Prem Bhi Ek Yatana Hai
Author:
Savita SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
अपने हठधर्मी स्त्रीवाद के लिए जानी जाती सविता सिंह की प्रेम कविता हिन्दी की दिलचस्प परिघटना इस मानी में है कि जैसे वह उस बहु परीक्षित सिद्धान्त का पुनर्स्मरण हो कि अपरिमेय कोमल को बचाने के लिए विकट दृढ़ता अपरिहार्य होती है। ‘प्रमे भी एक यातना है’ संग्रह सविता की अब तक की लिखी प्रेम कविताओं का संचयन है—प्रेम जो कैशोर्य, युवा और प्रौढ़ होते जीवन में लगभग उसी तापमान और तनाव में बना तो रहता है लेकिन उसमें आते सूक्ष्म बदलावों का अलक्षित रहना असंभव होता जाता है। मसलन प्रेम की चहलक़दमियों के दौरान जो प्रकृति बर्फ़ और बारिश में बाह्य का रोमांटिक परिपार्श्व निर्मित करती थी, वह आभ्यन्तर का हिस्सा बनती जाती है। सखा के उन्मन प्रतीक्षा पलों में वह सखी होती जाती है। चाँद, तारे, पत्तियाँ, फूल, चींटे-चींटियाँ—इनसे जीवन्त संवाद का जो नाता बनता है वह विफल होती मनुष्यता का नैसर्गिक विकल्प बनता जाता है।
हिन्दी की स्त्री कविता में इस अपूर्वत्व को अलक्षित छोड़ देना वैचारिक अपराध से कम नहीं होगा। प्रकृति सविता की मुँहबोली बहन है—उसके साथ लेसबियन तन्मयता का आध्यात्मिक समकालीन हिन्दी की मार्मिक निधि। एको फ़ेमिनिज़्म की वह विरल उदाहरण हैं। सविता स्त्रीवाद के अध्येता और सिद्धान्तकार के तौर पर प्रहारात्मक होती हैं लेकिन अपनी कविता में वह बिना किसी आहट के धीमे पदचाप के साथ गुज़रती हैं। इसीलिए उन्होंने समकालीन कविता के शब्दकोष के सबसे मुलायम और अवसाद भरे पदों को चुना है। इतनी सारी प्रेम कविताओं को पढ़कर यह भी लगता है कि प्रेम को सोचने-समझने, उसमें संसक्त होने और उसके देह-विदेह में विकंपित बने रहने के सिवा उनके पास कोई काम नहीं है—प्रेम सबसे बड़ा मानवीय मूल्य है। युद्धों, कड़वाहट, वर्चस्ववाद के इस विषाक्त युग में सविता सिंह की कविता पारस्परिकता का अनन्त पुनर्वास करती है : ढहते सम्बन्धों के समय में मर्ममय मरम्मत का कॉस्मिक सख्य भाव!
देवीप्रसाद मिश्र
ISBN: 9789360862053
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Daste-Saba
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: दस्ते-सबा’ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का दूसरा कविता-संग्रह है, जिसका न सिर्फ़ उनके साहित्य में, बल्कि समूचे प्रगतिशील साहित्य में ऐतिहासिक महत्त्व है। यह जब नवम्बर 1952 में प्रकाशित हुआ था, तब फ़ैज़ रावलपिंडी ‘साज़िश’ मुक़दमे के तहत हैदराबाद सेंट्रल जेल (पाकिस्तान) में बन्द थे। कॉलेज के दिनों में रोमान से भरपूर फ़ैज़ ने देश-दुनिया की जिन सच्चाइयों का सामना करते हुए ‘ग़मे-जानाँ’ और ‘ग़मे-दौराँ’ को एक ही तजुर्बे के दो पहलू माना था, वे और भी ठेठ सूरत में उनके सामने आ चुकी थीं। लेकिन अब इस तजुर्बे के साथ एक और चीज़ जुड़ चुकी थी—जेल का तजुर्बा। फ़ैज़ ने इसका ज़िक्र करते हुए ख़ुद लिखा है—‘जेलख़ाना आशिक़ी की तरह ख़ुद एक बुनियादी तजुर्बा है, जिसमें फ़िक्र-ओ-नज़र का एकाध नया दरीचा ख़ुद-ब-ख़ुद खुल जाता है।’ इसलिए इस संग्रह में हम फ़ैज़ के उस जज़्बे को और पुरज़ोर होता देख सकते हैं, जिसे कभी उन्होंने ‘क्यों न जहाँ का ग़म अपना लें’ कहकर दिखाया था। साथ ही अपने उसूलों के लिए लड़ने का फौलादी इरादा भी कि ‘मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है।’
Shame-Shehre-Yaran
- Author Name:
Faiz Ahmed 'Faiz'
- Book Type:

