Murdon Ka Tila
Author:
Rangeya RaghavPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Unavailable
भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का इतिहास मुअनजोदड़ो के उत्खनन में मिली सिन्धु घाटी की सभ्यता से शुरू होता है। इस सभ्यता का विकसित स्वरूप उस समय की ज्ञात किसी सभ्यता की तुलना में अधिक उन्नत है। प्रसिद्ध उपन्यासकार रांगेय राघव ने अपने इस उपन्यास ‘मुर्दों का टीला’ में उस आदि सभ्यता के संसार का सूक्ष्म चित्रण किया है। मोअन-जो-दड़ो सिन्धी शब्द है। उसका अर्थ है—मृतकों का स्थान अर्थात् ‘मुर्दों का टीला’।</p>
<p>‘मुर्दों का टीला’ शीर्षक इस उपन्यास में रांगेय राघव ने एक रचनाकार की दृष्टि से मोअन-जो-दड़ो का उत्खनन करने का प्रयास किया है। इतिहास की पुस्तकों में तो इस सभ्यता के बारे में महज़ तथ्यात्मक विवरण ही मिल पाते हैं। लेकिन रांगेय राघव के इस उपन्यास के सहारे हम सिन्धु घाटी सभ्यता के समाज की जीवित धड़कनें सुनते हैं।</p>
<p>सिन्धु घाटी सभ्यता का स्वरूप क्या था? उस समाज के लोगों की जीवन-व्यवस्था का स्वरूप क्या था? रीति-रिवाज कैसे थे? शासन-व्यवस्था का स्वरूप क्या था? इन प्रश्नों का इतिहाससम्मत उत्तर आप इस उपन्यास में पाएँगे। भारतीय उपमहाद्वीप की अल्पज्ञात आदि सभ्यता को लेकर लिखा गया यह अद्वितीय उपन्यास है। रांगेय राघव का यह उपन्यास प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति में प्रवेश का पहला दरवाज़ा है।
ISBN: 9788183611026
Pages: 342
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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मैं बुरी तरह सपने देखता रहा हूँ। चूँकि सपने देखना-न-देखना अपने बस में नहीं होता, मैंने भी इन्हें देखा। आप सबकी तरह मैंने भी कभी नहीं चाहा कि स्वप्न फ़्रायड या युंग जैसों की सैद्धान्तिकता से आक्रान्त होकर आएँ या प्रसव पीड़ा की नीम बेहोशी में अखिल विश्व के पापनिवारक-ईश्वर के नए अवतार की सुखद आकाशवाणी के प्ले-बैक के साथ।
मीडिया के ईथर में तैरते हुए 1992 की नीम बेहोशी में ‘चिन्ताघर’ नामक लम्बा स्वप्न देखा गया था और चौदह बरस बाद अपने सिरहाने रखी 2006 की डायरी में जो सफे मिले, उनका नाम था—‘कॉमरेड गोडसे’। ऐसे जैसे एक बनवास से दूसरे बनवास में जाते हुए ख़्वाब के दो दिन।
कुछ लोग कहते हैं, तब अख़बारों के एडीटर की जगह मालिक के नाम ही छपते थे, चौदह साल बाद कहने लगे इश्तहारों और सूचनाओं के बंडलों पर जो एडीटर का नाम छपता है, वह मालिक के हुक्म बिना इंच भर न इधर हो, न उधर। कुछ लोग कहते हैं, बड़ा ईमान था जो हाथ से लिखते थे, चौदह साल बाद कहने लगे छोटा कम्प्यूटर है लाखों-लाख पढ़ते हैं।
तब एक लड़का था जो ‘चिन्ताघर’ में घूमता, मुट्ठियों में पसीने को तेजाब बनाता, दियासलाई उछालना चाहता था। चौदह साल बाद दो हो गए, जो ज़ोरदार मालिक और चमकदार एडीटर के चपरासी और साथी की शक्ल में आत्माओं के छुरे उठाए फिरते हैं। पहले दिन से चौदह बरस बाद के बनवासी दिन टकरा-टकरा कर चिंगारियाँ फेंकते हैं। इन चिंगारियों में हुई सुबह ख़्वाबों को खोल-खोल दे रही है।
आज इस सुबह सपनों की प्रकृति के अनुरूप भयंकर रूप से एक-दूसरे में गुम काल, स्थान और पात्रों के साथ मैं अपने सपनों की यथासम्भव जमावट का एक चालू चिट्ठा आपको पेश करता हूँ।
Dudiya : Tere Jalte Hue Mulk Mein
- Author Name:
Vishwash Patil
- Book Type:

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Description:
शाश्वत सत्य यह था कि आदिवासी जंगल की सन्तान हैं। मगर वस्तुस्थिति यह थी कि उनमें से किसी के पास भी जंगल की जमीन का कोई पट्टा नहीं लिखा था। न ही उनमें इतनी समझ थी कि उस जमीन को अपने नाम लिखाकर रखें। अपने पूर्वजों की तरह वह उस जमीन पर खेती करते थे। जंगल से जीवन यापन करते थे। लेकिन साठ के दशक में अचानक वन अधिकारी नए नियम-कायदों की लाठी से लैस होकर वहाँ घुस गए। आदिवासियों को चूल्हे में जलाने के लिए, जंगलों की सूखी लकड़ियाँ बीनने तक से रोका जाने लगा। उनके भेड़-बकरियों को जंगल में चराने पर रोक लगा दी गई। आदिवासी स्तब्ध रह गए कि यह क्या! जहाँ वे अपना हक समझते थे, पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिन जंगलों में रहते थे, वहाँ किसका राज आ गया।
–इसी पुस्तक से
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