
Khana Thanda Ho Raha Hai
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
119
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
238 mins
Book Description
इसे शिवशंकरी का दुस्साहस ही कहा जाना चाहिए कि लगातार असंवेदनशील होती दुनिया में उनकी कहानियाँ मूलत: संवेदना की कहानियाँ हैं। मुख्य बात यह है कि उनकी संवेदना का कहीं अन्त नहीं होता बल्कि उनकी संवेदना इस समाज के अत्यधिक असंवेदनशील हो गए आदमी का हृदय-परिवर्तन करने का जोखिम उठाती है। ‘खाना ठंडा हो रहा है’ का बदचलन नायक नटराजन का यूँ बदलना नाटकीय भले ही लगे, मगर मानवता की यह ज़रूरी आवश्यकता है।</p> <p>उनकी संवेदना प्रेम और ममता का जड़ रूप नहीं है। वे नक़ली और दिखावटी संवेदना के जाल में न फँसकर शाश्वत संवेदना रचती हैं। उनका मानना है कि ‘स्टेप्ती’ भावशून्य यंत्रों के काम आ सकती है, मानव के नहीं। लेखिका की संवेदना अपनी अलग ज़मीन तलाशती है। अर्थात् किसी ख़ास बने-बनाए ढर्रे पर केन्द्रित न होकर उनकी संवेदना मानवीय सम्बन्धों के विभिन्न पहलुओं की गहरी पड़ताल करती है। वे कहीं माँ-बेटी के सम्बन्धों को अर्थ देती हैं तो कहीं समाज द्वारा तिरस्कृत नारी को हौसला। वक़्त के इस दौर में उनकी कहानियों से गुज़रना सही मायने में अपना और अपने होने का अर्थ खोजना है।