- Description: ‘ग़ुबारे-अय्याम’ फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ की आख़िरी कविता पुस्तक है जिसका प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ था। साल 1981 से 1984 के बीच लिखी गईं इन नज़्मों और ग़ज़लों का मुख्य स्वर अपने पूरे जीवन पर दृष्टिपात करने जैसा है। जैसाकि हमें मालूम है उनका निजी और सार्वजनिक जीवन असाधारण ढंग से घटनाप्रधान रहा। जेल भी गए और जीवन के कई साल निर्वासन में भी गुज़ारे। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ की पहली कविता ‘तुम ही कहो क्या करना है’ में फ़ैज़ ने प्रगतिशील सोच वाले उन तमाम लोगों के संघर्ष को शब्द दिए हैं जिन्होंने पूरी मानवता के लिए बराबरी और इज़्ज़त के सपने देखे थे; जो जवान हौसलों के साथ एक बड़ी दुनिया बनाने निकले थे, लेकिन उन्हें गहरी निराशा मिली—‘जब अपनी छाती में हमने/इस देस के घाओ देखे थे/था वेदों पर विश्वास बहुत/और याद बहुत से नुस्ख़े थे/...’ पर घाव इतने पुराने और जटिल थे कि ‘वेद इनकी टोह को पा न सके/और टोटके सब बेकार गए’। ‘ग़ुबारे-अय्याम’ में संकलित ‘एक नग़्मा कर्बला-ए-बेरूत के लिए’, ‘एक तराना मुजाहिदीने-फ़िलस्तीन के लिए’, ‘हिज्र की राख और विसाल के फूल’ तथा ‘आज शब कोई नहीं है’ जैसी नज़्में और ग़ज़लें उनके आख़िरी दिनों की पीड़ा को व्यक्त करती हैं लेकिन उम्मीद से ख़ाली वे भी नहीं हैं।
Pratinidhi Kavitayen : Nagarjun
- Author Name:
Nagarjun
- Book Type:

- Description: हिन्दी के आधुनिक कबीर नागार्जुन की कविता के बारे में डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है : ‘‘जहाँ मौत नहीं है, बुढ़ापा नहीं है, जनता के असन्तोष और राज्यसभाई जीवन का सन्तुलन नहीं है वह कविता है नागार्जुन की। ढाई पसली के घुमन्तू जीव, दमे के मरीज़, गृहस्थी का भार—फिर भी क्या ताक़त है नागार्जुन की कविताओं में! और कवियों में जहाँ छायावादी कल्पनाशीलता प्रबल हुई है, नागार्जुन की छायावादी काव्य-शैली कभी की ख़त्म हो चुकी है। अन्य कवियों में रहस्यवाद और यथार्थवाद को लेकर द्वन्द्व हुआ है, नागार्जुन का व्यंग्य और पैना हुआ है, क्रान्तिकारी आस्था और दृढ़ हुई है, उनके यथार्थ-चित्रण में अधिक विविधता और प्रौढ़ता आई है।...उनकी कविताएँ लोक-संस्कृति के इतना नज़दीक हैं कि उसी का एक विकसित रूप मालूम होती हैं। किन्तु वे लोकगीतों से भिन्न हैं, सबसे पहले अपनी भाषा—खड़ी बोली के कारण, उसके बाद अपनी प्रखर राजनीतिक चेतना के कारण, और अन्त में बोलचाल की भाषा की गति और लय को आधार मानकर नए-नए प्रयोगों के कारण। हिन्दीभाषी...किसान और मज़दूर जिस तरह की भाषा...समझते और बोलते हैं, उसका निखरा हुआ काव्यमय रूप नागार्जुन के यहाँ है।’’
Shoknach
- Author Name:
R. Chetankranti
- Book Type:

