवि की मूल प्रतिज्ञा है। दुर्गाप्रसाद झाला एक जुझारू व्यक्ति के साथ ही एक स्वप्नजीवी कवि भी हैं। ज़ाहिर है जहाँ स्वप्न हैं वहाँ बदलाव और पुनर्रचना की संभावनाएँ होती ही हैं—'जब भी जाना हो यात्रा पर/ एक दिशा को छुओ/ अपने पैरों को छुओ।' (अपने सपनों को छुओ)। एक बुज़ुर्ग कवि का इससे अधिक दाय क्या हो सकता है कि वह इस उम्र में भी भाषा के हथियार के साथ युद्ध में डटा हुआ है? यह आश्वस्ति ही कवि की प्रसन्नता का सबब भी है—'अब बस इसी बात से प्रसन्न हूँ/ कि मैं चुपचाप नहीं बैठा रहा।' दरअसल यह कथित प्रसन्नता एक कवि का संतोष है। कई बार हम उन्हें काव्याभ्यास करते भी पाते हैं खासकर कुछ कविताओं के क्लाईमेक्स में, लेकिन उन कोशिशों की ईमानदारी पर सवाल नहीं किया जा सकता। कला की दुनिया में एक बुज़ुर्ग कवि की उपस्थिति न सिर्फ आश्वस्तिकारक, उसकी सक्रियता आगामी पीढ़ी के लिए उत्पे्ररक भी होती है। उम्मीद है कि एक जुझारू और जीवट कवि की ये कविताएँ वही काम करेंगी क्योंकि झाला जी की जिजीविषा उस फीनिक्स पक्षी की मानिंद है जो अपनी ही राख से नया जन्म लेता है। —निरंजन श्रोत्रिय
Chhatha Beta
- Author Name:
Upendra Nath Ashk
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- Description: उपेन्द्रनाथ अश्क के नाटकों में ‘छठा बेटा’ का विशेष स्थान है। नाटक मुख्य रूप से देखने की वस्तु है। नाटककार के सामने जितनी चुनौती दृश्य को साकार करने की होती है उतनी ही चुनौती पाठ को प्रभावी बनाने की भी होती है, ताकि उसका नाटक अभिनेय और पठनीय, दोनों हो। पठनीयता को नाटक की श्रेष्ठता का अनिवार्य गुण भले न माना जाए लेकिन उसके अभाव में वह एक साहित्यिक कृति के रूप में पूर्णता प्राप्त करने से वंचित रह जाता है। ‘छठा बेटा’ इन दोनों कसौटियों पर पूरी तरह खरा उतरता है। इसमें नाटकीय रचना की तीनों आवश्यक इकाइयों—समय, स्थान और अभिनय का सुसंगत संयोजन है। इसका नाटकीय कौशल यानी स्टेज क्राफ्ट देखें तो आरम्भ, गति, संघर्ष, क्लाइमेक्स आदि नाटकीय कार्य-व्यापार की सभी अवस्थाओं का इसमें अनूठा सन्तुलन है। और इस नाटक का पाठ, मंचन-अभिनय के लिए निर्देश-संवाद मात्र तक सीमित नहीं न रहकर एक मुकम्मल पाठ है जिसको सिर्फ पढ़ कर भी कोई पाठक इसके मर्म तक पहुँच सकता है। हास्य-व्यंग्य की एक धारा शुरू से अन्त तक इस नाटक में प्रवाहित होती रहती है जो इसकी पठनीयता को और प्रभावी बना देती है। लेकिन हास्य-व्यंग्य के इस प्रवाह से नाटक की गम्भीरता कहीं बाधित नहीं होती। मनुष्य की सुख-शान्ति की स्वाभाविक आकांक्षा उस समय दारुण हो उठती है जब वह इसके लिए दूसरों से अपेक्षा करता है। हमारे सामाजिक जीवन की इस सचाई को अश्क इस नाटक में बखूबी उजागर करते हैं लेकिन निराशा की ओर धकेलते हुए नहीं, बल्कि जीवन की इस विडम्बना पर हँसने का हौसला देते हुए।
Tulsi Rachnawali Vol-1
- Author Name:
Dr. Ramji Tiwari
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- Description: गोस्वामी तुलसीदास की विलक्षण प्रतिभा से प्रसूत अनंत काव्य-कीर्ति-कौमुदी में स्नात होकर समस्त विश्व के काव्य-रसिक धन्य, रससिक्त और श्रद्धानवत होते रहे हैं, किंतु सभी के दृष्टि-पथ में 'रामचरितमानस' ही आकाशदीप की भाँति विराजमान है। अन्य ग्रंथरत्न छायावेष्टित ही रह जाते हैं। जबकि लोक-परलोक चिंतन, व्यावहारिक चेतन जीवन और अध्यात्मबोध, संस्कृति और संस्कार, संघर्ष और आस्था तथा जय और पराजय से युक्त विलक्षण व्यक्तित्व उनके सभी ग्रंथ-रत्नों को देखने के बाद ही सगुण साकार हो पाता है। संस्कारशील और सुरुचि-संपन्न पाठक भी इस विश्वकवि के संपूर्ण वाड्मय का रसास्वादन कर लेने के बाद ही पूर्ण परितोष का लाभ ले पाता है। गोस्वामीजी के सभी ग्रंथरत्नों को एकत्र उपलब्ध कराने के पुनीत उद्देश्य से ही इस 'रचनावली' की योजना बनाई गई है। ग्रंथावली का प्रथम खंड सुविज्ञ पाठकों को समर्पित है। इसमें गोस्वामीजी की 'रामलला नहछू', 'वैराग्य संदीपनी', 'बरवै रामायण', 'जानकी मंगल', 'पार्वती मंगल', 'रामाज्ञा-प्रश्न', 'दोहावली', 'श्रीकृष्ण गीतावली' कृतियों का समावेश है। आशा है, सुधी पाठकों को अभीप्सित परितोष मिल सकेगा।
Baanch Raha Yadon Ka Lekha
- Author Name:
Brijnarayan Sharma
- Book Type:

- Description: This book has no description
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