Shastra-Santan

Shastra-Santan

Authors(s):

Rameshwar Prem

Language:

Hindi

Pages:

87

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

174 mins

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Book Description

“कुरुक्षेत्र में दिन में ही रहो, बस! रात में वहाँ मत रहो। यदि तुम रात में वहाँ रहे तो दिन में जो देखोगे, ठीक उसका उलटा पाओगे।” ‘शस्त्र-सन्तान’ का यह सूत्र वाक्य—केवल ‘महाभारत’ (आरण्यक पर्व) तक ही सीमित नहीं है। अस्तित्व के तब से अब तक के महावृत्तान्त में यह गूँज रहा है और यह उसके अन्तर्विरोधों तथा दर्दनाक विडम्बना को एक झटके में उजागर करता है। क्या पता हम जो देख रहे हैं—अगले क्षण उसका अर्थ उलट जाए! यह नाटक निःशब्द रात्रि में गांधारी, शववाहक, शस्त्र संचयकर्ताओं और विलाप करती स्त्रियों के मद्धिम स्वरों से शुरू होकर एक ऐसी बीहड़ सांगीतिक रचना में परिवर्तित होता है, जहाँ करुणा के साथ शब्द और महारंग काक की आवाज़ें भी हैं। एक ऐसी सांगीतिक रचना जो खींचती है, रुलाती है और सत्य के काँटों से भरी मरुभूमि पर ढकेल देती है।</p> <p>यह नाटक कुरुक्षेत्र की रातों के बहाने रक्त में ऊभ-चूभ विगत, वर्तमान, आगत की भी कथा है, जिसमें जटिल सम्बन्धों और सत्य के लिए संघर्षरत आत्माओं का पुनरुद्‌घाटन होता है।</p> <p>बहुविदित महाआख्यान के बहाने ‘शस्त्र-सन्तान’ हिन्दी नाटक के इतिहास में समकालीन काव्य की भाषा के नाटकीय प्रक्षेपण का अप्रतिम उदाहरण है।

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