-
Description:
महत्त्वपूर्ण कवि आर. चेतनक्रांति का यह पहला संग्रह जवाबदेह भाषा और फ़ॉर्म के साथ-साथ हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में नए मुहावरे ईज़ाद करने के कारण अपनी मौलिक पहचान बनाता है।
चेतन की भाषा में एक ख़ास तरह का व्यंग्य है जो विडम्बनाओं एवं विद्रूपताओं की खिल्ली उड़ाता चलता है। जो लोग कविता (साहित्य) को मनोरंजन की चीज़ समझते हैं, उन्हें चेतन की कविताएँ निराश करेंगी क्योंकि ये कविताएँ पाठकों का टाइम पास नहीं करतीं, बल्कि रचनात्मक उत्तेजना और बेचैनी से भर देती हैं।
अपने कठिन समय की जटिल मानव-स्थितियों की ज़रूरी पड़ताल करती ये कविताएँ उन अवरोधक शक्तियों की भी शिनाख़्त करती हैं जो सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन की सहजता को अपने ढंग से नियंत्रित करना चाहती हैं। कवि के गहरे सरोकारों के दायरे में रिक्शेवाले, दैनिक वेतनभोगी, भूखे बच्चे एवं भूकम्प पीड़ित हैं तो दूसरी तरफ़ ‘सीलमपुर की लड़कियाँ’ भी हैं जिन्होंने अपनी हज़ारसाला पुरानी आत्माओं को उतारकर चुपके से एक नया सपना देखने का जोखिम उठाया है।
चेतन कविता और औसत राजमार्ग से अलग इस कठिन समय में अपनी रचनात्मक बेचैनी के साथ एक अलग और नया रास्ता बनाते हैं जो क़तार के आख़िरी आदमी के सपनों तक पहुँचता है और उसकी संवेदना से स्वयं को जोड़ता है। लेकिन चेतन अनुभूतियों के ही नहीं, दृढ़ विचारों और स्पष्ट ‘विज़न’ के कवि हैं।
Yaden Basant ki
- Author Name:
Leeladhar Mandloi
- Book Type:

- Description: यादें बसंत की खुशबूएँ हैं|
Aaradhana
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

- Description: आराधना के गीत निराला-काव्य के तीसरे चरण में रचे गए हैं, मुख्यतया 24 फरवरी 1952 से आरम्भ करके दिसम्बर 1952 के अन्त तक। इन गीतों से यह भ्रम हो सकता है कि निराला पीछे की ओर लौट गए हैं। वास्तविकता यह है कि "धर्म-भावना निराला में पहले भी थी, वह उनमें अन्त-अन्त तक बनी रही। उनके इस चरण के धार्मिक काव्य की विशेषता यह है कि वह हमें उद्विग्न करता है, आध्यात्मिक शान्ति निराला को कभी मिली भी नहीं, क्योंकि इस लोक से उन्होंने कभी मुँह नहीं मोड़ा, बल्कि इस लोक को अभाव और पीड़ा से मुक्त करने के लिए वे कभी सामाजिक और राजनीतिक आन्दोलनों की ओर देखते रहे और कभी ईश्वर की ओर। उनकी यह व्याकुलता ही उनके काव्य की सबसे बड़ी शक्ति है।" —नंदकिशोर नवल
Ek Baat Kahni Hai
- Author Name:
Salman Akhtar
- Book Type:

- Description: जब शायर कोई बात कह रहा होता है तो कहे का ज़ाविया बदलकर उसे छुपा भी रहा होता है और इस खेल में जो बाँकपन पैदा होता है वही शायरी का हुस्न है। जहाँ यह बाँकपन नहीं, वहाँ शायरी नहीं। कई बार शायर बस एक तिनका छिपाता है और पढ़ने वाले उसमें पूरा जंगल खोज लेते हैं। आप जब संग्रह के पन्नों से गुज़रेंगे तो आपकी मुलाक़ात शायर के छुपाए मा’नियों से भी होगी और उनसे भी जो आपके भीतर पोशीदा हैं। यह एक ऐसे शायर के कलाम की किताब है जिसने न सिर्फ़ सारी दुनिया देखी है बल्कि बदलावों से भरे पिछले साठ-सत्तर साल भी।
Herstory
- Author Name:
Neha Bansal
- Book Type:

