Kathak Vitan : Kathak Ki Tatha- Katha
Author:
Rashmi VajpeyiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
्दी में स्वयं उसके अंचल में जन्मी-विकसी शास्त्रीय कलाओं पर बहुत कम विचार हुआ है : कथक इस दुखद स्थिति का अपवाद नहीं है। नृत्य विदुषी रश्मि वाजपेयी की कथक पर यह पुस्तक उनके निजी नृत्यानुभव, रसास्वादन और आलोचना-दृष्टि से लिखा गया एक ऐसा वृत्तान्त है जो पिछले चार दशकों में कथक में जो महत्त्वपूर्ण हुआ, उसकी समझ और संवेदना के साथ किया गया लेखा-जोखा है। उससे कथक की वर्तमान स्थिति, समस्याओं और सम्भावनाओं का एक गतिशील चित्र अनायास उभरता है।
इस वितान में बिरजू महाराज, कार्तिक राम, कुमुदिनी लाखिया से लेकर युवतर कथक-कलाकारों पर सूक्ष्म विश्लेषण है। साथ ही कथक के विभिन्न पक्षों; जैसे—अभिनय, कविता, समग्र सौन्दर्य, संगीत, मूल-स्वरूप, तालीम, प्रयोग, वेशभूषा आदि पर विचार किया गया है। कथक-प्रस्तुति को लेकर कुछ ज़रूरी सवाल उठाए गए हैं। यह सब पहली बार ऐसी भाषा में किया गया है, जिसमें आलोचना की सूक्ष्मता, जटिलता समझकर संवेदनशील ढंग से उसका सम्प्रेषण, समझ और संवेदना का सहज संयोग सभी हैं। हिन्दी में कथक को समझने, उसका गहरा रसास्वादन करने और उसमें अन्तर्निहित आशयों और व्यापक सांस्कृतिक अभिप्रायों को विश्लेषित करने के लिए जिस नए मुहावरे और दृष्टि की ज़रूरत है, उसकी एक सार्थक कोशिश यहाँ साफ़ नज़र आती है। उसमें सृजन और आलोचना, विचार और संवेदना घुले-मिले हैं, वैसे ही जैसे कथक में अपने श्रेष्ठ क्षणों में होते है
ISBN: 9789388753753
Pages: 270
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: आधुनिक मैथिलीक समग्र पत्रकारिताक इतिहास मे दिल्ली सँ प्रकाशित 'अंतिका'क भूमिका बहुत तरहें अन्यतम रहल छै। कोनो पूर्व वा समकालीन मैथिली पत्रकारिताक उपरौंझ मे वा प्रतिस्पर्धा मे नहि, अपितु पत्रिकाक अपन प्रयोगशील संरचना, दृष्टिकोण ओ बहुकोणीय साहित्य-प्रयोगक समानांतर अभ्यास रूप मे। हमरा बुझने मैथिलीक समकालीन आधुनिक बोधक रचनाशीलता केँ देशक समस्त भाषा-साहित्यक मुख्य प्रवाह मे आनि वैश्विक गतिविधि पर्यंत जोड़बा मे 'अंतिका'क भूमिका सदैव अहम आ उल्लेखनीय रहतैक। अपन एहि विशेष भूमिकाक अद्यतन शृंखला मे 'अंतिका'क आरंभिक 25 अंक सभ मे सँ आजुक समय मे हस्तक्षेप करैत महत्त्वपूर्ण चौंतीस कविक बीछल कविताक संकलन 'नवमल्लिका'क प्रकाशनक प्रयोग सेहो हमरा अभिनव आ प्रीतिकर लागलए तथा प्रासंगिक सेहो। हमरा जनैत एहि प्रक्रिया मे रचना ओ रचनाकारक सामाजिक प्रयोजनीयता एक टा नव संदर्भ मे भविष्योन्मुख होइत छै। निश्चये एहन उपक्रम कोनो सजग सचेष्ट सम्पादकीय बोध आ रचनात्मक ऊहिए सँ संभव होइत छै। -गंगेश गुंजन # मैथिली पत्रकारिताक परंपरा मे 'अंतिका' नवाचारक लेल जानल जाइत अछि जकर प्रमाण थिक ई कविता संचयन। 'नवमल्लिका' मे संकलित चारि पीढ़ीक कवि आ हुनक कविताक कैनवास बहुआयामी अछि आ प्रयोगधर्मी सेहो। मैथिलीक कोनो एक पत्रिकाक अंक सँ एहन उत्कृष्ट संकलन निकालब हमरा जनतबे असंभव। विषयक विविधता, काव्यगत-प्रयोगधर्मिता आ समग्र-प्रभावान्विति मे ई संकलन छात्र-प्राध्यापक आ कविताक विज्ञ पाठक लेल अनमोल उपहार थिक। — प्रो. ज्ञानतोष कुमार झा
Ek Parityakt Pul Ka Sapna
- Author Name:
Saumya Malviya
- Book Type:

- Description: ये कविताएँ बीते दो-एक दशकों में उपजी बेचैनियों और निराशाओं को स्वर देने का प्रयास करती हैं। वक़्त की चोट को शब्दों में महसूसना चोट पर मरहम का ही काम नहीं करता, बल्कि उसे ज़िन्दा भी रखता है। यह संग्रह अपने ज़ख़्मों के प्रति उत्तरदायी बने रहने की अपील करता हुआ, उनके भरने की उम्मीद की व्यर्थ और अश्लील सकारात्मकता से मुक्त उम्मीद भी करता है। जैसे-जैसे इस दौर की अलामतें हम पर नुमायाँ हुई हैं, कविता, विचार और संवेदना में भ्रम और कुहासा बढ़ा है। दृश्य के धुँधलाने के साथ दृष्टि भी क्षीण होती-सी महसूस हुई है। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ इस सन्दर्भ में दृष्टि की खोज भी हैं और उसके थिर और स्पष्ट बने रहने की टॉर्च भी। हालाँकि इन कविताओं में रोशनी की दिशोन्मुखता नहीं, आग की दहनप्रियता अधिक है और इस जलने में केवल सन्ताप नहीं, प्रतिदिन की, सम्बन्धों की, स्थितियों और संघर्षों की ऊष्मा भी है जो जीवन को ठंडेपन से दूर रखते हुए जीवन्त-जाग्रत बनाए रखती है। शिल्प और भाषा के स्तर पर अपने को परस्पर काटते हुए प्रयोग भी उस विकलता को अपने में विन्यस्त करते हैं जो अन्तर्वस्तु की ज़मीन पर जगह-जगह उद्घाटित हुई है। इन कविताओं में एक कवि की यात्रा भी है जो गणित, विज्ञान, दर्शन और समाजशास्त्र की गलियों में भटकती हुई बार-बार कविता के दयार पर लौटती है। ये लौटना ही उसका अरमान भी है और उसका निकष भी। नतीजन इनमें जो धधक रहा है, कई पाँवों का चक्कर, कई हाथों की दुआ है जो हर बार कविता पर आकर ख़त्म होती है। इसलिए तमाम उत्कंठाओं और व्याकुलताओं के बाद भी इन कविताओं में एक बसेरापन भी है और अपनी जगह की ठसक भी।
Jab Dharti Nagme Gayegi
- Author Name:
Sahir Ludhianvi
- Book Type:

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Description:
साहिर लुधियानवी के फ़िल्मी गीतों का अपना एक अलग मेयार है। उनके गीतों से हम हर मौक़े के लिए गीत चुन सकते हैं—चाहे प्रेम का इज़हार हो या जुदाई का ग़म, ईश्वर के समक्ष पीड़ा का बयान हो या फिर हास्य-व्यंग्य की धार। उनसे हम अपने दिल की कैफ़ियत को बख़ूबी बखान कर सकते हैं।
बचपन में पिता के घर से बेघर होने की त्रासदी, माँ के साथ पिता के अमानवीय बर्ताव आदि ने किशोर साहिर के अन्दर जो अवसाद का मवाद भरा था; उसने उनके पूरे जीवन को प्रभावित किया और आगे चलकर शब्दों में आकार लिया। उनके आधे-अधूरे प्रेम की पीड़ा ने भी उनके शब्दों को प्राण तथा क़लम को ख़ूबी बख़्शी, जिससे वे समाज की विसंगतियों और जीवन-जनित हर पहलू को ख़ूबसूरती व बेबाकी से उभार सके। यह साहिर की क़लम की ताक़त ही है कि फ़िल्मी नग़्मों का उनका यह संकलन संगीत के सहारे के बिना भी अपने पाठ में अपनी अदबी गुणवत्ता का क़ायल बना लेने का माद्दा रखता है।
Bagdad Se Ek Khat
- Author Name:
Mahendra Mishra
- Book Type:

- Description: अपने समय से संवाद करती ये कविताएँ कवि महेन्द्र मिश्र के लम्बे प्रशासकीय मौन के बाद सामने आ रही हैं। आज से कोई चौबीस वर्ष पहले उनका पहला काव्य-संकलन आया था—‘अनायास वर्षा’। तब से बहुत कुछ घटित हो चुका है दुनिया में और काव्य का परिदृश्य भी वही नहीं है, जो उस समय था। इन कविताओं से गुज़रते हुए मैंने अनुभव किया कि इस संग्रह के रचयिता ने इस बीच के लगभग सारे सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों को अपनी चेतना में जज़्ब करने के बाद वह वस्तु-फ़लक तैयार किया है, जिससे इस कृति को आकार मिलता है। यह बौद्धिक रूप से एक अत्यन्त सजग रचनाकार की रचना है—जिसे अपने से की गई एक लम्बी बहस भी कहा जा सकता है। वस्तुतः इस किताब का नाम ‘बग़दाद से एक ख़त’ वह संकेतक है, जो इन कविताओं के ‘टोन’ का निर्धारण करता है। मुझे अच्छा लगा कि वैचारिक आवेग वाली लम्बी कविताओं के साथ-साथ यहाँ कुछ अपेक्षाकृत छोटी कविताएँ भी हैं—जैसे ‘वह लड़का’ और ‘नदी’ जो अलग ढंग की कविताएँ हैं और पाठक से सीधे संवाद करती हैं। यह भरा-पूरा संग्रह प्रमाण है कि अपनी प्रशासकीय उलझनों में चाहे इस कवि ने कविता का साथ—अस्थायी रूप से—छोड़ दिया हो, पर कविता ने अपने इस ‘पुराने प्रेमी’ का साथ कभी नहीं छोड़ा। — केदारनाथ सिंह
Hasrat Mohani
- Author Name:
Hasrat Mohani
- Book Type:

- Description: चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है आरज़ू तेरी बरक़रार रहे दिल का क्या है रहा रहा न रहा वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
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