Aasha Balwati Hai Rajan
Author:
Nand ChaturvediPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
नन्द चतुर्वेदी हिन्दी के उन विरल कवियों में हैं जिन्होंने अपनी कविता को अपने जीवन-कर्म से जोड़कर सार्थक बनाया है। वे चिन्तन के स्तर पर समाजवादी रहे तथा उन्होंने अपने कवि-कर्म को समाज में व्याप्त ग़ैरबराबरी को मिटाने के लिए समर्पित किया। उनकी सम्पूर्ण कविता तथा इतर लेखन सामान्य जन के बेहतर जीवनयापन के प्रति एक ईमानदार आह्वान है। उनके कवि की मूल चिन्ता उस जन को सम्बोधित है जो सदियों से सामन्तवादी, पूँजीवादी और उपनिवेशवादी शोषण का शिकार रहा है। पर नन्द बाबू की देशज संवेदना ने अपनी कविताओं में इस जन की पीड़ाओं को ऐसी तीव्र अभिव्यक्ति दी है कि उनकी कविता पाठकों को उद्वेलित करती रही है। उन्होंने कविता की भाषा उसी आदमी से ग्रहण की है जो उनके कवि-कर्म का उपजीव्य है। वे अपनी कविता को अमूर्त बिम्बों की सरणि या मिथकीय घटाटोप से नहीं लादते, प्रत्युत सीधी-सादी ज़बान में कह देते हैं। लेकिन वे अपनी कविता को सीधे सपाटपन से भी बचाते हैं और सामान्य जीवन से कविता के औज़ार तलाशते हैं। परिणामस्वरूप उनकी कविता लोकधर्मिता से अलंकृत होती है। वे कबीर की परम्परा के कवि हैं जिनकी कविता जितनी सरल लगती है, उतनी ही विविध अर्थछवियों से सज्जित। नन्द बाबू की कविता का उत्स जनचेतना है तो उसका प्रवाह नैसर्गिक झरने की धारा की तरह है। किन्तु यह झरना पाठक को शीतलता प्रदान कर सुलाता नहीं, बल्कि अपनी कलकल ध्वनि से पाठक को उद्वेलित कर जनपक्षधर बनाता है। उनकी कविता में जो ताप है, वह उसे अग्निधर्मा बनाती है। यह ताप नन्द बाबू आमजन की पीड़ा से प्रसूत अश्रुओं से ग्रहण करते हैं। यही ऊष्मा उनकी कविता का मूल चरित्र है।</p>
<p>—हेतु भारद्वाज
ISBN: 9788126728510
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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देश-काल के शर से बिंधकर
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इस तरह हिन्दी जाति के सबसे बड़े जातीय कवि की जीवन-कथा के द्वारा निराला ने अपनी समसामयिक परिस्थितियों में रास्ता निकालने का संकेत दिया है।”
—नामवर सिंह
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