- Description: Herstory is a new collection of poems by Neha Bansal, a civil servant, providing a fresh perspective on the lives of others.
Is Tarah Main
- Author Name:
Pawan Karan
- Book Type:

- Description: पवन करण की कविताएँ जीवन की स्वाभाविक हरकत की तरह आती हैं। वे हर जगह कवि हैं। इसीलिए उनकी कविताएँ हर कहीं से उग आती हैं। न उन्हें विषयों के लिए दिमाग़ को किसी अनोखी दुनिया में दौड़ाना पड़ता है, न कविता को वाणी देने के लिए भाषा के साथ कोई शारीरिक-मानसिक अभ्यास करना पड़ता है। दुनिया में रहना-जीना जितना प्राकृतिक है, उनकी कविताएँ भी लगभग वैसी ही हैं। त्योहार पर घर जाते आदमी का उल्लास हो या शहर के सबसे पुराने बैंड का रुदन जो सिर्फ़ उसे सुनाई देता है, या घर वह पुरानी कैंची जो ‘फ़िलहाल घर के कोष में/नोट के दो टुकड़ों की तरह रखी है।’ और ताला, ‘यह राजदार हमारा/अनुपस्थिति में हमारी/कभी झुकता नहीं टूट भले जाए।’ या फिर बिजली के खम्भे जो रात के सुनसान में ‘जब उनके नीचे से/गुज़रता है चौकीदार/उसके सिर पर हर बार/रोशनी की उजली टोपी/पहना देते हैं’ और जब वह देर तक वापस नहीं आता तो उसे ‘अपने नीचे लेटे कुत्तों में से/किसी एक को भेजते हैं उसे देखने।’ ये कविताएँ हमें व्याकुल करके किसी बदलाव की क़सम खाने के लिए नहीं उकसातीं, बल्कि जहाँ हम हैं, जिस भी मुद्रा में वहीं हमारे भीतर आकर वहीं से हमें बदलना शुरू कर देती हैं, और इनसे गुज़रकर जब हम वापस दुनिया के रूबरू होते हैं, सबसे पहले हमें अपनी दृष्टि नई लगती है, और दुनिया के अनेक कच्चे जोड़ अचानक हमें दिखाई देने लगते हैं जिन्हें फ़ौरन रफ़ू की या मरम्मत की ज़रूरत है।
Dunia Jaisi Maine Dekhi
- Author Name:
Jagdish Prasad Agrawal
- Book Type:

-
Description:
डॉ. जगदीश अग्रवाल प्रवासी भारतीय संघ से जुड़े हैं। विदेशों में रह रहे भारतीय के भीतर भी यहाँ के तीज-त्योहार, यहाँ के संस्कार, यहाँ के रीति-रिवाज, यहाँ का मौसम, पेड़-पौधे, पक्षी जीवित रहते हैं। विदेशों में बसने के बाद भी रिश्तों की नफ़ासत, रिश्तों के प्रति प्रतिबद्धताएँ बदल नहीं पातीं! कह सकते हैं कि प्रवासी भारतीय विदेशी सरज़मीं पर भारतीयता को जीवित रखने की कला को विकसित करते हैं। कभी यह भारतीयता कविता के रूप में सामने आती है तो कभी कहानी और उपन्यासों के रूप में।
डॉ. जगदीश अग्रवाल का यह कविता-संग्रह एक प्रवासी भारतीय की ऐसी ही भावनाओं को समर्पित है। इसका प्रकाशन एक तरह से प्रवासी भारतीयों को जोड़ने का भी प्रयास है—ऐसे भारतीयों को, जो किसी न किसी रूप में साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े हैं।
Pahar Yeh Bephar Ka
- Author Name:
Tushar Dhawal
- Book Type:

