
Bhay Bhi Shakti Deta Hai
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
143
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
286 mins
Book Description
लीलाधर जगूड़ी की कविता यथार्थ को आंशिकता में नहीं बल्कि उसकी पूरी जटिलता और बारीकियों में खोजती आई है। इसी खोज ने उन्हें एक समर्थ कवि की पहचान दी है। लगभग इकहरी और एकआयामी हो रही कविता के मौजूदा दौर में जगूड़ी की ये कविताएँ अनुभव के अनेक आयामों के साथ कुछ चकित करती हैं, कुछ रोमांच से भर देती हैं और अन्ततः इस तरह विचलित करती हैं कि पाठक के भीतर भी एक प्रक्रिया शुरू हो सके।</p> <p>इन कविताओं में न तो यथार्थ का उत्सव है और न विलाप : इनमें यथार्थ की ऐसी आलोचना है जिसमें वे नए और अनजाने पहलू भी प्रकट होते चलते हैं, जो इससे पहले काव्य-अनुभव नहीं बन पाए थे। यहाँ देखने, जानने और जाँचने के इतने तरीक़े हैं, भाषा और शिल्प की इतनी विविधता है और इसके बावजूद अनुभवों की खोज के अनेक नए या अज्ञात रास्तों की सम्भावनाओं के संकेत भी हैं। यह शायद इसलिए सम्भव हुआ है कि जगूड़ी के लिए जीवन, कविता और भाषा में से कोई भी चीज़ आसान नहीं हैं; कहीं सरल रेखाएँ नहीं हैं; इसके बरक्स उलझे हुए रास्ते और तीखे मोड़ हैं जिन पर चलते हुए आगे नए रास्ते और नए मोड़ ही दिखते हैं। इस मानी में यह संग्रह जगूड़ी की काव्य-यात्रा में एक बड़े मोड़ की तरह है जो आगे की यात्रा को आसान नहीं बना देता, बल्कि नए रचनात्मक जोखिमों की ओर ले जाता है।</p> <p>भय भी शक्ति देता है की कविताओं के सरोकार बहुत विस्तृत हैं जिन्हें मोटे तौर पर छह हिस्सों में बाँटा गया है। जगूड़ी की आलोचनात्मक दृष्टि लोकगीतों और मिथकों के मनुष्य से लेकर आज के आर्थिक मनुष्य तक के संकटों से जूझती है; वह एक पहाड़ी बैल के सपने और दादी की आदिम दुनिया में भी जाती है और आधुनिक टेक्नोलॉजी या युद्धतंत्र की भी जाँच-परख करती है।</p> <p>इस तरह लीलाधर जगूड़ी अपने समय के भौतिक और नैतिक संकटों को कविता में दर्ज़ करते हैं और सवाल उठाते चलते हैं। लेकिन वे महज़ यथार्थ का लेखा-जोखा या अनुकृति नहीं करते, बल्कि उसकी पुनर्रचना करते हैं। अपने समय से जूझते हुए वे कविता में एक और या समान्तर समय की रचना करते हैं, जो ख़ास तौर से इस संग्रह की और आधुनिक हिन्दी कविता की भी एक उपलब्धि है।