Betiyaan Mannu Ki
Author:
PriyadarshanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
‘बेटियाँ मन्नू की’—नाटक में वे पात्र और उनका वह जीवन है जिसे पहले मन्नू भंडारी अपनी कहानियों में और अपने उपन्यास में लाईं, वहाँ उन्हें नया जीवन दिया, नई सोच दी और अब उनमें से कुछ इस नाटक में हमारे आज के रू-ब-रू हो रहे हैं। यहाँ ये पात्र अपनी रचयिता से भी बात करते हैं, एक-दूसरे से भी और हमसे भी। ‘आपका बंटी’ उपन्यास के बंटी और शकुन के अलावा इसमें नौ और कहानियों के किरदार हैं और सब मिलकर उस समय को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जब उन्हें रचा गया; जानने की कोशिश करते हैं कि उन्हें वही रूप क्यों दिया; उनकी नियति वही क्यों थी, कुछ और क्यों नहीं! और इस तरह कई नये सवाल और कई सवालों के जबाव हमारे सामने खुलते हैं।</p>
<p>अलग-अलग कहानियों के पात्रों का यह बोलता कोलाज न सिर्फ उन चरित्रों को एक नई रोशनी में हमारे सामने लाता है, बल्कि कथाकार मन्नू भंडारी को समझने में भी हमारी मदद करता है।</p>
<p>नाटक विधा में यह एक दुर्लभ किस्म का प्रयोग है; दिलचस्प प्रयोग!
ISBN: 9789348157591
Pages: 88
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य साहित्य के श्रेष्ठ सृजकों में से एक हैं। साहित्य की रचनात्मक मूल्यवत्ता के प्रति सतत जागरूक रहकर अपने परिवेश, जीवन और समाज की हर छोटी-बड़ी विसंगति को उघाड़ने और उसके मूल पर चोट करने में उन्होंने कहीं चूक नहीं की।
प्रस्तुत पुस्तक में शरद जी के दो व्यंग्य नाटक संगृहीत हैं—‘अन्धों का हाथी’ तथा ‘एक था गधा उर्फ़ अलादाद ख़ाँ।’ दोनों ही नाटक समकालीन राजनीतिक परिदृश्य को प्रस्तुत करने के साथ-साथ राजनीति की अविच्छिन्न अन्तर्धारा और वृत्तियों से गहरा परिचय कराते हैं। एक ओर जनसामान्य तो दूसरी ओर जन-विशेष। सामान्यजन को मूर्ख बनाए रखने तथा इस्तेमाल करते रहने का एक अन्तहीन दुश्चक्र राजनीति का स्वभाव, शौक़, ज़रूरत या कहें कि उसका मौलिक अधिकार है—विडम्बना यह कि वह भी कर्तव्यों की शक्ल में।
राजनीति के तहत सतत घट रही इस मूल्यहंता त्रासदी की गहरी पकड़ इन नाटकों में मौजूद है। लेखक ने सहज अभिनेय नाट्य-शिल्प और सुपाठ्य भाषा-शैली के सहारे अपूर्व व्यंग्यात्मक वस्तु का निर्वाह किया है।
Nyayapriya
- Author Name:
Albert Camus
- Book Type:

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Description:
सुविख्यात फ्रेंच लेखक अल्बैर कामू का यह ऐतिहासिक नाटक सन् 1903 के क्रान्तिकालीन रूस में आतंकवादियों के एक गुट द्वारा आयोजित एक बम कांड का यथातथ्य चित्रण करता है। जैसा कि लेखक ने स्वयं कहा है कि ‘इस नाटक की कुछ स्थितियाँ यथार्थतः ऐतिहासिक हैं। इसके सभी पात्र वास्तविक हैं और उन्होंने उसी तरह का आचरण किया था, जैसा कि मैंने बताया है।’ यहाँ तक कि ‘न्यायप्रिय’ के नायक का नाम कलियायेव भी वास्तविक है।
अतिवादियों के इस गुट ने, जो क्रान्तिकारी समाजवादी पार्टी का ही हिस्सा था, रूसी सम्राट के चाचा प्रधान ड्यूक सार्ज की हत्या की योजना बनाई थी, जिसे कलियायेव ने पूरा किया। लेकिन लेखक के लिए इस समूचे घटनाक्रम में ड्यूक की हत्या के बजाय वह महान उद्देश्य और उसे पूरा करते हुए बचाए गए वे मानवीय मूल्य महत्त्वपूर्ण हैं, जो आतंकवाद को क्रान्तिकारिता के उच्चादर्श तक ले जाते हैं। कामू ने इस मुद्दे पर कलियायेव और दूसरे साथियों के बीच होनेवाली बहस को सर्वाधिक महत्त्व और विस्तार दिया है। सामाजिक अन्याय पर खड़ी एक दमनकारी राज्य-व्यवस्था से नाभिनालबद्ध दोषी व्यक्ति को खत्म करते हुए भी मानवीय करुणा, न्याय-भावना और आत्म-गौरव को बचाये रखने का संकल्प एक सच्चा क्रान्तिकारी ही साध सकता है। कलियायेव इन्हीं मूल्यों के लिए अपना बलिदान देता है और संसार के क्रान्तिकारी इतिहास में एक और अविस्मरणीय अध्याय जोड़ जाता है।
Kharia Ka Ghera
- Author Name:
Bertolt Brecht
- Book Type:

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Description:
प्रख्यात नाटककार बर्टोल्ट ब्रेष्ट के बहुचर्चित नाटक ‘कॉकेशियन चाक सर्किल’ का हिन्दी अनुवाद है : ‘खड़िया का घेरा’। अनुवादक हैं हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर।
प्रस्तुत नाटक जिस तरह की, और जिस संक्रान्ति की दुनिया हमारे सामने पेश करता है, उसकी अनुगूँज हमें अपने इतिहास और वर्तमान में मिलने लगती है। इस नाटक में वे सामन्त हैं जो सर्वहारा की क्रान्ति को कुचल देना चाहते हैं...हमारे यहाँ सत्ताधारी राजनीतिज्ञों का वर्ग है, जो जनता के नाम पर अपनी सत्ता को स्थापित कर रहा है। इस नाटक के काज़बेकी, काज़बेकी का भतीजा, डॉक्टर, किसान और स्वयं अजूदक—कहीं-न-कहीं हमें और हमारी स्थितियों को मूर्तिमान करते दिखाई देते हैं।
भ्रष्टाचार, पतन, मूल्यहीनता, अवसरवादिता, पदलोलुपता, जनता के नाम पर जनता का शोषण, न्यायहीनता और अन्धापन—जो इस नाटक में व्याप्त हैं, वे भारतीय प्रजातंत्र के संत्रास को भी उजागर कर रहे हैं। संस्थाओं, वर्गों और व्यक्तियों के नाम दूसरे हैं पर जनता एक ही तरह से अभिशप्त और संत्रस्त है। संक्रान्ति और सन्ताप का जो अनुभव यह नाटक देता है, वही आज के भारतीय का जीवन-अनुभव भी है। अनेक देशों में सदियों से चली आती एक लोककथा को आधुनिक सन्दर्भ दिया है ब्रेष्ट ने। कई भाषाओं में अनूदित और मंचित एक पठनीय नाट्य-कृति!
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