-
Description:
तुषार धवल की कविताओं का भूगोल काफ़ी विस्तृत है और बीहड़ भी। समकालीन
समाज अनेक रूपों, अनेक छवियों में अपनी तमाम जटिलताओं के साथ उनकी कविताओं में मौजूद
दिखाई देता है। उनकी कविता तेज़ी से बदल रहे परिवेश से उलझती-झगड़ती कविता है। आज के दौर
में पूँजी और तकनीक के मेल से मानव जीवन, स्वभाव और समाज बुनियादी बदलाव के दूरगामी
प्रभावों के सामने अकबकाया खड़ा है। जिस गति से ये बदलाव आज हो रहे हैं इतिहास में पहले कभी
नहीं हुए। कवि अपनी परख, संवेदना और समझ से इसी तेज़ी से बदल रहे अपने विश्व को समझना
चाह रहा है। सरोकार का यह बदलता सन्दर्भ उनकी कविताओं को पिछले दशकों के कवियों से यहीं
अलग कर देता है। ‘धूप में/सूखती अँतड़ियों के बीच/चल रहा हूँ/अपनी ज़मीन के लिए/हाथ में उठाए/
तुम्हारी जूठन का प्रसाद’। उनकी कविताओं में विस्थापन का दंश है, संघर्ष का वैभव है, रिश्तों में
बढ़ती अजनबीयत है, शहरों का बदलता परिदृश्य है, उदारीकरण के बाद नया बनता समाज है।
अकारण नहीं है कि उनकी कविताओं में कभी मोबाइल खो जाता है तो कभी एसएमएस करती लड़की
दिखाई दे जाती है। तो कभी दबाव में जी रहे आज के मनुष्य की मानसिक स्थिति ‘नींद में
चलता/सपने में बड़बड़ाता/मैं आदमी हूँ नई सदी का’ जैसी पंक्तियों से प्रकट होती है। वैसे तो ‘पहर
यह बेपहर का’ तुषार का पहला ही कविता-संग्रह है मगर उनका काव्य-मुहावरा प्रचलित समकालीन
काव्य-मुहावरों से नितान्त भिन्न है। आज हिन्दी कविता में जिस तरह की चीख़-पुकार, जिस तरह
का हाहाकार व्याप्त है, उसमें समकालीन कवियों की अपनी विशिष्टता कम ही लक्षित हो पाती है।
इसके विपरीत तुषार धवल की कविताओं में मितकथन की शैली अपनाई गई है। सादाबयानी और
मितकथन के मेल से उनकी कविताओं का मुहावरा तैयार होता है। उनकी कविताओं में केवल
बौद्धिकता नहीं है सहज रागात्मकता भी है। रागात्मकता जीवन-जगत के प्रति, निजी रिश्तों के प्रति।
‘चालीस साल कंधों पर/कारख़ाना उठाए/अब सो रहे हैं पिता/उनके सपने में आए हैं हाल पूछने/उनके
पिता’—केवल सम्बन्धों की परम्परा ही नहीं उनकी कविताओं में हिन्दी की कविता-परम्परा की अनुगूँजें
भी साफ़ सुनाई देती हैं। तुषार की कविताओं में अकविता का आवेश है तो नई कविता सी
प्रश्नाकुलता भी है। ‘पहर यह बेपहर का’ की कविताएँ बताती हैं कि यह नया कवि वास्तव में कितना
सिद्धहस्त है।
Tatpurush
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

-
Description:
अशोक वाजपेयी के इस संग्रह में उनकी गहरी जीवनासक्ति और जिजीविषा ने प्रौढ़ता और नया विस्तार पाया है। समकालीनता की अनेक सीमित और इकहरी धारणाओं से आक्रान्त कविता की आज की दुनिया में ये कविताएँ कुछ अलग और अकेली जान पड़ेंगी। उनमें अक्सर सभी तत्काल है और अभी और अनन्त के बीच, यहाँ और वहाँ के बीच सहज और लगभग अनिवार्य आवाजाही है। वे पड़ोस की संरचना करती कविताएँ हैं जिनमें कई बार अनेक सदियों का, देशकाल और नश्वरता का अतिक्रमण होता है। परिचित और सामान्य को थोड़ा–सा विचलित कर वे अप्रत्याशित को सहज स्वायत्त बनाती हैं। विराट सत्यों से अभिभूत होने या उनसे अपने लिए वैधता जुटाने के बजाय वे नगण्य को खोजती, बीनती और सहेजती कविताएँ हैं—अपने सच पर टिकी और गतिशील। वे बँधे–बँधाये ढर्रों से स्वयं तो मुक्त हैं ही, काव्यभाषा और दृष्टि को भी मुक्त करती हैं और हमें उस मुक्ति के लिए आविष्ट करती हैं।
पहले की ही तरह उनमें वैचारिकता अन्त:सलिल है और गहरी ऐन्द्रिय संहति है। उनका धुँधलका और झुटपुटा, उनमें कभी–कभार कौंधती रोशनी की लकीरें और उनमें हर समय मौजूद तलाश अपने खरेपन और तीखी पारदर्शिता से हमें अपनी दुनिया और अपनी भाषा पहचानने और शब्द और मनुष्य में अपनी पुनरास्था को स्वीकार करने की ओर ले जाती है। वह एक बार फिर ऐसी इन दिनों विरल कविता है जो प्रेम, समय, मृत्यु, नियति जैसे चरम प्रश्नों से जूझने की ओर प्रवृत्त करती है। एक अंगभंग समय में, अशोक वाजपेयी की ये नई कविताएँ, थोड़े से आदमी की पूरी मानवीयता की सम्भावना का सत्यापन हैं।
Yakshini
- Author Name:
Vinay Kumar
- Book Type:

-
Description:
ऐसा कहते हैं हठयोगी और युंग भी कि आदमी का वजूद, उसकी स्मृतियाँ, खासकर जातीय स्मृतियाँ, एक परतदार शिला की तरह उसके अवचेतन के मुँह पर सदियों पड़ी रहती हैं। फिर अचानक कोई ऐसा क्षण आता है कि शिला दरकती है, हहाता हुआ कुछ उमड़ आता है बाहर और कूल-कछार तोड़ता हुआ सारा आगत-विगत बहा ले जाता है। शेष रहता है एक संदीप्त वर्तमान और उस पर पाँव और चित्त टिकाकर कोई खड़ा रह गया तो उसकी बूँद समुद्र हो जाती है यानी अगाध हो जाती है उसकी चेतना ।
ऐसा लगता है कि अपने डॉ. विनय सचमुच ही प्रत्यभिज्ञा के किसी विराट एहसास से गुजरे हैं। जिन बारह आर्किटाइपों की बात युग कहते हैं-योद्धा, प्रेमी, संन्यासी, सेवा-निपुण, अभियानी, जादूगर, विदूषक, नियोजक, द्रष्टा, भोला-भंडारी, विद्रोही वगैरह, उनमें इनका वाला आर्किटाइप प्रेमी-संन्यासी विद्रोही तीनों की मिट्टी मिलाकर बना होगा जैसा कि सर्जकों का अक्सर होता है।
एक क्षीण कथा-वृत्त के सहारे तीन मुख्य किरदार कौंधते हैं-रानी, उसकी अनुचरी यक्षी और वह शिल्पी जो आया तो था रानी का उद्यान तरह-तरह की मूर्तियों से सजाने पर यक्षी की छवि उसके भीतर के पानियों में उसके जाने-अनजाने, चाहे अनचाहे ऐसी उतरी कि सबसे बड़ी शिला पर उसी की मूर्ति उत्कीर्ण हो गई। ईर्ष्या-दग्ध रानी की तलवार उसका एक हाथ काट तो गई पर फिर सदियों बाद जब भग्न मूर्ति के आश्रय उसकी स्मृतियाँ जगीं तो उमड़ पड़ा पचासी बन्दों का सजग आत्म-निवेदन इसकी सान्द्रता, त्वरा और चित्रात्मकता डी.एच. लॉरेन्स के मैन-वुमन-कॉस्मॉस वाले उस अभंग गुरुत्वाकर्षण की याद दिला देती है जिसका आवेग हिन्दी की कुछ और लम्बी कविताओं में कल-कल छल-छल करके बहता दिखाई देता है (जैसे कि उर्वशी, कनुप्रिया, मगध, बाघ आदि में)।
Bhartrihari : Kavita Ka Paras Patthar
- Author Name:
Sudhir Ranjan Singh
- Book Type:

-
Description:
ऋषियों की नैतिक दृढ़ता, कालिदास, भारवि और माघ की ऐन्द्रिकता और लालित्य, और भक्त कवियों की तन्मयता, और इन सबके साथ ही मानवीय अन्तर्विरोधों की गहरी पकड़—इतना कुछ एक कवि में और वह भी एकश्लोकीय कविता के द्वारा, यह अचम्भित करनेवाली बात है। भर्तृहरि क्लासिकी संस्कृत कविता की परम्परा के साथ भी हैं और उससे हटकर भी। इसलिए उनका अस्तित्व किसी एक व्यक्ति के रूप में भले न दिखाई पड़े और पहचान राजा और योगी जैसे कई व्यक्तियों के रूप में क्यों न होती रही हो, इस तथ्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि हमारे यहाँ कविता की एक विशेष परम्परा रही थी जिसे भर्तृहरि नामक व्यक्ति से जोड़े बग़ैर ख़ुद कविता का व्यक्तित्व मुखर नहीं होता होगा।
भर्तृहरि सुभाषितों के कवि हैं—एकश्लोकीय कविता के कवि। जिन अनुभूतियों ने भर्तृहरि को सबसे अधिक संचालित किया है, उनमें आवेग का निर्णायक महत्त्व है।
कोसम्बी ने भर्तृहरि की दांते और गोएथे से तुलना करते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण किन्तु विवाद योग्य निष्कर्ष निकाले हैं। वह कहते हैं कि दांते का निर्वासन उनकी नागरिक मान्यताओं के प्रति अटल विश्वास के कारण था। इसी के वजन पर भर्तृहरि के लिए कहा जा सकता है कि उनका वैराग्य कोरा आत्मनिर्वासन नहीं है, उसके पीछे उनकी सामाजिक स्वतंत्रता की भावना और उस पर अटल विश्वास है। उसका अपने समय की राजनीतिक, आर्थिक बनावट से तीखा विरोध है।
पराजय का स्वीकार दूर-दूर तक नहीं है भर्तृहरि में। काल अथवा मृत्यु का स्वीकार अवश्य है।
भर्तृहरि की कविता का महत्त्व समूची मानवजाति के लिए तो है ही, सबसे बढ़कर उसका महत्त्व हमारे कवियों के लिए है। विषय से भटके हुए हम जैसे कवियों के लिए भर्तृहरि की कविताएँ विषय हैं; और इस उलझन-भरे समय में सुलझी हुई दृष्टि हैं।
Udte Hain Ababeel
- Author Name:
Sushma Naithani
- Book Type:

- Description: Poems
Musaddas-E-Hali
- Author Name:
Khwaja Altaf Hussain 'Hali'
- Book Type:

-
Description:
‘मुसद्दस’ के काव्यात्मक पक्ष पर टिप्पणी करते हुए शमशेर कहते हैं : ‘उसका संगठन अद्भुत रूप से पुष्ट जान पड़ता है। कोई एक भाव बिलकुल उसी रूप में दोहराया नहीं गया। पूरी कविता की लड़ियाँ आपस में इस तरह गुँथी हुई हैं कि अगर एक को भी तोड़कर अलग करें तो पूरी कविता का सौन्दर्य उसी परिणाम में टूटता और बिखरता है।’
‘मुसद्दस-ए-हाली’ की रचना 1879 में उस समय हुई जब भारतीय समाज 1857 के विद्रोह में पराजित होने के बाद पस्ती और हताशा के दौर से गुज़र रहा था। ख़ास तौर पर भारतीय मुस्लिम समाज। मौलाना अल्ताफ़ हुसैन ‘हाली’ ने इसकी रचना सर सैयद अहमद ख़ाँ के आग्रह पर क़ौम को इस हालात से जगाने के लिए की। इस कृति की अहमियत का अनुमान सर सैयद के इस कथन से लगाया जा सकता है कि ‘अगर ख़ुदा ने मुझसे पूछा कि दुनिया में तुमने क्या किया तो मैं जवाब दूँगा कि मैंने हाली से ‘मुसद्दस-ए-हाली’ लिखवाई।’
इसी से प्रेरित होकर मैथिलीशरण गुप्त ने हिन्दू समाज को ध्यान में रखकर अपनी प्रसिद्ध कृति ‘भारत भारती’ की रचना की जो 1913 में प्रकाशित हुई। दोनों ही रचनाएँ अपने-अपने ढंग से भारत के लोगों को अपने वैभवशाली अतीत का स्मरण करने और अशिक्षा, अज्ञान तथा मानसिक दासता से मुक्त होने का आह्वान करती हैं।
यह ‘मुसद्दस-ए-हाली’ का प्रामाणिक पाठ है जिसे हिन्दी के प्रतिष्ठित कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने सम्पादित किया है। दस्तावेज़ी महत्त्व की इस प्रस्तुति में प्रयास किया गया है कि मुसद्दस के मूल पाठ के साथ-साथ इसकी पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक महत्ता भी पाठकों के सामने मौजूद रहे। यह काम करता है कवियों के कवि कहे जानेवाले शमशेर बहादुर सिंह का एक महत्त्वपूर्ण आलेख जो उन्होंने ‘भारत भारती’ और ‘मुसद्दस-ए-हाली’ को साथ-साथ पढ़ते हुए लिखा था। हाली द्वारा लिखी गईं पहले और दूसरे संस्करणों की भूमिकाओं का लिप्यन्तरण भी इसमें शामिल है।
Garbh ki utaran
- Author Name:
Pushpita Awasthi
- Book Type:

- Description: A Collections of Hindi Poems by Pushpita Awasthi
Bikhre Hain Swarg
- Author Name:
Dr. Urmila Singh
- Book Type:

- Description: This book has no description
Adab Mein Baaeen Pasli : Afro-Asiayi Kavitayen : Vol. 1
- Author Name:
Nasera Sharma
- Book Type:

-
Description:
पिछले पन्द्रह-बीस साल से जो माहौल बन रहा था, उससे यह ध्वनि निकल रही थी कि मध्यपूर्वी देशों को सख़्त ज़रूरत है बदलाव की, शिक्षा की और लोकतंत्र की। मगर जो बात छुपी हुई थी, इस प्रचार-बिगुल के पीछे कि वहाँ के बुद्धिजीवियों, रचनाकारों, कलाकारों और आम आदमी पर क्या गुज़र रही है और इन देशों के हाकिम महान शक्तियों की इच्छाओं और जनता की ज़रूरतों के बीच सन्तुलन कैसे साधते हैं और एकाएक तख़्ता पलट जाता है या फिर देश में विद्रोह उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा उठता है और पलक झपकते ही वह मार डाले जाते हैं। ऐसी स्थिति को वहाँ का संवेदनशील वर्ग कैसे झेलता है जो जेल में है, जलावतन है या फिर देश से भागकर अपनी जान बचाने के फ़िराक़ में है। उसके ख़्यालात क्या हैं? वह क्यों नहीं सरकार की आलोचना करना बन्द करते हैं और क़लम गिरवी रखकर आराम से ज़िन्दगी जीते हैं जैसे बहुत से लोग जीते हैं अपना ज़मीर बेचकर।
'अदब में बाईं पसली’ किसी नारे या स्त्री-विमर्श के एकतरफ़ा नज़रिए को लेकर आपके सामने नहीं रखी गई है, बल्कि मौजूदा दौर से उसे जोड़ दिया गया है। यह तलाश है एक-दूसरे में अपने को तलाश करने की और साथ ही उस परिवेश को समझने की जिसे ख़ुद इंसान ने इंसान के लिए दुश्वार बना दिया है।
इस पुस्तक में नए-पुराने रचनाकार एक साथ हैं। मर्द और औरत क़लमकारों की रचनाएँ आमने-सामने हैं, जो विभिन्न संवेदनाओं, बिम्बों और रूपकों से हमारा परिचय कराती हैं।
Amrushatakam
- Author Name:
Kamleshdutt Tripathi
- Book Type:

-
Description:
‘अमरुशतकम्’ संस्कृत काव्य का एक गौरव-ग्रन्थ है। उसमें ऐन्द्रियता और शृंगार की, प्रेम और रति की अपार सूक्ष्मताएँ और छबियाँ ऐसे अद्भुत काव्य-कौशल से उकेरी गई हैं कि उनका मूल संस्कृत के अलावा हिन्दी अनुवाद में भी आस्वाद सम्भव है। यह संचयन एक बार फिर याद दिलाता है कि भारतीय शृंगार की परम्परा विश्व स्तर पर एक अनोखी परम्परा है जिसमें बखान, उन्मीलन, सांकेतिकता, अन्वय आदि के अनेक पक्ष कविता में सहज सम्भव होते रहे हैं। हम इस पुस्तक के पुनर्प्रकाशन से उस विरासत की ओर आधुनिक काव्य-रसिकों का ध्यान खींचने की चेष्टा कर रहे हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...